Dosto ke Gaav ki Yatra - 2 in Hindi Travel stories by Sonu Rj books and stories PDF | दोस्तों के गाँव की यात्रा - 2

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दोस्तों के गाँव की यात्रा - 2

कबीर (हाथ तापते हुए): यार... ये आग, ये हवा, और ये चाय... शहर में कहाँ मिलती है ऐसी luxury?

सिम्मी (साथ बैठती है): और बिना किसी डिस्ट्रैक्शन के... सिर्फ हम, और हमारी बातें।

अजय: चलो आज कुछ दिल से बातें हों। हर कोई एक-एक याद शेयर करे, जो अब तक किसी से नहीं कही।

नीलू (धीरे से मुस्कुराती है): पहली बार किसी ट्रिप पर आई हूँ जहाँ शांति डरावनी नहीं, सुकून देती है।

सीन 19: (सब बैठ जाते हैं – गोल घेरे में, हल्की-हल्की आग की रौशनी चेहरे चमका रही है)

रोहित: मैं शुरू करता हूँ। जब छोटा था, तो यहीं इसी आम के पेड़ पर चढ़ा करता था। एक बार गिर गया… लेकिन दादी ने गले लगाकर कहा था – “गिरा है तो ठीक है… मतलब ऊँचा चढ़ा था।” वो बात आज भी साथ है।

कबीर (भावुक होकर): यार... मेरे पापा बहुत कम बोलते थे, लेकिन एक बार जब मैं फेल हुआ, उन्होंने सिर्फ एक बात कही थी – “कोशिश करने वाले कभी हारते नहीं।” वो बात मेरी लाइफ की रीढ़ है।

सिम्मी: मेरे लिए सबसे बड़ी याद माँ के हाथ का खाना है। अब कॉलेज, जॉब... सबने वो स्वाद छीन लिया।

नीलू (धीरे से): और मैं? मैं शायद पहली बार किसी के साथ दिल खोलकर बैठी हूँ... बिना डर के, बिना नकाब के।


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सीन 20: (सभी थोड़ी देर चुप रहते हैं, बस आग की चटक सुनाई देती है)

अजय (गंभीर होकर): हम सब आज भागते-भागते थक गए थे… ये ट्रिप हमें रुकना सिखा रही है।

रोहित: और ये गाँव... ये आग... ये रात – हमारे रिश्तों को फिर से जोड़ रही है।


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सीन 21: (कबीर गिटार उठाता है और हल्की-सी धुन छेड़ता है)

कबीर (गाता है):
"कहीं खो गए थे, खुद से दूर हो गए थे...
गाँव ने फिर से, हमें हमसे मिला दिया..."

(सभी धीरे-धीरे साथ गाने लगते हैं, आँखें भीगती हैं, लेकिन दिल हल्के हो जाते हैं)
सीन 22: (सुबह का वक्त, सूरज हल्का सा निकला है, पक्षियों की चहचहाहट, और दूर मंदिर की घंटी की आवाज)

नीलू (नींद से उठते हुए): वाह… ये कैसी सुबह है यार… अलार्म की जगह मुरग़े ने उठाया।

कबीर (खुश होकर): आज पहली बार बिना झुँझलाए उठे हैं सब… देखो कितना सुकून है!

रोहित: चलो, आज गाँव की सैर पर चलते हैं – खेत, तालाब, पुरानी हवेली… सब दिखाता हूँ।

सिम्मी: चलो फिर! चप्पल, टोपी और गाँव वाला मूड ऑन!


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सीन 23: (सब गाँव की गलियों में घूमते हैं, बच्चे हाथ हिलाते हैं, कोई बैलगाड़ी ले जा रहा है)

अजय (हैरानी से): ये लोग सुबह 6 बजे खेत में होते हैं? और हम... 9 बजे तक अलार्म से लड़ते रहते हैं।

नीलू: और देखो वो घर! मिट्टी से बना, लेकिन इतनी प्यारी सजावट... हर दीवार पर रंगोली सी।

सिम्मी (बूढ़ी अम्मा से मिलती है): नमस्ते दादी! आप बहुत प्यारी लग रही हैं।

गाँव की दादी (हँसते हुए): नमस्ते बेटी, शहर से आई हो? खा-पी के जाना।

(सब हँसते हैं, आगे बढ़ते हैं)


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सीन 24: (खेतों में – चारों तरफ हरियाली, बीच में कुआँ, कुछ किसान काम कर रहे हैं)

कबीर (खेत में मिट्टी उठाते हुए): यार… इस मिट्टी की खुशबू ही अलग है।

रोहित: ये खेत मेरे बाबा के समय के हैं… यहाँ हमने पतंगें उड़ाई हैं, आम चुराए हैं, और कभी-कभी डाँट भी खाई है।

नीलू: अब समझ में आता है गाँव क्यों नहीं भूलते लोग।


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सीन 25: (तालाब के पास – कुछ लोग नहा रहे हैं, एक बकरी पास से गुजरती है)

अजय: अब ये कोई Instagram spot नहीं है… लेकिन फिर भी, इससे सुंदर कुछ नहीं।

सिम्मी: क्योंकि यहाँ filter नहीं, feelings हैं।


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सीन 26: (एक पेड़ के नीचे सब बैठते हैं, पसीना पोंछते हुए, लेकिन चेहरे पर मुस्कान)

रोहित: आज तुम सबने मेरा गाँव देखा… अब ये तुम्हारा भी है।

नीलू: अब तो मन कर रहा है… कुछ दिन यहीं रह जाएँ।

कबीर: कोई app बना सकते हैं क्या – “गाँव बुकिंग विद दिल”?

