Sofi ka Sansaar - 5 in Hindi Philosophy by Anarchy Short Story books and stories PDF | सोफी का संसार - भाग 5

Featured Books
Categories
Share

सोफी का संसार - भाग 5

डिमॉक्रिटस
दुनिया का सबसे कुशल खिलौना...

सोफी ने अज्ञात दार्शनिक से प्राप्त सारे टाइप किए हुए पन्ने अपने विस्किटवाले डिब्बे में वापस रख दिए और उसका ढक्कन बन्द कर दिया। वह रेंगती हुई अपनी माँद से बाहर आई और थोड़ी देर खड़ी रह कर बाग में दूर दूसरे छोर तक देखा। उसने थोड़ी देर इस पर विचार किया कि कल क्या हुआ था। उसकी माँ ने सबेरे नाश्ता लेते समय फिर 'प्रेम-पत्र' की बात कहकर उसे चिढ़ाया था। वह जल्दी से चलकर मेल-बॉक्स तक पहुँची ताकि उस दुर्घटना से बच सके जो उसके साथ कल हुई थी। यदि दो दिन बराबर प्रेम-पत्र प्राप्त होते रहे तो असमंजस दुगुना हो जाएगा।

      मेल-बॉक्स में एक और छोटा सफेद लिफाफा था। इन पत्रों के पहुँचाए जाने में सोफी ने एक क्रम और देखना शुरू कर दिया हर दिन तीसरे पहर उसे एक बड़ा ब्राउन लिफाफा मिलता था। जब वह इसमें लिखी सामग्री को पढ़ती होती, तो दार्शनिक दबे पाँव मेल-बॉक्स तक आता और एक नया छोटा सफेद लिफाफा उसमें डाल देता । X

         तो अब सोफी यह पता लगा सकेगी कि वह कौन था यदि यह एक पुरुष था। वह अपने कमरे से मेल-बॉक्स पर अच्छी तरह से नजर रख सकती थी। यदि वह खिड़की पर खड़ी रहे तो वह इस रहस्यमय दार्शनिक को देख लेगी। सफेद लिफाफे भी कहीं हवा में ऐसे ही नहीं प्रकट हो जाते ।

         सोफी ने तय किया कि अगले दिन वह पूरी सावधानी से निगरानी रखेगी। अगला दिन शुक्रवार था और इसके बाद सप्ताहान्त का पूरा समय उसके पास था।

      वह अपने कमरे में गई और उसने लिफाफा खोला। आज केवल एक ही प्रश्न था, किन्तु यह पिछले तीन प्रश्नों की तुलना में अधिक अवाक् कर देनेवाला था।

     'लेगो' (Lego) दुनिया में सबसे कुशल खिलौना क्यों है?

शुरुआत में तो सोफी यही स्वीकार नहीं कर रही थी कि 'लेगो' एक कुशल खिलौना है। यह वर्षों पहले की बात है जब वह प्लास्टिक के छोटे ब्लॉक्स से खेला करती थी। इसके अतिरिक्त, उसके लिए यह कल्पनातीत था कि लेगो का दर्शनशास्त्र से कोई लेना-देना हो सकता है।

    किन्तु वह एक कर्तव्यनिष्ठ विद्यार्थी थी। अच्छी तरह खोजते हुए उसने अपनी अलमारी के सबसे ऊपर के खाने में वह थैला ढूँढ़ निकाला जिसमें अलग-अलग शक्लों और आकारों के लेगो भरे पड़े थे।

     उसने वर्षों बाद फिर से पहली बार उन्हें खेल-खेल में बनाना शुरू कर दिया। जैसे ही उसने बनाना शुरू किया, उसके दिमाग में ब्लॉक्स के बारे में कुछ विचार उभरने लगे।

