Tere ishq mi ho jau fana - 19 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 19

The Author
Featured Books
Categories
Share

तेरे इश्क में हो जाऊं फना - 19

माँ और बेटी की प्यारी नोकझोंक

माथूर गाउस में हलचल भरा दिन था। घर में सन्नाटा तो कभी-कभी ही होता था, नहीं तो हमेशा कुछ न कुछ चलता ही रहता। राधा आज सुबह से ही घर के कामों में व्यस्त थी। रसोई में वह आटा गूंथने लगी। उसकी बेटी समीरा कहीं नज़र नहीं आ रही थी, तो उसने सोचा कि शायद वह अपने कमरे में पढ़ाई कर रही होगी। लेकिन समीरा तो कुछ और ही सोच रही थी।

एक छोटी सी शरारत

समीरा को अपनी माँ को छेड़ने में बड़ा मज़ा आता था। वह हमेशा सोचती थी कि उसकी माँ बहुत सीरियस रहती है और वह चाहती थी कि माँ भी कभी-कभी हँसे, मज़े करे। इसलिए, उसने माँ को डराने की योजना बनाई।

वह धीरे-धीरे दबे पाँव रसोई में आई और जैसे ही राधा आटा गूंथने में मशगूल हुई, उसने अचानक "बू!" कहकर चिल्ला दिया। राधा एक पल के लिए सच में डर गई और उसके हाथ का आटा गिरते-गिरते बचा। समीरा यह देख ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगी।

"म्मी, आप तो डर गईं!" समीरा ने हँसते हुए कहा और तालियाँ बजाने लगी।

राधा ने अपनी बेटी की ओर देखा और थोड़ी झूठी नाराजगी दिखाते हुए बोली, "तुम हमेशा मेरे साथ ऐसा क्यों करती हो, बेटा? मैं तुम्हारी माँ हूँ, कोई सहेली नहीं!"

लेकिन समीरा को पता था कि माँ बस नाटक कर रही है। वह मुस्कुराई और प्यार से माँ के गले में बाहें डालकर बोली, "मम्मी, आप सिर्फ मेरी माँ नहीं, मेरी सबसे अच्छी दोस्त भी हैं!"

माँ-बेटी का अटूट रिश्ता

राधा यह सुनकर मुस्कुरा दी। माँ और बेटी के बीच का यह रिश्ता केवल डांट और अनुशासन का नहीं था, बल्कि इसमें प्रेम, अपनापन और दोस्ती भी थी।

"बेटा, माँ और दोस्त में फर्क होता है। दोस्त गलतियाँ करने दे सकते हैं, लेकिन माँ कभी नहीं। माँ को हमेशा तुम्हारा भला ही सोचना पड़ता है," राधा ने समझाने की कोशिश की।

"लेकिन माँ, क्या भला सोचने के लिए प्यार से दोस्ती करना ज़रूरी नहीं?" समीरा ने मासूमियत से पूछा।

राधा को अपनी बेटी की बात में दम लगा। उसने हल्के से समीरा की नाक खींची और हँसते हुए कहा, "अच्छा तो मैडम चाहती हैं कि उनकी माँ उनकी दोस्त भी बने?"

समीरा ने सिर हिलाया, "हाँ मम्मी! जब भी मैं उदास होती हूँ, जब भी मुझसे कोई बात शेयर करनी होती है, तो मैं चाहती हूँ कि आप मुझे डांटने के बजाय मेरी बात समझें। जैसे मेरी सहेली मेरी बातें सुनती है, वैसे ही आप भी सुनें।"

राधा कुछ देर तक बेटी की बातों को समझने की कोशिश करती रही। सच ही तो कह रही थी समीरा। समय बदल गया था। अब माँ-बेटी के रिश्ते में एक दोस्ती का तत्त्व होना ज़रूरी था।

माँ की समझदारी

राधा ने समीरा को गले लगाते हुए कहा, "ठीक है, मेरी प्यारी बेटी। आज से मैं तुम्हारी माँ भी हूँ और दोस्त भी। लेकिन दोस्ती की एक शर्त होगी।"

"क्या?" समीरा ने चौंकते हुए पूछा।

"जब मैं तुम्हारी बात सुनूँगी, तो तुम भी मेरी बातें सुनोगी। दोस्ती में दोनों तरफ से बराबरी होनी चाहिए, है ना?"

समीरा खिलखिलाकर हँस पड़ी, "बिलकुल मम्मी! डील पक्की!"

