कैसे करे ब्रह्मचर्य ?
एक समय की बात है।
एक नाविक अपनी छोटी सी नाव लेकर समुद्र को पार करने के लिए निकला। बीच समुद्र में पहुँच गया पर अब नाव आगे बढ़ा नहीं पा रहा था। क्योंकि जैसे ही आगे बढ़ने का प्रयास करता तुरंत ही नाव में पानी भरने लगता था और नाव डूबने लगती थी। कई सप्ताह बीत गए बाल्टियाँ उलटते हुए, परंतु नाव में पानी बढ़ता ही जा रहा था।
अब समुद्र के बीच में आ गया है तो वापस जा नहीं सकता था। और डूबने के लिए तो वो आया नहीं था। परंतु अब उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस डूबती नैया को लेकर इस विशाल समुद्र को पार कैसे करें?
वस्तुत: उसकी समस्या यही थी कि वह समस्या को बिना जाने और बिना उसे ठीक से समझे ही उसको हल करने का प्रयास कर रहा था, जो कि मूर्खता है।
तो आइए सबसे पहले यह समझते है कि, समस्या क्या है? समस्या यह है कि वो जिस नाव को लेकर समुद्र को पार करने का प्रयास कर रहा है वही नाव डूबती जा रही है। डूब क्यों रही है? क्योंकि उसमें पानी भरता जा रहा है। तो अब उसका हल क्या है? नाव में से पानी निकालना है।
ग़लत..
1. सबसे पहले पानी आ कहाँ से रहा है यह ढूँढना है।
2. फिर उसको नाव में आने से रोकना है।
3. उसके बाद नाव में भरा पानी निकालना है।
तो,
सबसे पहले पानी आ कहाँ से रहा है?
नाव के कोने में 7 छिद्र हैं, वहाँ से आ रहा है।
बढ़िया!! अब सबसे पहले तो उन छेदों को भरना है, जिससे पुराना पानी निकालते समय नया पानी अंदर न आ सके। उसके बाद जाकर नाव में भरा पानी बाल्टी बाल्टी ख़ाली करेंगे। वरना ऐसे ही जीवन भर वो बाल्टियाँ उलटता रहेगा और फिर भी अंत में नाव उसे लेकर डूब जाएगी।
तो, क्या करना है उसे?
1. पहले छेदों को ढूँढना है।
2. फिर उन्हें बन्द करना है। जिससे नया पानी आना रुक जाएगा।
3. उसके बाद पुराना पानी बाल्टी बाल्टी से निकालना है।
हो गई समस्या हल। हो गई नाव तैयार।
अब जाकर इस नाव के सहारे वो समुद्र सरलता से पार कर पाएगा।
यह नाविक और कोई नहीं स्वयं आप ही हैं।
वो समुद्र इस भवसागर की कामवासनाएँ हैं,
और वो नाव आपका ब्रह्मचर्य का संकल्प है, जिसकी सहाय से आप भवसागर का समुद्र पार करने वाले हो।
परंतु समस्या यह है कि आपकी ब्रह्मचर्य की नाव में कामवासनाएँ भरती जा रही है, और आप उसे वर्षों से हरि नाम की बाल्टी से ख़ाली करने का प्रयास कर रहे हो, परंतु फिर भी नाव भरती ही जा रही है और आपको नाव के साथ डुबाती जा रही है।
वस्तुतः समस्या हमारे साथ भी यही है, कि हम भी समस्या को बिना जाने और बिना उसे ठीक से समझे ही उसको हल करने का प्रयास कर रहे हैं, जो कि सरासर मूर्खता है।
अतः सबसे पहले, हम हमारी नाव में पड़े उन 7 छिद्रों को ढूँढेंगे जो हमारी इस ब्रह्मचर्य की नाव में कामवासना का खारा पानी भरकर हमें डूबा रही हैं। तो वो 7 छिद्र कौनसे है?
1. पोर्न
2. हस्त मैथुन
3. स्वप्न दोष (3 प्रकार के परस्त्री व्यभिचार)
4. विवाह पूर्व संबंध (Girlfriend Boyfriend)
5. विवाहेत्तर संबंध
6. वैश्यावृत्ति और
7. विवाह व्यभिचार
पहले इनको समझकर इन छिद्रों को बंद करेंगे और फिर पानी निकालना सीखेंगे।
1. पोर्न:
आज के समय में एक युवा एक दिन में भाँति-भाँति की इतनी सुंदर नग्न-अर्द्धनग्न स्त्रियों को देख सकता है जितना संपूर्ण इतिहास में कोई भी पुरुष (राजा-महाराजा भी) अपने पूरे जीवन में हज़ारों सोने के सिक्के देकर भी नहीं देख सकता था।
आज का छोटे से छोटा बच्चा टिक टॉक पे जो मुफ़्त में दिन रात देखता रहता है वो देखने के लिए पहले के राजा-महाराजा हीरा मोती गिराते थे, तब जाकर उनको यह देखने को मिलता था।
आपको क्या लगता है, यह सामान्य बात है?
युवाओं के मस्तिष्क पर, उनके भविष्य पर और इस समाज के ढाँचे (Structure) पर इसका कोई असर नहीं पड़ता? असर पड़ता है!! और अत्यंत ही बुरा असर पड़ता है।
मनुष्य के पुरुषार्थ की प्राथमिक प्रेरणा (Motivation) भूख है।
जीवन में भूख ही मनुष्य को कार्य करने के लिए, उद्यम करने के लिए, साहस करने के लिए, जोखिम (Risk) उठाने ले लिए तथा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
पालतू कुत्ते, बिल्लियाँ और प्राणी संग्रहालय के शेर, भालू आदि जानवर निर्बल, मोटे, आलसी और अल्पायु क्यों होते है? क्योंकि उन्हें प्रतिदिन तैयार खाना मिल जाता है। तो मेहनत करने की उन्हें कोई भूख ही नहीं रहती है।
जीवन में कुछ भी पाने के लिए सर्वप्रथम मनुष्य में भूख (तीव्र इच्छा) की आवश्यकता होती है। भूख न होने पर कोई भी मनुष्य काम नहीं कर पाता। और क्योंकि इस भौतिक जगत में भोग की भूख ही एक सामान्य मनुष्य का सबसे बड़ा मोटिवेशन है, जब वही भोग सरलता से पड़े-पड़े मिल जाता है। तो मनुष्य का मोटिवेशन काम करना बंद कर देता है।
आज के समय में एक औसत पुरुष अपने चार पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति नहीं कर सकता इसका मुख्य कारण भी यही है।
एक पुरुष में सुंदर स्त्री की प्राप्ति की इच्छा और एक स्त्री में सक्षम पुरुष की प्राप्ति की इच्छा इस संसार के अस्तित्व का प्राथमिक आधार है। उसी के अनुसार पूरे समाज का जीवन ढलता है।
हमारी B.O.S.S पुस्तक में भी आपने यह पढ़ा होगा कि, इस भौतिक जगत के अस्तित्व का मुख्य कारण हमारी कामेच्छा ही है। इसीलिए उसी को मध्य में रखकर सृष्टि की रचना, उसका पालन, उसकी वृद्धि और उसका अंत भी बनाया गया है।
अतः जाने अनजाने हर जीव के जीवन में मान, मर्यादा, समृद्धि, धर्म, अर्थ आदि को प्राप्त करने की वही प्राथमिक प्रेरणा होती है।
जिसकी प्राप्ति करते समय ही उसके पुरुषार्थ की वृद्धि होती है। फिर अपने काम और इच्छाओं की पूर्ति से उसमें त्याग की भावना जागती है। फिर उसी पुरुषार्थ का उपयोग करके भोगों से उठकर वो मोक्ष की प्राप्ति करता है।
और इसी तरह समस्त भौतिक अस्तित्व को भगवान ने ऐसे बनाया है कि धर्म से अर्थ, अर्थ से काम और धर्मोचित काम प्राप्ति से वैराग्य प्राप्त कर मोक्ष की प्राप्ति होती है। इससे जीव के काम की पूर्ति भी हो जाती है और उसका मोक्ष भी हो जाता है।
परंतु जब व्यक्ति को पोर्न मिलता है तो उसे बिना मेहनत के पड़े-पड़े वो भोग मिल जाता है और फिर वो अपने पुरुषार्थ की वृद्धि कभी नहीं कर पाता और ऊपर से उस भोग से कभी त्याग की भावना भी नहीं जागती, क्योंकि वो संपूर्ण भोग न होकर बस भोग का भ्रम स्वरूप होता है।
जिसके कारण वो हमेशा के लिए भोग के भ्रम में फँसा रहता है और कभी मोक्ष की प्राप्ति नहीं कर पाता।
जितनी बार पोर्न देखकर एक पुरुष अपना वीर्य बहा देता है, उतनी बार उसका अस्तित्व उसका पुरुषार्थ बढ़ने से रोक लेता है। वो यह सोचकर कि यदि इतने कम पुरुषार्थ से इसकी ध्येय की प्राप्ति हो गई है तो उसे अधिक पुरुषार्थ की क्या आवश्यकता है?
इसी कारण जब-जब आप पोर्न देखकर अपना वीर्य बहाते हो, तब-तब आप ब्रह्मांड को यह बता रहे हो कि, ‘बस अब मुझे अधिक सक्षमता की कोई आवश्यकता नहीं है। मेरे में अभी जितना बल है, बुद्धि है, शक्ति है सब पर्याप्त है, इससे ज़्यादा जीवन में अब प्राण आदि की मुझे कोई आवश्यकता नहीं है।’
इसीलिए ऋषिमुनियों ने शास्त्रों में बताया है कि,
मरणं बिन्दु पातेन जीवनं बिन्दु धारणात् ।।
अर्थात्— ‘वीर्य धारण ही जीवन है और वीर्य का व्यय ही मृत्यु है।’
और चलो इतने बड़े स्तर पे बात नहीं भी करनी है, तो भी एक बात तो समझ ही लेनी चाहिए कि, पोर्न देखना मतलब अपने आप को नपुंसक बनाना।
क्योंकि कोई ऐसी स्त्री जो आपको पसंद आ रही है उसे आपकी आँखों के सामने कोई और पुरुष भोग रहा हो, और आप कोने में बैठकर अपने जननांग को हाथ में लेकर बैठे हो, यह कृत्य कोई नपुंसक ही कर सकता है।
एक वीर्यवान पुरुष को जब कोई स्त्री पसंद आती है तो वो अपने आपको उस स्तर का सक्षम बनाता है जिससे वो और उसके माता पिता खुशी खुशी उस स्त्री का हाथ उसके हाथ में दे। और फिर उससे वो प्रेम प्राप्त करता है।
जबकि कल्पनाएँ करके हस्तमैथुन करना आपके पौरुष का संपूर्ण हनन कर देता है। क्योंकि यदि आपको कोई सुंदर स्त्री पाने की इच्छा भी है, (जो कि किसी भी पुरुष के लिए संपूर्ण रूप से प्राकृतिक है) तो भी उसके लिए आपको मेहनत करनी होगी, पुरुषार्थ करना होगा और उस योग्यता को प्राप्त करना होगा कि जिससे ऐसी सुंदर स्त्री आपको चुने।
परंतु पोर्न देखकर आप उससे हस्त मैथुन करके जब वीर्य निकाल देते हो, तो वह योग्यता प्राप्त करने की आपकी वो इच्छा और प्रेरणा भी चली जाती है और फिर आप बस सपनों की दुनिया में ही जीने लगते हो, वास्तविक जीवन में जो आपको चाहिए वो कभी प्राप्त नहीं कर पाते हो।
इसलिए यदि आपको पोर्न की आदत है तो यह समझ लीजिए कि,
1. आप वो व्यक्ति नहीं हो जो आपको बनना है,
2. आपको पता है कि आप बन सकते हो,
3. और आपको बनना चाहिए।
क्योंकि यदि आप वो व्यक्ति होते तो आपके पास इन बकवास हवाबाज़ी चीज़ों के लिए कोई समय ही नहीं होता और न ही आपको इसकी ज़रूरत होती।
परंतु आपको पोर्न की आवश्यकता पड़ रही है इसका अर्थ है कि आप संपूर्ण रूप से पुरुष नहीं हो। यदि एक सच्चा पुरुष कामी भी है तो भी अपने आपको योग्य बनाने पर ध्यान देता है जिससे अधिक स्त्रियों का वरण कर सके।
परंतु यह भी है कि जब सच में आप उस स्तर की योग्यता को प्राप्त कर लेते हो तो आपको फिर इन सब छिछले भोगों में इतनी खास रुचि नहीं रहती।
क्योंकि इस भौतिक संसार में अधिकतर चीज़ों की तीव्र इच्छा हमें तभी तक रहती है जब तक हमें वो प्राप्त नहीं हो जाती। जैसे ही वह वस्तु हमें प्राप्त हो जाती है, उस चीज़ की तृष्णा (craving) समाप्त होने लगती है तथा किसी और ऐसी चीज़ की तृष्णा जगती है जो हमारे पास नहीं है।
ऐसे ही यह चक्र जन्मों-जन्मों से चलता आ रहा है और चलता रहेगा, जब तक हम इसको रोकने के लिए नियमबद्ध न हो जाएँ।
परंतु चलिए मान लेते हैं कि अभी आप उस आध्यात्मिक स्तर पर नहीं हो कि आप उस हद तक त्याग कर सको, फिर भी जवाब यही है कि, आप वो पुरुष बनने का प्रयास करो जो...