     इन्हें इकट्ठा करके जोड़ना आसान है। उसने सोचा। हालाँकि वे सब भिन्न हैं, वे सब आपस में फिट हो जाते हैं। वे तोड़े भी नहीं जा सकते। वह किसी टूटे हुए लेगो को देखने को याद नहीं कर सकी। कई वर्षों पहले खरीदे, यह ब्लॉक्स आज भी उतने ही नए और चमकीले दिखते थे जितने वे खरीदने के समय थे। लेगो के साथ सबसे बढ़िया बात यह थी कि वह उनसे कोई भी चीज बना सकती थी। और फिर वह उन ब्लॉक्स को अलग-अलग कर सकती थी, और फिर से कोई और नई चीज बना सकती थी।

     एक खिलौने से इससे अधिक और क्या आशा की जा सकती है? सोफी ने महसूस किया कि लेगो वास्तव में दुनिया का सबसे कुशल खिलौना कहा जा सकता है। किन्तु इसका दर्शनशास्त्र से क्या लेना-देना था, यह अभी भी उसकी समझ रो बाहरं था।

    उसने एक बड़ा गुड़िया-घर बनाने का काम लगभग पूरा कर लिया था। भले ही यह मान लेना उसे बेहद नापसन्द हो, उसे ऐसा आनन्द युगों-युगों से कभी नहीं आया था।

      लोग बड़े होकर खेल खेलना क्यों छोड़ देते हैं?

      जब उसकी माँ घर पहुँची और उसने सोफी को यह सब करते देखा तो वह तत्काल बोलीं, 'क्या मज़ा है। मुझे यह देखकर बड़ी खुशी हुई कि तुम अभी इतनी बड़ी नहीं हुई कि खेलना छोड़ दो।'

     'मैं खेल नहीं रही हूँ,' सोफी ने गुस्से में भर कर पलटवार किया। 'मैं एक बेहद पेचीदा दार्शनिक प्रयोग कर रही हूँ।'

     उसकी माँ ने एक गहरी साँस ली। सम्भवतः वह सफेद खरगोश और जादुई टोपी के बारे में सोच रही थी।

      अगले दिन जब सोफी स्कूल से घर आई तो एक बड़े ब्राउन लिफाफे में उसके लिए कई और पन्ने थे। वह उन्हें अपने कमरे में ऊपर ले गई। उन्हें पढ़ने के लिए वह प्रतीक्षा नहीं कर सकती थी, किन्तु साथ ही साथ उसे अपने गेल-बॉक्स पर भी नजर टिकाए रखनी थी।

अणु सिद्धान्त

लो मैं फिर आ गया सोफी। आज तुम्हें महान प्राकृतिक दार्शनिकों में से आखिरी दार्शनिक के बारे में कुछ बतलाऊँगा। उतका नाम डिमॉक्रिटस (460-370) था। और वह उत्तरी एजियन के समुद्र तट के पास के एक छोटे से कस्बे एबडेरा का रहनेवाला था।

यदि तुम्हें लेगो ब्लॉक्स से सम्बन्धित प्रश्न का उत्तर बिना किसी कठिनाई के आता है तो तुमको इस दार्शनिक के जिज्ञासा को समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी।

डिमॉक्रिटस अपने पूर्ववर्ती विचारकों से सहमत था कि प्रकृति में रूपान्तरण इस कारण होते हैं कि कोई चीज वास्तव में 'बदली है।' इसलिए उसने यह परिकल्पना की कि हर चीज बहुत सूक्ष्म, अदृश्य व्लॉक्स से बनी है और इनमें से प्रत्येक शाश्वत है और अपरिवर्तनशील है। डिमॉक्रिटस इन में सबसे छोटी इकाइयों को अणु कहता था।

'a-tom' (एटम, अणु) शब्द का अर्थ है, 'un-cuttable' अविभाज्य, यानी काटा न जा सकनेवाला। डिमॉक्रिटस के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण यह स्थापित करना था कि हर चीज के विधायी अंग (भाग), जिनसे यह बनी है, ऐसे हैं कि उन्हें अनन्त रूप से विभक्त करते हुए उनसे और छोटे भाग नहीं बनाये जा सकते। यदि यह सम्भव है, तब उन्हें ब्लॉक्स की भाँति प्रयोग नहीं किया जा सकता। यदि अणुओं को निरन्तर तोड़ते हुए और भी छोटे और छोटे भागों में बदला जा सकता है तो प्रकृति घुलते-पुलते निरन्तर पतले हो रहे सूप जैसी हो जाएगी।