एक नई शुरुआत

उस दिन से समीरा और राधा के रिश्ते में और भी गहराई आ गई। अब वे सिर्फ माँ-बेटी नहीं थीं, बल्कि एक-दूसरे की दोस्त भी थीं। समीरा जब भी कोई समस्या में होती, तो बिना डरे अपनी माँ से बात करती और राधा भी अब अपनी बेटी को डांटने के बजाय समझाने की कोशिश करती।

माथूर गाउस की रसोई से उस दिन सिर्फ पकवानों की खुशबू ही नहीं आ रही थी, बल्कि वहाँ एक खूबसूरत रिश्ते की महक भी थी – माँ और बेटी की दोस्ती की!

सानियाल हवेली की बालकनी में रात की गुफ्तगू

डिनर खत्म हो चुका था, लेकिन सोनिया और त्रिशा के दिलों में अभी भी हल्की खटास बनी हुई थी। दोनों बालकनी में बैठी थीं, जहां हल्की ठंडी हवा बह रही थी। दूर आसमान में चाँद अपनी चांदनी बिखेर रहा था, लेकिन सोनिया और त्रिशा के चेहरों पर हल्की झुंझलाहट और सोच-विचार की छाया थी।

"यार, सच में! मुझे अभी तक समझ नहीं आ रहा कि दानिश को इतनी पुरानी परंपराओं से चिपके रहने की क्या जरूरत है?" सोनिया ने गहरी सांस लेते हुए कहा।

त्रिशा ने कॉफी का मग उठाया और हल्के से घूंट भरते हुए बोली, "मुझे भी यही लग रहा है। हम कोई गलत बात तो नहीं कर रहे थे, बस पूजा में कुछ नयापन लाने की बात कर रहे थे। इसमें इतना सीरियस होने की क्या जरूरत थी?"

सामने की ओर देखते हुए, सोनिया ने सिर हिलाया। "मुझे तो लगता है कि उसे बदलाव से डर लगता है।" फिर हल्की मुस्कान के साथ जोड़ा, "वैसे, कभी-कभी मुझे लगता है कि वो दादी की बातों से भी बहुत ज्यादा प्रभावित होता है।"

त्रिशा हंस पड़ी। "अरे, ये तो तुमने बिलकुल सही कहा! दादी जो बोल देती हैं, वो तो पत्थर की लकीर मान लेता है।"

कुछ देर दोनों खामोश रहीं। हवेली के बाहर फैले बगीचे से जूही और मोगरे की खुशबू आ रही थी।

सोनिया ने धीरे से कहा, "लेकिन अगर हम लॉजिक से सोचें, तो उसकी बात में भी कुछ सच्चाई है। ये बरसी की पूजा सिर्फ कोई इवेंट नहीं, बल्कि एक श्रद्धांजलि है। हो सकता है, हम इस पूजा को लेकर थोड़े ज्यादा कैजुअल हो गए हों?"

त्रिशा ने उसे घूरकर देखा। "अरे! तुम अचानक उसकी साइड क्यों लेने लगी?"

सोनिया ने हल्की मुस्कान दी। "नहीं, साइड लेने की बात नहीं है। बस सोच रही हूं कि कहीं हम इसे ज़रूरत से ज्यादा मॉडर्न बनाने की कोशिश तो नहीं कर रहे?"

त्रिशा ने कुछ सोचते हुए अपना मग टेबल पर रखा। "हम्म... हो सकता है। लेकिन देखो, हम जो कह रहे थे, उसका मकसद सिर्फ ये था कि पूजा को एक नया रूप दिया जाए, ताकि ये आज की जेनरेशन के लिए भी थोड़ा एंगेजिंग हो। और पंडित शिवानंद की पूजा सच में बहुत प्रभावशाली होती है।"

"हां, ये तो सही है," सोनिया ने सहमति जताई। "लेकिन क्या हमें पूजा को एंगेजिंग बनाने के लिए इसे पूरी तरह बदल देना चाहिए?"

त्रिशा ने गहरी सांस ली। "शायद नहीं। पर एक बैलेंस तो बनाना चाहिए ना! हम न पूरी तरह पुराने तरीकों में बंधे रहें, न ही इसे सिर्फ एक डिजिटल शो बना दें।"

सोनिया ने सिर हिलाया। "सही कहा। और अगर सोचो, दानिश के लिए ये सिर्फ पूजा नहीं, उसके पिता की यादों का एक तरीका है। वो इससे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ है। ऐसे मामलों में वो तुम्हारी बिलकुल नही मानता है |उसे ये लगता है मरने वाला सिर्फ उनके ही कुछ लगता है मैं तो उसकी कुछ हू ही नहीं उसने आज एक बार फिर सब के सामने मुझे नीचा दिखाया है, त्रिशा ने गुस्से से दांतभीचते हुए कहा |