1. आपको पता है कि आप बन सकते हो,
2. आपके बनने से आपका और आपसे जुड़े सभी लोगों का भला होगा,
3. इसीलिए आपको बनना ही चाहिए,
4. परंतु आप बन नहीं रहे हो।
यही सबसे अंतिम समाधान है। इसके लिए आपको सर्व प्रथम अपने जीवन से सभी प्रकार का पोर्न संपूर्ण रूप से त्याग देना आवश्यक है। जो की मुख्य चार प्रकार के है..
1. सचित्र पोर्न : पोर्न वेबसाइट पर मिलने वाले अभद्र फ़ोटोज़, वीडियो, पोस्टर और ऐसी फ़िल्में जिसमें उत्तेजक दृश्य हो।
2. व्यावहारिक पोर्न : जहाँ पर मर्यादाहीन रूप से स्त्रियाँ उत्तेजक कपड़े पहनती और उकसाती हो वे सारी जगहें। जैसे कि कैसिनो, डांस बार, पार्टियाँ, म्यूजिक कंसर्ट, नाटक, थियेटर, मॉल और मॉडर्न बीच आदि।
3. शाब्दिक पोर्न : मित्र आदि में स्त्रियों के बारे में बातें करना, माँ बहन की गालियाँ देना (मज़ाक़ में भी नहीं), न्यूज़पेपर और मैगज़ीन आदि में आने वाली उत्तेजक कहानियाँ या लेख।
4. सॉफ्ट पोर्न : सोशल मीडिया पर उत्तेजक फोटो और वीडियो पोस्ट करने वाले फ़िल्म कलाकार, मॉडल, मॉडर्न नचनिया, और Meme पेज।
जी हाँ!
Meme पेज भी। क्योंकि पोर्न देखना कोई आपके स्वस्थ जीवन में अलग से उभरी बुरी आदत नहीं है। वो एक बड़ी समस्या का भाग है, जो कि है तामसिक और निर्बल मन।
इस समस्या को हल करना है, तो आपको अपना मन मज़बूत बनाना होगा। और आप Meme आदि निरर्थक चीजें देखकर ऐसा मज़बूत मन नहीं बना सकते।
अतः यदि आप अपने मन को सच में मज़बूत बनाना चाहते हो तो आज और अभी सारे Meme आदि निरर्थक पेज, और सॉफ्ट पोर्न फैलाने वाले फ़िल्म कलाकार, मॉडल और मॉडर्न नचनियों को अनफोलो कर दें।
क्योंकि ये सभी प्रकार का पोर्न समुद्र के खारे पानी की तरह होता है, लगता है कि पानी है, एक बार पीऊँगा तो प्यास बुझ जाएगी, परंतु कितना भी पी लें, प्यास कभी नहीं बुझती, ऊपर से जितना पियो उतनी और अधिक बढ़ती है।
अतः आज ही इन सभी प्रकार के पोर्न को जीवन से निकाल दो।
2. हस्त मैथुन:
हस्तमैथुन करना आपकी आदत नहीं है, आपका स्वभाव है। ऐसे स्वभाव वाले लोग सिर्फ़ अपने जननांगों से नहीं परंतु जीवन के हर क्षेत्र में ऐसे ही व्यवहार करते हैं।
1. जीवन में बस सपने देखते रहना,
2. कल्पनाऐं करते रहना,
3. सोचते रहना,
4. बातें करते रहना,
5. काम न करना,
6. काम को हमेशा टालते (Procrastinate) रहना।
यह सभी उसी मानसिकता का भाग है जो आपको हस्तमैथुन कराती है। इसीलिए यदि मात्र हस्तमैथुन की आदत हटाने का प्रयास करेंगे तो नहीं हटेगी। संपूर्ण मानसिकता को जड़ से ही हटाना होगा तभी हटेगी। वो कैसे?
1. अपनी वाणी का मूल्य रखो। कुछ बोला है करने को तो उसको करो।
2.विचार में मत खोए रहो। आवश्यक से अधिक विचारो में समय न दो।
3. विचार पर तुरंत काम करना सीखो।
4. छोटे मोटे काम को टालना बंद करो।
5. एक बार में एक ही काम पर ध्यान दो। जब तक पिछला काम अधूरा हो तब तक नये विचारों को बाजू में रखकर काम पूरा करने पर ध्यान दो।
6. कम बोलो और काम अधिक करो।
यदि इतना करोगे तो भी आप अपनी इस हस्त मैथुन वाली मानसिकता काफ़ी हद तक हटा दोगे, और यदि हस्तमैथुन की आदत हटा दोगे तो ये मानसिकता भी अपने आप हटने ही लगेगी।
अब मानसिकता कैसे हटाएँगे यह समझ लिया, परंतु हस्त मैथुन की आदत कैसे हटाएँगे? आइए! जानते हैं।
हस्त मैथुन और पोर्न दोनों मित्र आदतें हैं। अधिकतर बार दोनों साथ में ही होते हैं। यदि एक नहीं है तो दूसरे के होने की संभावना बहुत कम हो जाती है।
अतः सबसे पहले तो अपने जीवन में से उन चारों प्रकार के पोर्न को हर जगह से हटा दीजिए। जिनके बारे में हमने अभी बात की है। यदि पोर्न नहीं होगा आपके पास तो हस्त मैथुन करने की इच्छा भी काफ़ी कम हो जाएगी।
उसके बाद अब यह जान लीजिए कि पोर्न और हस्तमैथुन करने के आपके जीवन में संभव अवसर कौन से होते हैं? कौन से वे स्थान, समय और स्थितियाँ है जब आप सबसे अधिक हस्त मैथुन का कृत्य करते हो? उनको पहचानों और उन्हें हस्तमैथुन रोधक (Masturbation Proof) बना दें।
जैसे की मुख्यतः अधिकतर लोगों के लिए यह तीन संभव अवसर है जब वे हस्त मैथुन करने के लिए सबसे अधिक प्रेरित होते हैं।
1. बाथरूम (स्थान) :
• बिना गमछे के नग्न होकर कभी न नहाएँ।
• नहाते समय भी अपने आपको कभी संपूर्ण नग्न अवस्था में न देखें।
• गाँव जैसी व्यवस्था है तो घर के बाहर नहाने की आदत लगाएँ।
• बाथरूम में नहाते हैं तो कभी उसकी कुण्डी बंद करके न नहाएँ।
• बाथरूम में पैर रखो तबसे जब तक बाहर न आओ तब तक हमारी 'वैदिक दिनचर्या' पुस्तक में बताए अनुसार मंत्रोच्चार करते रहें।
• बाथरूम या शौचालय में कभी फ़ोन लेकर न जाएँ।
2. शयन (समय) :
• रात का शयन समय सबसे अधिक उपयोग किया जाता है पोर्न देखने और हस्तमैथुन का कृत्य करने के लिए।
• इसलिए जितना हो सके जल्दी सोने का प्रयास करें।
• परिवार में सबसे पहले और अधिक से अधिक 10 बजे सो जाने की आदत लगाएँ। यह समय तमस प्रधान होता है। इसलिए जितना देर से सोते हैं। उतनी ही आपकी वृत्ति राक्षसी और भोगी होने लगती है।
3. एकांतवास (स्थिति) :
• स्थितियों में एकांत स्थिति में यह वृत्ति सबसे तीव्र होती है।
• इसलिए हमेशा किसी न किसी की उपस्थिति में काम करें।
• घर पर कोई न हो तब तुरंत घर से निकल जाएँ और घर के आँगन में सबके सामने न कर सको तो गाँव के मंदिर या बाग आदि में चले जाएँ।
• परंतु अपने आपको बंद कमरे में अकेला कभी न छोड़ें।
ऐसे ही,
जो स्थान, समय और स्थिति आपमें पोर्न देखने और हस्तमैथुन करने की वृत्ति को प्रेरित करती हो उन स्थान, समय और स्थितियों को प्रयत्न करके हस्तमैथुन रोधक बना दें और उन नियमों का दृढ़ता से पालन करें।
जब हस्तमैथुन करने का मन हो तब क्या करें?
सबसे पहले तो यदि आप ऐसे स्थान, समय या स्थिति में नहीं होंगे तो आप को ऐसा मन नहीं करेगा।
इसलिए यदि इनमें से एक में हो और मन होता है तो तुरंत अपने नियम याद करो और उसका पालन करो।
और इतना हमेशा याद रखें कि और कोई देख रहा हो या नहीं, परंतु सूर्य, अग्नि, आकाश, वायु, देवता, चंद्रमा, संध्या, दिन, रात, दिशाएं, जल, भूमि यह 12 साक्षी और अंत में स्वयं परमात्मा तो आपको निरन्तर देख ही रहे हैं।
मृत्यु के बाद जब यमराज के दरबार में आपके कृत्यों का हिसाब होगा तब आप जब झूठ बोलने का प्रयास करोगे ये सोच कर कि, ‘किसी ने मुझे नहीं देखा।’
तब यही 12 साक्षी प्रमाण देते हैं कि, ‘हाँ!!! हमने देखा है, हम वहीं थे।’
तो अगली बार जब ऐसा कुछ करने का विचार आए, तो अवश्य सोचिएगा कि, आपके आस-पास वे बारह लोग खड़े-खड़े आपको ही देख रहे हैं, और उन्हें शर्म आ रही है अपने पुत्र को ऐसा करता देख।
ऐसे ही, आप स्वयं विचार करें कि आप वो कृत्य करते हुए कैसे दिखते हो? आपके हावभाव कैसे हो रहे हैं ? आपका मुँह कैसा दिख रहा है?
आपके पूर्वजों ने युद्ध लड़कर अपने प्राण की आहुति लगाई यह सोच कर कि मेरी पीढ़ी महान बनेगी, समाज की, संतों की, परिवार की सेवा करेगी।
और अभी ऊपर के लोकों से वे आपको बाथरूम में अपने हाथ में अपना जननांग लेकर बैठे हुए कुत्ते के समान मुँह से लार और आँखों से हवस टपकते देखते हुए देख रहे हैं और धिक्कार रहे है कि किन नपुंसकों के लिए अपने सुखों और प्राणों का बलिदान दिया?
उनका छोड़िए। कभी आप स्वयं अपना वीडियो लीजिए ऐसा कृत्य करते हुए और देखिए।
यदि ऐसा वीडियो आपके परिवारजन, पूर्वज और गुरुजन देखते, तो वे क्या अनुभव करते? आपके बड़े कैसी शर्मिंदगी अनुभव करेंगे?
आपके हृदय में बैठे भगवान भी अभी वैसा ही अनुभव कर रहे हैं अपने बच्चे को ऐसा करता देख। तो ये सब कृत्य करना बंद कीजिए, बड़े हो जाइए और एक पुरुष बनिए।
और यदि आप नये हो ब्रह्मचर्य पालन की यात्रा में, और आपको सब करने के पश्चात भी हस्तमैथुन आदि करने की तीव्र इच्छा हो रही और आपको पता नहीं है कि, क्या करें जब हस्त मैथुन की तीव्र इच्छा आए?
तो सिर्फ़ एक सरल उपाय को हमेशा अपनायें।
जिसका नाम है “एक जप उपाय”।
अपनी जप माला और गौमुखी हमेशा अपने पास रखो।
और जैसे ही आपको लगे की आपको कुछ उत्तेजक दिख गया और आपकी ऐसी इच्छा हो गई, सबसे पहले उस दृश्य को सामने से हटाओ और तुरंत ही माला उठाकर चलते-चलते या फिर खड़े-खड़े एक माला हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर लो।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
अधिक से अधिक 8 मिनट लगती है एक माला पूरी करने में।
और सामान्यतः प्रथम कुछ मंत्रों में ही हरिनाम उन विचारों को निकाल देते हैं, परंतु आपको माला हमेशा पूरी करनी है। क्योंकि आगे उस विचार को पुनः अंदर न आने देने का बल उसी से बनता है। इससे जितनी अधिक उत्तेजना उतनी ही अधिक साधना भी कर पाओगे।
और यदि आप नास्तिक है, या फिर आपके पास माला नहीं है। तो ऐसे में जैसे ही आपको ऐसा कोई दृश्य दिखे, तुरंत ही...
1. उस दृश्य को अपनी दृष्टि से हटाओ।
2. खड़े हो जाओ और कम से कम 15 दंड या 30 बैठक लगाओ।
3. यदि यह भी नहीं कर सकते तो कम से कम 8 मिनट तक टहलो। उन 8 मिनटों में अपने जननांगो को न छुएँ, कुछ और उत्तेजक दृश्य न देखें, उत्तेजक लोगों से दूर हो जाएँ, और अकेले हो तो परिवार, मित्र या सार्वजनिक जगह पर चले जाएँ।
4.यदि खड़े भी नहीं हो सकते तो तुरंत ही ऊपर सीधा आकाश की ओर देखकर आँखें खुली रखकर त्राटक करें (हो सके तो परमात्मा, पूर्वज और गुरु से मन ही मन हृदय में माफ़ी माँगे।) याद रहे, इतना ऊपर देखिए कि गर्दन की मांसपेशियों में थोड़ा खिंचाव आए।
5. गर्दन की मांसपेशियों की स्ट्रेचिंग आपके मस्तिष्क के रंध्रों को भी स्ट्रेच करती है, जिससे तुरंत ही आपके विचार और मानसिक स्थिति Reset से होने लगते है। अतः जब भी थोड़ा भी विचार को लेकर संशय हो, तुरंत ही गर्दन को आस पास और ऊपर नीचे की ओर स्ट्रेचिंग कर लें।
6. परंतु गलती से भी अपने जननांग को हाथ मत लगाओ।
7. अभद्र दृश्य पर दृष्टि पड़े और दिखे तो तुरंत ही एक्शन लें। Speed of Action is the key.
