Chandan ke tike par Sindoor ki Chhah - 2 in Hindi Moral Stories by Neelam Kulshreshtha books and stories PDF | चंदन के टीके पर सिंदूर की छाँह - 2

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चंदन के टीके पर सिंदूर की छाँह - 2

एपीसोड -2

“क्या?” वह भी चौंक उठे थे, पर वह इस रात की मधुरता को खोना नहीं चाहते थे । बोले, “ख़ैर , अब तो शादी तो हो ही गई है । मैं वादा करता हूँ कि 5-6 वर्षों में विभागीय परीक्षा पास कर के तुम्हें अफ़सर बन कर दिखा दूंगा ।”

“लेकिन जो सीधे अफ़सर बनते हैं उनकी बात ही कुछ और होती है । 5-6 वर्षों तक तो तुम क्लर्क ही रहोगे,” नीति ने घृणा से मुंह सिकोड़ा, “मैं अपने रिश्तेदारों व सहेलियों को क्या मुंह दिखाऊंगी?” कह कर वह फूलों के बिस्तर पर पड़ी रात भर सिसकती रही ।

वह सन्न थे, बदहवास थे । अब उन की समझ में आ रहा था कि उस के पिताजी ने सगाई के 10 दिन बाद ही शादी कर के क्यों बेटी को ठिकाने लगाने की जल्दी की थी । क्यों शादी से पहले नीति को घुमाने या फ़िल्म दिखाने के अनुरोध को टाला था ।

नीति उन में बिलकुल दिलचस्पी नहीं ले रही थी । लेकिन जिस दिन वह विदा हो कर अपनी मां के घर जा रही थी, उस दिन जबरन उन्होंने अपना पति अधिकार दिखा दिया था।

मीता के पैदा होते ही नीति को पीलिया ने कुछ इस कदर जकड़ा कि पूरा वर्ष भर उस की कमजोरी से बिस्तर पर पड़ी रही थी । समय पास करने के लिये उस ने धार्मिक पुस्तकें पढ़नी आरंभ कर दी थीं । नरेन नौकरानी के सहारे मीता को पाल रहे थे । मनु के होने के बाद से तो जैसे नीति को दुनिया से ही विरक्ति हो गई थी । उस ने अपने को अपने पूजा के कमरे में बंद कर लिया था ।

“सर! यह हैं सकलेचा साहब ‘सकलेचा ट्रैवल्स’ के मालिक । इन को लोन दिलवाने के लिये मैं ने आप से बात की थी.” इशिता ने कहा ।

“अरे, हां ।” वह चौंके । बैंक की अपनी कुरसी पर बैठे बैठे पता नहीं वह कहां खो गये थे ।

फिर लोन के लिये उन का प्रार्थनापत्र देख कर व जायदाद के कागज़ों की जांच करने के बाद वह उन्हें प्रबंधक से मिलवाने ले गये थे । फिर तो कोई न कोई ग्राहक आता ही रहता था । उन्हें न तो फ़ाइलों से सिर उठाने का मौका मिलता था न कुछ सोचने का ।

शाम को थके मारे जब घर आते थे तो वही माहौल मिलता था जिसे वह बरसों से झेलते आ रहे थे । मीता उनके लिये चाय बना कर मेज पर रख मां के कमरे में घुस जाती थी । नीति पलंग पर पड़े पड़े हनुमान चालीसा इतने ध्यान से पढ़ रही होती थी कि मानो कल उस की परीक्षा हो।

घर पर प्रतीक्षा करती पत्नी, मुसकरा कर स्वागत करती पत्नी उन के लिये सपना था । रोज़ रोज़ वह दोस्तों के घर, पार्क में या लाइब्रेरी के कोने में कब तक बैठें ? जब ज़िन्दगी उजाड़ लगती है तो ऐसे में कोई किताब भी तो मन को नहीं बांध पाती ।

