मैंने घड़ी में समय देखा तो रात के 12 बज रहे थे, घर में सन्नाटा था। शायद सब लोग सो गए थे।
“अब मुझे भी सोना चाहिए।” यही सोच कर मैं भी छत पर सोने के लिए आ गया।
मैंने चारों तरफ देखा तो नजर आया अंधकार, आसमान में टिमटिमाते सितारे, और एक शान्ति। मैंने गहरी सांस लेकर आसमान की ओर देखा। जहाँ एक लाल तारा चमक रहा था और मैं सो गया।
न जाने कब मेरी आँख खुली और मैंने पाया कि मैं किसी ऊसर पर खड़ा हूँ, और दूर-दूर तक बस अंधकार है और एक जानलेवा खामोशी छाई है; खामोशी इतनी गहरी थी कि मेरे हृदय का स्पंदन मुझे सुनाई दे रहा था। मैं डर गया!
“यह कहाँ आ गया मैं?” मैंने स्वयं से प्रश्न किया। “क्या मैं मर गया हूँ?”
मेरे अन्दर से एक आवाज आई। “यह मंगल ग्रह है, आज से तुम्हें यहीं रहना है। धरती नष्ट हो गई है और इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में केवल तुम अकेले बचे हो।”
मैंने आश्चर्य से चारों तरफ देखा लेकिन न जाने वह स्वर उस अंधकार में कहाँ छुप गया था। “शायद मेरा वहम है!”
और मैं यहाँ-वहाँ भटकने लगा कुछ देर भटकने के बाद थक कर एक पत्थर का सहारा लेकर बैठ गया और आंखें बंद कर ली।
मेरे कोनों में पृथ्वी का शोर गूंज रहा था, उस गौरैया की चीख मुझे सुनाई दे रही थी, हाथी चिंघाड़ रहे थे। और एका-एक मेरे सामने पृथ्वी का एक दृश्य प्रकट हुआ। हिम पिंगल गई थी, ज्वालामुखी फट रहे थे, जंगल दावानल से धधक रहा था। आसमान से तेजाब बरस रहा था, जानवर यहाँ-वहाँ भाग रहे थे।
“शायद महाप्रलय है!” मैं यह कह कर एक ओर भागा और एक पत्थर की ठोकर से गिर पड़ा।
मेरे चारों ओर आग जल रहीं थी। मैं बस उस आग में जलने ही वाला था कि एक गिलहरी ने मेरे पास आकर शोर किया, इतने में एक गौरैया आ गई। उसने न जाने मेरी ओर किस भाव से देखा और वह फिर से उड़ गई। इतने में एक हाथी मेरे पास आया। शायद उसकी सूंड में पानी था मैंने देखा कि वह चिड़िया उस हाथी के सिर पर बैठी है और कुछ निर्देश दे रही है और हाथी ने सूंड के पानी से आग बुझा दी।
मेरी आँखों से झर-झर आंसू बहने लगे! मैंने उस गिलहरी को रोते हुए धन्यवाद किया!
लेकिन वह परेशान नहीं थी, उसकी आँखों में डर नहीं था। उसकी आँखों में एक विचित्र-सा जोश था, एक जुनून था, आत्मविश्वास था। मैं नहीं जानता था कि वह आत्मविश्वास उसके पास कहाँ से आया था शायद वह भी नहीं जानती थी। अगर उस आत्मविश्वास की एक बूँद मुझे मिल जाती तो शायद मैं इस तरह खुद को मरने नहीं देता, बचा लेता। लेकिन मेरे मन की ऊसर भूमि पर आत्मविश्वास का अंकुर नहीं फूटा! लेकिन वह चिड़िया इस ग्रह को बचाना चाहती थी। देखते ही देखते उस हाथी ने मुझे सूंड से लपेट कर आसमान की तरफ फेंका। मैंने कोशिश की कि मैं उस गिलहरी और चिड़िया को साथ ले लूँ। लेकिन ऐसा न हो सका।
जब हाथी मुझे फेंक रहा था तब वह चिड़िया मुझे अलविदा कह रही थी और सहसा वही अंतहीन अंधकार मेरी आँखो के सामने फिर से छा गया।
मैंने पाया कि मैं वही पड़ा कांप रहा हूँ, मेरा शरीर पसीने से सराबोर हो रखा है और मैं रो रहा हूँ। और मुझे आसमान में एक नीला चमकदार तारा नजर आया और मैंने आँखे बंद कर ली। मुझे महसूस हुआ कि मैं मर रहा हूँ, मेरी सांसे अटक रही हो। और मैं वहीं पड़ा रहा, उस घुटन में।
वहाँ जीवन की अनुपस्थिति थी, भावनाओं का अभाव था। वहां केवल भय था, मातम था और वह अंतहीन अंधकार था। वहाँ भय और मातम का अंकुर भी तब फूटा जब वहाँ मेरी उपस्थिति हुई थी। मेरे आने से पहले वहां क्या था यह बताना मुश्किल है शायद असंभव है!
