Sofi ka Sansaar - 6 in Hindi Philosophy by Anarchy Short Story books and stories PDF | सोफी का संसार - भाग 6

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सोफी का संसार - भाग 6

नियति
'भविष्यवक्ता' किसी ऐसी चीज का पूर्व-दर्शन करने का प्रयास कर रहा है जो वास्तव में बिलकुल पूर्व-दर्शनीय नहीं है..

डिमॉक्रिटस के विषय में पढ़ते समय सोफी की आँख मेल-बॉक्स पर ही लगी हुई थी। फिर भी उसने यूँ ही बाग के गेट तक चहलकदमी करने का फैसला किया।

जब उसने सामने का दरवाजा खोला, तो पहली पैड़ी पर ही उसने एक छोटा लिफाफा देखा। बिलकुल स्पष्ट दिखाई देता था-यह सोफी एमंडसन को सम्बोधित था।

इसके मायने वह आज फिर चाल चल गया। और दिनों की बात छोड़िए, आज जब वह मेल-बॉक्स पर बड़ी सावधानी से निगरानी रख रही थी, यह रहस्यमय आदमी किसी दूसरी तरफ से चलकर घर के अन्दर तक आ गया और पैड़ियों पर चिट्ठी डालकर फिर जगल में गायब हो गया। धत् तेरे की !

उसे यह कैसे पता लगा कि सोफी आज मेल-बॉक्स पर निगाह रख रही थी?

क्या उसने सोफी को खिड़की के पास बैठे देख लिया था? चलो कोई बात नहीं, अब उसे खुशी इस बात की थी कि माँ के आने से पहले पत्र उसके हाथ लग गया था।

सोफी वापस कमरे में गई और पत्र खोला। सफेद लिफाफा किनारों पर थोड़ा सा गीला था और इसमें दो छोटे-छोटे छेद थे। यह भीगा क्यों था? कई दिनों से तो बारिश भी नहीं हुई थी।

  अन्दर रखे छोटे से नोट पर लिखा था :

         क्या तुम नियति में विश्वास करती हो ?

         क्या बीमारी देवताओं द्वारा दिया गया दंड है?

         इतिहास की धारा को कौन-सी ताकतें संचालित करती हैं?

क्या उसका नियति में विश्वास था? वह पक्की तरह तो कुछ नहीं कह सकती थी। किन्तु वह ऐसे बहुत से लोगों को जानती थी जो नियति में विश्वास करते थे। उसकी क्लास में एक लड़की थी जो पत्रिकाओं में जन्मपत्रियाँ पढ़ती थी। यदि वे ज्योतिष में विश्वास करते थे, तो वे सम्भवतः नियति में भी विश्वास करते थे, क्योंकि ज्योतिषियों का दावा था कि नक्षत्रों की स्थिति पृथ्वी पर लोगों के जीवनों को प्रभावित करती थी।

यदि आप यह विश्वास करते हैं कि एक काली बिल्ली द्वारा आपका रास्ता काटने का मतलब दुर्भाग्य होता है-ठीक तब आप नियति में विश्वास करते हैं, नहीं करते क्या? जैसे ही उसने इस विषय में विचार करना शुरू किया तो उसके दिमाग में भाग्यवाद के कई उदाहरण आए। उदाहरणार्थ, इतने सारे लोग पेड़ों को क्यों खटखटाते हैं? और तेरहवाँ शुक्रवार का दिन अपशकुन क्यों माना जाता है? सोफी के सुनने में आया था कि बहुत सारे होटलों में 13 नम्बर का कमरा नहीं होता। ऐसा इसलिए था क्योंकि बहुत से लोग अन्धविश्वासी हैं।

'अन्धविश्वासी' । क्या अजीब शब्द है। यदि आप ईसाई धर्म या इस्लाम धर्म में विश्वास करते हैं तो इसे 'आस्था' कहा जाता है। किन्तु यदि आप ज्योतिष में या शुक्रवार 13 में विश्वास करते हैं तो यह अन्धविश्वास है। क्या किसी को दूसरे लोगों के विश्वास को अन्धविश्वास कहने का अधिकार हो सकता है?

