Kurbaan Hua - Chapter 34 in Hindi Love Stories by Sunita books and stories PDF | Kurbaan Hua - Chapter 34

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Kurbaan Hua - Chapter 34

कोई जवाब नहीं आया।

वह थोड़ी देर खामोश रही, फिर एक बार फिर पूछा, "हर्षवर्धन, क्या तुम हो?"

तभी दरवाजे के नीचे से एक कागज़ अंदर सरकाया गया। संजना ने झट से कागज़ उठाया और कांपते हाथों से उसे खोला।

उसमें लिखा था—

"भाग जाओ! इससे पहले कि बहुत देर हो जाए!"

संजना का दिल बैठ गया। "यह किसने भेजा? और यह चेतावनी क्यों?"

अब संजना के सामने दो रास्ते थे—या तो वह चुपचाप अंदर ही रहे, या फिर अपनी जान जोखिम में डालकर बाहर निकले।

वह सांस रोककर कुछ पल खड़ी रही, फिर उसने दरवाज़ा खोलने का फैसला किया...

खौफनाक वैयर हाउस – भाग 2

संजना का दिल बेतहाशा धड़क रहा था। उसके कांपते हाथों में वह कागज़ अब भी था, जिस पर लिखा था—"भाग जाओ! इससे पहले कि बहुत देर हो जाए!"

वह समझ नहीं पा रही थी कि यह चेतावनी किसी हमदर्द ने दी है या यह भी किसी नई साजिश का हिस्सा है। उसने घबराकर दरवाज़े के नीचे से झाँकने की कोशिश की, लेकिन बाहर अंधेरा था। कोई दिख नहीं रहा था। उसने धीमे से दरवाजे के हैंडल को घुमाया, मगर तभी एक ख्याल उसके मन में आया—

"अगर मैं बाहर गई और जंगल में कुछ खतरनाक मिल गया तो? हर्षवर्धन  ने मुझे पहले ही बताया था कि जंगल में भेड़िए हैं… और वह शेर, जो पिछली बार मुझे घूर रहा था, कहीं आसपास ही होगा!"

वह ठिठक गई। उसके मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगे।

"अगर भाग गई और पकड़ ली गई, तो क्या होगा?""अगर यह सच में मेरी मदद करने के लिए है, तो क्या यह मेरा आखिरी मौका है?""कहीं यह कोई चाल तो नहीं?"

वह उलझन में थी। उसने खिड़की से फिर बाहर झाँका, लेकिन सबकुछ पहले जैसा ही लग रहा था—गहरा अंधेरा, सरसराते पेड़, और दूर से आती कोई अजीब-सी आवाज़। वह नहीं समझ पा रही थी कि यह हवा की आवाज़ थी या कोई जीव...

भागने का इरादा

वह खुद को कोसने लगी, "अगर मैं ज्यादा सोचती रही, तो शायद बहुत देर हो जाएगी।" उसने मजबूती से लोहे की रॉड पकड़ ली और धीरे से दरवाज़ा खोल दिया।

दरवाजा हल्की-हल्की आवाज़ करते हुए खुला। वह बाहर झाँकने लगी। चारों ओर अंधेरा पसरा था, लेकिन हल्की चाँदनी की रोशनी में उसे सामने की पगडंडी साफ दिख रही थी। वह धीमे-धीमे कदम बढ़ाने लगी।

कुछ ही दूर जाने पर उसे महसूस हुआ कि कोई उसकी गतिविधियों को देख रहा था। अचानक झाड़ियों में कुछ सरसराने की आवाज़ आई। वह वहीं रुक गई और अपनी साँस रोक ली।

"कोई तो है!"

उसने झाड़ियों की ओर गौर से देखा। कुछ पत्तियाँ हिलीं, लेकिन कोई बाहर नहीं आया।

"हो सकता है कोई जानवर हो, या फिर..."

तभी अचानक किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा!

अनजान साया

संजना के शरीर में झुरझुरी दौड़ गई। वह तेजी से पलटी और अपनी लोहे की रॉड उठाकर वार करने ही वाली थी कि एक जानी-पहचानी आवाज़ आई—

"रुको!"

वह चौंक गई। चाँदनी में उसने जो चेहरा देखा, वह किसी और का नहीं, बल्कि हर्षवर्धन का था!

"तुम यहाँ क्या कर रही हो?" हर्षवर्धन की आँखों में गुस्सा था, मगर उसके चेहरे पर चिंता भी झलक रही थी।

संजना को समझ नहीं आया कि वह झूठ बोले या सच। वह जल्दी से बोली, "मैंने अंदर अजीब आवाजें सुनीं... और फिर किसी ने यह कागज़ दरवाज़े के नीचे डाला।" उसने हर्षवर्धन को कागज़ दिखाया।

हर्षवर्धन ने कागज़ पढ़ा और उसका चेहरा गंभीर हो गया। उसने तुरंत इधर-उधर देखा और फिर संजना का हाथ पकड़कर उसे अंदर खींच लिया।

"दरवाजा बंद करो!" हर्षवर्धन ने तेज़ आवाज़ में कहा।

संजना ने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया और हर्षवर्धन की ओर देखने लगी।

"यह किसने दिया?" हर्षवर्धन फुसफुसाया।

कहानी अच्छी लगे तो आगे भी पढे 💗💗💗💗💗