संजना ने तुरंत दरवाजा बंद कर लिया और हर्षवर्धन की ओर देखने लगी।
"यह किसने दिया?" हर्षवर्धन फुसफुसाया।
"मुझे नहीं पता," संजना ने घबराई हुई आवाज़ में कहा। "मैंने जब दरवाज़ा खोला, तो बाहर कोई नहीं था।"
हर्षवर्धन कुछ सोचने लगा। उसकी आँखों में हल्की बेचैनी थी।
"हमें यहाँ से निकलना होगा," उसने धीरे से कहा।
"क्या?" संजना चौंक गई।
"हाँ, अगर किसी को पता चल गया कि तुम यहाँ हो, तो वे तुम्हें मार डालेंगे।"
संजना के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
"पर... पर तुम तो खुद मुझे किडनैप करके लाए थे!"
हर्षवर्धन ने गहरी सांस ली और कहा, "मैंने तुम्हें यहाँ कैद किया था, मगर मारने के लिए नहीं। लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। अगर वह लोग आ गए, तो मैं भी तुम्हें नहीं बचा पाऊँगा।"
संजना की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
"लेकिन तुम किसकी बात कर रहे हो?" उसने हिम्मत जुटाकर पूछा।
हर्षवर्धन कुछ कहने ही वाला था कि तभी...
भय का आगमन
दरवाजे पर एक ज़ोरदार धमाका हुआ।
धड़ाम!
संजना और हर्षवर्धन दोनों उछल पड़े।
"वे आ गए," हर्षवर्धन की आवाज़ काँप रही थी।
"कौन?" संजना ने डरते हुए पूछा।
हर्षवर्धन ने एक सेकंड भी बर्बाद नहीं किया। उसने जल्दी से एक बैग उठाया और अंदर कुछ जरूरी सामान डाला। फिर उसने संजना का हाथ पकड़ा और तेजी से वैयर हाउस के पिछले दरवाजे की ओर भागा।
"हम पीछे के रास्ते से निकलेंगे," उसने फुसफुसाते हुए कहा।
संजना का दिल तेजी से धड़क रहा था। उसने पीछे मुड़कर देखा—दरवाजे पर कोई ज़ोर-ज़ोर से चोट कर रहा था।
धड़-धड़-धड़!
"अगर वे दरवाज़ा तोड़कर अंदर आ गए, तो?" संजना ने कांपती आवाज़ में पूछा।
हर्षवर्धन ने उसकी आँखों में देखा और कहा, "तुम्हें मुझ पर भरोसा करना होगा।"
संजना के पास कोई और चारा नहीं था। वह उसके साथ तेज़ी से भागने लगी।
भागने की कोशिश
वे दोनों जंगल में घुस गए। हर कदम पर पत्तियों की चरमराहट सुनाई दे रही थी। रात की ठंडी हवा ने संजना को और ज़्यादा बेचैन कर दिया।
"कहाँ जा रहे हैं हम?" उसने पूछा।
"एक सुरक्षित जगह," हर्षवर्धन ने जवाब दिया।
लेकिन तभी…
गर्जना!
एक भयानक दहाड़ जंगल में गूंज उठी।
संजना की सांसें थम गईं। हर्षवर्धन ने भी अचानक रुककर चारों ओर देखा।
"यह क्या था?" संजना ने धीरे से पूछा।
"हमें छिपना होगा," हर्षवर्धन ने जल्दी से उसका हाथ पकड़कर पास की एक बड़ी चट्टान के पीछे खींच लिया।
वे दोनों घुटनों के बल बैठ गए और सांसें रोक लीं।
तभी झाड़ियों में कुछ हलचल हुई…
और अगले ही पल, वहाँ कुछ ऐसा दिखा जिसने संजना के होश उड़ा दिए—
लाल चमकती आँखें, लंबा कद, और भेड़िए जैसी खौफनाक शक्ल!
संजना के मुँह से चीख निकलने ही वाली थी कि हर्षवर्धन ने उसके मुँह पर हाथ रख दिया।
"शांत! एक आवाज़ भी नहीं..." हर्षवर्धन फुसफुसाया।
संजना की आँखें डर से फटी रह गईं। अब उसे समझ आ गया था—
यह सिर्फ जंगल नहीं था...
यह मौत का जंगल था।
और फिर किसी तरह हर्षवर्धन संजना को अपने साथ उस जंगल से लेकर निकलने में कामयाब रहा था दोनों कार में थे और हर्षवर्धन अपनी कार को किसी तूफान जैसे चला रहा था | संजना भी पहले से ही बड़ी घबराइ थी उसके बाल इस वक़्त चेहरे पर बिखरे थे उसकी आंखों में दहशत साफ देखी जा सकती थी उसे इस वक़्त ज़रा भी कुछ समझ नहीं आ रहा था | अपनी कार को रफ्तार मे चलाते वक़्त एक नज़र संजना पर डाली जो बहोत डरी हुई थी | तभी हर्षवर्धन ने अपनी नजरें फिर से रास्ते पर रख दी वो तेजी से कार को लेकर वहां से दूर निकल गया | एक फिर हील टाॅप जहां से पुरा शहर आसानी से देखा जा सकता था हर्षवर्धन जैसे ही अपनी का वहां ले जाकर रोकता है संजना मारे डर के हर्षवर्धन के सीने से लग गई |