पहले घर में अकसर उन के मित्र राहुल का परिवार या चाचा की लड़की कांता का परिवार आ जाता था । घर जैसे गुलज़ार हो उठता था । नीति तब भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकलती थी । मीता और नरेन ही उनके चाय नाश्ते की व्यवस्था करते थे । मेहमान भी नीति की आदत के अभ्यस्त हो गये थे । वे स्वयं उन के कमरे में जा कर उन से नमस्ते कर के बाहर के कमरे में बैठे जाते थे ।

एक दिन तो अचानक ही दोनों परिवार एक साथ आ गये थे । राहुल तो कालिज के जमाने से बिलकुल बदला नहीं था । वह मजे ले ले कर, चुटकुले सुना रहा था । गहरी नीली शिफान में सजी, गहरी लाल लिपस्टिक लगाये उस की पत्नी जब तब खिलिला कर हंसती तो उस की हीरे की लौंग की किरणें, उन की आंखों को छू जातीं । वह भी सब के साथ हंस रहे थे लेकिन दिल जैसे कसक रहा था कि इतनी संजी संवरी, खिलखिलाती बीवी उन्हें क्यों नहीं मिली । नीति को कभी उन्होंने जोर से हंसते नहीं देखा था । यदि कभी मुसकराती थी तो ऐसा लगता था मानो उन का दिल रख रही हो ।

मीता व मनु राहुल की कुरसी के हत्थे पर बैठे हुए उन्हें और उत्साहित कर रहे थे, “अंकल ! बस एक चुटकुला और ...”

कांता भी इसरार करने लगी, “राहुल जी !एक और चुटकुला सुनाइये न ।”

एक चुटकुले के सुनते ही इतने ज़ोर की हंसी छूटी कि दीवारें भी हिलती प्रतीत हुईं।

“बंद करो यह जंगलीपन.” तभी अचानक नीति कमरे में प्रकट हुई ।

उस की दहाड़ से सब की घिग्घी बंध गई । हंसी से थरथराती दीवारें तक सहम गईं ।

“आप लोग 1 घंटे से जंगलियों की तरह ठहाके लगा रहे हैं । बहुत देर से सह रही हूँ । ये लोग तो पराये हैं लेकिन क्या आप को नहीं पता, 8 बजे का समय मेरे जाप का समय है ? बच्चे भी अपना गृहकार्य नहीं कर रहे हैं । वे भी इन जंगलियों के साथ जंगली बने जा रहे हैं ।”

“उर्मि! ये हमारे मेहमान हैं । इन का अपमान करने का तुम्हें कोई हक नहीं है ।”

“इन मेहमानों को अपने घर कोई काम नहीं है जो जब तब हमारे घर में जमे रहते हैं ?”

कांता व राहुल के परिवार का मुंह लटक गया था ।

नरेन क्रोधित हो गरज पड़े, “नीति !बस भी करो ।”

राहुल ने ही मजाकिया लहजे में बात संभाली, “जाने भी दो यार ! भाभीजी ठीक ही तो कह रही हैं । हमारे कारण उन का कितना हर्ज होता है ।” फिर वह उन की तरफ मुड़ कर बोला, “भाभीजी! क्षमा चाहता हूँ । आगे से ऐसी गलती नहीं होगी ।”

सभी उठ कर घर से निकल लिये थे, अपमानित से । नीति विजयी मुस्कान से मुस्करा रही थी । उस दिन के बाद दोनों परिवारों ने कभी उन के घर का रुख नहीं किया था । कभी बैंक से उन के मातहत आते तो वह भी नीति को अच्छा नहीं लगता था । नरेन कड़ी मेहनत के बाद सहायक प्रबंधक बने थे । उन के व्यवहार से बैंक में सभी उन्हें पसंद करते थे । इस पर भी नीति ताना मारती, “कोई सीधे अफ़सर तो बने नहीं हो । क्लर्क से अफ़सर बने हो तो क्लर्क वाली आदतें कहाँ जायेंगी ?”

वह अपमान से तिलमिला गये, “तुम इतना पूजापाठ करती हो, कभी तो अच्छी बात किया करो । नहीं तो ऐसे पूजापाठ का क्या अर्थ है?”

