रात का समय था । वो अपने बिस्तर पर बैठी थी । उसकी गोद मे एक गुडिया थी । वो उसके बालो मे हाथ फेर रही थी । उसने अपनी दाई तरफ देखा तो उसके कमरे कि खिडकी खुली तो और आधा चांद वहां से झांक रहा था । ठंड का मौसम था और हवाएं चल रही थी । लगता है बारिश होगी । उसने अपनी गुडिया की तरफ देखा और अजीब तरह से मुस्कुराई।
" बारिश आने वाली है लेकिन तुम सो जाओ! मै तुम्हे ठंड नही लगने दुंगी । ", उसने गुडिया का हर सहलाते हुए कहा । और कुछ गुनगुनाने लगी ।
तभी उसके कमरे का दरवाजा खुला और एक औरत अंदर आई ।
" रूही ! बेटा सो जाओ। रात बहुत हो गई। ", वो औरत उस लडकी यानी रूही से बोली ।
दरवाजा खुलते ही रूही ने अपनी गुडिया आपने पीछे छुपा दी थी । वो मां को देखने लगी । उसके चेहरे पर मासूमियत थी और वो अपनी टिमटिमाती काली आंखो से मां को देख रही थी । मां आकर उसके पास बैठ गई।
" मै सुला दूं अपनी गुडिया को ! ", वो रूही का सर अपनी गोद मे करता हुई बोली । पर रूही उठ कर बैठ गई। वो मां को देखने लगी ।
" क्या हुआ बेटा ? ", मां रूही का गाल सहलाते हुए बोली ।
" मेरी गुडिया अभी जाग रही है ! ", रूही बोली ।
मां थोडा चौक गई पर फिर मुस्कुराते हुए बोली ," मम्मा उसे भी सुला देगी । "
" सच ? ", रूही बोली । उसके फुले हुए गाल किसी रुई कि तरह थे । मां ने उसके गाल पय अपनी दो उंगली से सहलाया और बोली , " हां सच ! "
मां के कहते ही रूही ने धीरे से अपनी गुडिया बाहर निकाली । मां ने रूही का सर अपनी गोद मे किया और गुडिया को भी कर लिया । फिर वो दोनो को थपकी देने लगी । वो जानती थी कि अगर वो गुडिया को थपकी नही देगी तो रूही रोने लगेंगी ।
वो थपकी देते हुए कुछ गुनगुनाने भी लगी । धीरे धीरे रूही की पलके भारी होने लगा और वो सो गई। मां ने जब ये देखा तो उन्होने रूही को ठीक से बिस्तर पर लेटाया और उसकी गुडिया उठाकर अलमारी मे रख दी । वो अभी दरवाजा बंद कर के जाने ही ली थी कि उन्हे कुछ आवाज आई। वो दुबारा अंदर गई तो देखा अलमारी के पल्ले खुल गए थे । उन्होने ना मे गर्दन हिला और जाकर पल्ले बंद कर दिए। उन्हे भी नींद आने लगी थी और वो बेध्यानी मे अलमारी बंद कर चली गई। पर काश! काश उन्होने ध्यान दिया होता !
अलमारी मे जहा उन्होने गुडिया रखी थी अब वो वहां पर नही थी । मां के जाते ही रूही ने अपनी आंखे खोल दी और मुस्कुरा दी ।
उसने अपना कंबल हल्के से हटाया और धीरे से खिलखिला दी । उसकी गुडिया वही थी उसकी बगल मे !
