that rainy night in Hindi Love Stories by Vartikareena books and stories PDF | वो बरसात की रात

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वो बरसात की रात

      *** वो बरसात कि रात ...! ***



वो‌ अपने कमरे कि खिड़की पर खड़ी थी । उसके हाथ में एक चाय का कप था और वो बड़ी तल्लीनता से खिड़की से बाहर देख रही थी । रात का समय था और आसमान में काले बादल नजर आ रहे थे जो इस काली रात को और भी काला बना रहे थे । 
वो वहां खड़ी बारिश होने का इंतजार कर रही थी । तभी हल्की-हल्की बौछारें शुरू हो गई ! पानी कि कुछ बुंदे उसके चेहरे पर भी आ रही थी । साथ ही ये बुंदे उसके पास ही रखी मेज पर भी पड़ रही थी । 
उसने अपनी चाय खत्म कि और कप मेज़ पर रख दिया । मेज पर एक डायरी रखी थी जिसके पन्ने हवा चलने के कारण फड़फड़ा रहे थे ! 

उसने डायरी उठा ली और उसके अंदर से कुछ निकल कर नीचे गिर गया । उसने झुक कर नीचे गिरी चीजें उठा ली ! 
वो एक पीले गुलाब का फूल था और एक लडके का पेंसिल स्केच...! 

उसने डायरी अपने बेड पर फेंक दी और गुलाब अपने बालों में लगा लिया! वो उस स्केच को लेकर अपनी खिड़की पर बैठ गई । 
उसने वो तस्वीर देखी और उसकी आंखों के कोर गीले हो गए ! 
उसने वो स्केच को अपने सीने से लगाया और एक पुरानी याद में खो गई ! 
                                   फ्लैशबैक 

मै जल्दी से भागकर एक चाय कि टपरी के नीचे जाकर खड़ी  हो गई । बारिश बहुत तेज हो रही थी । मैं  तो मौसम अच्छा होने के कारण बाहर घूम रही थी । घूमते-घूमते कब मैं अपने घर से दूर निकल आई  पता ही नहीं चला ! और अब तेज बारिश शुरु हो गई थी । मै कहीं खड़े होने कि जगह ढुंढ रही थी और इस टपरी पर आकर रूकी । 
मैंने नहीं सोचा था बारिश इतनी तेज हो जाएगी ! 

मैं अभी अपनी सोच में गुम ही थी कि पानी के छींटें मेरे  चेहरे पर पड़े ! 
मैं बुरी तरह बौखला गई !  अभी तो आई थी और किसी ने पानी फेंक दिया । मैंने इधर उधर देखा तो मुझे एक लडका दिखा । वो शायद मुझ से पहले से यहां खड़ा था ।
मैं उसे देखने लगी । 
लड़के ने अपने बालों में हाथ घूमाया और पानी कि कुछ बुंदे उसके बालों से झटक कर लडकी के चेहरे पर आ गिरी ! 

अब मैं बुरी तरह गुस्से में आ गई ..! 

" सुनो ..! ",, मैंने गुस्से से लड़के को बोला 

लडका मेरी तरफ पलट गया । मैं जो उसे गुस्से से देख रही थी उसके पलटते ही मैं हैरान रह गई ...! 

ये वही था ! मैं इसे जानती थी ! मैं रोज इसे यहां देखती थी । उसी के लिए तो वो इस टपरी पर रोज आती थी। और आज भी बस उसे एक नजर देखने के लिए घर से निकली थी । 

मैंने उसे देखा । उसने ब्लू शर्ट और ब्लू पैंट पहन रखी थी । दाएं हाथ में ब्लैक वॉच थी और उसने ब्लैक कलर कि बैल्ट पहन रखी थी । ब्लैक कलर के उसके जुते थे जिनपर किचड़ लग गया था ! उसके बाल काले और घुंघराले थे जो उसके माथे पर आ रहे थे और उन में से पानी गिर रहा था । इसी वजह से वो अपने बाल झटक रहा था बार बार..! 