3. स्वप्न दोष:
रात में सोते हुए स्वप्न में हुई उत्तेजना से या फिर नींद में अनजाने में जननांग के घर्षण से हुए वीर्यपात को स्वप्नदोष (Nightfall) कहते हैं।
जब एक बच्चा पहली बार चलना सीखता है, तो शुरुआत में उसका बार-बार गिरना सहज है। वैसे ही जब एक व्यक्ति वर्षों के नियमित वीर्य नाश की आदत से उभर कर नया-नया ब्रह्मचर्य का पालन शुरू करता है तो शुरुआत में स्वप्न दोष आदि होना सहज है। इसकी इतनी चिंता नहीं करनी चाहिए।
क्योंकि जैसे एक साइकिल को हाँकना बंद करने पर भी कुछ दूरी तक तो अपने आप चलती ही है, वैसे ही आपके वर्षों के वीर्यनाश के अभ्यास के कारण आपका मन और शरीर कुछ समय तक तो इस वीर्य पात करवाएगा ही।
परंतु जैसे वही साइकिल कुछ दूरी के बाद अपने आप रुक भी जाती है, वैसे ही आपके मन और शरीर की यह वीर्य नाश की वृत्ति भी अपने आप रुक ही जाएगी। जिसमें छह महीने से एक वर्ष तक का समय लग सकता है।
इसलिए यदि आपने अभी तक एक वर्ष का ब्रह्मचर्य पालन नहीं किया है, तो शयन अवस्था में हुए स्वप्न दोष की चिंताएँ करना छोड़कर जागृत अवस्था में अपने ब्रह्मचर्य के पालन पर ध्यान दें।
परंतु एक वर्ष के ब्रह्मचर्य के चुस्त अभ्यास के पश्चात् भी यदि आपको स्वप्न दोष हो रहा है तो समझिए इनमें से कोई गलती कर रहे हो आप...
1. मनोमैथुन : सबसे बड़ी गलती यही होती है कि बाहरी रूप से तो आप हस्त मैथुन नहीं कर रहे। परंतु गलती से कहीं कुछ अश्लील देख लिया और मन में मैथुन की इच्छाएँ बना रहे हो, कल्पनाएँ कर रहे हो। ऐसे में मन में किए मैथुन से भी शरीर का मंथन होकर वीर्य अंडकोषों में आ जाता है। फिर वो स्वप्न दोष आदि किसी ना किसी तरीक़े से निकल ही जाता है।
2. अधिक भोजन : कभी पूरा पेट भर के नहीं खाना चाहिए। खास कर रात को; जब आप पेट भर के पेट को भारी कर देते हो तो आपका स्वप्न दोष होना ही है। इसलिए कभी पूरा पेट भर के भोजन नहीं करना चाहिए। भूख से 20-30% कम खाकर पेट में पानी और हवा के लिए जगह हमेशा रखें।
अनारोग्यं अनायुष्यं अस्वर्ग्यं चातिभोजनम्।
अपुण्यं लोकविद्विष्टं तस्मात्तत्परिवर्जयेत् ।। — मनुस्मृति 2.57
अर्थात् : ‘अति भोजन रोग बढ़ाने वाला, आयु को घटाने वाला, नरक में पहुँचाने वाला, पाप वृत्ति बढ़ाने वाला और समाज में निंदा कराने वाला है। अतः बुद्धिमान को चाहिए कि वह अति भोजन खाकर अधर्म न करे।’
अतः पेटू मनुष्य को आत्म का हत्यारा माना गया है।
क्योंकि अधिक भोजन धर्म बुद्धि का नाश करता है और पाप वृत्ति बढ़ाता है। अधिक भोजन पापों की जड़ होता है। क्योंकि उसी से काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि प्रबल बनते हैं और ब्रह्मचर्य विनाश से व्यक्ति का चरित्र निर्बल बनता है।
3. राजसिक और तामसिक भोजन :
जैसे श्रीमद्भगवद्गीता 17.9 और 17.10 में भगवान बताते है कि,
कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।
यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम् ।।
‘ज़्यादा तला हुआ, ज़्यादा मसालेदार, ज़्यादा तीखा, ज़्यादा मीठा, ज़्यादा नमकीन आदि सब राजसिक भोजन की श्रेणी में आता है। और ज़्यादा बासी भोजन, सड़ा हुआ भोजन, मांसाहार, प्याज़ लहसुन आदि सब तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है।’ ऐसा राजसिक और तामसिक भोजन खाने से भी आपका स्वप्न दोष होना निश्चित है। इसलिए हमेशा सात्विक भोजन करें।
4. रात्रि भोजन : सूर्यास्त के बाद भोजन करने से भी स्वप्नदोष होता ही है। अतः ज़्यादा से ज़्यादा 7:30 तक भोजन प्राप्त कर लें। और इस समय हमेशा हल्का भोजन करें। जितना भारी भोजन करोगे उतना ही आपके स्वप्नदोष की संभावना बढ़ जाती है।
अब यदि आप इन सभी का पालन करते हो, और फिर भी यदि स्वप्नदोष हो रहा है तो इसका अर्थ है कि आपका वीर्य को बांधकर रखने वाली वीर्यबंध की मांसपेशियाँ (Pelvic Floor) निर्बल हो गई हैं, जिससे अत्यंत ही सरलता से वीर्य निकल जाता है।
ये वीर्यबंध मांसपेशियाँ (Pelvic Floor) आपके अंडकोषों और गुदा द्वार के मध्य में स्थित होती है जिन्हें नियमित कुछ सरल योगासनों के अभ्यास से पुनः सक्रिय की जा सकती है। जैसे कि.....
अधोमुख श्वानासन।
सेतुबंध आसान।
पूर्ण एवं अर्द्ध नवासन।
बद्धकोणासन।
बालकासन।
इन पाँच योगासनों के नियमित अभ्यास से आपके वीर्यबंध मांसपेशियाँ सक्रिय हो जाती हैं और इससे न ही मात्र आप वीर्य के स्राव पर नियंत्रण प्राप्त कर सकते हो परंतु इन्हीं आसनों से आप वीर्य का ऊर्ध्व गमन करा कर उसको मस्तिष्क तक ले जाकर उसका पोषण भी कर सकते हो।
इनके अतिरिक्त कीगल कसरतें (Kegel Exercises) भी कर सकते हो। जिसमें आप कभी भी कहीं भी बैठे-बैठे या सोए हुए अपने उन Pelvic Floor को ऐसे खींचते हो जैसे कि आप अपने मूत्र वहन को रोक रहे हो।
इन योगासनों और कीगल कसरतों से आप अपने ब्रह्मचर्य को स्वप्नादि दोषों से संपूर्ण रूप से सुरक्षित रख सकते हो। इसके पश्चात आपको पुनः कभी स्वप्न दोष से अपने ब्रह्मचर्य के टूटने की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।
इसके बाद आते है—
3 प्रकार के परस्त्री व्यभिचार (Casual Sex) जब कोई व्यक्ति बिना विवाह संबंध में बंधे किसी के साथ शारीरिक संबंध बनाता है तो उसे परस्त्री व्यभिचार कहते है, जिसको शास्त्रों में महान पाप की श्रेणी में रखा गया है। यह पाप मुख्यतया तीन प्रकार से होते हैं....
4. विवाह पूर्व संबंध: (Girlfriend Boyfriend) :
आज के समय में जब लड़के लड़कियाँ स्कूल कॉलेज और ऑफिस हर जगह बिना किसी मर्यादा के मिलजुल रहे हैं। ऐसे में अत्यंत ही सहज है कि युवा लड़के लड़कियों में परस्पर आकर्षण होगा। यह प्रकृति का नियम है। इसको हम बदल नहीं सकते। परंतु इस आकर्षण को बिना किसी विवाह संस्कार के संबंध में बदल देना और उसके पीछे अपनी जवानी का अमूल्य समय और शक्ति व्यय करना न केवल बचकाना है परंतु मूर्खतापूर्ण काम भी है। इस मूर्खता का परिणाम फिर आप वर्षों तक भोगते हो और कुछ स्थितियों में जीवनभर तक भी।
जवानी में जब शारीरिक हार्मोन्स काम करते हैं तो हर किसी को लगता है कि 'मेरा प्रेम सच्चा है, मेरा कोई मोह नहीं है बल्कि सच में निःस्वार्थ प्रेम है।' परंतु यह बस आपके हार्मोन्स का खेल है।
आपको कोई अनुमान नहीं है कि सच्चा प्रेम किसे कहते हैं। क्योंकि प्रेम की परिभाषा करते हुए ऋषि मुनि शास्त्र में दो शब्दों का उपयोग करते है,
अहेतुकीय (Unconditional) : बिना किसी स्व हेतु, स्वार्थ या शर्त के।
अप्रतिहता (Nonstop) : किसी भी परिस्थिति में कम न होकर अटल रहे।
क्या आपको लगता है कि आपके प्रेम के पीछे कोई हेतु या स्वार्थ नहीं है? क्या आपको लगता है कि किसी भी हालत में आपका प्रेम अटल रहेगा?
यदि आप अभी भी इस भ्रम में हो, तो आप एक बार अपने आपसे इतने सवाल पूछ लें।
1. क्या कल उठकर आपकी प्रेमिका को कोई ऐसी भयानक बीमारी या श्राप मिल जाए जिससे उसके अंग अंग पर रक्त और पस से भरे फोड़ें हो जाएँ और आप जीवन भर उसके शरीर को स्पर्श नहीं कर पाओगे, सिर्फ़ उसका पालन पोषण, रक्षण और सेवा करना है, तो भी करोगे क्या?
2. क्या कल उठकर आपकी प्रेमिका आपके सामने आपके किसी दोस्त दुश्मन या संबंधी से मोहित होकर उससे शरीर संबंध बनाने लगे तो भी क्या उसकी ख़ुशी में ख़ुश होकर फिर भी उसपर मर मिटोगे?
3. क्या कल उठकर आपकी प्रेमिका एक आँख, एक कान, एक स्तन, एक हाथ, और एक पैर से हीन हो जाए और उसकी दाढ़ी मूँछ उगने लगे और मर्दाना आवाज़ हो जाए तो भी क्या अभी की तरह उसपर मर मिटोगे?
4. क्या कल उठकर आपकी प्रेमिका बिना दांत और बाल की 100 वर्ष की बूढ़ी अम्मा बन गई तो भी क्या अभी की तरह उस पर मर मिटोगे?
5. क्या कल उठकर आपकी प्रेमिका पुरुष अंगों के साथ लड़का बन जाए तो भी क्या अभी की तरह उसपर मर मिटोगे?
6. क्या कल उठकर आपकी प्रेमिका एक सूअर में बदल जाए तो भी क्या अभी की तरह उसपर मर मिटोगे?
नहीं ना?
तो फिर इस प्रकार के सच्चे प्रेम के भ्रम से बाहर निकलें। सब देह की सुंदरता और जवानी के हार्मोन्स का खेल है। उससे मोहित होना इंद्रियों का काम है, कुछ नया नहीं है इसमें। परंतु इसको सच्चा प्रेम मान लेना और उसके पीछे जवानी का उत्तम समय, शक्ति और ध्यान व्यय करना मूर्खता है।
और यदि अभी भी लगता है की आपको सच में प्रेम हुआ ही है तो फिर दिखाइए अपना पौरुष और सीधा उसके पिता के पास जाकर लड़की का हाथ माँग लीजिए। फिर पिता हाथ दे तो भी स्वीकार लें और डंडे दे तो वो भी स्वीकार कर लीजिए।
यदि इतनी हिम्मत नहीं है तो फिर फोकट में डींगें हाँकने बंद करें और इतने सक्षम बनें की लड़की के पिता स्वयं अपनी बेटी का हाथ आपके हाथ में देना पसंद करे। और विवाह के पश्चात जब वो आपको समर्पित हो जाए तब अपने पति धर्म का पालन करके, पत्नी रूप में उसका पालन पोषण और संरक्षण करके उससे भरपूर अपना निःस्वार्थ प्रेम जताएँ।
परंतु जब तक पुरुष विवाह संस्कार से स्त्री की संपूर्ण ज़िम्मेदारी न उठाए और स्त्री विवाह संस्कार से पुरुष को समर्पित न हो तब तक एक दूजे से संबंध बांधना न केवल बचपना और मूर्खता है अपितु घोर पाप भी है।
यदि आप अभी युवावस्था में हो और ऐसे गर्लफ्रेंड बनाने में लगे हो तो जान लीजिए कि बिना विवाह के एक स्त्री को जीवन में स्थान देने का मतलब है कि, धन संसाधन आदि तो व्यय होंगे ही, परंतु सबसे बड़ा व्यय वो नहीं है। युवावस्था में आपके लिए सबसे अधिक मूल्यवान होता है आपका..