" तुम मेरे पास ही सोना ! मां हमेशा हमे अलग सुलाती है । ", रूही मुंह फुलाकर बोली ।
तभी उसने गुडिया को देखा और थोडा देर बाद हां मे गर्दन हिलाते हुए बोली , " हां...मां अच्छी है ! पर वो हमे अलग कर देती है । "
उसने एक बार फिर गुडिया को देखा और थोडी देर बाद दुबारा बोली , " हम उन्हे नही बताएंगे । ये हमारा सीक्रेट है ! "
इसके बाद रूही आंखे बंद कर सो गई। उसकी बगल मे रखी गुडिया भी वैसे ही पडी रही ।
इस समय अगर कोई रूसी को देखता तो उसे पागल समझता । क्योकि रूही गुडिया को देख कर उसी से बाते करे जा रही थी और खिलखिला रही थी । उसे देख लग रहा था कि वो गुडिया सच मे बोल रही हो और उसकी बातो का जवाब दे रही हो ।
रात गहराने लगी थी । मां अपनी खिडकी के पल्ले बंद कर रही थी कि उन्हे बाहर रोड पर कुछ दिखा । मां ने गौर से देखा तो वो किसी गुडिया कि तरह लग रहा था । उन्हे अजीब लगा । भला रोड पर कोन गुडिया रखकर जाता है । मां ने इस बात को अनदेखा किया और पल्ले बंद करने लगी । ठंडी हवा चल रही थी जिससे पर्दे हवा मे उड रहे थे । उन्होने खिडकी बंद करी और पर्दो को फेला कर बिस्तर पर आ गई।
वो अकेली अपनी बेटी रूही के साथ इस घर मे रहती थी जो जंगल के नजदीक था । पति की एक एक्सिडेंट मे मौत हो गई थी । और ससुराल ने उन्हे और रूही को अपनाने से मना कर दिया था । नतीजन...मां रूही को लेकर यहा आ गई। ये उनकी नानी का घर था । अब यहा कोई नही रहता था । मामा मामी भी दूसरे शहर मे रहते थे और शायद ही कभी यहां आते होंगे । उनके बताए ही वो रूही के साथ यहा रहने आ गई थी । ये एक छोटा सा कस्बा भर था । ज्यादा लोग नही थे सब खेती बाडी के काम मे मशगूल रहते थे । यहां पर आकर उन्होने गाउशाला खोल ली । घरक ए पीछे कि जमीन खाली थी तो वहा पर सब्जियां उगाना शुरू कर दिया ।
वो दूध और सब्जिया शहर मे जाकर बेचती थी । अब उन्हे इस कस्बे मे आए छः महीने हो गए थे और अच्छी खासी पहचान हो गई थी कस्बे के लोगो से ।
वो अभी गहरी नींद मे गई ही होंगी कि खिडकी पर खट खट होने लगी । मां हडबडाकर उठ गई। उन्होने इधर उधर देखा तो पाया कि उनकी खिडकी कोई जोर जोर से पीट रहा था । उनकी सांसे तेज हो गई। वो धीरे से उठी और खिडकी की तरफ बड गई। वो जैसे जैसे खिडकी की तरफ बड रही थी दूसरी तरफ खिडकी पीटने की आवाज भी तेज होती जा रही थी ।
वो खिडकी के सामने जाकर रूक गई। अचानक आवाज बंद हो गई। वो खिडकी को सांसे रोके देखने लगी । बाहर बारिश हो.रही थी और खिडकी पर कोहरा जमने लगा था ।
मां ने खिडकी की तरफ हाथ बडाया ही था कि एक छोटा सा पंजा खिडकी के ऊपर आकर लगा । मां की चीख निकल गई और इसी के साथ उनके घर के मेन दरवाजे पर दस्तक होने लगी । वो घबराकर पलटी । उनकी हिम्मत नही हो रही थी की वो जाकर दरवाजा खोले । उनकी नजर बार बार खिडकी पर जा रही थी जिसके शीशे पर एक छोटे से हाथ की छाप थी ।
दरवाजे पर दस्तक धीमी हो गई थी । मां जमीन पर ही बैठ गई थी । उनके चेहरे पर पसीना झलकने लगा । जब दस्तक बंद हो गई वो हिम्मत करते हुए उठी और कमरे से बाहर निकल गई।
वो कांपते कदमो से दरवाजे की तरफ बड रही थी । उनकी सांसे तेज हो गई थी । तभी बिजली कडकी और मां घबराकर दो कदम पीछे हो गई। थोडी देर बाद उन्होने सामने देखा तो डर से उनकी आंखे फैल गई। दरवाजे से टिक कर कुछ रखा था । मां तेज तेज सांसे लेने लगी थी । एक बार फिर बिजली चमकी और उसकी रोशनी मे दिखी वो आकृति जोकि एक गुडिया की थी । मां चीख कर पीछे हो गई। तभी किसी ने उनकी साडी खिची वो घबराकर पलटी तो देखा रूही थी हाथ मे अपनी गुडिया लिए।