हाँ, सोफी को पूरा भरोसा था कि डिमॉक्रिटस नियति में विश्वास नहीं करता था। वह भौतिकवादी था। वह केवल अणुओं और रिक्त अन्तरिक्ष में विश्वास करता था। नोट में लिखे अन्य प्रश्नों के वारे में भी सोफी ने विचार किया।

'क्या बीमारी देवताओं द्वारा दिया गया दंड है?' एक बात साफ थी, आजकल कोई इसमें विश्वास नहीं करता। किन्तु उसे याद आया कि बहुत से लोगों का यह विचार था कि प्रार्थना करने से स्वस्थ होने में सहायता मिलती है, इसके मायने यह हुए कि कहीं न कहीं उनका यह विश्वास होना चाहिए कि ईश्वर लोगों के स्वास्थ्य पर कुछ नियन्त्रण-शक्ति रखता है।

आखिरी प्रश्न का उत्तर देना अपेक्षाकृत कठिन था। सोफी ने इस बारे में भी ज्यादा नहीं सोचा था कि इतिहास की धारा पर किसका नियंत्रण अथवा शासन है। लोगों का होना चाहिए, निश्चय ही। यदि यह शासन ईश्वर या नियति का है, तो फिर लोगों की स्वतन्त्र इच्छा नहीं है।

स्वतन्त्र इच्छा की धारणा सोफी की सोच को कहीं और ले गई। वह इस रहस्यमय दार्शनिक के कुत्ते-विल्लीवाले (आँख-मिचौनी) खेल को क्यों बर्दाश्त कर रही है? वह उसे पत्र क्यों नहीं लिख सकती? वह (स्त्री या पुरुष) बहुत सम्भव है आज रात को या कल सवेरे मेल-बॉक्स में एक और बड़ा लिफाफा रख देगा। वह इसका इन्तजाम करेगी कि इस आदमी औरत के लिए एक पत्र तैयार रहे।

बस तभी उसने लिखना शुरू कर दिया। किसी अनजान आदमी को लिखना कुछ कठिन था। उसे तो यह भी पता नहीं था कि वह आदमी है या औरत। या यह कि वह युवा या बूढ़ा है। या यह भी तो हो सकता है कि रहस्यमय दार्शनिक कोई ऐसा व्यक्ति निकले जिसे वह पहले से ही जानती है।

उसने लिखा

परम आदरणीय दार्शनिक, यहाँ हम आपके दर्शनशास्त्र के विशद कॉरेस्पॉण्डेस कोर्स (पत्राचार-पाठ्यक्रम) की बड़ी प्रशंसा करते हैं। किन्तु हमें परेशानी यह सोचकर हो रही है कि हम नहीं जानते कि आप कौन हो? इसलिए हमारी आपसे प्रार्थना है कि आप अपने पूरे नाम का प्रयोग करें। प्रत्युत्तर में हमें आपका सत्कार करने में प्रसन्नता होगी। क्या आप हमारे साथ कॉफी लेना पसन्द करेंगे? किन्तु बेहतर रहेगी कि आप तब आएँ जब मेरी माँ भी घर पर हों। वह सोमवार से लेकर शुक्रवार तक प्रतिदिन सबेरे 7.30 बजे से शाम 5.00 बजे तक काम पर रहती हैं। इन्हीं दिनों मैं स्कूल में रहती हूँ, और बृहस्पतिवार को छोड़कर मैं प्रतिदिन 2.15 बजे वापस घर आ जाती हूँ। मैं कॉफी बढ़िया बनाती हूँ।

   आपको अग्रिम धन्यवाद देती हुई, मैं हूँ-

                                                         आपकी दत्तचित्त विद्यार्थी                                                             सोफी एमंडसन (आयु-14)

पन्ने के एकदम नीचे उसने लिखा, 'उत्तरापेक्षी'

    सोफी ने महसूस किया कि पत्र कुछ अधिक ही औपचारिक हो गया था। किन्तु जब आप किसी ऐसे व्यक्ति को लिख रहे हैं जिसका चेहरा भी आपके ध्यान में नहीं है तो आप तय नहीं कर पाते कि कौन से शब्द चुनें। उसने पत्र एक गुलाबी लिफाफे में रखा और इस पर पता लिखा :

    'सेवा में-

    दार्शनिक'

    समस्या यह थी कि इसे रखा कहाँ जाए ताकि यह माँ के हाथ न लगे। इसे मेल-बॉक्स में रखने के पहले उसे माँ के आने तक प्रतीक्षा करनी होगी। और फिर उसे अगले दिन मेल-बॉक्स को सबेरे अखबार आने से पहले जल्दी देखना होगा। यदि आज शाम या रात को उसके लिए कोई नया पत्र नहीं आता है तो उसे अपना गुलाबी लिफाफा उठाकर अन्दर ले आना होगा।
        ये सब कुछ इतना पेचीदा क्यों है?