मैं उसे देख कर कहीं खो गई ! 
लड़के ने मेरे चेहरे के सामने हाथ हिलाया तब जाकर मै होश में आई ! 
वो मुझे ही सवालिया नज़रों से देख रहा था । मैं उसकी नजरो को और उन में उठ रहे सवालों को पता नहीं कैसे.. पर समझ गई..! 

मैं झेंप गई ! आखिर उसे आवाज लगा कर मैं खुद चुप हो गई थी तो ये तो अजीब ही था । 
वो मुझे गौर से देख रहा था और ना जाने क्या सोच कर वो मुझे देख मुस्कुरा दिया और बोला 
" आप मुझ से कुछ कहना चाहती है क्या ? " 

" न..नहीं !! कुछ नहीं कहना था ! " मैंने झेंपते हुए कहा । 

उसने अपनी आंखे सिकोड़ी और कहा ,,,"" पर मुझे लगा आपने मुझे पुकारा था ! " ,,, 

मैं हड़बड़ा गई पर कुछ कहा नहीं । 
" आप नर्वस लग रही है ! " लड़के ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा 

" जी नहीं ! मैं क्यो नर्वस होने लगी और आप से तो बिल्कुल भी नर्वस नहीं हो रही ..! ",,, मैंने हड़बड़ाते हुए कहा और अगले ही पल अपना सर पीट लिया ! ये क्या कह दिया मैंने! 

मैंने उसे देखा तो पाया कि वो मुझे देख मुस्कुरा रहा था । 
" सॉरी ...! " 

लड़के ने अपना सर हल्के से हां कि मुद्रा में हिला दिया । और वो अब बाहर होती बारिश को देखने लगा । 
मैं भी बाहर देखने लगी । अब मुझे इस बारिश से खीज हो रही थी । 

" और कितना बरसेंगे राम जी ! " मैं बुदबुदाई ! 

हम दोनों टपरी के नीचे खड़े बाहर होती बारिश को असाहे भाव से देख रहे थे । तभी वो लड़का इधर उधर देखने लगा और टपरी के अंदर बड गया । 

उसने देखा कि अंदर तख्त रखा था जिसके ऊपर गैस रखी हुई थी और उसके पीछे से एक दरवाजा नजर आ रहा था जो साफ बता रहा था वो कोई कमरा है । 

लडका उस दरवाजे कि तरफ बढ़ गया और दरवाजे कि ओट में खड़ा होकर कमरे के अंदर झांकने लगा ..! 

वो अभी देख ही रहा था कि एक स्त्री स्वर उसके कानों में गुंजा ! 

" कुछ दिखा ? " 

लडका चिहुंक कर पीछे पलट गया । वो आवाज़ मेरी ही थी और मैं उसके पीछे ही खड़ी थी और उसके अचानक से मुड़ने पर और चिल्लाने पर मेरी भी चीख निकल गई ..! 

वो मुझे गुस्से से घूर रहा था । मैं झेंपते हुए नीचे देखने लगी । उसने मुझे देख अपना सर झटका और वापस कमरे में झांकने को पलटा और एक बार फिर उसकी चीख सुनाई दी ! 
मैने सर उठाकर देखा तो सामने का दृश्य देख मेरी भी चीख निकल गई...! 

सामने एक बूढ़ा खड़ा था उसके ऐसे अचानक से आ जाने से लड़के की चीख निकल गई और मेरी उसका हुलिया देख ..! 

