राजस्थान की तपती रेत और खामोश पहाड़ियाँ एक ऐसा रहस्य समेटे बैठी हैं, जिसे हर कोई सुनना चाहता है पर समझना नहीं। भानगढ़—एक ऐसा नाम जिसे सुनते ही रूह कांप जाती है। इतिहास, तंत्र, श्राप और मृत्यु के अंधेरे में लिपटी इस भूमि पर एक बार फिर कदम रखने जा रही है एक स्त्री—इतिहास की खोज में, परंतु वह इतिहास को ही जगा देगी...
अध्याय 1: आगमन2024 का मई महीना था। डॉ. सिया वर्मा, एक 29 वर्षीय पुरातत्वविद, जो दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर थी, उसे भानगढ़ के खंडहरों में कुछ रहस्यमयी प्रतीकों की खबर मिली थी। वे प्रतीक, एक प्राचीन राजवंश के श्राप से जुड़े हो सकते थे।सिया ने अकेले ही भानगढ़ का रुख किया। कार से अलवर पार करते हुए जब वह भानगढ़ के द्वार पर पहुंची, तो सूर्य अस्त हो रहा था।ASI के एक गार्ड ने उसे चेताया, "मैडम, सूर्यास्त के बाद यहां कोई नहीं रुकता। ये किला रात में जागता है।"पर सिया जिद्दी थी। उसने कहा, "मैं किसी प्रेतात्मा से नहीं डरती। मुझे सिर्फ सच चाहिए।"
अध्याय 2: तांत्रिक की वापसीरात को किले के अंदर सिया अकेली टॉर्च के साथ घूम रही थी। एक मंदिर की दीवार पर उसे तांत्रिक सिंघिया के श्राप की एक लुप्तप्राय प्रतिमा मिली। उसके चारों ओर कुछ लकीरें खींची थीं—जैसे यंत्र का हिस्सा हों।जैसे ही सिया ने उस पर हाथ फेरा, अचानक हवा ठंडी हो गई। मंदिर के अंदर से एक मद्धम-सी आवाज़ आई, “वह लौट आई है... राजकुमारी रत्नावती।”सिया चौंकी। वह अकेली थी, पर वातावरण में कोई अदृश्य शक्ति जाग गई थी।
अध्याय 3: पूर्वजन्म का द्वारअगली सुबह, वह पास के गाँव की एक वृद्धा से मिली—"चाची सुदेश।"चाची ने कांपती आवाज़ में कहा, "बिटिया, तू वही है... तेरी आँखें वही हैं, जैसे रत्नावती की थीं..."सिया को अजीब सपने आने लगे थे—एक महल, तांत्रिक, एक तेल की शीशी, और एक श्राप। वह समझ गई कि यह उसके शोध से कहीं ज्यादा उसका खुद का अतीत था।रात में फिर किले के पास गई। वहां उसे वही आकृति मिली—तांत्रिक सिंघिया की आत्मा, जो अब भी रत्नावती की आत्मा को कैद करने की कोशिश में था।
अध्याय 4: रक्त की होलीतीसरी रात, सिया को एक गुप्त तहखाना मिला। वहां दीवारों पर खून से लिखी लिपि थी:"श्राप अनंत है, जब तक रत्नावती उसकी आत्मा को मुक्त न करे।"वह तहखाने में बंद हो गई। अचानक दरवाजे अपने आप बंद हो गए और अंदर से सिसकियों की आवाजें आने लगीं। पुराने सैनिकों की आत्माएं, राजकुमारी के सेवकों की चीखें, और सिंघिया की कर्कश हँसी से पूरा किला गूंज उठा।
अध्याय 5: अंतिम युद्धसिया ने अपने भीतर की शक्ति को पहचाना। उसे याद आया—वह रत्नावती ही थी, जिसने सिंघिया को मारा था।उसने तांत्रिक के यंत्र को उलट दिया। मंत्र पढ़े जो सपनों में उसे दिखते थे।तहखाने में एक आग की लपट उठी और सिंघिया की आत्मा सामने आई—भयानक और विकराल।एक भयानक मानसिक युद्ध हुआ। सिया ने अपनी आत्मा की सारी ऊर्जा समर्पित कर दी।आखिरकार, श्राप टूट गया। किले की दीवारें कांपीं, रात का अंधेरा छंटा और भानगढ़ पहली बार सुबह 4 बजे तक जागा—लेकिन शांति में।
समापनडॉ. सिया वर्मा आज भी इतिहास पढ़ाती है, लेकिन वह जानती है—इतिहास सिर्फ किताबों में नहीं होता। कुछ इतिहास आत्माओं में कैद होता है। भानगढ़ आज भी वहीं है, पर अब वहाँ अजीब सन्नाटा नहीं, बल्कि एक नई ऊर्जा है।कभी वहां जाओ, तो एक तेज हवा तुम्हारे कानों में कहेगी, “शुक्र है, रत्नावती लौट आई थी।”
– समाप्त –
(यह कहानी एक काल्पनिक रचना है, जिसका उद्देश्य भानगढ़ की पौराणिक रहस्यात्मकता को साहित्यिक रूप में प्रस्तुत करना है।)
लेखक:-शैलेश वर्मा