उस शाम सोफी अपने कमरे में ऊपर जल्दी चली गई, हालाँकि आज शुक्रवार था। उसकी माँ ने उसे पिज्जा और टी.वी. पर एक थ्रिलर का लालच देकर रोकना चाहा किन्तु सोफी ने कहा कि वह थक गई है और अपने बिस्तर पर लेटना और पढ़ना चाहती है। जब उसकी माँ बैठी हुई टी.वी. देख रही थी, सोफी चुपके से अपने पत्र के साथ बाहर मेल-बॉक्स तक जा पहुँची।

स्पष्ट था कि उसकी माँ परेशान थी। सफेद खरगोश और जादुई टोपी वाले सिलसिले के बाद से सोफी के साथ बातचीत करने का उसका अन्दाज़ बदल गया था। सोफी को बिलकुल अच्छा नहीं लगता था कि उसकी माँ चिन्तित हो, किन्तु उसे तो ऊपर जाकर मेल-बॉक्स पर नजर बनाए रखनी थी।

रात को ग्यारह बजे के करीब जब उसकी माँ ऊपर आई, सोफी खिड़की में बैठी हुई सड़क पर टकटकी लगाए हुए थी।

'तुम अभी भी वहाँ बैठी हुई मेल-बॉक्स पर नजर लगाए हुए हो।' उसने कहा।

'मैं जहाँ भी मुझे अच्छा लगे वहाँ देख सकती हूँ।'

'मुझे यह पक्का लगता है कि तुम्हें किसी से प्यार हो गया है, सोफी। किन्तु यदि वह तुम्हारे लिए एक और पत्र ला रहा है, तो वह आधी रात को तो आएगा नहीं।'

ऊँह, सोफी को प्यार को लेकर इस तरह चुग्गा फेंकनेवाली बात बिलकुल पसन्द नहीं थी। किन्तु उसे अपनी माँ को इसी तरह की सच्चाई में विश्वास करते रहने देना था।

'क्या यह वही है जो तुमसे खरगोश और जादुई टोपी की बात कर रहा था,' उसकी माँ ने पूछा।

सोफी ने सिर हिलाकर हाँ कर दिया।

'वह ड्रग्स वगैरह तो नहीं लेता, लेता है क्या?'

अब सोफी को अपनी माँ के लिए वास्तव में अफसोस हुआ। वह अपनी माँ को इस प्रकार चिन्ता करते रहने देना नहीं चाहती थी किन्तु उसकी माँ का ऐसा सोचना बिलकुल सिरफिरापन था कि एक आदमी की सोच में कुछ बेतुकेपन का मतलब यह है कि वह कोई नशा करता है या ड्रग्स वगैरह लेता है। कभी-कभी उमरयाफ्ता या अधेड़ भी बिलकुल मूर्ख होते हैं।

उसने कहा, 'मॉम, मैं एक बार और हमेशा के लिए वादा करती हूँ कि मैं ऐसा-वैसा कुछ नहीं करूँगी... और वह भी कोई नशा वगैरह नहीं करता है। किन्तु उसकी

दर्शनशास्त्र में गहरी दिलचस्पी है।'

'वह तुमसे बड़ा है?'

सोफी ने अपने सिर को हिलाकर मना कर दिया।

'तुम्हारी जितनी ही उम्र का है?'

