सड़क के तीन-चार किलोमीटर दूर एक गाँव में था एक प्राथमिक विद्यालय।
प्राथमिक विद्यालय चंदनपुर।
दीवारें पक्की नहीं, छत से अक्सर मानसून में पानी टपकता था लेकिन उन चार कमरों में कई सालों से उम्मीदें खिलती थीं।
सत्र आरंभ में अविनाश सर की नियुक्ति पहली बार उस स्कूल में हुई थी।
शहर से आए थे, आधुनिक सोच रखने वाले और कुछ बदलने की चाह की भावना वो हमेशा अपने मन में लिए रखते थे।
नियुक्ति के पहले दिन केवल एक चपरासी के साथ वो ड्यूटी ग्रहण करते हैं क्योंकि पहले वाले एकमात्र सर का तबादला अब दूसरी जगह हो चुका था।
उन्होंने विद्यालय का निरीक्षण किया और पहले दिन आने के साथ ही काम-काज की रूपरेखा तैयार की।
वह विद्यालय केवल 30 बच्चों के साथ संजीदगी से सबको पढ़ाता था।
चूंकि विद्यालय के प्रवेश द्वार के बाहर ही बच्चों द्वारा जूते-चप्पल उतारने की काफ़ी सालों से परंपरा थी, इसलिए इस परंपरा का सम्मान करते हुए रोज़ाना बाहर जूते उतारकर ही अविनाश सर स्कूल में प्रवेश करते थे।
कुछ दिनों तक बच्चों को नियमित पढ़ाने के बाद,
एक दिन अविनाश सर सभी बच्चों से उनकी आकांक्षाएँ पूछने लगे।
और इस तरह उन्होंने एक बच्चे से पूछा –
“तो बताओ बेटा, क्या करना चाहोगे बड़े होकर?”
‘मास्टर जी, मैं बड़ा होकर एस्ट्रोनॉट बनना चाहता हूँ।’
सुनते ही अविनाश सर थोड़ा चौंक से गए मानो।
“अरे वाह, बहुत ही सुंदर,…क्या नाम है बेटा वैसे तुम्हारा?” सर ने मुस्कुराते हुए बड़ी ही उत्सुकता के साथ पूछा।
‘मास्टर जी, मेरा नाम शिवा है।’
“बहुत बढ़िया शिवा, ईश्वर का नाम है तुम्हें मालूम है ना इसका अर्थ?”
‘जी मास्टर जी।’
“हाँ तो तुम… खुद भगवान के रूप हो, समझे के नहीं, इसलिए जो तुम चाहोगे वो जरूर करोगे।”
और इस तरह मास्टर साहब ने सभी से उनकी मनोइच्छा जानी।
और जिस तरह उन्होंने अंदाजा लगाया था बिलकुल वैसे ही सभी बच्चों ने अपनी आकांक्षाएँ बताईं जिसमें डॉक्टर, मास्टर, इंजीनियर, आर्म्ड फोर्सेस इत्यादि थे।
पर शिवा के एस्ट्रोनॉट बनने की चाह में वाकई ने मास्टर साहब का ध्यान अपनी ओर खींचा था।
क्योंकि उन्हें शायद ही लगा था कि कोई चौथी कक्षा में पढ़ने वाला विद्यार्थी अभी से एस्ट्रोनॉट बनने की चाह शायद ही रख सकता। शायद इस उम्र में एस्ट्रोनॉट का मतलब भी केवल चुनिंदा बच्चों को ही पता होता है।
आने वाले कुछ दिनों में अविनाश सर नियमित ही सभी बच्चों को पढ़ाने में लग जाते हैं।
कुछ दिनों बाद उन्हें यह महसूस हुआ कि “शिवा” वाकई में पढ़ाई में बहुत अव्वल किस्म का बच्चा था, जिसका होमवर्क हमेशा पूरा रहता था और किसी तरह के टेस्ट और सवाल-जवाब में उसके उत्तर बहुत ही सधे हुए हुआ करते थे जो कि बेशक उसके सिलेबस से थे।
कुछ हफ्तों बाद गर्मी ने करवट लेकर बारिश का दौर शुरू कर दिया था।
सुबह की तेज बारिश के साथ मास्टर साहब अपना रेन कोट पहनकर स्कूल के लिए अपने दुपहिया वाहन पर निकल गए।
स्कूल से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर आकर उनकी बाइक का एक पहिया पंचर हो गया।
वह बाइक को रोक तेज बारिश में साइड में खड़े हो गए।
तभी साइड से एक टैक्सी आई और ड्राइवर ने उनके पास आकर अपनी गाड़ी रोक दी।
‘मास्टर जी, क्या हुआ?’ गाड़ी में बैठे हुए रामू ने तेज आवाज़ में अविनाश सर को आवाज लगाई।
“अरे यार, बाइक पंचर हो गई,” तेज बूंदों से बंद होती हुई आंखों से उन्होंने रामू से कहा।
‘चलिए सर, छोड़ देते हैं आपको, बाइक कर दीजिए पैड के नीचे यहीं।’
“पर बाइक का क्या फिर?”