1.समय (Time) : लड़की को रिझाने के लिए उसके पीछे पीछे घूमना, अच्छे अच्छे कपड़े पहनना, उसकी एक दृष्टि की प्रतीक्षा में निरर्थक स्थानों पर समय व्यतीत करना, उसके रीझ जाने के पश्चात भी उसको खुश रखने के लिए अपनी ज़िम्मेदारियों को छोड़कर उसके लिए समय निकालना और रात रात भर बातें करना।
2. ध्यान (Attention) : बातें ख़त्म होने के पश्चात भी जी न भरने से उससे और बातें करने के लिए प्रतीक्षा में अपने और काम में से ध्यान गवाना। वो यदि किसी और को देख भी लें तो भी उसकी चिंता में रात दिन मन भटकाते रहना। यदि ध्येय पर मन लग भी गया तो भी संबंध टूटने के डर से ध्येय पर से ध्यान हटा कर उसको देना।
3. भावनात्मक निवेश (Emotional Investment) : इतना सब करने के पश्चात भी जब आपके संबंध से ऊब कर वो किसी और के साथ संबंध बनाना शुरू करे, तब हृदय की असह्य पीड़ा में महीने बिगाड़ देना। जितना अधिक साथ में रहे हो, जितना अधिक आपने समय, संसाधन, ध्यान और भावनात्मक निवेश किया है। उसके जाने पर उतना ही अधिक असह्य पीड़ा होती है। ऐसे में काफ़ी मूर्ख युवा अपने आपको हानि तक पहुँचाने लगते हैं। कुछ महामूर्ख अपने प्राण ले लेते हैं। और कुछ प्रचंड महामूर्ख उस लड़की को हानि पहुँचाने चले जाते हैं।
युवावस्था में होते ये सारे संबंध असंयमित इंद्रियों का मोह जाल होता है। जो कि व्यक्ति को अंधा बना देता है और उसकी बुद्धि क्षीण करके उसे अल्प बुद्धि बना देता है। ऐसे लोग अपने सामने खड़े विनाश को भी नहीं देख सकते और अपने ही हाथों से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारकर खुद दलदल में कूद जाते है।
जबकि एक ब्रह्मचारी भली भाँति जानता है कि युवावस्था में होने वाले आकर्षण और कुछ नहीं अपितु हार्मोन और इंद्रियों के कारण होते है। अतः वो उसे आकर्षण की तरंग जानकर उसे सहन कर लेता है।
वो इन तरंगों पे से ध्यान उठाकर उसे अपने उच्च ध्येयों की प्राप्ति में लगाता है। क्योंकि वे जानते है कि गर्लफ्रेंड न ही मात्र उनका ब्रह्मचर्य तुड़वाएगी परंतु उसको अपने ध्येय से भी दूर रखेगी।
क्योंकि गर्लफ्रेंडें कभी योगवृत्ति से नहीं बनती, मात्र भोग वृत्ति से ही बनती है। और भोगवृत्ति ध्येय प्राप्ति के लिए सबसे हानिकारक होती है।
जो व्यक्ति एक बार भोग की इच्छाओं में घुस जाता है, उसके लिए अपने ध्येय के प्रति समर्पित और अनुशासित रहना असंभव हो जाता है। हालाँकि इसका अर्थ यह भी नहीं है कि आप अपने काम की पूर्ति नहीं कर सकते।
इसलिए भगवान ने विवाह संस्कार की रचना की है। जिसमें आप ज़िम्मेदारी के साथ सार्थक रूप से अपने धर्म के पालन से ही अपनी कामपूर्ति कर सकते हो। इसीलिए एक गर्लफ्रेंड और एक विवाहिता पत्नी में बड़ा अंतर होता है। गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड के संबंध में थोड़ी सी तकरार होने या बेहतर व्यक्ति से मिलने पर संबंध सरलता से टूट जाता है।
गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड का संबन्ध भोगवृत्ति पर बना होता है। अधिकतर बॉयफ्रेंड को भोग चाहिए होता है, और गर्लफ्रेंड को सतत किसी न किसी रूप में आपसे भावनाएँ, ध्यान (Attention), ड्रामा और मनोरंजन (Entertainment) चाहिए होता है। क्योंकि स्त्रियाँ भावना केंद्रित होती हैं और बहुत ही सरलता से ऊब (bore) जाती हैं।
ये सब आपसे न मिलने पर या तो वो आपके जीवन में जाने अनजाने ड्रामा बनाएगी या तो आपको छोड़कर जिससे ड्रामा मिलता है उसके पास चली जाएगी। क्योंकि गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड के संबंध में कोई ज़िम्मेदारी से नहीं बंधा होता।
परंतु एक बुद्धिमती स्त्री जब विवाह करती है, तो वो अपनी ज़िम्मेदारियों को भलीभाँति समझती है। वो जीवन में होने वाली छोटी मोटी अनबन और विवाद आदि के कारण संबंध के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों से नहीं हटती है।
एक संस्कारी पत्नी अपने संबंध में ड्रामा नहीं खोजती है। उसके जीवन में ड्रामा करके उसे अपने ध्येय से दूर नहीं ले जाती है, परंतु उसे अपने ध्येय पर मेहनत करने के लिए प्रेरित करके उसकी सहायक बनती है और ऐसी पत्नी का भरण पोषण और रक्षण करने के लिए पुरुष भी सतत मेहनत करने के लिए प्रेरित रहता है। और एक दूजे के प्रति अपने कर्तव्यों का निःस्वार्थ पालन ही पति पत्नी के संबंध को प्रगाढ़ बनाता है।
परंतु यदि आपको ऐसी पत्नी चाहिए तो भी आपको सर्वप्रथम अपने आपको उतना सक्षम बनाना होगा की ऐसी संस्कारी और संयमी स्त्री और उसका परिवार आपका वरण करे।
और उसके लिए युवावस्था में आपको अपना ध्यान अपनी सक्षमता को बढ़ाने में लगाना होगा, न की गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड के बचकाने कृत्यों में।
तदुपरांत जो लोग अपनी युवावस्था में ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करते उन लोगों की यह बिना ज़िम्मेदारी के स्त्री का भोग करने की वृत्ति कभी नहीं जाती है।
ऐसे लोग अपनी असंयमित कामवासना के कारण विवाह के पश्चात भी चोरी छुपे अन्य स्त्रियों से मिलते और उनसे शारीरिक संबंध बनाते हैं।
जिसे हम कहते हैं...
5. विवाहेत्तर संबंध (Extra Marital Affair):
विवाह से पहले जिन असंयमी लोगो की गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड बनाने की आदतें रहती हैं वे लोग अपनी यह आदत विवाह के पश्चात भी सरलता से नहीं छोड़ पाते हैं।
क्योंकि इतने सारे गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड के संबंध रखने के पश्चात उसी की प्रैक्टिस हो जाती है कि थोड़े समय एक व्यक्ति के साथ रहने के बाद जैसे ही ऊब जाओ नया व्यक्ति चाहिए।
और ऐसा भी नहीं है कि एक ज़िम्मेदार पुरुष की तरह विवाह करके उसकी ज़िम्मेदारी उठाए। ऐसे असंयमी पुरुष अधिकतर पत्नी, परिवार और समाज से छुप छुपकर अन्य स्त्रियों से मिलते है और उनसे शारीरिक संबंध बनाते है। यह पूर्ण रूप से कायरता है।
यदि सच में आपको एक से अधिक पत्नियाँ चाहिए है तो भी, सर्वप्रथम तो आप उस स्तर के मान मर्यादा और सक्षमतावाले व्यक्ति होने चाहिए कि लड़की के पिता अपनी बेटी का आपके साथ दूसरी पत्नी के रूप में विवाह करवाएँ।
यह संपूर्ण रूप से शास्त्र सम्मत और धर्मानुकूल है। हमेशा से राजा महाराजा, ऋषि मुनि आदि समृद्ध पुरुष को अन्य राजा महाराजा आदि अपनी 10-10 पुत्रियों को एकसाथ भी वरण करवाते आए हैं।
क्योंकि हर पिता चाहता है कि उसकी बेटियाँ किसी साहसी, संयमी, सक्षम और सम्मानित धर्मी की शरण में जाए। जहां उन्हें उनके भरण, पोषण, रक्षण, कल्याण और संतति के भविष्य की कोई चिंता न रहे। न की किसी लल्लू पंजू की शरण में जिसके स्वयं के सुख, सम्मान और संरक्षण के ठिकाने नहीं है।
परंतु आज के अधिकतर पुरुष 10 तो क्या एक पत्नी की भी ज़िम्मेदारी ढंग से नहीं उठा पाते हैं। इसीलिए सम्मान से विवाह न करके, छुप छुप कर अधर्म से अन्य स्त्रियों को बिना उनके भरण, पोषण, रक्षण आदि की ज़िम्मेदारी उठाए उनका भोग करने के लिए विवाहेत्तर संबंध बनाते है। और जब वो भी नहीं कर पाते तो फिर करते है...
6. वैश्यावृत्ति (Prostitution):
अधिकतर युवा पुरुषों को आज ब्रह्मचर्य का ज्ञान न दिये जाने से वे मूवीज़ और इंटरनेट पर पोर्न आदि देखकर ऐसे गहरे भ्रम में घुस गए हैं कि संभोग में ही संपूर्ण संसार का सबसे श्रेष्ठ सुख है। ऐसे में वे किसी न किसी तरह उसकी प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। जब किसी का विवाह नहीं हुआ होता और न ही वो किसी स्त्री को रिझा पाता तो ऐसे में अपने इस भ्रमजन्य सुख की प्राप्ति के लिए वो वैश्यालय की शरण लेते है और शुरुआत में यह प्रतीत भी होता है कि सच में बड़ा सुख है इसमें। परंतु समय के साथ यह भ्रम हटने लगता है और एक स्तर पर आकर भोग के ऐसे जाल में फँस जाते है कि एक ओर उससे नफ़रत होने लगती है और दूसरी ओर उसके बिना रहा नहीं जाता। ऐसे में फिर चाहने पर भी वे संभोग का न ही आनंद ले पाते हैं न ही उसे छोड़ पाते हैं।
विवाह के पश्चात भी वैश्यालय जाने वाले अधिकतर वे लोग होते है जिन्होंने पोर्न आदि देखकर अपनी इच्छाओं को इस हद तक विकार युक्त कर दिया है कि ऐसे कृत्य अपनी पत्नी के साथ कर नहीं सकते परंतु कामेच्छा इतनी प्रबल हो गई है कि अब उन्हें किए बिना रहा भी नहीं जा रहा। ऐसे हवस पूरा करने का सिर्फ़ एक मात्र मार्ग रहता है। वैश्यालय।
अतः यह जानें की इन कामेच्छाओं के विकार की कोई हद नहीं होती है। इसलिए जो लोग अपने जीवन में संभोग क्रिया की पवित्रता नहीं बनाए रखते, उनका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विनाश हो जाता है।
जीवन भर वो उस घृणा से नहीं निकल पाता है। एक काला धब्बा हमेशा उसके हृदय में घर कर जाता है। जिसको हटाना असंभव सा हो जाता है।
अतः यदि आप सोचते हैं कि ऐसा हवस से भरा कामुक संभोग आपको आनंद, संतोष, निकटता और जुड़ाव देगा, तो आप बड़े भ्रम में जी रहे हैं। वास्तविकता में ऐसा कामुक संभोग मात्र घृणा देता है, और कुछ नहीं।
जब स्त्री विवाह करके पुरुष को संपूर्ण समर्पण करती है और पुरुष उसकी समस्त ज़िम्मेदारियों को उठाकर उसको हृदय से स्वीकार करता है तभी दोनों के बीच में धर्ममय आनंद और संतोष की अनुभूति होती है। वरना बस सुख के भ्रम में आप अनंत घृणा और पश्चाताप की खाई में ही गिरते हो।
अभी एक और ऐसा तरीक़ा है जिससे एक सुखी विवाह के पश्चात भी पुरुष अपना ब्रह्मचर्य तोड़ता है, वो है...
7. वैवाहिक व्यभिचार:
जी हाँ!
विवाह के अंदर भी ब्रह्मचर्य टूट सकता है। वैसे आदर्श रूप से सिर्फ़ संतान प्राप्ति के लिए ही संभोग करना चाहिए। परंतु फिर भी विवाह के अन्तर्गत पति पत्नी के सुख के लिए किया गया संभोग भी स्वीकार्य है। और न ही मात्र स्वीकार्य है परंतु यदि दोनों में से किसी एक की भी इच्छा है तो पूरी करना पति पत्नी का परस्पर कर्तव्य है।
हालांकि इसके भी कुछ नियम हैं।
जिनका पालन न करने पर ब्रह्मचर्य खंडित हो जाता है। जैसे कि.....
1. स्त्री रजस्वला हो तब संभोग करने से न ही मात्र आपका ब्रह्मचर्य खंडित होता है परन्तु आपको ब्रह्महत्या का पाप भी लगता है।
2. कामेच्छा के वश में आकर पत्नी को बल आदि के प्रयोग से संभोग के लिए मजबूर करना भी आपके ब्रह्मचर्य का खंडन करता है। पति की इच्छाओं की पूर्ति करना पत्नी का कर्तव्य है। परंतु इसका अर्थ यह भी नहीं है कि पति अपने स्वामित्व की मर्यादा का दुरुपयोग करे।
3.पति पत्नी दोनों की इच्छा होने के पश्चात भी पोर्न, हस्तमैथुन व सभी अप्राकृतिक संभोग से भी आपके ब्रह्मचर्य का खंडन करता है।
अतः इन सभी प्रकार के वैवाहिक व्यभिचार से भी एक ब्रह्मचारी को बचना अत्यंत ही आवश्यक है।
परंतु यह सब जानने के बाद अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न यह आता है कि हम में से अधिकतर लोग सहज रूप से अपना ब्रह्मचर्य कभी तोड़ना नहीं चाहते। फिर भी जाने अनजाने तोड़ ही देतें हैं। ऐसा क्यों?
