आज विजय अपनी नई बीवी को लेकर कर आने वाला था उसकी सास ने दुल्हन की तरह पूरे घर को सजा दिया और विजय की कमरे में से निशा का सारा सामान निकाल कर बाहर पटक दिया और गुस्से में बोली जहां रखना है वहां रखो या कहीं चली जाओ खबरदार जो अब इस कमरे की तरफ देखा भी तो और उसने विजय के कमरे की साफ सफाई कर नई बहू के लिए उसे अच्छे से सजा दिया,,,,,
निशा ने रोते हुए अपने सामानों को उठाया और अपने बेटे अपने बच्चों के कमरे में लाकर रख दिया उसका दिल बैठा जा रहा था,,,
तभी उसकी सास की आवाज आएगी अरे औ डायन सुन जब मेरी बहूआय ना तो कुछ उल्टी-सीधी हरकत मत करना वरना तुझे चोटी पकड़ बाहर निकाल दूंगी और हां उसकी अच्छे से आरती उतारकर खातिरदारी करना समझी तुम,,,,
यह कहकर वह चली गई अपनी सास की बातें सुनकर निशा रोते हुए भगवान को कोसने लगे कि हे भगवान आपने मुझे ऐसा दिन क्यों दिखाया ऐसा दिन दिखाने से अच्छा था कि मुझे अपने पास ही बुला लेते आज अपने ही हाथों से अपनी सौतन की आरती कैसे उतार लूंगी मैं,,,,
यह कह कर वह रोने लग गई तभी अचानक उसे बाहर गाड़ी रुकने की आवाज सुनाई दी,,,,
गाड़ी रोकने की आवाज सुनकर निशा के समझ में आ गया कि विजय उसकी सौतन को लेकर आ गया,,,,
तभी उसे अपनी सास की आवाज सुनाई थी अरे ओ निशा कहां मर गई जल्दी से आरती की थाली लेकर आ मेरे बेटे बहू आ गए हैं जल्दी आ,,,,
अपनी सास की की आवाज सुनकर ना चाहते हुए भी निशा को आरती की थाली लेकर दरवाजे की तरफ जाना पड़ा,,,,
अपनी सास द्वारा आवाज दिए जाने पर निशा को ना चाहते हुए भी आरती की थाली लेकर दरवाजे की तरफ जाना पड़ा,,,,
दरवाजे पर विजय अपनी नई बीवी के साथ खड़ा था यह सब देखकर निशा की आंखों में आंसू झलक लेकिन फिर भी उसने अपने आप को संभाला,,,,
विजय की नजर भी निशा पर पड़ी लेकिन वह निशा से नजरें चुराने लगा,,,,
तब निशा की सास बोली अब खड़ी-खड़ी हमें घूरती रहेगी या कुछ करोगी भी जल्दी से मेरी बेटे बहू की आरती उतार,,,
अपनी सास की आवाज सुनकर निशा का मन किया वह आरती का थाल फेंक दें और चिल्ला चिल्ला कर सबसे हिसाब मांगे कि उन लोगों ने उसके साथ ऐसा क्यों किया लेकिन ये उसकी मजबूरी थी क्योंकि उसके पास ऐसा कोई नहीं था जहां वह जाती अपने बच्चों के बारे में सोच कर मजबूरी में उसने चुप रहना ही बेहतर समझा क्योंकि अगर वह अकेली होती तो कहीं चली जाती या फिर कहीं जाकर खुदकुशी कर लेती लेकिन अब उसके ऊपर अपने बच्चों की जिम्मेदारी भी तो थी जिनका शायद उसके सिवा इस दुनिया में कोई नहीं था,,,
निशा ने कांपते हाथों से अपने पति और अपनी सौतन रोमी की आरती उतारी,,,
रोमी देखने में निशा के बिल्कुल विपरीत थी यानी जहां निशा देखने में कोई स्वर्ग की अप्सरा लगती थी वही रोमी देखने में दुबली पतली सी उसके नैन नक्श भी अच्छे नहीं थे उसे और विजय को देखकर कोई भी कह सकता था कि विजय ने सिर्फ इससे पैसों के लिए शादी की है क्योंकि रोमी करोड़पति बाप की इकलौती बेटी जो थी,,,,,,
आरती उतारने के बाद निशा जल्दी से आरती का थाल लेकर आई और वापस उसे रख कर स्टोर रूम में जाकर रोने लगी शायद अभी उसके रोने की जगह यही थी क्योंकि अब उसका कमरा तो रोमी का हो चुका था और अपने बच्चों के कमरे में जाकर वह उन्हें और दुख नहीं पहुंचाना चाहती थी, जी भर कर रोने के बाद उसने अपने आप को संभाला और बाहर आई,,,
उसने अपने हाथों से अपनी सास के कहने पर रोमी और विजय की सुहाग सेज को सजाया, शायद यह वह समय था जो कोई भी औरत अपनी जिंदगी में कभी बर्दाश्त नहीं कर सकती थी और यह सब कुछ निशा से भी सहन नहीं हो रहा था लेकिन वह करती भी तो क्या करती, निशा को ऐसा लग रहा था जैसे वह रोमी की सुहाग सेज नहीं अपने लिए अर्थी सजा रही हो,,,,,