black chest in Hindi Children Stories by Dayanand Jadhav books and stories PDF | काला संदूक

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काला संदूक

महाराष्ट्र के एक छोटे-से कस्बे में स्थित एक पुराना संग्रहालय आज भी अनेक रहस्यों को अपने भीतर समेटे हुए है। कभी यह एक राजमहल हुआ करता था। वर्षों से वहाँ एक भारी, काले रंग का लोहे का संदूक रखा हुआ है, जिसे ‘काला संदूक’ कहा जाता है।
गाँव के लोगों का मानना है कि जिसने भी उस संदूक को खोलने की कोशिश की, वह या तो पागल हो गया या फिर उसकी रहस्यमयी मृत्यु हो गई। यह विश्वास इतना गहरा था कि लोगों ने उस कमरे के निकट जाना भी बंद कर दिया था।
एक रात संग्रहालय में कार्यरत चौकीदार की भयावह चीख़ से पूरा कस्बा दहल उठा। अगली सुबह उसका मृत शरीर संदूक के पास पड़ा मिला। उसकी आँखें विस्फारित थीं, मानो उसने मृत्यु से पहले कुछ अत्यंत भयानक देखा हो।
स्थानीय पुलिस ने इसे दिल का दौरा बताया, परंतु संग्रहालय की निदेशिका, डॉ. नेहा सोमण को इस निष्कर्ष पर भरोसा नहीं हुआ। उन्होंने अपने पुराने मित्र और प्रख्यात निजी जासूस, आरव देशमुख को बुलाने का निर्णय लिया।
आरव, अपने विचित्र स्वभाव, अनूठे तरीक़ों और तीव्र बुद्धिमत्ता के लिए जाना जाता था। वह जब उस‌ जगह पहुँचा, तो सबसे पहले उसने संदूक का निरीक्षण किया। यह एक विशाल, लोहे का बना संदूक था, जिस पर संस्कृत तथा पुरानी मराठी में कुछ गूढ़ शिलालेख उकेरे गए थे। उसकी बनावट से प्रतीत होता था कि यह किसी सामान्य व्यक्ति के लिए नहीं, बल्कि किसी उद्देश्य विशेष के लिए निर्मित किया गया था।
संग्रहालय के कर्मचारियों से पूछताछ करते हुए आरव को कुछ विशेष जानकारियाँ प्राप्त हुईं। एक सहायक ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से संदूक के समीप एक अजीब-सी गंध आती थी। वहीं एक वृद्ध श्रमिक ने कहा कि यह संदूक राजा कोल्हापुरकर की अंतिम निशानी है, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान जब्त किया गया था।
जाँच आगे बढ़ी तो आरव को अद्वैत नामक एक युवक पर संदेह हुआ, जो संग्रहालय के कुछ पुराने दस्तावेज़ स्कैन कर रहा था। वह संदूक के इतिहास में अत्यधिक रुचि रखता था। कुछ ही दिनों में अद्वैत रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया। उसका शव उसके घर में फंदे से लटका हुआ था। पुलिस ने इसे आत्महत्या कहा, परंतु आरव को उसकी उँगलियों पर मिट्टी के निशान मिले, जो यह इंगित करते थे कि मृत्यु से पहले वह कुछ खोदने का प्रयास कर रहा था।
आरव ने अद्वैत के कक्ष की तलाशी ली, जहाँ उसे कुछ अधजले दस्तावेज़ और एक डायरी मिली। उसमें लिखा था कि काले संदूक में एक ऐसा नक्शा है, जो राजा कोल्हापुरकर के गुप्त खज़ाने तक ले जाता है। परंतु उसे प्राप्त करने के लिए ‘एक बलिदान’ आवश्यक है।
यह वाक्य पढ़कर आरव की जिज्ञासा और गहरी हो गई। संदूक पर अंकित शिलालेखों को समझते हुए उसने एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण पंक्ति पढ़ी:
“जो अपने अंतरतम सत्य को स्वीकार नहीं कर सकता, वह इस संदूक को कभी नहीं खोल सकेगा।”
यह मात्र एक दार्शनिक वाक्य था या वास्तव में किसी मनोवैज्ञानिक परीक्षा का संकेत? यह प्रश्न आरव के मन में उठ खड़ा हुआ।
उधर, डॉ. सोमण की गतिविधियाँ भी दिन-ब-दिन संदिग्ध होती जा रही थीं। एक रात आरव ने उन्हें चोरी-छिपे संदूक के पास किसी प्राचीन मंत्र का जाप करते हुए देखा। जब उसने उन्हें रोका, तो वे भावुक होकर रो पड़ीं। उन्होंने बताया कि यह संदूक उनके दादाजी के जीवन का सबसे बड़ा रहस्य था, जिसे वे सुलझा नहीं सके। उसी अधूरे प्रयास को वे पूरा करना चाहती थीं।
अब यह स्पष्ट हो गया था कि यह संदूक केवल भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि किसी मानसिक परीक्षा का प्रतीक था।
आरव ने निर्णय लिया कि अब इस रहस्य से पर्दा उठना ही चाहिए। वह फिर से संदूक के पास गया और अपने जीवन के सबसे गहरे अपराध को स्वीकार किया—अपने छोटे भाई की मृत्यु के लिए वह स्वयं को दोषी मानता था। बचपन में ज़हर की शीशी को खेल-खेल में भाई को दे बैठा था, जिससे उसकी मृत्यु हो गई थी। उस घटना को लेकर वह जीवन भर अपराधबोध से ग्रस्त रहा।
जैसे ही उसने यह स्वीकार किया, संदूक की कुंडी अपने आप खुल गई।
अंदर कोई खज़ाना नहीं था, केवल तीन वस्तुएँ थीं—
1. एक चमकता हुआ शीशा, जिसमें झाँकते ही व्यक्ति स्वयं का प्रतिबिंब देख सके।
2. एक ताम्रपत्र, जिस पर अंकित था:
“जो स्वयं को जान लेता है, वही सच्चा सम्राट है।”
3. एक हस्तलिखित पत्र, राजा कोल्हापुरकर द्वारा लिखा गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह संदूक किसी भौतिक खज़ाने के लिए नहीं, बल्कि आत्मबोध और मानवीय मूल्य की परीक्षा के लिए बनाया गया है।
डॉ. सोमण, जो वर्षों से अपने दादाजी की मृत्यु का दोष अपने सिर लेती आई थीं, उस ताम्रपत्र को देखकर फूट-फूटकर रोने लगीं। आरव ने उन्हें सांत्वना दी और कहा कि इस संदूक को अब डर और अंधविश्वास का प्रतीक नहीं, आत्मबोध और साहस का प्रतीक बनाना चाहिए।
संग्रहालय में अब यह संदूक ससम्मान प्रदर्शित है, और लोग इसे देखकर भयभीत नहीं, प्रेरित होते हैं।
आरव, एक और रहस्य सुलझाकर, चुपचाप किसी अन्य शहर की ओर चल पड़ा—शायद किसी और के भीतर छिपे अंधकार को उजागर करने।