तो सबसे पहले इस समस्या का मूलभूत भावनात्मक कारण जानना अत्यंत ही आवश्यक है।
कि आख़िर,
क्यों तोड़ता है कोई ब्रह्मचर्य?
जब मनुष्य के जीवन में सर्जनात्मक आदतों की कमी होती है, तब उसका मन उसे विनाशक आदतों की ओर घसीट कर ले जाता है।
अधिकतर लोग यह मानते हैं कि ब्रह्मचर्य हम तब तोड़ते हैं। जब हमारी कामवासना हम पर हावी हो जाती है।
ग़लत।
आप स्वयं सोचिए, आख़री बार कब आपको बैठे बैठे इस स्तर की तीव्र काम वासना हुई थी कि आपको लगा कि 'इस बार तो रोक ही नहीं पाऊँगा अपने आपको, संभव ही नहीं है।' आप जानते हो कि अधिकतर समय आप अपने आपको बड़ी सरलता से रोकने के लिए सक्षम होते हो, परंतु आप रोकते नहीं हो।
क्यों?
क्योंकि उस समय आप ....
1. निराशा (Disappointment)
2. रसहीनता / अरोचकता (Boredom)
3. या फिर अकेलापन (Loneliness)
इन तीन में से किसी एक या अधिक भावना में डूबे होते हो। और वो थोड़ी सी कामवासना भी आपको उस निराशा, अरोचकता या अकेलेपन से थोड़े समय के लिए ही सही परंतु मुक्त कराती है। इसी लिए आप उसका सहारा ले लेते हो।
अत्यंत ही कम बार ऐसा होता है कि आपको सच में अत्यंत तीव्र कामवासना सताती है। और जब वो होती भी है तब भी उसका प्राथमिक कारण अधिकतर समय इन तीनों में से ही एक या फिर तीनों होते हैं।
एक बार थोड़ा विचार कीजिए,
आपको कभी ऐसे समय में ब्रह्मचर्य तोड़ने के विचार नहीं आएँगे जब आप,
1. अपने जीवन से संतुष्ट और संपन्न अनुभव करते हो।
2. न ही तब, जब आप किसी कार्य में रोचकता से व्यस्त हो।
3. न ही तब, जब आप अपने मित्रों या परिवार आदि के साथ हंस खेल रहे हों या दिलचस्पी से बात चीत या कार्य कर रहे हों।
ऐसा होगा ही नहीं, संभव ही नहीं है।
क्योंकि हम कलियुग में हैं और हमें लगता है कि हमें प्राथमिक रूप से तीव्र कामवासना सताती है।
परंतु, कामवासना रजस प्रधान है, और कलियुग तमस् प्रधान है।
इसलिए कलियुग में किसी का रजस प्रधान होना अत्यंत ही दुर्लभ है। जो रजस प्रधान स्वभाव के होते है उन लोगों में काम वासना अवश्य ही अधिक होती है, परंतु वो लोग अपनी कामवासना की पूर्ति कभी पोर्न और हस्तमैथुन आदि तामसिक क्रियाओं से नहीं करते हैं।
राजसिक स्वभाव वाले लोग कामवासना की पूर्ति के लिए स्त्री प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। यदि वे अधर्मी पुरुष हैं तो वे धर्म की मर्यादा के बाहर स्त्रियों को लुभाकर या बल से उनसे अपनी कामवासना की पूर्ति करते हैं।
और यदि वे धर्मशील पुरुष है, तो वो अपनी पसंद की स्त्री से स्वयंवर आदि में अपनी वीरता दिखाकर उनसे विवाह करके उसके रक्षण-पोषण की ज़िम्मेदारी उठाकर अपनी पत्नी बनाकर उससे प्रेम जताते हैं।
परंतु आज के समय में अधिकतर कोई इस स्तर के राजसिक स्वभाव का नहीं है। इसलिए यह कहना कि आपको कामवासना सता रही है इसलिए आप पोर्न और हस्तमैथुन आदि आदतों में लगे हो, वो संपूर्ण सत्य नहीं होगा।
सत्य यह है कि,
आप कामवासना में नहीं, तामसिकता में डूबे हुए हैं।
1. आपके जीवन में न ही हृदय पूर्ण संतोष व आनंद है,
2. न ही आप किसी ऐसे ध्येय की प्राप्ति में लगे हो, जिससे जीवन में रोचकता और उत्साह आए,
3. और न ही आपके किसी से इतने प्रगाढ़ संबंध हैं, कि आप उनके प्रति समर्पण अनुभव कर सको।
और हाँ, यहाँ पर गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड के संबंध की बात नहीं हो रही है। परन्तु माता-पिता, भाई-बंधु, मित्र-सुहृद, पति-पत्नी, संबंधी व गुरु-शिष्य आदि संबंध की बात हो रही है।
आप अधिकतर समय तभी पोर्न और हस्तमैथुन आदि कृत्य करते हो जब,
1. जीवन में कोई ध्येय नहीं होता है,
2. ध्येय प्राप्ति का कोई उत्साह नहीं होता है,
3. करने के लिए कोई उद्देश्यपूर्ण रोचक कार्य नहीं होता है,
4. और किसी से प्रगाढ़ समर्पण का संबंध नहीं होता है।
ऐसे में बस अकेले में बैठे-बैठे अपने फ़ोन में जो आए वो निरर्थक रूप से देखते-देखते बस समय व्यय कर रहे होते हो और अपने आपको ऐसा सोच कर मूर्ख बना रहे होते हो कि, 'मैं पढ़ाई कर रहा हूँ।' 'मैं कुछ सार्थक कार्य कर रहा हूँ।' ऐसे में ही ये पोर्न और हस्तमैथुन आदि की वृत्तियाँ जन्म लेती है।
ऐसा कभी नहीं होता कि, आप अपनी ध्येय प्राप्ति के लिए दिन रात हृदय से पुरुषार्थ कर रहे हों, आपका शरीर और मन दोनों सतत उसमें व्यस्त हैं, आप लोगों से मिलजुल रहे हों, सार्थक संबंध बना रहे हों, हृदय से सत्संग कर रहे हों, हंस खेल रहे हों और एकदम से मन में ऐसी तीव्र इच्छा आ जाए कि मुझे पोर्न देखकर वीर्यनाश करना है। ऐसा कभी नहीं होता है।
क्योंकि यदि आप यह सब कर रहे हो, इसका अर्थ है कि आप सात्विक और राजसिक गुण में स्थित हो और पोर्न व हस्तमैथुन जैसी तामसिक आदतें उन लोगों में रह ही नहीं पाती जो लोग राजसिक या सात्त्विक गुण में स्थित होते हैं।
इसलिए यदि ब्रह्मचर्य तोड़ने वाले इन तीन कारक भावनाओं...
1. निराशा (Disappointment)
2. रसहीनता / अरोचकता (Boredom)
3. और अकेलेपन (Loneliness)
को अपने जीवन से हटा दो, तो आप अपने मन और शरीर को सात्त्विक और राजसिक गुण में ले जाओगे जिससे आपके लिए ब्रह्मचर्य का पालन अत्यंत ही सहज हो जाएगा।
क्योंकि अंत में,
ब्रह्मचर्य पालन न कर पाने का एक मात्र सबसे बड़ा कारण है, तामसिक-दिशाहीन जीवन (Inactive Aimless Life) जिसका कारण है।
पौरुष का अभाव (Lack of Masculine excellence)
जिसका कारण है,
ध्येय का अभाव (Lack of Purpose in life)
और जिसका कारण है,
ज्ञान का अभाव (Lack of Real Knowledge)
और यहाँ हम आजकल के भौतिक ज्ञान (अपरा विद्या) की बात नहीं कर रहे है, हम बात कर रहे हैं आध्यात्मिक ज्ञान (परा विद्या) की।
भौतिक ज्ञान तो आज के अधिकतर युवाओं में भर-भर के है। ऊपर से मोबाइल और इंटरनेट के बाद तो युवाओं में भौतिक ज्ञान इतना बढ़ गया है कि शायद ही इतिहास में इतना ज्ञान कभी किसी की उँगलियों के तले रहा हो।
परंतु हम आज देख पा रहे रहे हैं कि,
जितना अधिक एक व्यक्ति मॉडर्न भौतिक ज्ञान लेता है उतना ही अधिक वो बुद्धिहीन, विवेकहीन, संयमहीन, मर्यादाहीन और भोगी होकर भगवान व आध्यात्मिकता से दूरी बनाने लगता है।
इसे हम विद्या नहीं कह सकते। क्योंकि विद्या का प्रथम लक्षण है विवेक।
जिस ज्ञान की प्राप्ति से व्यक्ति में विवेक की वृद्धि न हो उसे विद्या (Education) नहीं जानकारी (Information) कहते हैं और एक विवेकशील व्यक्ति ही अपना, अपनों का और समाज का भला कर सकता है। अविवेकी व्यक्ति कितना भी पढ़ा लिखा हो परंतु न ही अपना भला कर पाता है, न ही अपनों का और न ही समाज का। परंतु जब व्यक्ति को सही ज्ञान मिलता है, तो सर्वप्रथम उसमे विवेक की वृद्धि होती है।
वो संसार को, प्रकृति को, समाज को, और स्वयं को मूल रूप में जानने लगता है। जिससे उस व्यक्ति में भोग वृत्ति का हनन होता है और संयम व मर्यादा की वृद्धि होती है।
अतः यह सिद्ध होता है कि ज्ञान प्राप्ति से ध्येय धारण होता है, ध्येय प्राप्ति के लिए किए कर्म से पौरुष की वृद्धि होती है, और पौरुष की वृद्धि से जीवन में से तामसिकता का नाश होता है।
अतः ब्रह्मचर्य पालन की सबसे मूलभूत त्रिचरण विधि भी यही बनती है...
A. ज्ञान प्राप्ति
B. ध्येय धारण
C. पौरुष वृद्धि
इसके पालन से कोई भी व्यक्ति सहजता से ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है। अब आइए समझते हैं कि कैसे हो सकता है इस त्रिचरण विधि का पालन।
ब्रह्मचर्य पालन की त्रिचरण विधि का सबसे प्रथम चरण है,
A. ज्ञान प्राप्ति : जो मात्र तीन तरीक़ों से हो सकती है।
i.) गुरुकुल शिक्षा
ii.) साधु संग
iii.) शास्त्र पठन
और इन तीनों में सर्वश्रेष्ठ है,
i.) गुरुकुल शिक्षा : क्योंकि इसमें व्यक्ति को तीनों आवश्यक संसाधन की प्राप्ति होती है,
1. उत्तम ज्ञान
2. उत्तम मार्गदर्शन
3. उत्तम वातावरण
इसीलिए जो व्यक्ति बचपन से गुरुकुल के वातावरण में पढ़कर बड़ा हुआ है और अध्यात्म और भगवद्प्राप्ति में आसक्त है उसके लिए ब्रह्मचर्य का पालन अत्यंत ही सरल हो जाता है।
क्योंकि कुमारावस्था से ही उसकी चेतना को साधु, गुरु और शास्त्र तीनों का संग और गुरुकुल का आध्यात्मिक वातावरण मिला है। जो उसकी बुद्धि और आदतों को हमेशा सात्त्विक रखते हैं। परंतु हम यह जानते हैं कि आज के समय में अधिकतर आज के युवाओं को यह सौभाग्य नहीं मिला है कि वे गुरुकुल में पढ़कर बड़े हो सकें। इसीलिए उनके लिए दूसरा श्रेष्ठ तरीका है।
ii.) साधु संग : क्योंकि इसमें व्यक्ति को दो आवश्यक संसाधन की प्राप्ति होती है,
1. उत्तम ज्ञान
2. उत्तम मार्गदर्शन
परंतु सतत साधु संग में रह पाना अधिकतर लोगों के लिए संभव न हो पाने से उन्हें सतत उत्तम वातावरण नहीं मिल पाता।
फिर भी, जितना भी संभव हो उतना साधु गण, भक्त गण और गुरुजनों के संग में रहना चाहिए।
साधु जनों के मात्र समीप रहने मात्र से शास्त्रों के ज्ञान की प्राप्ति और साक्षात्कार दोनों ही हो जाते हैं। बिना साधु संग के जब मार्गदर्शन के अभाव में शास्त्र पठन करते हैं तो ज्ञान का सही अर्थ और उसका साक्षात्कार दोनों मिलना कठिन हो जाता है।
इसीलिए साधु संग स्वतंत्र शास्त्र पठन से श्रेष्ठ है। परंतु जिनके लिए साधु संग भी दुर्लभ है उनके लिए अंतिम रास्ता रहता है,
iii.) शास्त्र पठन : अब इसमें उत्तम ज्ञान तो मिल जाता है, परंतु उत्तम मार्गदर्शन और उत्तम वातावरण नहीं मिल पाता है।
हालाँकि आज के समय में हम भाग्यशाली है कि, इंटरनेट के माध्यम से हमें उत्कृष्ट भक्तों और साधुओं के प्रवचन के रूप में मार्गदर्शन सरलता से मिल सकता है।
इसलिए शास्त्र पठन के साथ सतत ऐसे उत्कृष्ट भक्तों, साधुओं और परंपरागत धर्म गुरुओं के प्रवचनों को सुनना और उनके ग्रंथों को पढ़ना चाहिए।
और आप यदि पद्धतिबद्ध रूप से शास्त्रों को सीखना चाहते हैं, तो हमारे ऑनलाइन गुरुकुल veducation.world से सरलता से सीख पाओगे।
परंतु यदि इतना भी समय नहीं है पढ़ने का या आप जानते नहीं है कि शुरुआत कहाँ से करें, तो सर्वप्रथम B.O.S.S पुस्तक पढ़ें। उससे आपको समस्त सनातन संस्कृति का मूलज्ञान अत्यंत ही सरल भाषा में मिल जाएगा और आगे क्या पढ़ना है इसका निर्णय ले पाओगे।
और यदि आप अन्य शास्त्र न भी पढ़ पाओ तो भी इस पुस्तक मात्र से आप अपने नित्य और नैमित्तिक कर्म और धर्म को अच्छी तरह से समझ लोगे।
जिससे फिर आप कर पाओगे अपना...