इसके अतिरिक्त, प्रकृति के ब्लॉक्स शाश्वत होने चाहिए क्योंकि शून्य से शून्य के अतिरिक्त और कुछ नहीं प्रकट हो सकता। इस विषय में वह परमेनीडीज और ईलियावासियों से सहमत था। साथ ही, वह यह विश्वास भी करता था कि सारे अणु मजबूत और ठोस हैं। हैं। किन्तु वे सव एक जैसे नहीं हो सकते। यदि सारे अणु एक जैसे होते तो इस बात का कोई सन्तोषप्रद रपष्टीकरण नहीं मिल सकता था कि वे कैले इकट्ठे होकर मिलते हैं और पॉपीज तथा जैतून के पेड़ों से लेकर बकरी की खाल और मानवीय वाल तक भी बनाते हैं।

डिमॉक्रिटस का मानना था कि प्रकृति अणुओं की असीमता और विविधता से बनी हुई है। उनमें कुछ गोल और चिकने थे, अन्य ऊबड़-खाबड़ और विषम थे। और उनके इस प्रकार एक-दूसरे से भिन्न होने के कारण ही वे आपस में मिलकर विभिन्न प्रकार की चीजें एवं रूपाकार बनाते थे। किन्तु संख्या और रूप में वे कितने ही असीम क्यों न हों, वे सव शाश्वत, अपरिवर्तनशील और अविभाज्य है।

जब एक देह, उदाहरण के लिए एक जानवर या एक पेड़, मर जाती है और त्रिखंडित हो जाती है तो अणु अलग-अलग हो जाते हैं और उनका उपयोग नई देह बनाने के लिए किया जा सकता है। अणु (रिक्त) स्थान में घूमते रहते हैं, किन्तु उनमें 'हुक' और 'काँटे' होने के कारण वे आपस में मिलकर एक होकर उन सब चीजों को बनाते हैं जिन्हें हम अपने चारों ओर देखते हैं।

अब तुमने देख लिया होगा कि मेरा लेगो ब्लॉक्स से क्या अभिप्राय था। उनमें लगभग वे सारे गुण-लक्षण हैं जिन्हें डिमॉक्रिटस अणुओं में देखता था। और इसी कारण उनसे चीजें बनाने में मजा आता है। सर्वप्रवम तो वे अविभाज्य हैं। फिर उनकी शक्लें और कद अलग-अलग हैं। वे ठोस और अविभेद्य हैं। उनमें 'हुक' और 'कॉटे' होते हैं ताकि उन्हें जोड़ा जा सके और उनसे हर सम्भव चीज वनाई जा सके। इन जोड़ों को बाद में तोड़ा भी जा सकता है ताकि फिर उन्हीं ब्लॉक्स से नई आकृतियाँ बनाई जा सकें।

लेगो की लोकप्रियता का मुख्य कारण यह है कि इन्हें बार-बार प्रयोग किया जा सकता है। कोई भी एक लेगो ब्लॉक आज एक ट्रक का भारा, और कल एक महल का भाग हो सकता है। हम यह भी कह सकते हैं कि लेगो ब्लॉक्स 'शाश्वत' हैं। बच्चे आज उन्हीं ब्लॉक्स से खेल सकते हैं जिनसे कल उनके माता-पिता अपनी छोटी उम्र में खेलते थे।

हम चीजें मिट्टी से भी बना सकते हैं किन्तु मिट्टी को बार-बार प्रयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसे तोड़कर इसके छोटे-छोटे टुकड़े बनाए जा सकते हैं। इन छोटे-छोटे टुकड़ों को कोई दूसरी चीज बनाने के लिए फिर कभी जोड़ा नहीं जा सकता।