‘अरे मास्टर जी इस गाँव में कोई भी बिना पूछे किसी चीज़ को हाथ नहीं लगाता… अब बैठिए।’
और इसी के साथ अविनाश सर गाड़ी में बैठ गए जिन्हें रामू ने उनकी स्कूल के बाहर आकर उतार दिया।
‘मेरा नंबर ले लीजिए सर, कभी मौका पड़े बाय चांस गाड़ी का तो…’ रामू ने गाड़ी घुमा के कहा।
और इसके साथ ही रामू का नंबर लिए अविनाश सर अपने स्कूल में चले जाते हैं।
स्कूल में दाखिल होते ही उन्होंने देखा कि सभी बच्चे टपकते हॉल में खड़े हैं उन्हीं के इंतज़ार में।
इतने में मास्टर साहब को देख सभी बच्चे खुश हो गए जैसे मानो सभी के लिए मास्टर साहब प्रिय हों।
कुछ देर में बारिश बंद हो जाती है और अविनाश सर सबकी हाज़िरी लेकर अपने कक्षा में जाकर बैठ गए।
कुछ देर कुछ पेपरवर्क करने के बाद जब वे बाहर आए तो उन्होंने देखा कि,
शिवा स्कूल के सामने वाले छोटे से मैदान में खड़ा था।
कुछ सेकंड्स उन्होंने उसे देखा फिर वह उसके पास गए।
“क्या देख रहे हो शिवा?” उन्होंने पूछा।
‘मास्टर जी, मास्टर जी, वो देखिये…..इंद्रधनुष।’
शिवा एक बेहद प्यारी आवाज़ देक़र मास्टर जी से बोला।
अविनाश सर भी इंद्रधनुष को देखकर प्रशन्न हो गए।
“लेकिन लगता है तुम बहुत मिनटों से इसे देख रहे हो, क्या बात है?” सर ने आश्चर्य से शिवा को पूछा।
‘मास्टर जी, मुझे इंद्रधनुष देखना बहुत अच्छा लगता है, उसने जो रंग दिखते, मस्त लगते मुझे।’
शिवा ने फिर मुस्कुरा कर सर से कहा, मानो उन रंगों से वाकई में शिवा को प्रेम हो…
“ठीक है,” कहकर वह वहाँ से हँसते हँसते वापस अंदर चले गए।
दिन खत्म हुआ और छुट्टी होने के समय सभी बच्चों के साथ मास्टर जी प्रवेश द्वार की ओर जाते हैं।
स्कूल से निकलने के बाद उन्होंने देखा कि एक बच्चा एक हाथ में अपनी एक चप्पल उठाए जा रहा था।
वो शिवा था।
सभी के बाहर जूते उतरने की परंपरा से जूते-चप्पल पर कभी अविनाश सर का ध्यान नहीं गया था।
लेकिन इस बार उन्हें हाथ में पकड़े चप्पल से टूटी एक धागे की डोरी साफ़ शिवा के हाथ से लटकती हुई दिखाई दे रही थी।
गूँथी हुई डोरी वाला चप्पल उसने एक पैर में पहना हुआ था लेकिन फिर भी वह बड़ा ही झुमता-झुमता चप्पल उठाए जा रहा था।
अगले दिन सुबह सभी बच्चों को इकट्ठा करके बोलते हैं,
“सुनो बच्चों,… मैं जानता हूँ कि आप सभी अपनी रोज़ की पढ़ाई रोज़ाना करते हो और सभी लाजवाब हो…
तो आज मैं टेस्ट लूँगा जिसे सभी को देना है, क्या सब तैयार हो?”