“तुम्हारे साथ मेरी शादी क्या हुई है मेरा एक एक सपना कांच की तरह टूट गया है । यदि पूजा पाठ में समय न बिताऊँ तो अपने दुखों से पागल हो जाऊं ।”

“तुम्हें शादी के बाद सुख नहीं दे पाया न सही, लेकिन कुछ वर्षों बाद ही तुम्हारा सपना पूरा कर दिया है और तुम घर व बच्चों की देखभाल छोड़ कर पूजा में लगी रहती हो । यह तुम्हारा पागलपन नहीं तो क्या है?”

“तुम ने मुझे पागल कहा, मेरी पूजापाठ को गाली दी है.” वह वहीं फर्श पर बैठ कर रोने लगी ।

नरेन सोच रहे थे कि भोली भाली इशिता को क्या क्या बताएं जिस ने कि अभी थोड़ी सी ज़िन्दगी देखी है। उस ने अभी यह जाना ही कहाँ है कि ज़िन्दगी के कड़वे सच क्या होते हैं?

एक दिन फिर इशिता ही पीछे पड़ गई , “सर !आज हम लोग एक साथ लंच करेंगे ।”

वह समझ गये थे कि यह जिद्दी लड़की उन से कुछ उगलवाना चाहती है और वाकई खाना खाते समय अपनी मीठी मीठी बातों से उस ने उन की एक एक समस्या जान ली । वह भी उस की इस चतुराई पर हैरान थे ।

“सर! यह तो बहुत गंभीर समस्या है ।”

“हां, बीच में मैं ने तलाक लेने की भी सोची थी लेकिन सफ़ल नहीं हो पाया । उस के भाई धमका कर चले गये । बच्चों के भविष्य का सोच कर चुप लगा गया हूँ ।”

“ओह, तो इस समस्या का हल ढूँढ़ना ही पड़ेगा ।”

“मैं ने व मेरे घर वालों ने उसे प्यार व डांट फटकार कर के देख लिया है लेकिन वह चिकनी मिट्टी बन गई है । उस पर कि बात का असर ही नहीं होता ।”

“मैं अपनी दादी मां से बात करूंगी । वह अधिक पढ़ी लिखी तो नहीं हैं लेकिन दुनियाँदारी  के मामले में बहुत होशियार हैं । समस्या का कुछ न कुछ हल बता ही देंगी ।”

चौथे दिन फिर इशिता उन्हें जबरदस्ती लंच पर ले गई । वह मन ही मन मुसकरा रहे थे कि किस तरह यह भोली लड़की पानी पर चलने का दुःसाहस करना चाहती है ।

खाते समय इधर उधर की बात करने के बाद इशिता थोड़ा सकुचाते हुए बोली, “सर ! आप को वह पुरानी कहावत पता है कि औरत आटे की सौत भी सहन नहीं कर सकती ।”

वह जोर से ठहाका मार कर हंसे, “अरे, यह बाबा आदम ज़माने की कहावत तुम्हें कहाँ से याद आ गई?”

“मेरी दादी ने मुझे सुनाई थी । उन के ही आदेश पर मैं आप की पत्नी की सौत बनना चाहती हूँ ।” उस ने कुछ झिझकते हुए सीधे उन की आंखों में झांका ।

वह अचकचा गये “तुम तो मुझ से बहुत छोटी हो....तुम्हें तो मैं एक बच्ची समझता हूँ....”

“सर! मैं भी आप का बहुत आदर करती हूँ ,एक बड़े भाई की तरह लेकिन मैं आप की पत्नी की सौत बनने का नाटक करना चाहती हूं । मेरी दादी ने ही यह रास्ता सुझाया है.” कह कर वह अपनी दादी की बनाई पूरी योजना उन्हें समझाने लगी ।

योजनानुसार घर पहुँचते ही उन्होंने जोर से आवाज लगाई “मीता ।”

“जी.” वह सामने आ खड़ी हुई ।

उन्हों ने अपने जूते के फीते खोलते हुए कहा, “हमारे ऑफ़िस  में एक बहुत सुंदर लड़की आई है ।”

“उस का नाम क्या है ?”