आज हम यह सिद्ध कर सकते हैं कि डिमॉक्रिटस का अणु सिद्धान्त मोटा- मोटी ठीक था। प्रकृति वास्तव में विभिन्न 'अणुओं' से बनी है जो मिलकर एक हो जाते हैं और फिर अलग हो जाते हैं। सम्भवतया मेरी नाक के एक किनारे पर कोशिका में एक उर्जन अणु एक समय एक हाथी की सूँड़ का भाग था। मेरे हृदय की मांसपेशी में एक कार्बन अणु किसी समय शायद एक दिनासौर की पूँछ में था।

किन्तु हमारे समय में वैज्ञानिकों ने यह खोज निकाला है कि अणुओं को तोड़ा जा सकता है और इस प्रकार उन्हें और भी छोटे 'तात्त्विक कणों' का रूप दिया जा सकता है। इन तात्त्विक कणों को हम प्रोटोन, न्यूट्रोन और इलेक्ट्रोन कहते हैं। शायद किसी दिन इन्हें तोड़कर और भी छोटे कण बनाए जा सकें। किन्तु भौतिकशास्त्री इस बारे में सहमत हैं कि इस श्रृंखला की अन्ततः कहीं न कहीं कोई एक सीमा होगी। एक 'न्यूनातिन्यून भाग' होना चाहिए जिससे प्रकृति बनी है।

डिमॉक्रिटस के समय आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण उपलब्ध नहीं थे। उसका सबसे उचित उपकरण उसका अपना दिमाग था। किन्तु तर्क ने उसके पास कोई वास्तविक बिकल्प नहीं छोड़ा। यदि एक बार यह स्वीकार कर लिया जाए कि कोई चीज बदल नहीं सकती कि शून्य से शून्य के अतिरिक्त कोई चीज प्रकट नहीं हो सकती कि कभी कोई चीज खोती नहीं है, तब प्रकृति उन अतीव छोटे ब्लॉक्स की बनी होनी चाहिए, जो जुड़ते रहते हैं और फिर अलग हो जाते हैं।

डिमॉक्रिटस का किसी 'ऐसी शक्ति' अथवा 'आत्मा' में विश्वास नहीं था, जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं में किसी तरह का हस्तक्षेप कर सकती थी। उसका विश्वास था कि अस्तित्ववान केवल अणु और शून्यता अथवा खालीपन हैं। चूँकि उसका विश्वास भौतिक वस्तुओं के अतिरिक्त और किसी चीज में नहीं था, हम उसे भौतिकतावादी कहते हैं।

डिमॉक्रिटस के अनुसार, अणुओं की गतिशीलता में कोई सचेतन 'डिजाइन' (योजना) नहीं है। प्रकृति में, हर चीज बिलकुल यन्त्रवत् होती रहती है। इसका यह अर्थ नहीं है कि हर चीज बेतरतीव या अनियमित ढंग से होती रहती है, क्योंकि हर चीज अवश्यम्भावी रूप से आवश्यकता के नियम का पालन करती है। हर चीज, जो होती है उसका कोई प्राकृतिक कारण होता है, एक ऐसा कारणले स्वयं उस चीज में निहित है। डिमॉक्रिटस ने एक बार कहा था कि वह फारस का राजा बनने के बजाय प्रकृति का कोई नया कारण खोजना पसन्द करेगा।

डिमॉक्रिटस का सोचना था कि अणु सिद्धान्त हमारे इन्द्रियजन्य बोध को भी स्पष्ट करता है।

हमें जब भी कोई ऐन्द्रिक अनुभव होता है तो ऐसा स्थान में घूमते अणुओं के कारण होता है। जब मैं चाँद देखता हूँ तो ऐसा इसलिए होता है कि 'चाँद अणु' मेरी आँख में आ जाते हैं।