“”””” जी मास्टर जी….””””” सभी ने एक स्वर में उत्तर दिया।
“और सुनो, जो बच्चा सबसे प्रथम आएगा, वो सभी दूसरे बच्चों के लिए चॉकलेट्स लेकर अपनी तरफ से… ठीक है… अपने फर्स्ट पोजीशन का इनाम वो खुद देगा…” हँसते हुए मास्टर जी घोषणा की।
‘जी मास्टर जी।’ सभी बच्चों ने फिर से उत्तर दिया।
“और इसका रिज़ल्ट मैं कल सुनाऊंगा और परसों सबको इनाम मिलेगा… ठीक है।”
‘ओके सर।’
और उस दिन मास्टर जी ने सभी का टेस्ट लेकर दिन खत्म किया।
अगले दिन सुबह अविनाश सर स्कूल पहुँचे और सभी बच्चे रिजल्ट का ही इंतजार कर रहे थे।
सुबह की प्रार्थना सभा के बाद सभी को इकट्ठा करके उन्होंने कहा,
“तो बच्चों क्या तुम सब तैयार हो?”
‘जी मास्टर जी।’
“तो पेश है आप सबके सामने पहला स्थान पाने वाला बच्चा जिसका नाम है……” अविनाश सर थोड़ा रुके।
सभी बच्चे अब तक ताक-झांक लगाकर मास्टर जी की ओर देखने लगे।
“और वो बच्चा है……शिवा।” मास्टर जी ने घोषणा की।
सभी बच्चों ने मिलकर जोर से तालियाँ बजाईं शिवा के लिए।
“चलो अब वापस अपनी पढ़ाई करो, मैं आता हूँ वापस,” कहकर वो अपने कक्षा में चले गए।
शिवा उस दिन उदास था और उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि कल सभी के लिए चॉकलेट्स लाने के लिए माँ पैसे देगी भी या नहीं।
उसे मालूम था कि उसके घर में केवल सीमित पैसा है।
बेचैनी में उसने अपना दिन निकाला।
उसके चेहरे पर बेचैनी से भरी मासूमियत को मास्टर जी ने शुरू से नोटिस कर लिया था।
“बहुत बढ़िया शिवा, शाबाश,” केवल यही शब्द उस दिन मास्टर जी ने उससे कहे थे।
अगले दिन मास्टर साहब स्कूल आए लेकिन बच्चों ने देखा कि उस दिन मास्टर जी के हाथ में दो बड़े से थैले थे।
उन्होंने सोचा स्कूल का कोई सामान वगैरह सर लेकर आए हैं जिस पर बच्चों ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
वही रोज़ाना की प्रार्थना सभा के बाद सभी को इकट्ठा करते हुए अविनाश सर…
और बोलते हैं,
“तो… कहाँ है… हमारे एस्ट्रोनॉट साहब?” मुस्कुराते हुए उन्होंने सभी बच्चों से पूछा।
‘मास्टर जी, आज शिवा स्कूल नहीं आया,’ एक बच्चे ने मास्टर जी से कहा।
“अच्छा… तो इसका मतलब आप सभी को आज टोफियाँ नहीं मिलेंगी लेकिन… सिर्फ शिवा के तरफ से,” कहकर मास्टर जी अपने कक्षा में चले गए जिसमें कि कुछ देर उन्होंने वो दोनों बैग रखे थे।
“हेलो,” मास्टर जी ने किसी को फोन लगाया।
‘हेलो, हाँ बोलिए।’
“जी, कौन बोल रहा है?” मास्टर जी ने पूछा।
‘मैं रामू बोल रहा हूँ।’
“रामू, मैं अविनाश, स्कूल से।”
‘अरे मास्टर साहब आप… हाँ जी बताइए,’ रामू ने उत्सुकता से पूछा।
“आप फ्री हो तो गाड़ी लेकर आ जाओ स्कूल, कहीं जाना है।”
‘जी सर, आता हूँ बस।’
और कुछ ही मिनटों में रामू अपनी गाड़ी लेकर स्कूल के मैदान में आ पहुंचा।
“सुनो सुनो बच्चों सब,” मास्टर जी जोर से सभी को आवाज़ लगाते हैं।
“सभी बच्चे गाड़ी में बैठ जाओ,” मास्टर जी सभी बच्चों से कहा।
“रामू, गाड़ी में सभी नहीं आ पाएंगे।”
‘सर, जाना कहाँ है?’