सोफी ने सहमति में सिर हिलाया।

'ठीक है, तब तो मुझे भरोसा है वह बड़ा प्यारा है, डार्लिंग। अच्छा अब मेरा खयाल है कि तुम्हें कोशिश करके सो जाना चाहिए।'

किन्तु सोफी खिड़की में ही बैठी रही, लगता है घटों। आखिर में उसके लिए अपनी आँखें खुली रखना भी मुश्किल हो गया। रात के एक बज गए थे।

वह बस बिस्तर पर जाने ही वाली थी कि उसकी नजर अचानक जंगल से निकलती एक छाया पर पड़ी। हालाँकि बाहर बिलकुल अँधेरा था, वह पहचान रही थी कि आदमी की आकृति है। यह एक आदमी था और सोफी को लगा कि वह काफी बूढ़ा था। यह निश्चित रूप से उसकी अपनी उमर का नहीं था। वह कोई टोपी पहने हुए था।

सोफी यह बात विश्वासपूर्वक कह सकती थी कि उसने सिर उठाकर घर पर निगाह डाली, किन्तु सोफी की बत्ती जली हुई नहीं थी। आदमी सीधा मेल-बॉक्स के पास पहुँचा और एक बड़ा लिफाफा इसमें डाल दिया। जैसे ही वह इसे छोड़ रहा था, उसने सोफी का पत्र मेल-बॉक्स में देखा। उसने मेल-बॉक्स में अन्दर हाथ डालकर इसे निकाल लिया। अगले ही क्षण वह तेजी से वापस जंगल की ओर मुड़ गया। वह जंगल के फुटपाय पर बड़ी जल्दवाज़ी से नीचे उतरा और गायब हो गया।

सोफी ने अपने दिल को उछलते पाया। शुरू में तो यकायक उसके मन में आया कि वह अपने पाजामे में ही दौड़कर उसका पीछा करे, किन्तु वह आधी रात को किसी अजनबी के पीछे दौड़ने की हिम्मत न कर सकी। फिर भी बाहर जाकर उसे लिफाफा तो लाना ही था।

एक या दो मिनट बाद वह दबे पाँव सीढ़ियों से नीचे उतरी, धीरे से सामने का दरवाजा खोला और मेल-बॉक्स की ओर दौड़ी। पलक झपकते झपकते हाथ में वह लिफाफा लिये वापस अपने कमरे में आ गई। वह अपने बिस्तर पर बैठ गई और साँस रोक ली। कुछ गुजर जाने के बाद यह देखकर कि घर में सब कुछ शान्त था उसने लिफाफा खोला और पढ़ना शुरू किया।

वह जानती थी कि यह उसके पत्र का जवाब नहीं होगा। उसका उत्तर तो कल से पहले नहीं आएगा।

  • नियति

मेरी प्रिय सोफी, एक बार फिर गुडमॉर्निंग! इसके पहले कि तुम कुछ सोचो, मैं एक बात तुम्हें साफ कर दूँ कि तुम कभी भी मुझे जानने या पहचानने की कोशिश मत करना। एक दिन हम मिलेंगे, पर इसका फैसला मैं करूँगा कि हम कब और कहाँ मिल रहे हैं। और यह बिलकुल फाइनल है। तुम मेरी अवज्ञा नहीं करोगी, नहीं करोगी न?

चलिए, फिर दार्शनिकों की ओर लौटते हैं। हमने देखा कि उन्होंने कैसे प्रकृति में होनेवाले रूपान्तरणों की प्राकृतिक व्याख्याएँ प्राप्त करने की चेष्टा की। इससे पहले इन परिवर्तनों को पौराणिक कथाओं द्वारा स्पष्ट किया जाता था।

अन्य क्षेत्रों से भी पुराने अन्धविश्वासों को हटाना जरूरी वा। हम इन्हें स्वास्थ्य और रोग सम्बन्धी मामलों तथा राजनीतिक घटनाओं में कार्यरत और प्रभाव डालते देखते हैं। इन दोनों ही क्षेत्रों में यूनानी लोग भाग्यवाद में परम आस्था रखते वे।

भाग्यबाद यह विश्वास है कि जो कुछ भी होता है, यह सब पूर्व निर्धारित है। हमें ऐसे विश्वास सारी दुनिया में देखने को मिलते हैं, न केवल पूरे इतिहास में बरन् आज अपने समय में भी। हमारे नार्डिक देशों में हम भाग्यवाद अथवा 'लग्नदान' में आइसलैंड ऐड्डा सम्बन्धी पुरानी गाथाओं में बड़ा मजबूत विश्वास देखते हैं।