बुढ़े ने सफेद कंबल ओढ़ रखा था जिसपर खरगोश बना था , उसने जो पजामा पहना था उसपर भी खरगोश बना था और तो और उसने खरगोश कि शेप कि गर्म चप्पल पहन रखी थी और सर पर सफेद रंग का खरगोश के आकार कि मंकी कैप पहन रखी थी । 

हम दोनों उसे आंखें फाड़े देख रहे थे ..! कहना ग़लत नही होगा अगर हम उसे खरगोश अंकल बुलाए तो । उसका हुलिया ही ऐसा था । 

बुढ़े ने हम दोनों पर अपनी पैनी निगाह डाली । पता नहीं क्यूं पर उनके ऐसे देखने से मैं डर कर लड़के कि बांह से चिपक गई ..! 
उसने मुझे चीढ़ कर देखा पर मेरे डरे चेहरे को देख कुछ बोल नहीं पाया । मैंने महसूस किया कि उसकी नजरें मुझ पर ही है ! 
मैंने उसकी तरफ देखा तो पाया वो मुझे ही देख रहा है । नहीं नहीं !! निहार रहा है ! 
मैं उसकी नजरो में कहीं खो गई और वो मेरी आंखों में ना जाने कितनी गहराई तक झांकता रहा ..! 

हम एक दूसरे को देखने में इतना खो गए थे कि हमें ये ध्यान ही नहीं रहा कि वहां पर वो खरगोश अंकल भी खड़े हैं । 
उन्होंने हमें देखा और तिरछा मुस्कुरा दिए ..! 

वो हमारे पास आकर हमारे कानों में फुसफुसाए " पहली नजर में आइसा ज्यादू कर दिया ..! " 

उनकी आवाज़ सुन हम दोनों हड़बड़ा कर एक दूसरे से अलग हो गए । 

" हमरा कमरा ही मिला तुमको नैन मट्टका करने को ...! ",, वो अपनी आंखें नचाते हुए बोले । 
उनकी बात सुन हम दोनों एक बार फिर हड़बड़ा गए ! 
वो आगे आकर खरगोश अंकल से बोला,,,"" जी हम बारिश में फस गए हैं ! अगर आपको दिक्कत ना हो तो यहां रुक जाए बारिश के रूकने तक ...! ",,,, 

बुढ़े ने हम दोनों पर एक उड़ती नजर डाली और पलट कर अपने कमरे कि तरफ चल दिया । 

उनके पलटने पर मैं बोली,,,"" कैसे अजीब इंसान हैं ये ! हमें अंदर आने को भी नहीं कहा । और हुलिया तो देखो एक दम जोकर लग रहे ..! "

" चुप..!!! ",,लड़के ने मुझे डपटते हुए कहा 
मेने उसकी तरफ मुंह बना लिया ।

" एतना मुंह काहे बिगाड़ रही ! बिल्कुल बंदरियां लग रही ..! " ,,, ये शब्द बुढ़े के थे । 

उनकी बात सुन मैं हैरान हो गई और मैं एकदम से बोली 
"" अरे खरगोश अंकल आप मुझे बंदरियां क्यों बुला रहे .! ""

" अब तुम मुंह ही आइसा बना रही तो हम का करें ! ",, बुढ़े ने अपनी आंखें नचाते हुए कहा । 

" अब अंदर चलो या यही खड़े रहने का इरादा है । " बुढ़े ने कहा 

हम उनकी बात सुनकर जल्दी से कमरे में चले गए क्योंकि भीगे होने के कारण हमें ठंड लग रही थी और खडे‌ खडे पैर भी दुखने लग गए थे । 
अंदर जाकर हम एक खटिया पर बैठ गए । मैं कमरे को गौर से देख रही थी । कमरे के अंदर एक खटिया , एक दिवान बेड जो खटिया के सिर से लगते हुए था । एक जगह पर रसोई का सामान रखा हुआ था और कमरे में हिटर चल रहा था जिसकी गर्माहट मैं महसूस कर पा रही थी । 

" क्या देख रही हो ? " 

मैं कमरे को देखने में इतनी व्यस्त थी कि मुझे लड़के कि आवाज़ सुनाई ही नहीं दी । उसने एक बार फिर पुछा लेकिन मैं तो कमरे को स्कैन करने में बिजी थी ! 

