नीलम कुलश्रेष्ठ
एपीसोड -1
‘टन..न...न...न...न’ रोज की तरह सुबह 4 बजे उन्हें लगा कि इस कर्कश ध्वनि से उन के कान के पर्दे फट जायेंगे । लोग तो अपने को भाग्यवान समझते हैं यदि सुबह सुबह उन की आंख पूजा की घंटी से खुले । लेकिन उन्हें पूजा, मंदिर, मूर्ति पूजा की घंटी के नाम से ही चिढ़ होने लगती थी । कभी कभी उन्हें लगता था यदि भगवान का नाम न होता तो कितना अच्छा होता । न लोग भगवान के नाम पर मंदिर बनाते, न पूजा करते, न घंटी टनटनाते और न ही उन का अपना जीवन उजाड़ रेगिस्तान बनता ।
किस तरह नीति ने अपने व्यक्तित्व के सारे आभासों के डैने समेट कर अपने पूजा में डुबो कर रख दिया था । उन्हें याद नहीं पड़ता था कि उस के साथ उन्होंने कभी कुछ भावुक क्षण बिताए हों । मीता व मनु उन की जबरदस्ती की ही पैदाइश थे । सुना था कि आध्यात्म पूजा से तनमन पवित्र होता है, आत्मा शांत होती है पर उन्हें लग रहा था कि यह घंटी की आवाज उन्हें गढ्ढे में धकेलती जा रही है । वह करवट ले कर तकिये पर अपना सिर दबाते जिससे कि कान के पर्दे पर पर्दा पड़ जाये । फिर वह दूसरे हाथ से दूसरे कान का पर्दा दबा कर सोने का प्रयास करने लगते थे ।
चाय पीते समय रोज की तरह उन का सिर भारी हो रहा था । मीता रोज की तरह नाश्ता बना कर मेज पर रख गई थी । नीति अपने कमरे में पूजा में मग्न रहती थी । मीता पर मां का दबदबा ऐसा था कि उस से जरूरत की बात कर के अपनी किताब ले कर मां के कमरे में ही पढ़ने बैठ जाती थी ।
उन्हें उस नन्ही सी जान पर तरस आता था क्योंकि उसे ही घर का सारा काम करना पड़ता था । मां तो अपने कमरे में ‘हरे राम, सीता राम’ कीर्तन कर रही होती थी और बेटी एक गृहिणी की तरह हांफते, पसीना पोंछते हुए घर के सारे काम कर रही होती थी ।
एक दिन तो नरेन दनदनाते नीति के कमरे में पहुंच गये और ज़ोर से दहाड़े, “बंद करो यह पूजा, यह नाटकबाज़ी । शर्म नहीं आती, तुम्हारी बेटी पढ़ाई छोड़ कर घर के काम करती है और तुम पूजापाठ में लगी हो?”
नीति भी उतनी ही तेजी से ‘हरे राम, सीता राम’ भूल कर दहाड़ी, “तुम्हें मेरा पूजा करना नाटकबाज़ी लगता है ? तुम्हें ‘नर्क’ में भी जगह नहीं मिलेगी । मेरा जन्म पूजा अर्चना के लिये हुआ है । इस से मैं इस जन्म के बाद तुम से, इस संसार से मुक्ति पा लूंगी । ”
नरेन गुस्से में उस का हाथ पकड़ कर उन्हें मृगचर्म से घसीट ले चले, “तो जा कर किसी भजनाश्रम में क्यों नहीं रहतीं? मेरा घर क्यों बर्बाद कर रही हो ?”
वह इस अपमान से रोने के स्थान पर और जोर से चीख पड़ी, “तुम्हीं तो मुझे 7 फेरे ले कर इस घर में लाये थे । निकाल कर तो देखो,” कहने के साथ ही वह अपने दोनों हाथ कमर पर रख कर खड़ी हो गई ।
उस की इस अकड़ व 7 फेरे की धमकी से वह हमेशा पराजित होते आये थे । आज भी वह एक घृणित दृष्टि उस औरत पर डाल कर हमेशा की तरह हार कर घर से बाहर हो गये थे । इधर
उधर सड़कों पर घूमते रहे थे ।
घूमते घूमते वह यही सोच रहे थे कि यदि नीति ने रुद्राक्ष माला पहन कर ‘मेरे तो गिरधर गोपाल’ ही गाना था तो फिर मुझ से शादी कर के मेरी ज़िन्दगी क्यों बरबाद की ?
ऑफ़िस में कुछ महीनों से इशिता सोच रही थी कि आखिर सर इतने उदास क्यों रहते हैं ? एक दिन हिम्मत कर उस ने पूछ ही लिया, “सर !सारे ऑफ़िस के लोग आपस में हंसीमजाक करते रहते हैं । बस, एक आप हैं कि हमेशा गुमसुम बने रहते हैं ?”
