सीन 34: (घर की छत पर सबने अपनी-अपनी चादरें बिछा ली हैं, टॉर्च की हल्की रौशनी, रात का सन्नाटा और दिल में भारीपन)
कबीर (आसमान की तरफ देखते हुए): यार... ये तारें भी आज कुछ ज़्यादा चमक रही हैं ना?
नीलू (धीरे से): शायद उन्हें भी पता है... हम कल यहाँ नहीं होंगे।
अजय: मुझे लग रहा है जैसे इस छत ने हमारी हर बात, हर मज़ाक... अपने पास सहेज लिया है।
सिम्मी (आँखों में नमी लिए): जाने क्यों लग रहा है… ये सब फिर नहीं दोहराया जा सकेगा।
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सीन 35: (रोहित गाँव की मिट्टी की एक छोटी सी पुड़िया बनाता है, सब चुपचाप उसे देखते हैं)
रोहित: ये ले जा रहा हूँ… अपने साथ। इस मिट्टी में सिर्फ मेरी जड़ें नहीं… अब तुम सब भी हो।
नीलू (आँखें पोंछते हुए): तू ही तो है जो हमें इस दुनिया में लाया… अब ये जगह हमारी भी हो गई।
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सीन 36: (कबीर गिटार उठाता है – गाना शुरू होता है, सब धीरे-धीरे साथ गुनगुनाते हैं)
कबीर गाता है:
"ये रातें, ये बातें, ये मस्ती पुरानी…
कल शायद ना हों, पर रहेंगी कहानी..."
(धीरे-धीरे सबके चेहरे पर मुस्कान और आँखों में नमी आ जाती है)
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सीन 37: (सभी एक साथ गोल घेरे में बैठते हैं – हाथों में हाथ, और बीच में एक दीया जलता है)
अजय: चलो एक वादा करते हैं — हर साल, एक बार, चाहे कुछ भी हो, इस गाँव में मिलेंगे।
सिम्मी: और कोई भी चाहे जहाँ हो… इस ट्रिप को भूलने की इजाज़त नहीं होगी।
नीलू: क्योंकि कुछ यादें… भूलने के लिए नहीं, जीने के लिए होती हैं।
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सीन 38: (सब दीया की लौ को देखते हैं – जैसे उस लौ में उनका रिश्ता जल रहा हो, टिमटिमाता हुआ, लेकिन अटूट)
रोहित: अब बस एक बात रह गई — "गुडबाय" नहीं बोलेंगे... सिर्फ "फिर मिलेंगे..." कहेंगे।
नीलू (बैग पैक करते हुए): यार... ये बैग तो भर गया, लेकिन दिल कुछ अधूरा-अधूरा सा लग रहा है।
सिम्मी (आँखें पोंछते हुए): मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि किसी गाँव से जुदा होते हुए आँखें नम होंगी।
अजय: हर कोना अपनी एक कहानी दे गया… और हम, कुछ ज्यादा ही भावुक लोग निकले।
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सीन 40: (गाड़ी के पास सब खड़े हैं, रोहित के परिवार वाले विदा कर रहे हैं)
रोहित की माँ (मुस्कुराते हुए): फिर आना सब… ये घर अब सिर्फ रोहित का नहीं, आप सबका भी है।
नीलू (मुस्कुराकर): अम्मा, अब ये गाँव हमारा भी है… अगली बार हम सब अकेले नहीं आएँगे, औरों को भी लाएँगे।
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सीन 41: (गाड़ी में सब बैठ जाते हैं, गाड़ी धीरे-धीरे गाँव से बाहर निकलती है – रास्ते में वही आम का बाग, तालाब, और वो पेड़ सब पीछे छूटते जाते हैं)
कबीर (गिटार को धीरे-धीरे थपथपाता है):
"छूटा गाँव, पर साथ ले चले हम,
यादों की पोटली, और दिल में वो ग़म..."
अजय: कुछ ट्रिप्स होती हैं जहाँ फोटो कम, और एहसास ज़्यादा होते हैं।
ये वही ट्रिप थी।
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सीन 42: (सब सड़क की दूसरी ओर खिड़की से देखते हैं, कोई कुछ नहीं बोल रहा, बस मुस्कुराहट और आंसुओं का मिलाजुला एहसास है)
सिम्मी (धीरे से कहती है):
“हम फिर आएँगे…”
रोहित (हल्के से मुस्कुराते हुए):
“ज़रूर... और तब तक गाँव हमारे दिलों में रहेगा।”
सीन 43: (कार गाँव की सरहद पार कर चुकी है, पिछली खिड़की से सब एक बार पीछे मुड़कर देखते हैं)
अजय (धीरे से): और बस… गाँव पीछे छूट गया।
नीलू (थोड़ी देर चुप रहने के बाद): लेकिन दिल में कुछ तो वहीं छूट गया है।
सिम्मी (हँसने की कोशिश करते हुए): गाड़ी तो चल रही है, पर लगता है जैसे कुछ छोड़ आए हैं… अधूरा।
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सीन 44: (गाड़ी में हल्का सन्नाटा है, लेकिन अंदर-अंदर सब कुछ चल रहा है — यादें, एहसास, बातें)
कबीर (गिटार को धीरे से छूते हुए): अगली बार जब आएंगे… तो बस यूं ही नहीं आएंगे।
कुछ लेकर आएंगे… गाँव के लिए।
रोहित (स्माइल करते हुए): और शायद... कोई हमेशा के लिए वहीं रुक भी जाए।
सिम्मी: कौन जाने… किसका दिल फिर से गाँव में टिक जाए…
अजय (हल्के मुस्कान के साथ): या कोई दिल गाँव में छूट गया हो...
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सीन 45: (गाड़ी हाइवे पर दौड़ रही है, दूर-दूर तक खेत, हवाएं, और अब सिर्फ यादें)
नीलू: चलो एक वादा और करें?
सभी एक साथ: बोलो…
नीलू: अगली बार... जब लौटें… तो गाँव के साथ-साथ, खुद को भी कुछ लौटाएँ।
"The End" – पर सिर्फ कहानी का,
क्योंकि यादें तो अब भी चल रही हैं…
कभी किसी गीत में,
कभी मिट्टी की खुशबू में,
और कभी दोस्तों की हँसी में।
अगर कभी फिर मिलना हो —
तो वहीं चलेंगे,
जहाँ दिल आख़िरी बार मुस्कराया था।
धन्यवाद, इस खूबसूरत ट्रिप पर साथ चलने के लिए।
फिर मिलेंगे... एक और कहानी में।