“इशिता ।”

“अरे, नाम भी बहुत सुंदर है ।”

“और सब से बड़ी बात तो यह है कि सुंदरता के साथ साथ वह बुद्धिमान भी हैं जबकि औरत की प्रकृति या तो सुंदरता होती है या बुद्धि । पर कुछ स्त्रियां तो दोनों चीजों से ही वंचित रहती हैं ।”

“इस का मतलब वह बैंक के काम में भी होशियार होंगी ?”

“हां, बहुत.” फिर वह हाथमुंह धो कर चाय पीने लगे । आज के लिये इतना ही काफ़ी था ।

दूसरे दिन नरेन घर में घुसते ही अपनी बेटी से जोर से कहने लगे, “मीता ! आज एक गजब का समाचार है ।आज इशिता को सारे शहर के बैंक की टेबल टेनिस प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार मिला है.” उन्होंने कनखियों से देखा कि नीति के कमरे के पर्दे बिना हिले बेजान पड़े थे ।

उन की कोशिश ज़ारी रही । बैंक से लौट कर वह मीता को इशिता का कोई न कोई किस्सा सुनाते रहते। कुछ दिनों बाद उन्होंने बहुत रस ले कर ज़रा ऊँची आवाज में बताया, “आज तो इशिता ने पार्टी दी।”

“अच्छा? आप ने क्या क्या खाया ?”

“गुलाबजामुन, समोसे । इशिता यह सब स्वयं घर से बना कर लाई थी । इतने स्वादिष्ट थे कि अभी तक मुंह में पानी आ रहा है.” कहते हुए उन्हें लगा नीति अपने कमरे के पर्दे के पीछे खड़ी हो गई है । वह उत्साहित हो कर कहने लगे, “इशिता की एक और तारीफ है ।”

“वह क्या?” मीता ने पूछा ।

“वह सलवार सूट पहने या साड़ी या जींस या फिर झालर वाला फ़्रॉक , सभी पोशाकें उस पर बहुत सुंदर लगती हैं, बेहद खूबसूरत ।”

परदे के पीछे खड़ी उन की पत्नी से रहा नहीं गया । वह पर्दा हटा कर तेजी से बाहर निकल आई, “जब एक युवा लड़की आधी नंगी टांगें दिखाये घूमेगी तो सुंदर लगेगी ही ।”

उन्होंने चौंकने का अभिनय किया, “शाम का समय तो तुम्हारे संध्या जाप का है । तुम अपने कमरे से बाहर कैसे आ गई?”

“मैं बाहर इसलिये आ गई हूँ कि इस नाम को सुनते सुनते मेरे कान पक गये हैं ।”

“कौन से नाम को सुन कर?”

“इशिता...इशिता...।”

“लेकिन तुम्हें दुनियाँदारी  की बातों से क्या मतलब है? न तुम्हें मुझ से मतलब है । पूजा पाठ करते समय भी दुनियाँदारी  की बातें सुनती रहती हो ?”

“जब आप रोज़ ही एक नाम की माला जपोगे तो कैसे आवाज़ कान में नहीं जायेगी ?”

“इशिता है ही ऐसी लड़की की कोई भी उस के नाम की माला जपने लगेगा. तुम तो सन्यासिन हो तुम्हें क्यों जलन हो रही है ?” वह शरारत से मुसकराये.``

“मुझे क्यों जलन होगी?” पत्नी ने बेवजह सफ़ाई दी, “मुझे क्या लेना देना, तुम किसी की भी तारीफ करो.” वह फिर अपने क्रोध को नियंत्रित करती अपने कमरे में जा कर जोर जोर से `श्रीराम, सियाराम` का जाप करने लगी । उसकी अस्थिर आवाज बता रही थी कि उस का चित्त शांत नहीं है.

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