उसने मुझे कंधे से पकड़ कर हल्का सा हिलाया तब जाकर मै होश में आई । 
मैंने उसे सवालिया निगाहों से देखा । 
" ध्यान कहा है तुम्हारा ? ",, उसने पुछा 
" वो मै कमरा देख रही थी । तुम कुछ बोल रहे थे क्या ? " 

" हां ! ये ही पुंछ रहा था कि क्या देख रही हो । "
" अच्छा!" 

हम दोनों के बीच एक बार फिर खामोशी छा गई थी ।  हमारे सामने खरगोश अंकल बैठे रेडियो पर गाना सुनते हुए अलग अलग एक्सप्रेशन दे रहे थे । वो इतनी अदा के साथ गाने के बोल पर अपनी आंखें मटका रहे थे कि मैं तो उनकी फैन हो गई ..! 

मैं उनके पास जाकर बैठ गई । उन्होंने मुझे देखा और अपनी एक आइब्रो उठा दी! 

" आप इतनी अदा के साथ कैसे गाने के बोल पर एक्सप्रेशन दे पा रहे हो ! मुझे भी सिखाये ..! " 
मैंने आग्रह किया । 

" मैं छोटे मोटे लोगों को कुछ नाही सिखाता ..! " 

उनकी बात सुन लड़के कि हंसी छुट गई और मेरा मुंह बन गया । मैं उठी और लड़के के बगल में जाकर बैठ गई । 

रेडियो पर गाना चल रहा था । 

हम्म हम्म हम्म हसीना से यूँ मुलाक़ात हो गई
एक अजनबी हसीना से यूँ मुलाक़ात हो गई
फिर क्या हुआ ये ना पूछो कुछ ऐसी बात हो गई
एक अजनबी हसीना से यूँ मुलाक़ात हो गई

वो अचानक आ गई यूँ नज़र के सामने
जैसे निकल आया घटा से चाँद
वो अचानक आ गई यूँ नज़र के सामने
जैसे निकल आया घटा से चाँद
चेहरे पे ज़ुल्फ़ें बिखरी हुई थी दिन में रात हो गई
एक अजनबी हसीना से यूँ मुलाक़ात हो गई

जान-ए-मन जान-ए-जिगर होता मैं शायर अगर
कहता ग़ज़ल तेरी अदाओं पर
जान-ए-मन जान-ए-जिगर होता मैं शायर अगर
कहता ग़ज़ल तेरी अदाओं पर
मैंने ये कहा तो मुझसे ख़फ़ा वो जान-ए-हया हो गई
एक अजनबी हसीना से यूँ मुलाक़ात हो गई

जी हा कौन है वो बताओना हाँ हाँ बताओ ना
बता दूँ हाँ बताओ ना
वो यहीं पर है यहीं है कौन है वो
हाँ ऐसे नहीं बताऊँगा तुम लोग एक दायरे में खड़े हो जाओ
जिसके कंधे पे रुमाल रख दूँ बस समझ जाओ हे
खूबसूरत बात ये चार पल का साथ ये
सारी उमर मुझको रहेगा याद
खूबसूरत बात ये चार पल का साथ ये
सारी उमर मुझको रहेगा याद
मैं अकेला था मगर बन गई वो हमसफ़र
वो मेरे साथ हो गई
एक अजनबी हसीना से यूँ मुलाक़ात हो गई

मैं इस गाने में खो गई और गहराई से इसे महसूस करने लगी । वो भी तो उसे अचानक ही मिला था ना और जब से उसे देखा था तब से बस उसी कि हो गई थी मैं ! रोज उसी के लिए तो यहां आती थी और दूर से ही देख कर खुश हो लेती थी । बात करने कि तो कभी हिम्मत ही नहीं हुई ..! 
आज जब इस से मिली और बात करी तब मैं ही जानती हूं मेरा हाल कैसा हो रहा है । ऊपर से ये मेरी बगल में बैठा है ऐसा लग रहा है जैसे मैं कोई सपना देख रही ..! 

