Teri Meri Khamoshiyan - 11 in Hindi Love Stories by Mystic Quill books and stories PDF | तेरी मेरी खामोशियां। - 11

Featured Books
Categories
Share

तेरी मेरी खामोशियां। - 11

कमरे में कदम रखते ही एक ठंडी, मद्धम सी महक नायरा की सांसों में उतर गई। सफेद और सुनहरी थीम में सजा कमरा… रौशनी भी कुछ यूँ थी जैसे किसी नर्म एहसास की तरह बस छूकर निकल जाए।


मसनद पर रखे गद्दे, फूलों से सजी हुई छत, और बीच में रखा वो बड़ा सा पलंग… सब कुछ नया था, और बहुत अजनबी।


रूबी ने हल्के लहज़े में कहा,

"भाभी, आपको कुछ भी चाहिए हो तो बेझिजक बताइएगा... और हाँ, अगर दिल घबरा रहा हो, तो... वो तो होता ही है शुरू में।"

उसने नायरा के कंधे पर हल्का सा हाथ रखा और मुस्कुरा दी।


नायरा ने उसकी तरफ देखा, मुस्कुराने की कोशिश की, मगर मुस्कान बस होंठों तक ही रह गई।


रूबी पलटने लगी तो नायरा ने पूछा,

"रूबी... वो... आप के भाई... मतलब...?"


रूबी कुछ पल चुप रही, फिर धीरे से बोली,

"भाई तो ऑफिस के किसी अर्जेंट काम में फँस गए हैं। दादी ने बताया होगा शायद।"


नायरा चुप रह गई।


दरवाज़ा बंद होते ही, कमरे की खामोशी नायरा के अंदर उतरने लगी।


हर तरफ़ नर्मी थी… रेशमी पर्दे, फूलों की हल्की महक, और हल्के रोशनी में नहाया वो सजाया हुआ पलंग। सब कुछ इतना खूबसूरत, इतना सलीकेदार… फिर भी कुछ अधूरा, कुछ खाली।


नायरा ने धीरे-धीरे घूंघट हटाया, और पलंग के एक कोने पर बैठ गई। उसकी उंगलियाँ बेसाख़्ता चादर की किनारी से खेलने लगीं।


"ये वही कमरा है, जिसमें मुझे अब अपनी ज़िंदगी गुज़ारनी है..."

उसने मन ही मन सोचा।


पर, उस ज़िंदगी का चेहरा… अभी भी धुंधला था।

एक अजनबी से निकाह…

एक अजनबी का नाम, जो उसके होंठों से आज तक नहीं निकला…

एक अजनबी, जिससे एक भी लफ़्ज़ की बात नहीं हुई, और जिसने निकाह होते ही बिना देखे, बिना कुछ कहे… बस चला गया।


आँखें भर आईं… मगर वो आँसू नहीं गिरने दिए।


"क्या वो मुझे अपनाएगा? या मैं सिर्फ एक रस्म बनकर रह जाऊँगी?"

ये सवाल जैसे कमरे की दीवारों से टकरा कर वापस उसी तक लौट रहे थे।


दूर कहीं मस्जिद की अज़ान गूंजने लगी…

और उसके दिल ने एक धीमी सी दुआ माँगी—

"या अल्लाह, ये रिश्ता मेरे लिए रहमत बना… सज़ा नहीं।"


कमरे की खिड़की पर हवा ने पर्दा थोड़ा हिलाया… जैसे कोई अनकहा जवाब देने की कोशिश कर रहा हो।


सुबह....


कमरे में हल्की रोशनी फैल चुकी थी। सुबह की ठंडी हवा खिड़की से अंदर आ रही थी, पर नायरा अभी तक उसी लिबास में, उसी उलझन में, उसी सोच में सो गई थी जिसमें कल रात आँखें बंद की थीं।


उसका चेहरा अब भी घूंघट से आधा ढका हुआ था। नींद भरी आँखें खोलते ही उसने पल भर को कमरे को देखा, फिर करवट ली—


और तभी…


उसकी नज़र सीधे उस शख़्स पर पड़ी जो कमरे के कोने में सोफे पर नींद में था।

शेरवानी अब उतार चुका था, चेहरे पर हल्की थकान… और आँखें बंद। मगर वो चेहरा… वही था—


अमन।


नायरा की साँस जैसे हलक में अटक गई।

दिल तेज़ी से धड़कने लगा।


"ये... ये वही है?!"