मां ने घबराकर गहरी सांस भरी । उनका पूरा चेहरा पसीने से भर गया था । उनकी नजर रूही की गुडिया पर थी । वही गुडिया जो अभी थोडी देर पहले दरवाजे के पास थी । मां ने पलट कर दरवाजे की तरफ देखा तो अब वहां कुछ नही था ।
" मां ! क्या हुआ? ", रूही अपनी चुलबुली आवाज मे बोली ।
मां ने किसी तरह खुद को संयत किया और रूही को देखा । रूही उन्हे ही परेशान होकर देख रही थी । वो उसे देख कर जबरन मुस्कुराई। उनकी नजर अब भी उस गुडिया पर थी और पता नही क्यो उन्हे लग रहा था कि वो गुडिया उन्हे ही देख रही है ।
मां को अपनी रीड कि हड्डी मे सिरहन महसूस हुई। वो रूही के सामने छूटने पर बैठ गई।
" रूही..बेटा ! मां को अपनी गुडिया दोगी ? ", वो अपनी आवाज को भरपूर सामान्य रखने की कोशिश करते हुए बोली । वो अब तक घबरा रही थी पर नही चाहती थी कि रूही को पता चले ।
रूही आंखे सिकोड़कर मां को देखने लगी । उसने कसकर अपनी गुडिया को पकड लिया । मां ने जब ये देखा तो वो जबरन मुस्कुराते हुए बोली , " बेटा...मां को डर लग रहा है अकेले ! प्लीज आज के लिए दे दो ! "
रूही ने मां को देखा फिर गुडिया को । उसके बाद उसने गुडिया मां की तरफ बडा दी । मां ने गुडिया हाथ मे ले ली और रूही के सर को सहला दिया । रूही फुदकते हुए चली गई। उसके जाते ही मां ने अपने हाथ मे पकडी उस गुडिया को देखा । ऐसा लग लग रहा था कि उन्होने हाथ मे बम पकड रखा था ।
उन्होने अपने पल्लू से मुंह पोंछा। और गुडिया को लेकर कमरे मे चल दी । उन्होने गुडिया को टेबल पर रखा और कांपते हुए बिस्तर पर चली गई। उन्होने एक नजर अपनी खिडकी पर डाली पर मारे हैरानी के चौंक पडी । अब वहां पर कोई हाथ कि छांप नही थी । उन्होने अपना थूक निगला और अब दुबारा गुडिया की तरफ देखा तो हैरान रह गई। अब टेबल पर गुडिया नही थी । वो जल्दी से उठी और पूरे कमरे मे गुडिया ढूंढने लगी ।
अभी वो गुडिया ढूंढ ही रही थी की उन्हे कुछ गुनगुनाने की आवाज आई। वो कमरे से बाहर निकली तो पाया की आवाज रूही के कमरे से आ रही थी । वो रूही के कमरे की तरफ बड गई। डरते डरते उन्होने हल्के से दरवाजा खोला और झुक कर अंदर देखने लगी । अंदर का नजारा देख उनकी चीख निकलते निकलते रूकी । उन्होने अपने मुंह पर हाथ रख लिया । वो गहरी सांसे लेने लगी थी । उन्होने दुबारा अंदर देखा । अंदर वो गुडिया रूही के सिरहाने बैठे उसका सर सहला रही थी और कुछ गुनगुना रही थी ।
मां उसे घबराते हुए देख रही थी । तभी उस गुडिया की गर्दन मुडी और उसने सीधा मां की आंखो मे देखा । मां की चीख निकल गई। उस गुडिया की आंखे अब किसी प्लास्टिक की नही थी ब्लकि रूही की थी । मां भाग कर रूही के पास आई और उसे पलट कर देखा तो इस बार जोर से चीख कर पीछे हो गई। रूही की आंखो कि जगह पर गुडिया की आंख थी । अचानक रूही उठ बैठी और उसने अपनी मां को देखा । वो.और गुडिया मां की तरफ बडने लगी ।
अगले कुछ घंटो तक वहां पर से एक औरत के दर्द से चीखने की आवाज आने लगी ।
बाहर एक आदमी अपनी साइकल लेकर जल्दी से घर की तरफ जा ही रहा था कि जब उसे जंगल से लगे उस घर से किसी के चीखने की आवाज आने लगी ।
उस आदमी ने अपना सर ना मे हिलाकर दिया ।
" होना ही था ! कहा था मैडम से कि इस घर मे ना रहो । यहां एक शैतान बस्ता है । पर ना मानी बात ! "
कहते हुए आदमी वहा से भाग गया ।
( समाप्त )