(सब हँसते हैं, और पेड़ की छाँव में लेट जाते हैं)

अजय (धीरे से, पर दिल से): यार… ये गाँव की लड़कियाँ भी कितनी अच्छी और सुंदर होती हैं ना…

कबीर (तेज़ी से पलट कर): ओ हो! अजय बाबू की नज़रें तो सीधा दिल तक जा पहुँचीं!

नीलू (नाक सिकोड़ते हुए): ओए शहरी बाबू… अब सादगी में भी कशिश दिखने लगी?

सिम्मी (हँसते हुए): बताओ कौन सी पसंद आई? हम बात चला दें दादी से?

अजय (शरमाकर): अरे नहीं-नहीं यार… बस ऐसे ही कह दिया। वो जो नीले सूट में थी… मतलब… आई मीन… हाँ... खूबसूरत थी।

रोहित (हँसते हुए): भाई, तू शहर से आया था मोबाइल लेकर… और ले जा रहा है दिल देकर।


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सीन 28: (लड़कियाँ मुस्कुराते हुए चली जाती हैं, अजय चुपचाप देखता रहता है)

नीलू (छेड़ते हुए): क्या हुआ शायर? दिल वहीं छोड़ आए क्या?

अजय: नहीं यार… बस सोच रहा हूँ – हम शहर में जितना दिखावा करते हैं, यहाँ लोग उतने ही सच्चे हैं।

सिम्मी: और शायद… इसी सच्चाई में ही असली खूबसूरती होती है।


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सीन 29: (सभी चलते हैं घर की ओर, हल्की मुस्कान और teasing का माहौल)

कबीर (गुनगुनाते हुए):
"गाँव की गोरी, बात में ठाठ...
दिल ले गई, बिना कहे बात..."

(अजय झेंप जाता है, लेकिन चेहरे पर मुस्कान छुप नहीं पाती)

सीन 30: (सुबह का वक्त, सभी छत पर लेटे हैं, चाय चल रही है, तभी अचानक एक-एक करके सबके फ़ोन बजने लगते हैं)

नीलू का फ़ोन बजता है — माँ का कॉल:
नीलू (फोन पर): हाँ माँ… हाँ सब ठीक है… हाँ कल शाम तक निकलेंगे…
(फोन कटते ही हल्की सी चुप्पी)

अजय (फोन देखते हुए): मेरी बहन का मैसेज आया है — “भाई अब वापस भी आ जाओ, ऑफिस वेट कर रहा है।”

सिम्मी (धीरे से): और मेरा बॉस... छुट्टियाँ खतम, अब रिपोर्ट भेजो, ये बोला है।

कबीर (आँखें मूँद कर): यार... अभी तो दिल लगा है यहाँ… और वापस जाने की बात हो गई।


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सीन 31: (एक कोने में रोहित बैठा है, चुपचाप – उसके चेहरे पर भाव हैं, पर बोल नहीं)

अजय: रोहित... तू कुछ बोल क्यों नहीं रहा?

रोहित (धीरे से): मैं तो रोज़ सोचता था कि कब दोस्त आएँगे, कब ये घर फिर से हँसेगा... और अब, दो दिन में सब खामोश हो जाएगा फिर।

सिम्मी (रोहित का हाथ पकड़ती है): तेरा गाँव सिर्फ तेरा नहीं है अब... अब ये हम सबका है।


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सीन 32: (सब चुपचाप बैठ जाते हैं – छत पर हवा बह रही है, चाय ठंडी हो रही है, और आँखें नम)

नीलू: चलो एक काम करते हैं… जाने से पहले एक आख़िरी शाम, पूरी तरह से जी लेते हैं।

कबीर: हाँ… एक वो वाला गाना गाते हैं, जो आख़िरी रात की प्लेलिस्ट में होता है।


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सीन 33: (सभी एक-दूसरे को देख रहे हैं – फोन अब भी बज रहे हैं, लेकिन कोई नहीं उठा रहा)

अजय: फोन बाद में उठा लेंगे… पहले एक-दूसरे को पूरी तरह महसूस कर लें।


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एपिसोड 9 खत्म
(अगला एपिसोड: "आख़िरी रात – अलविदा कहने से पहले" – एक आखिरी हँसी, एक आखिरी आंसू, और दिल में हमेशा के लिए बसी यादें।)

कह दो... सुनाऊं अगली आख़िरी रात वाली कहानी?


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