पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाला रंजन सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि व्यवहार में भी अव्वल था। कोई झगड़ा हो या किसी को मदद की ज़रूरत — रंजन हर जगह मौजूद रहता। वह सबका दोस्त था, लेकिन यही उसकी सबसे बड़ी परेशानी बनने वाली थीl
रंजन के तीन खास दोस्त थे: अनिकेत (खेलों में उस्ताद), स्नेहा (कक्षा की टॉपर), और विनय (शांत लेकिन भावुक)।
सब चाहते थे कि रंजन सिर्फ उसी के साथ समय बिताए।
एक दिन खेल के मैदान में, अनिकेत ने कहा, "रंजन, आज तू सिर्फ मेरे साथ खेलेगा। किसी और से बात भी नहीं करेगा।"
स्नेहा बोली, "नहीं! हमारे ग्रुप प्रोजेक्ट के लिए आज अभ्यास जरूरी है।"
विनय चुपचाप बैठा रहा, लेकिन उसकी आँखों में गुस्सा साफ था।
रंजन उलझ गया।
अगले दिन रंजन को अपनी डेस्क पर एक चिट्ठी मिली —
"अगर तुम्हें सच्चे दोस्त की पहचान करनी है, तो आज दोपहर पुस्तकालय के पीछे आओ।"
रंजन चौंका। यह किसने लिखा? क्या यह मज़ाक था?
वह लंच ब्रेक में चोरी-छिपे पुस्तकालय के पीछे पहुँचा, जहाँ उसे मिला एक पुराना नक्शा — स्कूल का नक्शा, लेकिन इसमें कुछ गुप्त स्थानों के निशान बने हुए थे। उसके साथ एक और पर्ची थी:
"दोस्ती की असली परीक्षा अब शुरू होती है। अगर तुम सच्चे हो, तो सबके लिए साबित करो।"
नक्शा एक रहस्यमयी 'गुप्त तहखाने' की ओर इशारा कर रहा था जो स्कूल की प्रयोगशाला के नीचे था। रंजन ने तय किया कि वह इसका रहस्य सुलझाएगा — और सच्चे दोस्त होने का मतलब खोजेगा।
वह अगले दिन अनिकेत, स्नेहा और विनय को लेकर नक्शा दिखाने गया। पहले तो वे नाराज़ हुए कि रंजन ने यह बात छुपाई, लेकिन फिर उत्सुक हो गए।
तीनों ने मिलकर प्रयोगशाला के पीछे बने पुराने दरवाज़े को खोज निकाला। वहाँ एक सीढ़ियाँ नीचे जाती थीं — अँधेरे और रहस्यमय।
नीचे एक गुप्त कमरा था — दीवारों पर पुरानी तस्वीरें, टूटी-फूटी कुर्सियाँ, और एक पुराना ताला लगा संदूक। जैसे ही वे उसके पास गए, दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।
सभी घबरा गए। अनिकेत चिल्लाया, "अब क्या करेंगे?"
स्नेहा बोली, "तुम्हारी वजह से हम यहाँ फँस गए रंजन!"
विनय चुपचाप कोने में बैठ गया।
रंजन ने हिम्मत नहीं हारी। उसने कहा, "डरो मत। हमें मिलकर रास्ता खोजना होगा। किसी एक पर दोष डालने से कुछ नहीं होगा।"
उसी संदूक में उन्होंने एक पुरानी डायरी पाई — एक शिक्षक की, जो वर्षों पहले इस स्कूल में था और उसने लिखा था, "एक सच्चा समूह वही है जो संकट में भी साथ रहे।"
डायरी में एक सुराग था — दीवार पर बनी चित्रलिपि को एक खास क्रम में छूने से दरवाज़ा खुल सकता था।
रंजन ने अपने तीनों दोस्तों को मिलाकर चित्रों का सही क्रम ढूँढने में मदद ली। हर किसी का अलग कौशल काम आया —
अनिकेत की तेज़ नज़र, स्नेहा की गणना, विनय की शांत सोच — और अंत में दरवाज़ा खुल गयाl
बाहर आकर सभी हँसते हुए बोले,
"अब समझ आया कि दोस्ती का असली मतलब क्या होता है — मिलजुल कर साथ रहना।"
रंजन मुस्कराया, "एक सच्चा दोस्त किसी एक का नहीं होता — वह सबका होता है।"
उस घटना के बाद स्कूल में एक नई परंपरा शुरू हुई — "दोस्ती सप्ताह", जिसमें सभी छात्र मिलकर गतिविधियाँ करते, समूह बनाते और एक-दूसरे को समझने की कोशिश करते।
रंजन, अनिकेत, स्नेहा और विनय अब "टीम यूनिटी" के नाम से मशहूर हो गए। वे अपने अनुभव को एक कहानी की तरह अन्य छात्रों को सुनाते।
निष्कर्ष और शिक्षा
• सच्ची दोस्ती में न स्वार्थ होता है, न तुलना।
• संकट में एक-दूसरे के साथ रहना ही सबसे बड़ा दोस्ती का प्रमाण है।
• मिलकर काम करने से न केवल समस्याएँ हल होती हैं, बल्कि रिश्ते मजबूत होते हैं।