The Real Hero – A Soldier’s Story in Hindi Fiction Stories by Madhu books and stories PDF | देश का अच्छा हीरो - फौजी

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देश का अच्छा हीरो - फौजी

1. बचपन से देशभक्ति की भावना

राजस्थान के एक छोटे से गांव "खेजड़ला" में जन्मे अर्जुन राठौड़ बचपन से ही अलग थे। जब बच्चे खिलौनों से खेलते थे, अर्जुन लकड़ी की तलवार बनाकर “भारत माता की जय” चिल्लाया करते। उनके पिता भी भारतीय सेना में सूबेदार रह चुके थे और उन्होंने अर्जुन को अनुशासन और देशभक्ति का पाठ बचपन में ही सिखा दिया था।

स्कूल में जब शिक्षक देशभक्ति की बातें करते, तो अर्जुन की आंखें चमक उठतीं। उनका सपना था – “एक दिन मैं फौजी बनकर देश की सेवा करूंगा।” गांव के लोग कहते, "अर्जुन, तू तो वाकई फौज में जाएगा" – और अर्जुन मुस्कुराकर कहता, "मैं वर्दी पहनकर ही लौटूंगा, या तिरंगे में लिपटकर।”

2. भारतीय सेना में चयन और ट्रेनिंग

18 साल की उम्र में अर्जुन ने NDA की परीक्षा पास की। उनके पिता की आंखों में गर्व के आंसू थे। ट्रेनिंग के दौरान अर्जुन हमेशा सबसे आगे रहते – दौड़ हो, शूटिंग हो या मानसिक परीक्षा। उनके अफसर उन्हें "शेर राठौड़" कहकर बुलाने लगे।

ट्रेनिंग के बाद उनका पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर के एक संवेदनशील क्षेत्र में हुआ – जहाँ आतंकवाद का खतरा सबसे ज्यादा था। ये वही जगह थी, जहाँ हर दिन दुश्मन की गोलियाँ चलती थीं और हर रात देश की रक्षा के लिए जवान जागते थे।

3. पहली लड़ाई – और एक नया अर्जुन

अर्जुन के यूनिट को खबर मिली कि LOC (Line of Control) के पास कुछ घुसपैठिए देखे गए हैं। उन्हें तुरंत कार्रवाई के लिए भेजा गया। ये अर्जुन का पहला मिशन था। ठंडी रात, चारों ओर घना जंगल, और सामने अंधेरे में छिपे दुश्मन।

अर्जुन ने अपने 6 साथियों के साथ योजना बनाई और धीरे-धीरे आगे बढ़े। जैसे ही उन्होंने मूव किया, दुश्मनों ने फायरिंग शुरू कर दी। गोलीबारी के बीच अर्जुन ने एक साथी को गोली लगने पर अपनी जान जोखिम में डालकर उसे खींचकर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। फिर उन्होंने दो आतंकियों को मार गिराया और बाकी को पकड़वाया।
इस बहादुरी के लिए उन्हें सेना मेडल से सम्मानित किया गया। लेकिन अर्जुन की असली परीक्षा अभी बाकी थी।

4. परिवार की चिंता और सैनिक का फर्ज

अर्जुन का परिवार – माता, पिता और छोटी बहन – उनसे बहुत प्यार करता था। लेकिन वे जानते थे कि अर्जुन का जीवन अब केवल उनका नहीं, पूरे देश का है। छुट्टियों में जब अर्जुन घर आता, तो उसकी मां उसे गले लगाकर कहती – "तू मेरा बेटा ही नहीं, देश का रक्षक है।"

परिवार से दूर रहना आसान नहीं था, लेकिन अर्जुन के लिए फर्ज सबसे ऊपर था। जब भी वह ड्यूटी पर होता, मोबाइल बंद रखता – ताकि कोई ध्यान भंग न हो। वह अक्सर कहा करता, “मां, अगर मैं तुझसे बात नहीं करूं, तो समझ लेना कि मैं देश से बात कर रहा हूं।”

5. ऑपरेशन 'सूर्यविजय' – बलिदान की गाथा

साल 2021 की सर्दी। LOC पर घुसपैठ की घटनाएं बढ़ गई थीं। भारतीय सेना ने “ऑपरेशन सूर्यविजय” की योजना बनाई – एक गुप्त मिशन, जिसमें आतंकियों के एक बड़े ठिकाने को खत्म करना था। कैप्टन अर्जुन राठौड़ को इस मिशन की कमान सौंपी गई।

टीम में 10 कमांडोज़ थे। उन्होंने 3 दिन जंगल में छिपकर दुश्मन की गतिविधियों पर नज़र रखी। 4वें दिन उन्होंने हमला किया। जैसे ही गोलीबारी शुरू हुई, अर्जुन सबसे आगे थे। उन्होंने 5 आतंकियों को ढेर किया, लेकिन तभी एक IED ब्लास्ट हुआ। अर्जुन गंभीर रूप से घायल हो गए।

उनके साथी उन्हें पीछे ले जाना चाहते थे, लेकिन अर्जुन ने कहा – “मैं नहीं जाऊंगा। मेरी सांसें अभी बाकी हैं, और दुश्मन भी। जाओ, मिशन पूरा करो।”

अर्जुन वहीं रुके और अकेले ही फायरिंग करते रहे, जब तक आखिरी आतंकी मारा नहीं गया। मिशन सफल रहा, लेकिन अर्जुन की सांसें थम गईं। उनके शरीर पर 17 गोलियों के निशान थे – और चेहरा शांत, जैसे कोई विजेता सो गया हो।

6. तिरंगे में लिपटी वापसी

अर्जुन का पार्थिव शरीर तिरंगे में लिपटकर उनके गांव आया। पूरा गांव रो पड़ा। स्कूल के बच्चे "भारत माता की जय" के नारे लगा रहे थे। उनकी मां ने उनकी अंतिम यात्रा में कहा – "मैं रो नहीं रही, मेरा बेटा वीरगति को प्राप्त हुआ है। आज मैं गर्वित हूं।”

सरकार ने उन्हें मरणोपरांत “शौर्य चक्र” से सम्मानित किया। उनकी बहन ने सेना जॉइन करने का प्रण लिया – ताकि वो अपने भाई का सपना पूरा कर सके।

7. एक प्रेरणा, एक कहानी जो अमर हो गई

कैप्टन अर्जुन राठौड़ भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कहानी हर युवा को प्रेरणा देती है। उन्होंने दिखा दिया कि असली मर्द वही है जो अपने देश के लिए जीता है, और अगर ज़रूरत पड़े तो मर भी जाता है – लेकिन झुकता नहीं।

उपसंहार

देश के सच्चे हीरो वे नहीं जो सिर्फ मंचों पर भाषण देते हैं या अखबारों में छपते हैं। असली हीरो वो होते हैं जो खामोशी से देश के लिए जान की बाजी लगाते हैं। कैप्टन अर्जुन जैसे सैनिक हमारी नींद की सुरक्षा के लिए अपनी नींद कुर्बान करते हैं।

वे हमें यह याद दिलाते हैं कि एक असली मर्द वही है जो वर्दी में हो, और एक असली फौजी वही है जो देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से पीछे न हटे।