“अरे यार साला, एक तो ये काम भी आज ही आना था।”
काम ख़त्म करके चिड़चिड़े मन से अनन्या अपने आप को कोसा।
समय था रात के 12, अगली तारीख़ लग चुकी थी और अनन्या जैसे-तैसे अपना लैपटॉप बंद करके अपने ऑफिस से निकली।
ओला-ऊबर कुछ भी न मिलने से वह जैसे-तैसे स्ट्रीट लाइट्स में नज़दीकी लोकल रेलवे स्टेशन पर गई।
करीब 12:30 पर वह स्टेशन पर पहुँची जहाँ,
धीमी लाइट्स के साथ कुत्तों का शोर उसे साफ़ सुनाई दे रहा था।
कुछ लाइट्स बंद थीं लेकिन क़िस्मत से वहाँ के मीटर में जलने वाली लाइट अनन्या को दिखी।
मुंबई CST 12:45
मीटर में आख़िरी ट्रेन देख अनन्या की जान में जान आई।
कुछ ही मिनट्स में फिर से एक डिम लाइट्स में आख़िरी ट्रेन उसे अपने प्लेटफॉर्म की तरफ़ आती दिखाई दी।
स्पीड स्लो थी मानो जैसे यही उसका आख़िरी स्टेशन हो।
ट्रेन आके अनन्या के ठीक सामने अब रुक गई जहाँ अनन्या ने सिर्फ़ इसी बात पर ग़ौर किया कि
पूरी ट्रेन खाली थी।
उसने बस इतना सोचा कि चलो लोको पायलट तो होंगे ही जो इसे यहाँ तक लेके आए और अब लेके जाएँगे।
ट्रेन का दरवाज़ा खुला और दायाँ क़दम रख के अनन्या ने उसमें एंट्री ले ली।
और एक डिब्बे में एकांत अपने ईयरफोन लगाके बैठ गई।
कुछ ही देर में उसकी नज़र एक कोने में बैठे व्यक्ति पर गई जो कि दिखने में उसे बुज़ुर्ग लग रहा था।
लाल कलर की टोपी पहनने वह गर्दन नीचे करके बैठा था।
कुछ मिनट्स ट्रेन अपनी पूरी रफ़्तार में चली
और इसी बीच
**** झप झप करती हुई ट्रेन की सारी लाइट्स बंद ****
इसे देख वह थोड़ा टेक्निकल प्रॉब्लम के बारे में सोच ज़्यादा ध्यान नहीं देती।
कुछ समय बाद ट्रेन की लाइट्स फिर से चालू हुईं।
लेकिन इस बार,
उसे वो बुड्ढा आदमी नहीं दिखा।
ये देख अनन्या घबरा गई थोड़ी क्योंकि बोगी के आर-पार जाया नहीं जा सकता था लॉक्ड डोर्स की वजह से और ट्रेन के एंट्री दरवाज़े सिर्फ़ प्लेटफ़ॉर्म पर ही खुलते हैं।
देख अनन्या ने तुरंत घर पे कॉल लगाने के लिए नंबर डायल किया।
लेकिन मोबाइल नेटवर्क्स भी ग़ायब से।
जल्दी से उसने घर पहुँचने का एक मैसेज टाइप करके घरवालों को भेज के छोड़ दिया।
और अब उसने अपने ईयरफ़ोन निकाले और अपने बैग में डाल दिए।
वह थोड़ा उठी ये देखने कि बुज़ुर्ग आदमी आख़िर गया तो गया कहाँ।
चलकर वह दूसरी बोगी में जाने वाले दरवाज़े पर आकर रुक गई।
The door is locked, please do not try to open
वाला साइन बोर्ड उसे उस दरवाज़े पर दिखाई दिया।
जैसे ही उसने हैंडल खींचा और दरवाज़ा ओपन हो गया।
वह कुछ क़दम उस दरवाज़े से दूसरी बोगी में चली और इसी के साथ...
एक धम की आवाज़ से जस्ट ओपन किया दरवाज़ा बंद हो गया।
वह हल्का सा घबराई, वापस पीछे मुड़ी और दरवाज़े को खोलने की कोशिश की लेकिन वह नहीं खुला।
काँच से अपना पर्स और मोबाइल दोनों उसी बोगी में पड़े हुए को उसने कुछ सेकंड्स तक देखा और
अब वह घबरा गई।
जल्दी से भागकर वह दूसरी तरफ़ के दरवाज़े पर गई और ज़ोर-ज़ोर से हैंडल खींचने लगी…
लेकिन इस बार दूसरा दरवाज़ा नहीं खुला।
घबराहट से आए पसीने को उसने अपने पल्लू से पोंछा और गहरी साँसें लेने गई।
टाइम का भी उसे अब अंदाज़ा नहीं था कि आख़िर कितने बजे हैं और वह कब तक पहुँचेगी।
कुछ देर कोशिश करने के बाद अब उसने गहरी साँस ली और एक सीट पर आकर बैठ गई।
इतने में ही वापस...
