DOO PAL (LOVE IS BLIND) - 8 in Hindi Love Stories by ભૂપેન પટેલ અજ્ઞાત books and stories PDF | दो पल (love is blind) - 8

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दो पल (love is blind) - 8

8

     बर्थडे पार्टी खत्म हो जाती है। मीरा और उसकी फैमिली वापस घर आती है। सब लोग थकान के कारण सो जाते हैं, पर मीरा का दिमाग तो वही सोच में डूबा रहता है। मेरा अपना ध्यान वहां से हटाना चाहती थी। उसी संघर्ष में नींद आ जाती है।
     "कॉलेज नहीं जाना है क्या? अब तो उठ जा।"
    "यह भगवान इस लड़की का क्या होगा?" सर पर हाथ रखकर मीरा की मां मीरा को जागते हुए कहती है। खिड़कियों से पर्दा हटाते ही मीरा के चेहरे पर सूरज की पहली किरण गिरती है। इस रोशनी से वह जाग जाती है। मीरा उसे किरण के साथ नई सी खुशी और जोश के साथ खड़ी हो जाती है। जैसे कोई हुए को रास्ता मिल जाए, वैसे ही अजीब सी मुस्कुराहट के साथ तैयार होकर कॉलेज के लिए निकलती है। रोज की तरह वही बस और वही स्टैंड पर जाना, जैसे एक ही मंजिल हो। मीरा स्टैंड पर खड़ी थी पर कई मिली नहीं दिखाई दे रही थी। इधर-उधर नजर घुमा के फिर घड़ी में देखती है। मन ही मन बड़बड़ाती है,"आज इसको क्या हो गया है, अभी तक नहीं आई ? बस आने का टाइम हो गया है। मेरा अपना फोन निकलती है और मिली को कॉल करती है। इतने में आवाज आती है, " अरे यार, मैं यहीं पर ही हूं। फिर क्यों कॉल लगा रही हो? "
"मुझे लगा कि आज तुम आने वाली नहीं हो इसलिए कॉल किया। पता नहीं तुम कहां चली जाओ।" मजाक की मूड में मिलीने कहा।
   बस को आते देखकर मिली जोर से चिल्लाती है,
"बस आ गई, चलो।" फिर दोनों बस में बैठ जाते है। बस में आगे से आवाज आती है, "यहां पर आ जाओ।" दोनों आवाज की और दिखते है तो सिद्धार्थ था। यहां जगह खाली है, आ जाओ दोनों।" 
" हां, आते है।" मिली प्रत्युतर देती है।
    मिली और मीरा दोनों ही सिद्धार्थ की पासवाली सीट में बैठ जाते है।
मिली - हाय, सिद्धार्थ।
सिध्दार्थ - हाय, कैसे हो?
मिली - फाइन और तुम बताओ?
सिद्धार्थ - मैं भी और तुम मीरा कैसी हो?
मीरा - अच्छी हूं।
सिद्धार्थ - हम तीनों को फ्रेंड बन जाना चाहिए। क्योंकि हमारे पैरेंट्स लोग भी फ्रेंड्स है।
मीरा - ऐसा जरूरी नहीं है। ( मुंह टेढ़ा करती है।)
मिली - तुम हमे लाइन मार रहे हो क्या?
सिद्धार्थ - अरे, तुम्हारी शक्ल दिखी है किसी आइने में! न देखी है तो जाके देखलो।
मिली - और तुम्हारी तो फटे हुई दूध जैसी है।

       तीनों बहस ही कर रहे थे इतने में कॉलेज आ जाती है। तीनों ही कॉलेज के लिए अपने रास्ते पकड़ते है।

     कॉलेज छूटने के बाद मिली और मीरा दोनों ही अपने घर जाती है। मीरा घर पहुंचते ही लेटर देखकर सरप्राइस हो जाती है। खुशी का पार नहीं रहता। लेटर को लेकर अपने कमरे में चली जाती है और फटाफट से पढ़ने केन्लीय उतावली हो जाती है।
  
     ये भी अजीब किस्म की बात है कि हमें जो पसंद हो या सरप्राइस के रूप में मिले तो उसे जानने या देखने के लिए हमारे मन की धीरज खो देते है। हमारा पूरा ध्यान, उल्लास और खुशी तीनो ही एक लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते है।

   मीरा अपने नाम आए खत को लेकर जल्दी से दौड़ती हुई अपने कमरे में गई। हा, वही लेटर था जो मिली और मीरा ने उस दिन शॉप में देखा था। वह बेचैन थी, क्योंकि वह लेटर गुरु ने भेजा था। जिसमें लिखा था कि, "धन्यवाद, क्योंकि ये बुक कब से लाइब्रेरी में सड़ रही थी पर किसी ने पढ़ने की कोशिश न की थी। आपका नाम बहुत अच्छा है। इस बुक को पढ़कर अपनी राई जरूर से बताना, तुम्हारा गुमनाम गुरु।"
 लेटर पढ़ने के बाद मीरा का चेहरा देखने लाइक था। चेहरे पर अजीब सी रौनक छाई हुई थी। यह रौनक छानेवाली ही थी क्योंकि अपने लेटर का प्रत्युतर का इंतजार पूर्ण हुआ।