ये एक तरफा और बस दीदार तक सिमटा हुआ प्यार कब मेरे जीने कि वजह बन गया पता ही नहीं चला ..! 

मैं अपनी सोच में गुम थी और धीरे धीरे मुझे नींद आ गई और मैं उसके कंधे पर सर रख सो गई । 
शायद वो भी थका हुआ था तो उसने मेरे सर पर अपना सर टिका लिया । शायद अब वो भी नींद में था । 

अगली सुबह मेरी नींद खुली और मैंने पाया कि मेरे ऊपर एक सफेद रंग का कंबल पड़ा है । मैंने ध्यान दिया तो याद आया ये कंबल तो खरगोश अंकल का है । मैं हैरान थी कि ये मेरे ऊपर कहा से आया । 
मैं उठने को हुई तो मुझे अपने ऊपर एक कसाव महसूस हुआ ..! 
मैंने अब जाकर महसूस किया कि मैं उसकी बांहों में सोई हुई थी । मेरे दिल कि धड़कने बहुत तेज चलने लगी ..! 
मै कसमसाई तो उसकी नींद खुल गई । उसने मुझे देखा और मुस्कुरा दिया ! शायद वो अभी भी नींद में था । फिर उसने ध्यान दिया कि उसने मुझे अपनी बाहों में भर रखा है । 
उसने एक दम से अपने हाथ पीछे खींच लिए । मैं सीधे होकर बैठ गई । हम दोनों ही बुरी तरह से झेंप गए थे । 
मैने तिरछी नजरों से उसे देखा तो पाया वो इधर उधर देख रहा है । 
क्या ये शर्मा रहा है ...! 
मैं उसे देखने लगी । वो सच में शर्मा रहा था ! हाए! कितना प्यारा और मासूम लग रहा है ये शर्माते हुए..! 

मेरे चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई । तभी उसने भी मेरी तरफ देखा और मुझे मुस्कराते देख उसे थोड़ी हैरानी हुई फिर पता नहीं उसे क्या हुआ! वो मुझे ही देखने लगा ‌। 
उसकी आंखें मेरी नजरों में बड़ी गहराई से देख रही थी। और मैं ! मैं तो डुबा गई थी उसकी आंखों में ..! 

ये काली आंखें जिन्हें हमेशा दूर से देखा करती थी आज उन्हें इतने करीब से देख रही हूं ..! 
मेरी धड़कनें फिर बढ़ गई ...! 

तभी हमें बर्तन बजने कि आवाज़ आई और इस आवाज से हमारी तंद्रा टूटी..! 

मैंने आवाज़ कि दिशा में देखा तो खरगोश अंकल जानबूझकर पतीला जमीन पर फेंक रहे थे ! हमारी आंखें हैरानी से बड़ी हो गई । हम दोनों उनके पास गए । 

" आप बर्तन क्यो फेंक रहे ? ",, लड़के ने हैरान होकर पूछा। 

" ताकि तुम दुनो पति पत्नी का नैन मट्टका बंद हो जावे ..! "

" क्या पति पत्नी ...! ",,,हम दोनों के मुंह से एक साथ निकला । 
" इसमें एतना हैरान होने वाला कौनो बात है ! तुम दोनों पति-पत्नी नाही का ? ",, बुढ़े ने अपनी आंखों और आवाज में जितना शक भर सकता था उतना भरते हुए पुछा । 

" नाही अंकल ! हम तो एक दूसरे को जानते भी नहीं है । " मैंने थोड़ा झेंपते हुए कहा । 
क्योंकि जैसे हम सो रहे थे उस अवस्था में कोई भी हमें पति-पत्नी या गर्लफ्रेंड - बायफ्रेंड समझ लेता । 