एक पल को तो उसे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ।

वो कैसे... यहाँ...?

क्या यही...?


उसका दिमाग़ सवालों से भर चुका था, लेकिन ज़बान खामोश।

दिल में कुछ टुटा भी... और कुछ जुड़ा भी।


उसे याद आया—

वो मुलाक़ातें… बेमोल बातें…

वो झपकियों में देखे एहसास… और वो दुपट्टा जो बार-बार उसकी तरफ उड़ जाता था…


अब सब कुछ जैसे एक बिंदु पर आकर ठहर गया था।


वो हिम्मत कर के उठी, घूंघट धीरे से ठीक किया…

और वहीं खड़ी रही… चुपचाप।

बस उसे देखती रही—

"जिसे चाहा… उसी से निकाह हो गया… मगर बग़ैर जाने, बग़ैर समझे… और वो भी इस खामोशी के साथ?"


अमन अब भी सो रहा था… उसकी साँसों की रवानी कमरे की खामोशी में गूंज रही थी।


नायरा अब भी उस शख़्स को देख रही थी जिसे देखकर उसके होश उड़ गए थे…

मगर तभी दरवाज़े पर हल्की सी दस्तक हुई—और फिर बिना जवाब का इंतज़ार किए दरवाज़ा खुल गया।


"बिस्मिल्लाह…!"

सानिया, अमन की भाभी, शरारत भरी मुस्कान के साथ अंदर दाखिल हुई।


सानिया जैसे ही कमरे में दाख़िल हुई, उसकी नज़र सीधा सोफे पर पड़ी—जहाँ अमन यूँ ही करवट लिए नींद में डूबा हुआ था। उसकी साँसें शांत थीं, मगर चेहरा हमेशा की तरह ख़ामोश और उदास।


सानिया के कदम धीमे हुए… फिर उसकी नज़र नायरा पर पड़ी—नायरा कमरे के बीचोबीच खड़ी थी, बाल खुले, थकी हुई आँखें, उलझा हुआ चेहरा, और चेहरे पर सौ सवालों की परतें।


सानिया ने दरवाज़ा पीछे से बंद किया और हल्के से मुस्कराई,

"तो देवरानी जी… पहली सुबह और इतनी भारी चुप्पी?"


नायरा ने उसकी ओर देखा, जैसे किसी ने उसकी खामोशी को आवाज़ दी हो।


सानिया उसके पास आकर ख़डी हो गई, उसकी आंखों में झाँकते हुए बोली—

"जानती हूँ… तुम्हारे लिए ये सब आसान नहीं है। अचानक शादी… अजनबी सा रिश्ता… और फिर ये खामोश-सा शख़्स।"


उसने एक नज़र अमन पर डाली, फिर फिर से नायरा की ओर मुड़ी।


"लेकिन अमन हमेशा से ऐसा नहीं था, नायरा…" सानिया की आवाज़ थोड़ी भर आई।

"उसने बहुत कुछ देखा है… बहुत कुछ सहा है… कुछ ऐसे राज़, जो शायद उसने आज तक किसी से कहे ही नहीं।"


"वो हर किसी से दूर रहता है, मगर उस दूरी में भी कोई इंतज़ार है। किसी अपने के इंतज़ार का…"


नायरा की आंखें अब सानिया की आंखों में थीं।

शायद पहली बार किसी ने उसके मन के उस अनकहे डर को शब्दों का सहारा दिया था।


सानिया ने हल्के से मुस्कराते हुए उसका हाथ थामा,

"तुम्हें लग रहा होगा कि ये रिश्ता अधूरा है… मगर कभी-कभी सबसे अधूरे रिश्तों में ही सबसे मुकम्मल मोहब्बत छुपी होती है।"


वो उठी और धीरे से बोली,

"अब चलो… जल्दी से रेडी हो कर निचे आजाओ, सब नीचे तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। और आज की सुबह तुम्हारी है, उसे यूँ चुपचाप मत जाने दो।"


"अमन को वक्त लगेगा… लेकिन शायद तुम्हारी खामोशी ही उसके जख़्मों पर सबसे गहरा मरहम बन जाए…"