"पेड़ पे बैठी थी पिशाचिनी" – एक डरावनी और भावनात्मक कहानी, जो सन् 1995 की एक सच्ची घटना से प्रेरित है:
साल 1995, जगह – उड़ीसा का एक छोटा सा गांव।
14 साल का सुमित अपने माता-पिता के साथ रहता था। उसके पिता गांव में एकमात्र किराने की दुकान चलाते थे। परिवार मध्यमवर्गीय था, पर सुखी था।
पिता अक्सर कहते थे –
"सुमित, अब बड़ा हो गया है। दुकान में हाथ बंटाया कर!"
लेकिन सुमित को तो बस दोस्तों के साथ मस्ती करनी थी।
एक दिन उसके दोस्त की शादी थी।
मां बोली –
"आज अमावस्या की रात है बेटा, मत जा। मन बहुत अशांत है आज!"
लेकिन पिता बोले –
"ठीक है, जा… लेकिन अगर देर हो जाए तो रात में मत लौटना।"
शादी में खाना-पीना, मस्ती सब हुआ। लेकिन सुमित को घर की याद सताने लगी।
"रात हो गई है, पर घर तो जाना ही पड़ेगा," सुमित ने सोचा।
उसके दोस्त बोले –
"रुक जा यार, रात है।"
लेकिन सुमित अकेला अपने रास्ते निकल गया।
जैसे ही वो एक सुनसान मोड़ पर पहुंचा, एक पेड़ पर किसी की मौजूदगी महसूस हुई।
उसने नज़रें उठाईं —
वहां एक पिशाचिनी बैठी थी!
चेहरा काला, बाल बिखरे, आंखें खून सी लाल।
पिशाचिनी (मन में):
"इसी की तो तलाश थी मुझे..."
सुमित डर के मारे कांप गया, लेकिन बिना कुछ जताए घर की ओर भागा।
अगली सुबह बुखार में तपता रहा।
छह दिन तक हर रात तीन बजे उसे तेज़ बुखार हो जाता।
बाबा जी को दिखाया गया।
उन्होंने कहा –
"इसके ऊपर एक पिशाचिनी का साया है, जो रोज़ रात को इसके पैरों से खून चूसती है। समय रहते उपाय ना किया गया, तो इसे खो बैठोगे!"
पिता ने रोते हुए कहा –
"बाबा, इसे कैसे बचाया जाए?"
बाबा ने एक उपाय बताया —
"यह लो एक पवित्र धागा और कांटा। धागे का एक सिरा सुमित के खाट से बांध दो, और दूसरा सिरा कांटे से जोड़कर पिशाचिनी के कपड़े में चुपचाप चुभा दो।"
रात आई। तीन बजे फिर वही परछाईं खिड़की से भीतर आई।
पिता की आंख खुली।
उन्होंने कांटा पिशाचिनी के कपड़े में चुपचाप चुभा दिया।
अगली रात, बाबा ने कहा –
"धागे का पीछा करो और जो भी उस सिरे से जुड़ा है, लेकर मेरे पास आओ।"
पिता अकेले घर लौटे, और धागे को पकड़े हुए सीधे आंगन के पेड़ तक पहुंचे।
एक डाली में धागा लिपटा था। उन्होंने वह डाली तोड़ी और बाबा के पास लौटे।
रास्ते में डरावनी आवाज़ें सुनाई दीं, लेकिन बाबा की बात याद थी –
"पीछे मुड़ना मत!"
बाबा ने तुरंत पूजा शुरू की।
तभी धुंए में से पिशाचिनी प्रकट हुई।
पिशाचिनी:
"मुझे ये लड़का चाहिए! मैं इसे नहीं छोड़ूंगी!"
बाबा:
"अगर नहीं मानी, तो यहीं बंदी बना दूंगा!"
बहस के बाद, पिशाचिनी बोली –
"ठीक है, अगर एक बकरे की बलि दो तो छोड़ दूंगी।"
बलि दी गई।
पिशाचिनी ने बकरे को खा डाला और फिर अदृश्य हो गई।
उस दिन के बाद सुमित स्वस्थ हो गया।
अब वो मस्ती नहीं करता था, पिता के साथ दुकान में मदद करता था।
और मां… वो अब रोज़ भगवान का धन्यवाद करती थी।
क्या आपने कभी किसी पेड़ पर कुछ असामान्य देखा है? सावधान रहिए… कहीं वो पिशाचिनी तो नहीं?
कहते हैं, वो पिशाचिनी किसी समय गाँव की एक औरत थी जिसे बेवजह चुड़ैल कहकर मार दिया गया था। अब उसकी आत्मा उसी पेड़ पर भटकती है... इंसाफ की तलाश में।