"का!!!! तुम दुनो लोग एक दूसरे को जानत भी नही और आइसे हो गए और यूं बार बार नैनो को नैनो से जोड़ लें रहे ! हाए..!! हाए! का समय आ गवा प्रभु ..! ",, वो ऊपर आसमान की तरफ देखते हुए बोले । 

लडका आगे आया और बोला ,,,"" हमें नहीं पता था कि हम ऐसे हो रहे ! और आप को असहज करने के मैं आपसे माफ़ी मांगता हूं ! "

" रही बात एक दूसरे को जानने कि तो हम तो इनका नाम भी नहीं जानते ..! हमारा इनसे कोई रिश्ता नहीं है काका । " 

बुढ़े ने उसकी बात सुनी और फिर हंस दिए । वो बोले 
" हम तो पहिले से ही जानते थे बस मजाक कर रहे थे ! " 

" आप ने भले ही मजाक में कहा हो पर सच तो ये ही है कि हमने मर्यादा भंग करी और उसके लिए मैं माफी चाहती हूं ! " मैंने कहा 
लड़के की बात सुनकर मुझे अपने अंदर कुछ टूटता सा महसूस हुआ । क्या कोई रिश्ता नहीं है ! सही तो कह रहा है क्या रिश्ता है हमारे बीच । 
इतना सोचते ही मेरी आंखें नम हो गई और मैं चुपचाप वहां से चली गई । 
वो दोनों मुझे जाते देखते रहे । 

बारिश बंद हो चुकी थी ‌। बरसात होने के कारण पेड़ पौधे धूल गए थे और उनका हरा रंग निखर कर दिखाई दे रहा था । ठंडी हवा चल रही थी जो किसी के भी मन को सुकून से भर दे ..!

पर ये ठंडी हवा भी मेरे मन को शांत नहीं कर पा रही थी । रह रह कर आंसू निकल जा रहे थे । मैं बिना पीछे मुड़े बिना उसे देखे वहां से चली गई । और मैने ठान लिया था अब इस टपरी पर कभी नहीं आना है । 


फ्लैशबैक एंड


तभी बिजली कड़की! और वो अपनी सोच से बाहर आई । वो अब भी अपनी खिड़की पर बैठी थी । उसके सीने पर उसी लड़के का स्केच रखा हुआ था । उसकी आंखों में आसूं झिलमिला रहे थे ..! 

उसने लड़के कि तस्वीर को देखा और वापस उसे अपने सीने से लगाती हुई अपनी डायरी में लिखने लगी " मैं नहीं जानती आपको मैं याद भी होऊंगी या नहीं ! नही जानती आप कभी मिलेंगे भी या नहीं ! पर मैं इतना जरूर जानती हूं कि मैं तो आपकी कब की हो चुकी ..! उस टपरी पर पहली बार आपको देखा था आप अपने दोस्तों के साथ आए थे । जब से आपको देखा हम सबकुछ भूल गए ..! रोज आपको दूर से देखते और खुश हो लेते आपको हसंता देख ...! 
फिर वो बरसात कि रात आई जब हम आपसे मिले ! बात करी ! सब कुछ याद है । वो बरसात कि रात ! आपके साथ बिताया हर एक पल , वो आपकी बांह से चिपक जाना , बार बार आपकी आंखों में खो जाना ! सब कुछ याद है । और वो आपका शर्माना ...हाए!! "

" सब याद है मुझे पर क्या आपको मै याद होऊंगी ? शायद नहीं क्योंकि आपने तो मुझे देखा भी उस रात ही था ...!  
सच कहूं आपकी छुअन अब भी मैं अपने रोम रोम में महसूस कर सकती हूं ! तब से लेकर अब तक एक बार भी नही देखा आपको । आज दोबारा इस बरसात कि रात में निकल रही हूं इसी आस में शायद आप आज भी उसी टपरी के नीचे खड़े मिल जाए मुझे ..! "

इतना लिखकर उसने डायरी बंद कर दी और स्केच को उसके अंदर डाल दिया । 

वो उठी और छाता लेकर बाहर निकल गई । उसने आज नीले रंग कि साड़ी पहनी थी । कानों में छोटे-छोटे झुमके पहन रखे थे , एक हाथ में घड़ी थी तो दूसरे में एक कडा । 
उसके गले में एक पेंडेंट था जिसपर तन्वी लिखा था । 
इस लड़की का नाम तन्वी था ..! 