B. ध्येय धारण :
एक बार आपको स्वयं का, समाज का और संसार का मूलभूत ज्ञान हो जाता है तो आप अपने धर्म, कर्म और ध्येय को समझ जाते हो। आपको ज्ञात हो जाता है कि, आपका इस मनुष्य जीवन में ध्येय क्या है, और उस ध्येय की प्राप्ति के लिए आपको प्रतिदिन कौन से कर्म करने हैं? और संक्षिप्त में बताएँ तो हर मनुष्य का अंतिम ध्येय एक ही है, भगवद्प्राप्ति।
क्यों और कैसे इसके बारे में आप B.O.S.S पुस्तक में पढ़ पाएँगे परंतु...
जन्म जन्मांतर के सभी लौकिक-पारलौकिक ध्येयों का अंत यहीं पहुँचकर आता है। अतः भगवद्प्राप्ति के लिए अपने वर्ण, आश्रम और सामाजिक सक्षमता के अनुसार आपके परिवार, गुरु, देव, समाज और धर्म के प्रति अपने कर्मों को करना ही आपके जीवन का उच्चतम ध्येय है।
फिर वो कर्म कितने भी बड़े या छोटे क्यों न हो, उनसे हटना नहीं है। उनपर दृढ़ रहना है।
यदि इतना कर रहे हो तो आपको दुनिया में कुछ भी और करने की आवश्यकता नहीं है। आपका जीवन संपूर्ण रूप से सार्थक है, पूरे विश्व में कुछ भी ऐसी चीज़ नहीं है जो आप चूक रहे हो। बस ये है कि आप अपने धर्म-कर्म और ध्येय को लेकर गंभीर हो ये आवश्यक है। जब आपका ध्येय गंभीर होता है और आप अपनी समस्त शक्तियों का उपयोग उस ध्येय के प्राप्ति में लगा देते हो तो शरीर की ये कामेच्छाएँ उस ध्येय के सामने अत्यंत ही तुच्छ लगने लगती हैं।
उन्हीं धर्म-कर्म के पालन मात्र से आपमें धैर्य, साहस, संयम, नम्रता, मर्यादा और विवेक की वृद्धि होने लगती है।
और इन्ही गुणों की वृद्धि से फिर होती है आपमें...
C. पौरुष वृद्धि :
और पौरुष की वृद्धि से आप में होती है, प्राण वृद्धि।
जी हाँ!
स्मरण कीजिए, पुस्तक की शुरुआत में हमने वीर्य की पाँच अवस्थाओं के बारे में बात की थी।
उनमें से वीर्य की सर्वप्रथम अवस्था कौनसी थी? जो की सबसे उच्च कक्षा का वीर्य है, सीधा परमात्मा से आता है, और आत्मा से होकर हमारे शरीर में विद्यमान होता है?
वो है, गुणावस्था में वीर्य। अर्थात् गुण स्वरूप में वीर्य।
आपका यह पौरुष (Masculine Excellence) ही आपके शरीर में स्थित वो गुण स्वरूप में वीर्य है।
जो कि फिर प्राणावस्था में परिवर्तित होता है, फिर ऊर्जावस्था में, फिर बीजावस्था में, फिर अमृतावस्था में, और फिर पुनः गुण अवस्था में परिवर्तित होकर पुनः पुनः आपमें पौरुष की वृद्धि करके आपको भीष्म पितामह की भाँति एक अखंड ब्रह्मचारी बनाता है।
तो,
यही वो तीन चरण की सर्वोच्च विधि है जिससे बड़े-बड़े महात्मा संत आदि अपने ब्रह्मचर्य का पालन अखंड रूप से करके जीवन के उच्चतम ध्येयों की प्राप्ति करते है,
1. ज्ञान प्राप्ति
2. ध्येय धारण
3. पौरुष वृद्धि
जितना आप इस विधि का बिना किसी मेल-जोल (Compromise) के यथारूप पालन करोगे, उतना ही सरलता से आप ब्रह्मचर्य का पालन कर पाओगे और उससे होने वाले परम लाभ को पाओगे।
और जितना आप इसमें मेल जोल करने का प्रयास करोगे, इसके सिद्धांतों का यथारूप पालन न करके इनमें भी मध्यमार्ग (Shortcut) खोजने का प्रयास करोगे, उतनी ही यह विधि आपके लिए जटिल और पालन के लिए अधिक कठिन बनती जाएगी।
इसीलिए कहते है कि, सरल लोगों के लिए ब्रह्मचर्य अत्यंत ही सरल होता है, जब कि जटिल लोगों के लिए उतना जटिल बनकर रह जाता है।
अतः सरल रहें।
तो, करना क्या है? (Action Plan)
A. ज्ञान प्राप्ति : कैसे?
• युवावस्था में हो और संभव है तो गुरुकुल में प्रवेश ले लें।
• संभव नहीं है, या गृहस्थ हो, तो अपने आसपास परंपरा में आने वाले मंदिर, आश्रम, मठ या धर्मीजनों की सभा को ढूँढिए और नियमित उनके संग और मार्गदर्शन में शास्त्र पठन करें।
• नहीं मिल रहा कोई, तो www.veducation.world पर
ऑनलाइन गुरुकुल से शास्त्र सीखना शुरू करें।
• इतना भी समय नहीं है, तो कम से कम हमारी B.O.S.S पुस्तक पढ़कर अपने धर्म-कर्म और हमारी सनातन संस्कृति को ठीक से समझ लें। और चलो मान लेते हैं कि यह भी नहीं कर सकते हो, तो भी क्या करना है, इसके बारे में आगे बात करेंगे।
B. ध्येय धारण : कैसे?
• ज्ञान प्राप्ति से एक बार बैठकर अपने ध्येय की एक दृढ़ धारणा बना लें।
• आवश्यक होने पर अपने ध्येयों को एक कागज़ पर लिख लें।
• उन ध्येयों की धारणा आपके नियमित साधुसंग और शास्त्र पठन आदि से प्रतिदिन अधिक दृढ़ बनती जाएगी और आप अपने शास्त्रोक्त धर्म-कर्म का नियमित पालन करने के लिए और उत्सुक होते जाओगे।
• और जब धर्म-कर्म करने की उत्सुकता न हो तब तो ख़ास पालन करो।
C. पौरुष वृद्धि : कैसे?
• अपने धर्म-कर्म के पालन मात्र से आपमें अपने आप पौरुष की वृद्धि होती जाएगी और आपमें इंद्रिय संयम, मर्यादा, धैर्य, साहस आदि गुणों की वृद्धि होती जाएगी।
• फिर आपके पास ब्रह्मचर्य तोड़ने के कृत्य करने का तो दूर की बात है, उसके लिए सोचने का भी समय नहीं मिलेगा।
• फिर आपमें बढ़े हुए इस पौरुष से आप अपना, अपनों का और समाज का कल्याण करने में इतने व्यस्त हो जाओगे की इन फ़ालतू के कृत्यों के बारे में किसी के मुख से सुनकर भी आपको उनपर दया आने लगेगी।
अभी यह तो हुई आदर्श विधि की बात।
परंतु यदि आप यह मानते हो कि, ‘मैं तो नास्तिक हूँ। और यदि थोड़ा आध्यात्मिक हूँ तो भी इस स्तर पर तो नहीं ही हूँ की इतना दृढ़ ध्येय भगवद्प्राप्ति के लिए बना पाऊँ। मुझे अध्यात्म में इतनी रुचि है ही नहीं। और यदि है तो भी इतनी प्रबल नहीं है कि उसकी प्रेरणा के बल पर इस विधि का पालन कर पाऊँ। तो फिर मैं ब्रह्मचर्य का पालन कैसे करूँ?'
उत्तर है, इसी विधि से।
जी हाँ!!
इसी विधि से। बस बदलाव यही है कि आपका ज्ञान और ध्येय यहाँ बदल जाएगा, परंतु मूलभूत सिद्धांत वही रहेगा।
चलिए मान लेते हैं कि, आप में उस स्तर का आध्यात्मिक मनोबल अभी नहीं है। या फिर आप जीवन में ऐसी स्थिति में ही नहीं हो कि सीधा आदर्श विधि का पालन कर पाओ।
ऐसे में भी ब्रह्मचर्य पालन इसी त्रिचरण विधि से कर पाओगे। और बदलाव कुछ इस प्रकार होगा।
A. ज्ञान प्राप्ति :
यदि आप भगवद् प्राप्ति को अपना ध्येय नहीं बनाना चाहते हो तब फिर अधिक आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता है ही नहीं। क्योंकि फिर आपका ध्येय सिर्फ़ इस संसार और इस जीवन तक ही सीमित हो जाता है।
और उसके लिए सिर्फ़ आपको समाज का व्यावहारिक ज्ञान हो जाए उतना ही पर्याप्त है। और उस संपूर्ण व्यावहारिक ज्ञान का सार यही है कि....
एक पुरुष को चाहे जीवन में उच्चतम कक्षा का योग करना हो या उच्चतम कक्षा का भोग। फिर उसे जीवन में स्त्री सुख प्राप्त करना है, धन सुख प्राप्त करना है, संपत्ति चाहिए है, मान सम्मान चाहिए है या फिर प्रसिद्धि। इन सभी की प्राप्ति का एक ही मार्ग है, वो है सक्षमता।
और सक्षमता की प्राप्ति का एक ही मार्ग है जोकि है, पौरुष।
जो पुरुष जीवन में पौरुष दिखा पाता है, शौर्य, साहस, निर्भयता, अनुशासन आदि दिखा पाता है, वही इस लौकिक और पारलौकिक जीवन में सुख व समृद्धि की प्राप्ति कर पाता है। अतः पुरुष के लिए जीवन में किसी भी ध्येय की प्राप्ति के लिए पौरुष वृद्धि के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं है।
आपकी आध्यात्मिक इच्छाएँ प्रबल नहीं है, इसका अर्थ है कि आपकी भौतिक इच्छाएँ उससे अधिक प्रबल है। परंतु भौतिक जगत में भी उच्चतम सुख की प्राप्ति करने के लिए भी पौरुष तो चाहिए ही होगा, और वो भी ब्रह्मचर्य के पालन से ही मिलेगा।
क्योंकि ऐसी सुंदर, सुशील और आपसे समर्पित रहे ऐसी स्त्रियाँ सिर्फ़ उच्च कक्षा के सक्षम पुरुष का ही वरण करेंगी।
और क्यों न करें?