हम प्राचीन गूनान और दुनिया के अनेक अन्य भागों में एक विश्वास और भी पाते हैं कि लोग अपना भाग्य या भविष्य का पूर्वज्ञान किसी देववाणी द्वारा प्राप्त कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, यह ये हुआ कि एक व्यक्ति या एक देश के भाग्य को कई तरीकों से, पहले ही जाना जा सकता है।

आज भी ऐसे बहुत सारे लोग मिल जाते हैं जिनका विश्वास है कि वे भाग्य-कार्ड्स के जरिए, आपकी हस्तरेखाएँ देखकर या नक्षत्रों की स्थिति देखकर आपका भविष्य बतला सकते हैं।

इसी सबका एक विशिष्ट नॉर्वे संस्करण कॉफी कप्स द्वारा आपका भविष्य बतलाता है। जब कॉफी का कप खाली होता है तो कांफी के कुछ बारीक, पिरो हुए कण कप में लगे रह जाते हैं। इनसे एक खास छवि या नमूना बन जाता है-कम-से-कम यह तो होता ही है, यदि हम अपनी कल्पना को खुला छोड़ दें। यदि बचे हुए कॉफी कण कार जैसी आकृति दिखते हैं, तो इसका अर्थ यह हो सकता है कि वह व्यक्त्ति कार में लम्बी यात्रा करेगा।

इस प्रकार 'भविष्यवाणी करनेवाला' व्यक्ति किसी ऐसी चीज का पूर्व-दर्शन, पूर्व-अनुपान करने का प्रयास करता है जिसका पूर्वानुमान बिलकुल नहीं हो सकता। यह बात सभी प्रकार की भविष्यवाणी करनेवालों में समान रूप से पाई जाती है। और चूँकि जो यह देखते हैं वह इतना अस्पष्ट और धूमिल होता है कि 'भविष्यवाणी करनेवालों' के दावों को झुठलाना अत्यन्त कठिन होता है।

जब हम ऊपर सितारों पर नजर डालते हैं तो हमें टिमटिमाते, झिलमिलाते विन्दुओं का निश्चित घाल-मेल दिखलाई देता है। फिर भी, सभी युगों में हमेशा ही ऐसे लोग रहे हैं जिनका विश्वास या कि सितारे पृथ्वी पर हमारे जीवन के विषय में कुछ बतला सकते हैं। आज भी ऐसे राजनेता हैं जो महत्त्वपूर्ण फैसले करने से पहले ज्योतिषियों की सलाह लेते हैं।

   डेल्फी की देववाणी

प्राचीन यूनानियों का विश्वास था कि वे अपनी नियति जानने के लिए प्रसिद्ध डैल्फी की देववाणी से सलाह ले सकते थे। देववाणी का देवता, अपोलो, अपनी पुजारिन पाइविया के माध्यम से बोलता था। यह पुजारिन जमीन की दरार के ऊपर रखे एक स्टूल पर बैठती थी। इस दरार से निकलनेवाली भाप पाइचिया को एक सम्मोहनकारी तन्द्रा में ले जाती थी और उसे अपोलो का प्रवक्ता बनने की शक्ति प्रदान करती थी।

जो लोग डेल्फी आते थे उन्हें अपने प्रश्न देववाणी के पुजारिर्या के सम्मुख रखने होते थे। यह पुजारी उन प्रश्नों को पाइथिया तक पहुँचा देते थे। उसके उत्तर इतने दुरूह या अस्पष्ट होते ये कि पुजारियों को उनके अर्थ लगाने पड़ते वे। इस प्रकार लोगों को अपोलो की बुद्धिमत्ता का लाभ प्राप्त होता था। लोगों का विश्वास था कि वह सब कुछ जानता है, यहां तक कि वह उनके भविष्य के विषय में भी जानता है।

कई राज्यों के अध्यक्ष डैल्फी की देववाणी की राय लिये विना युद्ध करने अथवा निर्णायक कदम उठाने की हिम्मत नहीं कर पाते थे। अपोलो के पुजारी इस प्रकार कमोवेश कूटनीतिज्ञों अथवा सलाहकारों की तरह काम करते थे। ये लोग विशेषज्ञ थे जो लोगों और देश के बिश्य में असीम ज्ञान रखते थे।

