बाजार..... 11 वा धारावाहिक ----
स्पर्श जिंदगी मे ज़ब अचानक किसी से होता हैं, तो कभी कभी वो कितना सकून भरा समझौता होता हैं। समझने मे बेशक देरी ही लगे, पर कुछ कीमती पल समेटे हुए होता हैं पर - स्पर्श। कहने को देव एक कलाकार ही था। पर उसका दिल भी कलाकार ही था, किसी को चोट पहुंच जाए, ये वो हरगिज नहीं बर्दाश्त कर सकता था।
नयी एक्टर्स को वो इतना गहरायी मे सब एक्टिंग के कुछ सुझाव दें चूका था। कि नयी कलाकार का प्यार देव से हो चूका था... पर देव इससे अनभिगे था। वो आपनी पत्नी के छूट किसी और से कोई भी मेल मिलाप नहीं रखना चाहता था... लिली के लिए वो पूर्ण तौर पर वो समर्पित था। बस यही उसकी एक मर्म स्पर्शी कहानी थी। ये कहानी एक अटूट पहचान की तब बनती हैं, ज़ब लिली देव को आपने हाथ से आमलेट खिलाती हैं। बहुत अच्छा लगा था देव को, " कुमुदनी तुम कितना स्वादिष्ट बनाती हो हर खाना... आखिर तुम्हे सब कैसे आता हैं। " लिली मुस्करा देती हैं, " आज देव जी आपको बैगन भरे हुए खिलाऊंगी। " लिली ने प्यार भरे लहजे मे कहा।
तभी --------------
फोन की घंटी वजी। देव ने फोन उठा लिया था।
दूसरी और से सुरीली आवाज़ से ----" हैल्लो, देव जी। "
" ओह रानी आप ---- कैसी हैं आप। "
"ठीक हूँ !" रानी ने चुपी तोड़ ते हुए कहा।
"और कल जो तूफान आया था, कोई नुकसान तो नहीं हुआ... " देव ने भोले से स्वर मे कहा।
" हां बहुत नुकसान हुआ... " मशकरी की रानी ने ---" आप का वो छाता जो आपने मुझे दिया था, उड़ गया... " फिर दोनों खूब हसे। फोन अचनाक कट कर गया था। फिर देव ने कुमुदनी के माथे पर चूबन तसदीक किया। फिर उसके फुले हुए पेट पर चूबन लिया। " अब कुमुदनी मेरी बेटी कया कर रही हैं, सो रही होंगी। "
"---हाहाहा " लिली हस पड़ी, " बता दू जी, शैतान हैं, टागे मारता हैं... सच मे... " देव को उसने चुटकी भरते हुए कहा।
सड़क की तरफ की खिड़की खुली थी। घना शाम का धुंधला पन छा रहा था। परिंदो और पंछियों की चेचाहाट आपने घोसलों की रवानगी मे जुटे हुए लग रहे थे। अब तकरीबन आठ या नौ का टाइम हो चूका होगा। रात ने धीरे धीरे सारे बम्बे को आगोश मे ले लिया था।
बम्बे रात को भी जागता हैं... यहां के लोग कब सोते होंगे। इनकी भी तकदीरे होंगी... जो बहुत युद्ध करते होंगे, वक़्त से, उन हादसों से, जो इनको भी उठने का मौका मिल सके। बहुत की ज़िन्दगी तो अखबारों मे भी गुमनान की तरा ही आती हैं.... खबर बनती होंगी.... ठंड मे एक गुमनाम आदमी या लड़की ने सुसाइड कर लीं... कयो वक्त ही नहीं मिला, कलाकारी दिखाने को...
रानी जानती थी, इस फ़िल्म के बाद सिर्फ एक देव हैं, जो मुझे पार ला सकता हैं, कुछ कड़वे समझौते करने पड़े, फ़िल्म तक आने के। इतना कड़वा सत्य था। वो सोच कर ही थर थर काँप जाती थी... समझौते कया होंगे... नारी के... अंधेरों मे कया होता हैं, बस जो घटित होता हैं, वो कभी कहानी बन जाती हैं... रानी भी उनमे एक थी।-------
(चलदा ) नीरज शर्मा
शहकोट, जालंधर।
पिन :- 144702