किन्तु फिर 'आत्मा' के बारे में क्या कहा जा सकता है? निश्चय ही वह भौतिक अणुओं की नहीं बनी है। वास्तव में यह कुछ ऐसी हो सकती थी। डिमॉक्रिटस का विश्वास था कि आत्मा विशिष्ट गोल, चिकने 'आत्म अणुओं' की बनी थी। जब एक मनुष्य की मृत्यु होती है, आत्म अणु विभिन्न दिशाओं में उड़ जाते हैं और फिर से एक नए आत्मा निर्माण का भाग बन सकते हैं।

इसका अर्थ यह हुआ कि मनुष्यों की आत्मा अमर नहीं है, यह एक अन्य विश्वास है जिसे आज बहुत से लोग मानते हैं। यह लोग भी डिमॉक्रिटस की तरह यह मानते हैं कि 'आत्मा' मस्तिष्क से जुड़ी हुई है, और यह कि एक बार मस्तिष्क का विघटन होने पर हमारे अन्दर किसी प्रकार की चेतना नहीं रहती।

फिलहाल के लिए डिमॉक्रिटस का अणु सिद्धान्त यूनानी प्राकृतिक दार्शनिकों के अन्त का चिह्न है। हिरेक्लिटस की तरह उसका भी यह विश्वास था कि प्रकृति में हर चीज 'बहती जा रही है', क्योंकि रूप-आकार आते और जाते रहते हैं। किन्तु हर बहनेवाली चीज के पीछे कुछ शाश्वत एवं अपरिवर्तनशील चीजें थीं, जो बहती नहीं हैं। डिमांक्रिटस उन्हें अणु कहता था।

पढ़ने के दौरान सोफी ने कई बार खिड़की के बाहर यह देखने के लिए निगाह डाली कि रहस्यमय पत्राचार-संचालक मेल-बॉक्स में कुछ डालने के लिए तो नहीं आया है। अब वह सड़क पर टकटकी लगाए बैठी हुई थी, और जो पढ़ा था उस पर विचार कर रही थी।

     उसने महसूस किया कि डिमॉक्रिटस के विचार कितने सरल, किन्तु फिर भी कितने बढ़िया थे। उसने 'मूल सार-तत्व' और 'रूपान्तरण' की समस्या का वास्तविक समाधान खोज लिया था। यह समस्या इतनी पेचीदा थी कि दार्शनिकों की कई पीढ़ियाँ इस समस्या के इर्द-गिर्द उलझन से भरी हुई घूमती रही थीं। और अन्त में डिमॉक्रिटस ने इसे अपने आप केवल अपनी साधारण सूझबूझ का सहारा लेकर हल कर डाला था।

     सोफी मुस्कुराए बिना न रह पाई। यह बात सच होनी ही चाहिए कि प्रकृति कुछ ऐसे छोटे-छोटे अत्यन्त सूक्ष्म अविभाज्य कणों की बनी हुई है जो कभी नहीं बदलते। किन्तु इसके साथ ही साथ यह भी साफ था कि हिरेक्लिटस यह सोचने में सही था कि प्रकृति में सब रूप-आकार 'बहते रहते हैं', क्योंकि हर चीज नष्ट होती है, जानवर मरते हैं, यहाँ तक कि पर्वतों की श्रेणियाँ भी धीरे-धीरे क्षरित होती रहती हैं। खास बात या बिन्दु यह था कि पर्वत श्रेणियाँ बहुत छोटे, अविभाज्य अंशों की बनी होती हैं, जो कभी और खंडित नहीं होते।

     इसके साथ ही साथ डिमॉक्रिटस ने कुछ प्रश्न भी उठाए थे। उदाहरण के लिए, उसने कहा था कि हर चीज यन्त्रवत् घटित हो रही है। एम्पीडोक्लीज और एनेक्सागोरस के विपरीत, उसने यह स्वीकार नहीं किया कि जीवन में कोई आध्यात्मिक शक्ति होती है। डिमॉक्रिटस का यह भी विश्वास था कि मनुष्य की आत्मा अमर नहीं होती।

     क्या सोफी इस विषय में निश्चित हो सकती थी?
    उसे मालूम नहीं था। दर्शनशास्त्र का कोर्स तो उसने बस अभी ही शुरू किया था।