डैल्फी के मन्दिर के प्रवेश द्वार पर प्रसिद्ध लेख खुदा हुआ था 'स्वयं को जानो।' यह वहीं आनेवालों की याद दिलाता था कि मनुष्य को अपने नाशवान होने से अधिक और किसी चीज में विश्वास नहीं करना चाहिए और यह कि कोई भी व्यक्ति अपनी नियति से बच नहीं सकता।

यूनानियों में ऐसी अनेक कहानियाँ प्रचलित थीं जो बताती थीं कि किस प्रकार नियति मनुष्य तक हर हाल में पहुँच जाती है। जैसे-जैसे समय बीतता गया, इन 'शोकाकुल' लोगों के बारे में कई नाटक-दुखान्तिकाएँ-लिखे गए। इनमें सबसे प्रसिद्ध किंग ईडीपस पर लिखी गई दुखान्तिका है।

  • इतिहास और चिकित्साशास्त्र

नियति केवल व्यक्तियों के जीवन को ही शासित नहीं करती थी। यूनानियों का विश्वास था कि विश्व इतिहास भी नियति द्वारा शासित होता है, और यह कि युद्ध का रुख भी देवताओं के हस्तक्षेप से बदल सकता है। आज भी यह विश्वास करनेवाले बहुत से लोग हैं कि ईश्वर अववा कोई रहस्यमय शवित इतिहास को निर्दिष्ट कर रही है।

किन्तु उसी समय, जव यूनानी दार्शनिक प्रकृति की प्रक्रियाओं की प्राकृतिक व्याख्याएँ प्राप्त करने की चेष्टा कर रहे थे, प्रवम इतिहासकार इतिहास की दिशा अथवा धारा की प्राकृतिक व्याख्याओं की खोज की शुरुआत कर रहे थे। जब एक देश युद्ध में हार जाता था तो वे यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे कि ऐसा देवताओं के प्रकोप या उन द्वारा कोई बदला लेने के कारण हुआ है। यूनान के सबसे प्रसिद्ध इतिहासकार हिरोडोटस (484-424 ई.पू.) एवं व्यूसी डाइडस (460-400 ई.पू.) थे।

यूनानी यह विश्वास भी करते थे कि बीमारी का कारण दैविक हस्तक्षेप हो सकता है। दूसरी ओर, देवता लोगों को फिर से स्वस्य भी कर सकते ये यदि लोग उनके लिए उचित बलि-भेंट चढ़ा दें।

ऐसा नहीं था कि यह विचार केवल यूनानियों की ही विशिष्टता हो। आधुनिक चिकित्साशास्त्र के विकास के पहले, अधिकांश लोगों में यह मत प्रचलित था कि बीमारी आधिदैविक कारणों से होती है। 'इन्फ्लुएंजा' शब्द का वास्तविक अर्थ नक्षत्रों का हानिकारक प्रभाव होता है।

आज भी, ऐसे बहुत से लोग हैं जो यह विश्वास करते हैं कि कुछ रोग, उदाहरण के लिए एड्स, ईश्वर द्वारा दिया दंड है। बहुत से लोग यह मानते हैं कि रोगियों को अलौकिक शक्तियों की सहायता से ठीक किया जा सकता है।

यूनानी दर्शनशास्त्र की नई दिशा-दृष्टि के साथ ही, यूनानी चिकित्सा विज्ञान का भी विकास हुआ जिसमें रोग और स्वास्थ्य की प्राकृतिक व्याख्याएँ ढूँढने की चेष्टा की गई। यूनानी चिकित्सा पद्धति का संस्थापक हिप्पोकैटीज माना जाता है, जो 460 वर्ष ई.पू. कोस द्वीप में जन्मा था।

हिप्पोक्रेटीज की चिकित्सकीय परम्परा के अनुसार, अतियां न करके सरल-सहज और स्वस्थ जीवन शैली रोगों की रोकथाम के लिए सबसे बढ़िया सुरक्षा है। जब किसी को कभी कोई रोग हो जाता है, तो यह इस बात का चिह है कि शारीरिक अथवा मानसिक असन्तुलन के कारण प्रकृति अपने रास्ते से विचलित हो गई है। हर एक के लिए स्वस्व बने रहने का मार्ग है कम मात्रा में खाना-पीना, समन्वय और 'स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन' ।