**** झप झप करके सारी लाइट्स बंद हो गईं ****
और कुछ देर अँधेरे में रहने के बाद वापस लाइट्स ऑन हुईं।
लेकिन इस बार...
फिर से वह बुड्ढा आदमी उसे ठीक पहले वाली बोगी की तरह एक कोने में बैठा दिखा।
इस बार वह डर गई।
उसने उठकर उसके पास जाकर कुछ बात करने का सोचा लेकिन डर इतना हावी था कि वह जगह से उठ तक नहीं पाई।
कुछ देर तक बत्तियों का गुल होकर फिर से चालू होना ऐसे ही चलता रहा
और बुड्ढा आदमी उसे उसी जगह पर बैठा दिखता रहा।
इसी सिलसिले के दौरान जैसे ही लाइट्स चालू हुईं और
वो बुड्ढा आदमी ठीक उसके सामने वाली सीट पर दिखा।
चेहरा वह देख नहीं पाई, थोड़ा धुँधला सा झुर्रियों वाला हिस्सा उसे दिखाई दिया।
गर्दन नीचे की हुई, वही लाल टोपी थी और हाथ नीचे बाँधे… वह ठीक अब उसके सामने था।
वह अब साहस करके डर और घबराहट अपने मन में लिए उठी और आहिस्ता-आहिस्ता उसकी तरफ़ क़दम रखने लगी।
जैसे ही वो उसके पास पहुँची और बोली—
“Hello”
एक तेज़ हॉर्न बजा और इस बार पूरी की पूरी ट्रेन की लाइट्स ऑफ़।
Hello बोलते ही चारों तरफ़ अंधेरा छा गया।
और अनन्या का डर अब पूरे चरम पर पहुँच गया था।
कुछ सेकंड्स में फिर से बत्ती चालू… लेकिन…
लेकिन बुड्ढा आदमी ग़ायब।
देखते ही तुरंत अनन्या डर के मारे बेहोश हो गई।
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करीब 3 दिन बाद!
उसे उस शहर जहाँ वो नौकरी करती थी, वहाँ के किसी अस्पताल में होश आता है।
जहाँ उसके पेरेंट्स ने उसे बताया कि वह 3 दिन पहले नज़दीकी स्टेशन पर 4 बजे सिक्योरिटी ऑफ़िसर्स को बेहोश पड़ी मिली पटरी पे।
और फिर उसे जैसे-तैसे एम्बुलेंस में यहाँ लाया गया जहाँ उसे 3 दिनों बाद होश आया।
डॉक्टर्स ने कहा कि अचानक से दिल का दौरा पड़ा और फिर बेहोश हो गई थी।
अनन्या को कुछ भी याद नहीं था, सिवाय इसके कि वह CST की आख़िरी ट्रेन में बैठी थी घर जाने के लिए।
अस्पताल से डिस्चार्ज होने के कुछ दिनों बाद सामान्य दिनचर्या के साथ वह समय निकालती है लेकिन अब भी उसके दिल और दिमाग़ में कुछ तो बातें उसे सताए जा रही थीं।
एक दिन ऑफिस से निकल के वह उसी नज़दीकी स्टेशन पर गई।
और जाकर स्टेशन मास्टर से पूछा—
“यहाँ लास्ट ट्रेन कौन-सी रुकती है दिन की जो यहाँ से होकर जाती है?”
‘जी मैडम, लास्ट ट्रेन तो रात को आएगी, 12:10 टाइम है उसका।’
“क्याााा!” अनन्या सुनकर थोड़ा चौंक गई।
‘जी मैडम,’ स्टेशन मास्टर ने जवाब दिया।
“अरे ऐसे कैसे, लास्ट ट्रेन 12:45 पे आती ना CST जाने के लिए?”
‘ऐसी तो मैडम कोई ट्रेन नहीं है इस रूट पे।’
“आपको शायद मालूम नहीं होगा, दूसरों से जानने की कोशिश कीजिए ना, प्लीज़।”
‘अरे मैडम, मैं बता तो रहा हूँ ना…
अरे राकेश, ये लास्ट ट्रेन कितने बजे आती रे इधर?’
और मास्टर ने दूसरे सहकर्मी को आवाज़ लगाई।
‘लास्ट वाली तो 12:10 की है ना यार, पता ही है।’
अंदर से आवाज़ आई।
‘देखा मैडम आपने,’ स्टेशन मास्टर ने फिर अनन्या से कहा।
फिर से घबराहट के मारे अनन्या उनकी ऑफिस में गई और दोबारा पूछा—
“वो जो 12:45 वाली ट्रेन आती CST वाली, वो…?”
“"" अरे मैडम, CST रूट पर चलने वाली सभी ट्रेनें 10 साल पहले ही बंद हो चुकी हैं ""”
और ये सुनते ही अनन्या सन्न होकर जहाँ खड़ी थी,
वहीं की वहीं खड़ी रह गई।
– दीपेन्द्र सिंह 🖊️