तन्वी एक बार फिर उस टपरी पर पहुंची और छाता बंद कर बारिश में भीगने लगी । 
थोड़ी देर बाद वो टपरी के नीचे जाकर खड़ी हो गई । 

तन्वी ने अपनी आंखें बंद करी और मुस्कूरा दी ! और बोली 
" पल भर का खेल था ,
तू सामने था! बस हमारी नज़रों का फेर था ।
मैं निरंतर बहती अव्यक्त धारा, 
तू स्थिर समुद्र था ।
कुछ पलों का फेर था , 
वो एक मुलाकात 
वो बरसात कि रात का खेल था । " 

तभी पीछे से एक आवाज आई 
" तू सामने थी  और 
इन नजरों को तेरे दीदार
का इंतजार था । 
वो बरसात कि रात वो 
मुलाकात
बस कुछ पलों का खेल था ! 
वो बरसात कि रात का खेल था ..! "


मैंने पलट कर देखा तो सामने वो खड़ा था । मैं उसे वहां देखकर हैरान रह गई ! मतलब मैंने जो दुआ करी थी इनसे मिलने कि वो पुरी हो गई । 

वो मुझे देख मुस्कुरा दिया । 
" कैसी हो तन्वी ? " ,, उसने पुछा 
उसकी आवाज सुनकर मैने अपनी आंखें बंद कर ली और उनमें से आंसू गिर पड़े ! 
उसने अंगुठे से मेरे आंसूओ को पोंछा और बोला 
" इन मोतियों को बहाने कि वजह जान सकता हूं मैं ? " 

" आप कहां थे ? "  मैंने रूंधे हुए गले से पुछा । 

" मैं ! मैं तो यही था ‌। इंतजार कर रहा था तुम्हारा तन्वी ! " 
" आपको मेरा नाम कैसा पता ? " मैंने अचरज से पुछा ।

" तुम नाम कि बात कर रही हो मैं तो ये भी जानता हूं तुम रहती कहा हो ! रोज तुम्हारी खिड़की के नीचे खड़े होकर तुम्हें देखता था पर तुम पता नहीं किस सोच में डुबी रहती थी ...!  मैं ये भी जानता हूं तुम इसी टपरी पर रोज आती और छुप छुप कर मुझे देखती । " 

" मैं आपको याद करती थी !  पर मैंने कभी आपको देखा नहीं । " मैंने रोते हुए कहा 

" पहले तो ये रोना बंद करो और तुम मुझे देखती उस से पहले ही मैं छूप जाता था । " उसने हसंते हुए कहा 

मैंने अपने हाथों से उसके कंधे पर हल्के से मार दिया । 
उसने हसंते हुए मुझे अपनी बाहों में भर लिया और होले से मेरा माथा चूम लिया । 

थोड़ी देर में मैं उस से अलग हुई । 

" आपका नाम क्या है ? " 
" विवेक ! विवेक नाम है मेरा । "

मैं मुस्कुरा दी और एक बार फिर उसके गले लग गई । 


वो दोनों एक दूसरे का साथ महसूस करने लगे ।
बारिश इनकी जिंदगी कि सबसे खुशनुमा याद बन गई थी 
खासकर कि वो बरसात कि रात । 


वो बरसात की रात ....! 


                        
                           ( समाप्त ) 

वो बरसात की रात .! बड़ी मेहनत लगी है इसे लिखने में उम्मीद करती हूं आप सभी को पसंद आएगी । 

~वर्तिका रीना