वो ऐसे पति का वरण क्यों करेंगी जिसने,
1. न ही जीवन में अपनी सक्षमता से कुछ प्राप्त किया है,
2. न ही संकट में अपनों की रक्षा कर पाता है, बातबात में घबरा जाता है,
3. न ही अपना और अपनों का पालन पोषण कर पाता है,
4. न ही उसका समाज में कोई मान सम्मान है,
5. न ही मन और शरीर पर कोई संयम है, थोड़ी सी ख़ुशी में झूमने लगता है और थोड़े से दुःख में रोने लगता है,
6. न ही उसके जीवन में कोई ध्येय है, बस दिन रात गेम्स खेलता रहता है और फ़िल्में देखता रहता है,
7. न ही जीवन में कोई अनुशासन है। बस अवसर मिलते ही बाथरूम में जाकर बड़ी बड़ी कल्पनाएँ कर के अपना वो सारा पौरुष नालियों में बहा देगा जिससे सच में जीवन में वो अपने ध्येयों की प्राप्ति कर सकता था।
वो ऐसे ही पति का वरण करेंगी जो,
1. उतना सक्षम हो कि जीवन में मेहनत से कुछ प्राप्त किया हो, 2. उतना बलवान हो की संकट में साहसी होकर उसकी रक्षा कर पाए,
3. उतना कमाता हो कि अपना और अपनों का पालन पोषण कर सकें,
4. उतना बुद्धिमान और विवेकशील हो कि समाज में उसका सम्मान हो,
5. उतना संयमी हो कि जीवन के उतार चढ़ाव में अटल रहे,
6. उतना परिपक्व हो कि जीवन में उसके उत्तम ध्येय हो,
7. उतना अनुशासन युक्त हो कि अपने ध्येयों की प्राप्ति कर पाए।
और इसमें कुछ ग़लत नहीं है, ऐसा ही होना चाहिए। आप पुरुषार्थ से ऐसे बन पाओ इसीलिए भगवान ने आपको पुरुष शरीर दिया है, न की पड़े पड़े धरती व समाज पर बोझ बनने के
लिए। अतः यदि आपको भोग भी करना है तो भी उच्चतम भोगों की इच्छा कीजिए, न की काल्पनिक भोगों की। अतः यदि आपको स्त्री सुख चाहिए है तो उस स्तर के पुरुष बनने का ध्येय बनाएँ जिसे उच्चतम कक्षा की सुंदर, रूपवती, गुणवती और संस्कारी स्त्री अपने पति के रूप में वरण करना पसंद करें।
परंतु जितना आप पौरुष से दूर भागोगे, उतना अधिक आपको हर कोई प्रताड़ित करेगा, फिर वो प्रजा हो, प्रकृति हो या प्रेमी। क्योंकि एक पुरुष को मान सम्मान और प्रेम तभी मिलता है जब वो पौरुष दिखाकर जीवन में कुछ सार्थक काम करता है।
असक्षम पुरुषों से अधिक लोग पालतू कुत्तों से प्रेम करते है। इस तथ्य को स्वीकारने के अतिरिक्त आप कुछ नहीं कर सकते हैं। यह संसार ऐसा ही है।
अब या तो आप जीवन भर इसको लेकर रोना रो सकते हो, या फिर इसे स्वीकार कर जीवन में पौरुष दिखाना शुरू कर सकते हो।
हालाँकि अच्छा समाचार यह है कि, पौरुष दिखाने और सक्षमता की प्राप्ति से सिर्फ़ एक सुख की प्राप्ति कभी नहीं होती। जैसे ही पुरुष अपने जीवन के किसी एक क्षेत्र में आगे बढ़ता है, तुरंत ही उसे जीवन के अन्य क्षेत्रों में स्वयं ही सुखों की या तो प्राप्ति होने लगती है या तो प्राप्ति करना सरल होने लगता है।
जैसे कि, जब आप जीवन में अच्छा पैसा कमाने लगते हो, तो समाज में आपको मान सम्मान मिलने लगता है। और आप अपने माता, पिता, परिवार, संत, गुरु और धर्म की अधिक अच्छे से सेवा कर पाते हो।
परिवार के स्वास्थ्य की रक्षा भी अच्छे से कर सकते हो क्योंकि अब वो उच्च गुणवत्ता की भोजन सामग्री ख़रीद सकते हो और बिना पैसे की चिंता के अधिक सरलता से स्वास्थ्य संबंधी निर्णय ले सकते हो।
वैसे ही यदि कोई कन्या पसंद है, तो उसके माता पिता समाज में आपकी सक्षमता के गुणगान सुनने मात्र से आपको अपनी पुत्री देने के लिए तैयार हो जाते हैं और वह स्त्री भी इन्ही गुणों को सुनकर आपको समर्पण करने के लिए तत्पर होने लगती है।
वैसे ही यदि पुरुष ज्ञान की प्राप्ति में पौरुष दिखाता है, समाज सेवा में पौरुष दिखाता है, किसी कौशल (Skill) में पौरुष दिखाता है, शारीरिक बल में पौरुष दिखाता है तो उनके साथ अन्य क्षेत्रों में भी सुख की प्राप्ति करता है।
B. ध्येय धारण :
तो, यही है आपका ध्येय, जीवन में 5 रूपों में सक्षमता,
1. शारीरिक रूप से,
2. मानसिक रूप से,
3. सामाजिक रूप से,
4. आर्थिक रूप से,
5. आध्यात्मिक रूप से।
आपका यह कर्तव्य है कि आप इन सभी क्षेत्रों में कम से कम एक आवश्यक हद तक की सक्षमता तो प्राप्त करें ही करें। जैसे कि,
1. शारीरिक रूप से : कम से कम इतना तंदुरस्त रहो की आप सर्वप्रथम तो बीमारियों से दूर रहो। दूसरी बात की इतने दुबले न हो कि कोई एक घुसा मारे और आप गिर जाओ और इतने भी मोटे न रहो कि यदि गिर जाओ तो तुरंत ही खड़े न हो पाओ।
2. मानसिक रूप से : कम से कम इतना सक्षम रहना है कि कितनी भी जीवन में, परिवार में या समाज में तकलीफ़े आ जाएं, आप किसी भी हालत में स्थिर रह सको और संकट के समय में परिवार और समाज में औरों का सहारा बन पाओ।
जैसे कि यदि परिवार में पिता या किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का देहांत हुआ हो, तो उनके अंतिम संस्कार में जब परिवार में सभी लोग मानसिक रूप से टूट कर बिखर चुके हैं, ऐसे में आप उनके लिए स्तंभ के समान बनकर रहो और स्थिति को और परिवारजनों को अच्छे से सम्भाल लो।
3. सामाजिक रूप से : कम से कम इतना सक्षम रहें की गाँव, कॉलोनी और नज़दीकी परिवार के सभी लोगों की आँख में आपके लिए आदर सम्मान हो। और वो भी कम से कम इतना कि यदि आधी रात को कोई आपदा आ जाए तो एक पुकार पे कोई भी आपकी सहायता के लिए प्रस्तुत हो जाए। और जब भी आपके पीछे आपकी बात निकले तो उनके मुख से प्रशंसा ही निकले।
4. आर्थिक रूप से : कम से कम इतना सक्षम रहें कि सर्वप्रथम तो घर में किसी के भी ऊपर कोई ऋण (Debt) न हो। दूसरा, घर में सबको खाने के लिए पौष्टिक आहार, पहनने के लिए स्वच्छ कपड़े, रहने के लिए सुरक्षित व आरामदायक घर, ज़रूरत पड़ने पर चिकित्सा के लिए पर्याप्त सुविधाएँ और संत व अतिथि के आतिथ्य के लिए पर्याप्त सेवा सामग्री हमेशा हो।
5. आध्यात्मिक रूप से : कम से कम इतना सक्षम रहना है कि हृदय में कभी किसी के प्रति पाप वृत्ति न रहे। हमेशा लोक कल्याण के ही विचार आए। कभी किसी का बुरा न हो, संतों और भक्तों की सेवा करने का अवसर मिलने पर हृदय आनंद का अनुभव करे और जीवन की हर स्थिति में आप अपने धर्म और मूल्यों की रक्षा के लिए दृढ़ रह पाएँ।
इन सभी क्षेत्रों में कम से कम इतनी सक्षमता तो पाएँ ही। यदि आपको लगता है कि आप अभी इस स्तर पर नहीं हो तो प्रथम अपने आपको इस स्तर पर लाने का ध्येय बनाइए।
और यदि आप इस स्तर पर हो, तो अब इनमें से किसी एक या अधिक क्षेत्रों में श्रेष्ठता प्राप्त करने का ध्येय बनाइए और उस क्षेत्रों में पौरुष दिखाइए।
स्मरण रहे!! पौरुष की कोई मर्यादा नहीं होती है।
हमारी संस्कृति में ऐसे-ऐसे चक्रवर्ती सम्राट हुए हैं जिन्होंने संपूर्ण पृथ्वी पर सदियों तक राज किया था।
ऐसे ऐसे तपस्वी भी हुए हैं, जिन्होंने अपने तपोबल से एक पूरे नये ग्रह की रचना कर दी थी।
ऐसे-ऐसे संत-भक्त हुए हैं जिन्होंने स्वयं भगवान को दरवाज़े पर खड़ा रहने के लिए मजबूर कर दिया था।
तो आप जीवन में किसी भी स्तर पर क्यों न हो, आप हमेशा ही उससे ऊपर के स्तर का ध्येय बना सकते हो।
और इसी से होगी आपकी...
C. पौरुष वृद्धि : और जितना स्पष्ट आपका ध्येय होगा, पुरुषार्थ करना आपके लिए उतना ही सरल होगा।
अब जब दृढ़ता से आपने अपना ध्येय निश्चय कर लिया है, तो फिर अब संपूर्ण समर्पण के साथ उसकी प्राप्ति के लिए अपना ज़ोर लगा दीजिए।
और उसको पाने की प्रक्रिया में...
1. मुश्किलें आएँगी,
2. तकलीफें आएँगी,
3. धैर्य धारण करना होगा,
4. संयम धारण करना होगा,
5. डर का सामना भी करना होगा,
6. मन न करने पर भी काम करना होगा,
7. सुख सुविधाओं और आराम का त्याग करना होगा,
8. शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक जोखिम उठाने पड़ेंगे,
परंतु यही प्रक्रिया आप में साहस, धैर्य, निडरता, संयम, विवेक आदि के स्वरूप में पौरुष की वृद्धि कराएगी। और एक बार पौरुष बढ़ना शुरू हुआ, तो समय व अनुभव के साथ उसे बढ़ाना और सरल होने लगेगा।
जो लोग इस स्तर पर पहुँच गए हैं वे बहुत अच्छी तरह से जानते हैं कि, ब्रह्मचर्य का पालन इनके जीवन का नित्य भाग बन जाता है। उन्हें प्रति पल ब्रह्मचर्य के पालन के लिए अलग से सोचना नहीं पड़ता है।
ब्रह्मचर्य खंडन के कृत्य तो दूर की बात हैं, उनके विचार के लिए भी उनके पास व्यर्थ का समय नहीं होता। अतः ऐसे लोगों के लिए ब्रह्मचर्य का पालन अत्यंत ही सरल हो जाता है।
इन मुश्किलों, तकलीफ़ों और डर का सामना करते हुए जीवन में नयी उपलब्धियों को प्राप्त करने में जो उनको आनंद की अनुभूति होने लगती है उसके सामने फिर ये पोर्न, हस्तमैथुन तथा संभोग आदि के सुख बड़े ही तुच्छ और उबाऊ लगने लगते हैं।
इसकी पुष्टि अब जाकर मॉडर्न विज्ञान भी कर रहा है।
हमारे मस्तिष्क में जो हार्मोन आनंद की अनुभूति कराता है उसे डोपामिन (Dopamine) कहते हैं। जिस कार्य में हमें अधिक डोपामिन मिलता है, उसको हम प्राकृतिक रूप से बार बार करने के लिए प्रेरित होते हैं।
परंतु हमारे मस्तिष्क में डोपामिन मर्यादित प्रमाण में बनता है। अतः जितनी जल्दी उसका उपयोग कर लिया जाए उतनी ही जल्दी वो समाप्त हो जाता है। और अगली बार उतने ही आनंद की अनुभूति के लिए उससे भी अधिक डोपामिन की आवश्यकता होती है।
ऐसे में कुछ समय के बाद मस्तिष्क डोपामिन बनाना ही बंद कर देता है और बिना आनंद की अनुभूति के आप डिप्रेशन व एंजाइटी में चले जाते हो।
पोर्न, हस्तमैथुन, सोशल मीडिया, गेम्स, जंक फ़ूड, ड्रग्स, धूम्रपान और अन्य नशे आदि चीजें आपको त्वरित डोपामिन देती हैं। इसलिए यह तुरंत ही आदत लगा देने वाली चीजें हैं।
परंतु जितनी जल्दी यह डोपामिन देती है, उतनी ही जल्दी वो चला भी जाता है।
फिर अगली बार उतने पोर्न, सिगरेट, सोशल मीडिया या ड्रग्स से काम नहीं चलता। हर अगली बार पिछली बार से अधिक पोर्न, अधिक ड्रग्स, अधिक सोशल मीडिया, अधिक सिगरेट आदि की आवश्यकता होती है।
फिर एक हद के बाद कितना भी पोर्न, सिगरेट, सोशल मीडिया, ड्रग्स आदि ले लो, कोई आपको संतुष्टि नहीं देता। क्योंकि आपने अपने डोपामिन Receptors को सुन्न (Numb) कर दिया है।
जब कि उसी के सामने,
दौड़ना, तैरना, व्यायाम आदि शारीरिक श्रम, साहसिक कार्य, स्वास्थ्यप्रद भोजन, प्रकृति से जुड़ाव, व्यापार, नये कौशल (Skills), लोगों से मिलना जुलना, माता पिता गुरु समाज की सेवा करना आदि प्राकृतिक रूप से डोपामिन प्राप्त करते है, उनका डोपामिन कभी समाप्त नहीं होता और इनकी आनंद की अनुभूति लंबे समय तक चलती है।
अतः एक बार आप इस त्रिचरण विधि से अपने पौरुष की वृद्धि करने लगते हो तो आपके जीवन से धीरे धीरे,
1. पोर्न,
2. हस्तमैथुन,
3. ब्रह्मचर्य का नाश,
4. डिप्रेशन,
5. एंजाइटी,
6. आलस्य,
7. नशा,
आदि सभी समस्याओं का नाश अपने आप ही हो जाता है। क्योंकि यह सभी कोई अलग अलग समस्याएँ नहीं है। यह सभी एक ही मूलभूत समस्या के अलग अलग बाहरी लक्षण है।
वो समस्या है, तामसिक जीवन।
अतः यदि आप इस एक मूलभूत समस्या को जड़ से हटा दो तो अन्य समस्त समस्याओं का हल अपने आप ही आ जाता है। सबका अलग अलग रूप से उपचार करने की कोई आवश्यकता नहीं रहेगी। और इस मूलभूत समस्या का एकमात्र रामबाण इलाज है, पौरुष वृद्धि।
जितना अधिक आप अपने पौरुष की वृद्धि करोगे उतना ही उच्च कक्षा के सुखों की आप प्राप्ति कर पाओगे। जिससे इन पोर्न, हस्तमैथुन, नशे आदि सस्ते सुखों में से आपकी रुचि स्वयं ही निकल जाएगी और आप अपने ध्येयों को सहजता से प्राप्त कर पाओगे।
हालाँकि हमारा तो यह मानना है कि, यदि आप ब्रह्मचर्य का यह तप करने ही वाले हो, और इसी तप से यदि उच्च से उच्च ध्येय की प्राप्ति भी की जा सकती है, तो क्यों न समग्र अस्तित्व का सबसे ऊँचा ध्येय बनाया जाए?