आजकल 'चिकित्सकीय नैतिकता' की भी बहुत चर्चा सुनने में आती है, जो यह कहने का दूसरा ढंग है कि एक डॉक्टर को नैतिक नियमों का पालन करते हुए चिकित्सा करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, एक डॉक्टर स्वस्थ लोगों के लिए नशीली दवाओं का नुस्खा नहीं लिख सकता। एक डॉक्टर को पेशेवर गोपनीयता बनाए रखनी चाहिए जिसका अर्थ है कि एक रोगी ने अपने रोग के बारे में जो उसे बतलाया है, वह उसे अन्य लोगों पर उजागर न करे। यह विचार हिप्पोक्रैटीज के समय से चले आ रहे हैं। उसने अपने शिष्यों के लिए निम्न शपथ लेना आवश्यक बना दिया था :

मैं उस प्रणाली या व्यावस्था का अनुसरण करूँगा जिसे अपनी योग्यता एवं विवेक के अनुसार मैं अपने रोगियों के लिए हितकर मानता हूँ, और मैं उन सब चीजों से बचूँगा जो हानिकारक हैं। मैं किसी के माँगने या किसी की सलाह पर भी किसी को अति उग्र या घातक दवा नहीं दूँगा, और इसी प्रकार मैं किसी स्त्री को ऐसी दवा नहीं दूँगा जिससे गर्भपात हो जाता हो। जब मैं किसी के घर जाऊँगा तो मैं रोगी व्यक्ति के हित के लिए ही वहाँ जाऊँगा और किसी भी प्रकार के शरारती और भ्रष्ट स्वैच्छिक कार्य से बचूँगा और इससे भी आगे चलकर मैं स्त्रियों या पुरुषों को बहकाने या पथभ्रष्ट करने के कार्य में नहीं शामिल हूँगा, चाहे वे स्वतन्त्र व्यक्ति या दास हों। मैं अपने पेशेवर चलन के सम्बन्ध में जिस किसी भी चीज के विषय में यह सोचूँ कि इस विषय में चर्चा करना उचित नहीं है, मैं उस विषय में चुप रहूँगा और गोपनीयता बरखूँगा । जब तक मैं इस पथ को अक्षुण्ण बनाए रखता हूँ, तब तक मुझे जीवन-सुख मिले और मेरी चिकित्सा कला चलती रहे, और मैं सब लोगों का सभी समय आदर-सम्मान प्राप्त करता रहूँ। किन्तु यदि मैं इस शपथ को तोड़ता हूँ, तो मेरे जीवन और भाग्य इसके विपरीत हो जाएँ।

शनिवार को सबेरे सोफी एक झटके के साथ उठी। क्या यह कोई सपना था या उसने वास्तव में दार्शनिक को देखा था?

उसने एक हाथ से बिस्तर के नीचे टटोला। हाँ-वह पत्र वहीं पड़ा था जो रात को आया था। यह केवल सपना नहीं था।

निश्चित रूप से उसने दार्शनिक को देखा था। इससे भी और आगे, उसने अपनी आँखों से देखा था कि वह उसका (सोफी का) पत्र मेल-बॉक्स से निकाल रहा था।

वह नीचे फर्श पर सिमटकर बैठ गई और बिस्तर के नीचे से सारे टाइप-पन्नों को बाहर निकाल लिया। किन्तु यह क्या था? दीवार के बिलकुल सहारे कोई लाल चीज थी। एक स्कॉर्फ, शायद ।

सोफी टेढ़ी होकर बिस्तर के नीचे गई और लाल रेशम का स्कॉर्फ बाहर निकाल लाई। यह उसका अपना तो नहीं था, यह बात वह अच्छी तरह से जानती थी।

उसने इसे और नजदीक से, बारीकी से देखा, और जब इसके एक जोड़ पर उसने रोशनाई से हिल्डे लिखा देखा, तो वह अवाक् रह गई।

हिल्डे! किन्तु हिल्डे कौन थी? उन दोनों के रास्ते ऐसे कैसे एक-दूसरे को काट रहे थे?