वह एक फीकी हंसी हंस दिये, “मेरी तो हमेशा से ही चुप रहने की आदत है ।”
“चुप रहना अलग बात है, गुमसुम रहना, उदास रहना दूसरी बात है ।”
“तुम्हें कुछ गलतफ़हमी हो रही है,” वह टाल गये । उन की परेशानी अपने से आधी उम्र की इशिता को क्या समझ में आयेगी ? भले ही वह ऑफ़िस की अन्य लड़कियों से उम्र में बड़ी हो, गंभीर हो । पता नहीं क्यों उसे देख कर उन के मन में वात्सल्य उमड़ पड़ता था । उन की अपनी मीता भी 6-7 वर्ष बाद इसी उम्र की हो जायेगी । उन्हें कभी कभी अपने पर हंसी भी आती थी । जब से बालों में सफेद लकीरें बनने लगी थीं, आंखों के आसपास की त्वचा सिकुड़ने लगी थी, पता नहीं मन भी कैसे अपने आप बदलता जा रहा था । कुछ वर्षों पहले तक इशिता की उम्र की लड़कियों को देख कर उन की आंखों में मस्ती छलकने लगती थी, मन तरंगित होने लगता था ।
वह मन ही मन सोच रहे थे कि वह इशिता को क्या बताएं कि नीति से उन की शादी नहीं हुई है बल्कि वह किसी अपराध का प्रायश्चित कर रहे हैं । उन्हें याद आ रहा था कि किस तरह उन्हें व उन के घर वालों को शादी के समय नीति के घर वालों ने अपमानित किया था । जैसे ही वह स्वागत द्वार पर पहुंचे थे, उन्हें यह देख हैरानी हुई थी कि द्वार पर माला व फूल लिये न नीति के दोनों भाई थे और न ही पिता । 2-3 नौकर व मामूली कपड़े पहने रिश्तेदार बरातियों के लिये फूलमालाएं लिये खड़े थे ।
नरेन के तने हुए तेवर देख कर उन के पिता उन के घोड़े के पास आ कर फुसफुलाये, “नरेन ! कोई तमाशा मत खड़ा करना, गुस्से पर काबू रखना ।”
घर के द्वार पर खड़ी कटे बालों वाली उन की फैशनेबुल सास ने गर्दन ऊंची अकड़ा कर कुछ इस तरह से उन के माथे पर टीका लगाया था कि जैसे उन पर कोई एहसान जता रही हैं । सभी बराती गुस्सा दबाये खाना खाने लगे थे क्योंकि खाने की मेज पर कलफ लगी वरदी पहने बेयरों के सिवा उन के नाज़ नखरे उठाने वाला कोई नहीं था ।
बाद में शादी की रस्में ऐसे होने लगीं जैसे सरकारी अस्पताल में ताबड़तोड़ मरीज़ देखे जाते हैं । विवाह वेदी पर तो हद ही हो गई । जब कन्यादान करने के लिये नीति के पिता की पुकार हुई तो पता लगा वह तो अपने कमरे में निश्चिंत सो रहे थे । अजब अपमानित करने वाला माहौल था । कोई उन्हें ज़बरदस्ती जगा कर लाया तो गाउन की डोरियां कसते, जम्हाई लेते आ तो गये लेकिन आंगन के एक कोने में खड़े अपने छोटे भाई से बोले, “तू ही कन्यादान कर देता । तेरे मेरे में फ़र्क ही क्या है?”
पंडितजी ने बीच में दखलअंदाजी की, “बाबूजी !कन्यादान तो आप की अपनी शोभा है ।”
“पंडितजी ! आप चुप रहिये । आप अपने मंत्र पढ़िए, दक्षिणा लीजिये । आप को इस से क्या मतलब कि कौन कन्यादान कर रहा है ?”
पंडितजी को इतने बड़े घराने से मोटी दक्षिणा का लालच था सो वह चुप हो गये ।
इस अपमान से नरेन का मन तो हुआ कि एकदम से मंड़प को तोड़ताड़ कर ऐसे वाहियात घर की लड़की से बंधने से इनकार कर दें, लेकिन पिता इस अजीब वातावरण को झेल कर उन्हें अनुशासित करने के लिये एक साये कि तरह उन के पास ही बैठे थे । वह स्वयं ही तो इस परिवार के वैभव से दब कर यह रिश्ता तय कर बैठे थे ।
नीति शक्लसूरत में मामूली थी । उसे बी.ए. करना भी भारी पड़ रहा था । जब उस के पिता को अपने परिवार की टक्कर का परिवार व वर न मिल सका तो उन्होंने नरेन को ही चुन लिया था । सगाई से पहले नीति के एक आई.ए.एस. भाई व डाक्टर भाई ने शोर भी मचाया था कि वे नरेन जैसे क्लर्क के साथ अपनी बहन की शादी नहीं करेंगे । लेकिन पिता निर्णय ले चुके थे ।
नीति ने पहले ही दिन उन के घर में कुछ इस तरह कदम रखा था कि उस का भाई नहीं, वह स्वयं जिलाधीश हो । पहली रात जब उन्होंने पुलकते दिल से कमरे में प्रवेश किया तो यह देख कर दंग रह गये थे कि उन्हें घूंघट उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ी । नीति ‘नाइट गाउन’ में कमरे में इधर से उधर चहलकदमी कर रही थी । उन्होंने अपनी आवाज को भरसक मुलायम बनाते हुए कहा, “नीति! कुछ परेशान लग रही हो?”
“लगूंगी क्यों नहीं । मेरे दोनों भाइयों ने अपनी सुहागरातें पांचसितारा होटलों में मनाई थी । मैं क्या इस पिंजरे से मकान के इस छोटे कमरे में अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी की शुरूआत करूंगी?”
“यह तो तुम्हें शादी से पहले सोचना था ।”
“मैं क्या आप का घर देख गई थी ?”
“जब तुम एक क्लर्क से शादी कर रही थीं तो उस का घर भी छोटा ही होना था ।”
वह ऐसे चौंकी जैसे उसे जोर का करंट लग गया हो, “तो क्या आप क्लर्क हैं, बैंक मैनेजर नहीं?”
“नहीं ।”
“ तो आप ने हमें धोखा क्यों दिया?”
“हमने कोई धोखा नहीं दिया । तुम्हारे पिता को सब बता दिया था ।”
“लेकिन पिताजी ने तो मुझ से यही कहा था कि आप बैंक में मैनेजर हैं ।”
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