“शिवा का घर मालूम है ना।”
‘अच्छा हाँ, नज़दीक ही है… अपनी एक और गाड़ी है न सर, टेंशन मत लीजिए, दूसरी और बुलवा लेता हूँ।’ कहकर रामू ने किसी को फोन लगाया।
‘हाँ जल्दी स्कूल में आ जा अपने।’ उसने अपने साथी ड्राइवर को कहा।
“बच्चो, सभी इस गाड़ी में बैठ जाओ जितने आ रहे हो उतने, दूसरी गाड़ी आ रही है,” मास्टर जी ने कहा।
और बच्चे बिना कुछ सोचे हँसते-खेलते गाड़ी में बैठने लग गए।
तभी दूसरी गाड़ी आती है और मास्टर जी अपने दोनों बैग्स के साथ बच्चों के साथ बैठ जाते हैं।
कुछ मिनट बाद वह शिवा के घर पहुँचते हैं।
एक चार दीवारी जिसकी मरम्मत कई सालों से बाकी थी, उसके ऊपर तिरपाल बिछाया हुआ था, जिसके चारों कोनों पर बड़े-बड़े पत्थर रखे हुए थे।
दरवाजा जो कि बाँस की पट्टियों से गुथकर बनाया हुआ था।
दरवाजे पर जाकर उन्होंने खट-खटाया और तभी शिवा बाहर आया।
उसे वहाँ देखकर वह एकदम से चौक गया और साथ में सभी बच्चों को भी देखा।
सभी बच्चे उसकी तरफ देखकर मुस्कुरा रहे थे।
“शिवा, और कौन-कौन है घर में?”
‘मास्टर जी बस माँ है।’
“अच्छा, कहाँ है वो अभी?”
‘वो पास ही में काम पर गई हुई है।’ इतना कहकर वह वहाँ से भागा तेज़ी से अपनी माँ को बुलाने।
जो कि कुछ ही दूरी पर मज़दूरी करने गई हुई थी।
कुछ मिनट बाद वह अपनी माँ के साथ लौटता है।
माँ, जिन्होंने मास्टर जी को देख अपने सिर पर ओढ़ी ओढ़नी का पल्लू हल्का सा नीचे कर लिया था।
“नमस्कार।”
‘नमस्कार साहब,’ शिवा की माँ ने वापस हाथ जोड़कर मास्टर जी का अभिनंदन किया।
और अब सभी सोचने लगे थे कि मास्टर जी आखिर किस काम से शिवा के घर आए।
“बच्चों, गाड़ी में पड़े दोनों बैग को लेकर आओ,” मास्टर जी ने बच्चों से कहा और कुछ बच्चे भागते हुए गाड़ी की तरफ गए और दोनों बैग लेकर मास्टर जी के सामने रख दिए।
शिवा और उसकी माँ वहीं उनके सामने खड़े थे।
“माजी, आपका लड़का वाकई में बहुत ही होशियार है पढ़ाई और हर चीज़ में… और ये एक दिन चाँद पर भी जरूर जाएगा,” मास्टर जी ने सामने खड़ी शिवा की माँ से कहा।
‘आपकी मेहरबानी है साहब,’ घूंघट थोड़ा और नीचे करके शिवा की माँ बोली।
“तो शिवा, अब बताओ सातरंगी रंग तुम्हें कितने पसंद हैं?”
‘मास्टर जी, बहुत।’ थोड़ा नर्वस होकर शिवा बोला।
और इतने में उन्होंने अपना एक बैग खोलकर उसमें से “एक सुंदर सी सातरंगी जोड़ी चप्पल” निकालकर शिवा को सौंपी।
शिवा उसे हाथ में लेते ही मानो झूम पड़ा और दोनों हाथों से वो चप्पल उठाए नाचने लगा, और उसकी मासूमियत उसकी खुशी में साफ जाहिर हो रही थी।
“और बाकी सब शिवा की तरफ से आप सभी के लिए,” कहकर मास्टर जी ने बारी-बारी करके सभी बच्चों को वो सातरंगी चप्पलें सौंप दीं।
सभी बच्चे भी अब शिवा की तरह खुश होकर नाचने लगे।
“और बच्चों, अब चॉकलेट्स कौन-कौन खाएगा?” सर ने दूसरा बैग खोलकर सभी बच्चों को बारी-बारी से चॉकलेट्स बांटीं।
यह सब नज़ारा देखकर शिवा की माँ की आँखों में अपार आँसू थे, जिन्हें शब्दों में बयाँ नहीं किया जा सकता।
मास्टर जी ने अब शिवा की माँ को प्रणाम किया और उनका आशीर्वाद लेने उनके पैरों में झुके।
और जट से मन ही मन रोती माँ ने उन्हें पकड़कर वापस उठाया और खुद उनके पैरों में झुक गई।
“अरे नहीं नहीं माँजी…” भरी आँखों से अब मास्टर जी ने उन्हें प्रणाम किया।
पास ही खड़े रामू को, जिसके आँसुओं को उसके साथी ड्राइवर ने पोछा था, दृश्य देख वहीं अपनी गाड़ी के पास खड़ा रहा।
Dipendra Singh 🖊️