कुछ देर बाद मैंने एक स्वर सुना। एक चिड़िया चहक रही थी। उसके पंखों का स्वर मुझे सुनाई दे रहा था। और उसके पंखों की हवा भी मुझे महसूस हुई।
मैंने डरते हुए आँखे खोली। मैं छत पर था मेरा पूरा शरीर पसीने से लथपथ था। और एक चिड़िया वहां पर थी। जैसे ही मैं उठा, वह उड़ कर आँगन में लगे शीशम के वृक्ष पर जा बैठी। मैं भी भाग कर उसके पीछे गया।
मैंने देखा सूर्य देव उदय हो रहे थे, पूरब में एक पवित्र प्रकाश फेला था, पक्षी कलरव कर रहे थे, हृदयोन्मादिनी हवा बह रही थी, फूलों की सुगंध आ रही थी, मोर छतरी ताने किलोल कर रहे थे। और मैं खड़ा रो रहा था। लेकिन यह आँसु खुशी के थे ऐसा लग रहा था जैसे मैं मर कर फिर लोटा हूँ। इतने में एक मलयज हवा का झोंका मुझे स्पर्श कर चला गया।
मैं उस शीशम के वृक्ष को अपने बाहुपाश में भर कर रोने लगा। और वही गिलहरी और चिड़िया मुझे निर्निमेष पलकों से निहार रही थी। मैंने उसकी और हाथ बढ़ाया और वह मेरे हाथ पर आ बैठी। मुझे लगा कि वह मुस्कुरा रही है। मैंने दो बाल्टी पानी वृक्ष की जड़ो में डाला और वहां उसकी सुकून भरी छाँव में बैठ कर सोचने लगा कि
“पृथ्वी को नष्ट नहीं होने दूँगा! मंगल पर भेले मानव जाए लेकिन पृथ्वी जैसी है वैसी ही रहनी चाहिए।”
मैंने एक गहरी सांस ली और आँखें बंद कर ली और सोचने लगा। और मेरे आंखों के सामने एक चलचित्र चलने लगा! वह हसीन वादियां, सावन की बिरखा, मधुमास का मनोरम और महकता वातावरण, कोयल का प्रभाती गीत, हृदयोन्मादिनी हवा के झोंके, खास पर बिछी शबनम की तरी, चमन की खुशबू, हरे भरे जंगल, लहराते खेत, ढलता सूरज, शांत और मनभावन रात, टिमटिमाते सितारे, शरद का चंद्रमा और उसकी चांदनी, फूलों की सौरभ और महकी फिजा।
नदियों का निर्मल जल, पानी से लबालब जलाशय, हिमगिरी की ठंड और सरजमीं पर बिछी पराग। “मैं इसे नहीं खो सकता।” मैंने कहा। मेरे पीछे भाभी खड़ी थी। वह बोली। क्या नहीं खो सकते?”
“आहा कितना मनोरम दृश्य है, मुझे घोर अनुभूति हो रही है!” मैंने कहा।
“यह अनुभूति बाद में कर लेना, पहले चाय पी लो।” उन्होंने मुस्कुराकर कहा।
और मैं भीतर चला गया।