कुछ ऐसा जिसे प्राप्त करने के बाद कुछ और प्राप्त करने की इच्छा ही न रहे। अब तक के इतिहास में सिर्फ़ एक ही ऐसा ध्येय प्रमाणित हुआ है। जिसकी प्राप्ति के पश्चात मनुष्य कुछ और नहीं माँगता है। वो है समस्त ध्येयों की प्राप्ति कराने वाले, स्वयं भगवान।
आचार्यगण कहते है कि, इतिहास में जिस जिसने एक बार उनकी प्राप्ति कर ली है। उसे फिर लोक परलोक के समस्त सुख एक सूअर की विष्ठा के समान लगने लगते हैं। उस स्तर का सुख है भगवद्प्राप्ति में।
तो फिर उनसे नीचा कुछ चाहिए भी क्यों? अरबों खरबो जन्मों में लाखों करोड़ों बार आपको चाहिए है वो मिला होगा। फिर वो धन हो, बल हो, सुंदरता हो, ख्याति हो, स्त्री हो, सत्ता हो, स्वर्ग हो या स्वयं इंद्रासन ही क्यों न हो।
परंतु जिसकी करोड़ों बार प्राप्ति से भी संतुष्टि नहीं हो रही है, उसे एक और बार प्राप्त करने के लिए पुनः इतना सारा तप क्यों व्यर्थ गंवाना? जो कि वैसे भी फिर से मृत्यु के समय हमसे छीन ली जाने वाली है।
अतः ब्रह्मचर्य का पालन यदि आप मात्र शरीर की सुंदरता, चेहरे पे चमक, बाजुओं बल, मन में स्थिरता और स्मरणशक्ति, आयु व आत्मविश्वास आदि में वृद्धि के लिए कर रहे हो, तो यह मूर्खता है।
क्योंकि यदि एक ही दाम में आपको मुट्ठी भर चावल मिल रहे हैं, और उसी दाम में पूरी दुकान मिल रही है, तो मुट्ठी भर चावल भला क्यों लेना?
आपको ब्रह्मचर्य के पालन से यदि समग्र अस्तित्व का सबसे बड़ा ध्येय प्राप्त हो सकता है, ध्येयों को प्राप्त कराने वाले साक्षात भगवान की प्राप्ति हो सकती है। तो इन क्षणभंगुर फलों की प्राप्ति के लिए इतनी मेहनत क्यों करनी; जो कि वैसे भी मृत्यु के समय हाथ से चली जाएगी।
अतः बुद्धिमान बनें! और भले आपको लगे कि आप पतित से भी पतित हो अभी, फिर भी अपने ब्रह्मचर्य का ध्येय सर्वोच्च रखें।
परंतु संपूर्ण पुस्तक में ब्रह्मचर्य पालन का सबसे बड़ा चरण पौरुष ही बताया गया है, क्या ब्रह्मचर्य मात्र पुरुषों के लिए है? या स्त्रियों को भी करना चाहिए? आइए समझते हैं —
स्त्रियों के लिए ब्रह्मचर्य:
जी नहीं। ब्रह्मचर्य पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिए है। परंतु दोनों का स्वरूप अलग अलग है। पुरुष के लिए जैसे पौरुष धर्म है वैसे ही स्त्रियों के लिए स्त्री-धर्म है।
पुरुषों के लिए समस्त इंद्रियों का ब्रह्म को समर्पण ब्रह्मचर्य है। और स्त्रियों के उनके पति ही ब्रह्म स्वरूप होने के कारण अपनी इंद्रियों का अपने पति को समर्पण ही उनका ब्रह्मचर्य है।
अतः जो स्त्री विवाह पूर्व अपना शील और अपनी पवित्रता बनाए रखती है और विवाह के पश्चात पूरा जीवन अपने पति मात्र को अपनी समस्त इंद्रियाँ समर्पित करके रहती है उसे आजीवन ब्रह्मचर्य का फल मिलता है।
पुरुषों में जैसे वीर्य है। वैसे ही स्त्रियों में रज है।
पुरुषों का शौच धर्म जैसे वीर्य रक्षा से होता है। वैसे स्त्रियों का शौच धर्म प्रति माह अपने रजस्वला यज्ञ के पालन से होता है। रजस्वला यज्ञ पालन की संपूर्ण विधि आप हमारी वैदिक दिनचर्या (Extended Version) पुस्तक में पढ़ पाएँगे। क्योंकि स्त्री शरीर स्वयं ही प्रति माह अपने रज व गर्भ की शुद्धि करता है।
अतः स्त्रियों को इसकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। शारीरिक रूप से ब्रह्मचर्य का कोई अलग से लाभ नहीं है।
हालाँकि यदि वे अपने पति की अनुमति से मानसिक और आध्यात्मिक लाभ के लिए संभोग से निवृत्ति लेना चाहे तो अवश्य ले सकती है।
विशेष कर संतान प्राप्ति के लिए गर्भाधान करने से पहले कम से कम 3-6 महीने और गर्भाधान के बाद कम से कम 14-16 महीनों तक। अर्थात् संतान प्राप्ति के पश्चात 6-8 महीनों के लिए उन्हें संभोग से निवृत्ति लेनी आवश्यक है।
जहां तक बात रही आजीवन ब्रह्मचर्य की तो, आदर्श रूप से हर स्त्री का विवाहित होना आवश्यक है। क्योंकि स्त्री के मोक्ष का मार्ग विवाह से है।
‘एक स्त्री के लिए उसका पति ही उसका गुरु व गोविंद है अतः उसके विवाह संस्कार से ही उसको उसके उपनयन संस्कार का, पति के घर के वास से ही गुरुकुल वास का, गृहाग्नि (रसोई) से हवन कर्म का और मंगलसूत्र पहनने से ही जनेऊ पहनने का फल मिलता है।’ — वाल्मिकी व तुलसीकृत रामायण, चाणक्य नीति अ.5, मनुस्मृति 65-69 आदि..
परंतु यदि पूर्व कर्मों के फलस्वरूप उसका विवाह न हो, या वैराग्य योग के कारण पति का वरण करने में असमर्थ हो इस स्थिति में भगवान को अपना पति स्वीकार कर समस्त जीवन ब्रह्मचारिणी बनकर रह सकती है।
हालाँकि इसे भी शास्त्रों में आदर्श नहीं माना गया है, क्योंकि अकेली स्त्री को भ्रष्ट करने के लिए दुनिया के हर कोने में अधर्मी लोग प्रतीक्षा करते हुए बैठे ही होते हैं। अतः बिना पति के स्त्री अत्यंत ही असुरक्षित हो जाती है।
इसलिए यदि मीराबाई के समान वैराग्य योग भी हो तो भी उन्हीं की तरह किसी संयमी और धर्मवान पति का वरण करके फिर भजन करना चाहिए। परंतु विवाह तो हर स्त्री को करना ही चाहिए।
हालाँकि उससे भी पहले यह ध्यान रखना आवश्यक है कि विवाह से पूर्व स्त्री अपना शील और अपनी पवित्रता बनाए रखे।
क्योंकि एक स्त्री युवावस्था में सर्वप्रथम जिस पुरुष के साथ शारीरिक और मानसिक संबंध बनाती है उससे उसका संबंध जीवन भर के लिए सबसे प्रगाढ़ बना रहता है। किसी और से संबंध के पश्चात किसी और से विवाह होता है तो उसके लिए संपूर्ण समर्पण कर पाना अत्यंत ही दुर्लभ हो जाता है।
अतः हर युवा स्त्री को चाहिए कि, अपने शील और पवित्रता को विवाह के समय तक बनाए रखे और जब विवाह हो उसके पश्चात अपने पति को अपना मन, हृदय और इंद्रिय सब संपूर्ण रूप से समर्पण करके उसकी सेवा करें।
हमारे इतिहास में अनेकों स्त्रियों ने, अपने पतिव्रता व्रत के पालन मात्र से न ही मात्र भगवान की प्राप्ति की है अपितु अपने सतीत्व के बल से उनको अपने वश में भी किया है।
जैसे कि माता अनसूया ने, अपने पतिव्रता व्रत मात्र से स्वयं ब्रह्मा विष्णु महेश आदि त्रिदेवों को अपने पुत्र बनने के लिए मजबूर कर दिया था।
कौशिक ब्राह्मण की पत्नी ने, अपना पति वैश्यागामी होने के पश्चात भी उसकी रक्षा के लिए अपने पतिव्रता व्रत के बल से 10 दिन तक सूर्योदय नहीं होने दिया था। और स्वयं देवता व भगवान तक इसके लिए कुछ नहीं कर पाए थे।
वृंदा देवी के पतिव्रता व्रत के कारण, स्वयं भगवान शिव और विष्णु भी उनके दैत्य पति का बाल भी बाँका नहीं कर पा रहे थे।
भामती देवी की पति सेवा मात्र से उनके धर्मवान पति से भी पूर्व भामती देवी को भगवान ने स्वयं दर्शन दिये थे।
ऐसी ही हमारे इतिहास में अनेकों घटनाएँ मिलती हैं जिसमें पतिव्रता नारियाँ अपने पतिव्रता व्रत के बल पर ऐसे ऐसे कार्य कर देती है जिसे करना स्वयं बड़े बड़े तपस्वियों के लिए भी अत्यंत दुर्लभ होता है।
अतः हर स्त्री को चाहिए कि, वह विवाह से पूर्व अपने शील और पवित्रता की रक्षा करे और विवाह पश्चात तन, मन और हृदय से संपूर्ण रूप से पति के लिए उसकी आज्ञाओं का पालन कर के उसकी सेवा करे। पति की दीर्घायु व उसकी समृद्धि की कामना करे।
क्योंकि शिवपुराण व स्मृति शास्त्रों के अनुसार,
मात्र पतिव्रता व्रत के पालन मात्र करने से स्त्री को होम, यज्ञ, श्राद्ध, उपवास तथा अखंड ब्रह्मचर्य आदि सभी का फल मिल जाता है और उसे इस लोक और पर लोक में साध्वी सती स्त्री की उपाधि मिलती है।
सावधान :
हमारा नम्र निवेदन है कि नये ब्रह्मचारी, नैष्ठिक ब्रह्मचारी व संन्यासी भक्त आने वाले इस ‘वैवाहिक ब्रह्मचर्य' के अध्याय को न पढ़ें।
मात्र वही लोग पढ़ें, जो या तो गृहस्थ हैं या फिर निकटतमकाल में गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने वाले हैं।
वैवाहिक ब्रह्मचर्य
'ब्रह्मचर्य का पालन मात्र विवाह होने तक ही किया जाता है। उसके पश्चात उसकी कोई आवश्यकता नहीं है और न ही उसके कोई फ़ायदे है।' अधिकतर लोग इस अवधारणा को मानकर विवाह के पश्चात अपने ब्रह्मचर्य के संकल्प को भूल जाते हैं।
परंतु आपको क्या लगता है? विवाह कहते किसे है?
शास्त्र कहते हैं — 'विशेषेण वहती विवाहा' अर्थात् अपनी इच्छाएँ, वीर्य और जीवन का वहन एक विशेष दिशा में करने के कार्य को विवाह कहते हैं। और ब्रह्मचर्य कोई कार्य नहीं है कि आज किया कल नहीं किया।
ब्रह्मचर्य एक जीवन शैली है। जो जीवन के प्रत्येक आश्रम में लागू होती है। बस उसका रूप और उद्देश्य बदल जाता है। विवाह से पहले वीर्य का उपयोग अपने मन, शरीर और अध्यात्म के जतन के लिए किया जाता है और विवाह के पश्चात उसका उपयोग परिवार वृद्धि के लिए किया जाता है।
अतः आदर्श रूप से एक ब्रह्मचारी को विवाह के पश्चात वीर्य का उपयोग मात्र संतान प्राप्ति के उद्देश्य से ही करना चाहिए। उसके अतिरिक्त अपने वीर्य का व्यय किसी रूप में नहीं करना चाहिए।
हालाँकि गृहस्थ आश्रम का एक उद्देश्य यह भी है कि, व्यक्ति धर्म की मर्यादाओं में अपनी कामपूर्ति करके उन सुखों से ऊपर उठे और मोक्ष की प्राप्ति करे। अतः विवाह के अन्तर्गत अपनी पत्नी से सहवास संपूर्ण रूप से धर्ममय है और इसमें तनिक भी दोष नहीं होता है।
परंतु फिर प्रश्न यह आता है कि, यदि विवाह के पश्चात पत्नी से यौन सुख प्राप्त करने का पति को संपूर्ण अधिकार होता है तो फिर क्यों प्राप्त न करें?
युवावस्था में विवाह पूर्व ब्रह्मचर्य का पालन तो कर लिया, अब विवाह के पश्चात तो मन भर के यौन सुख प्राप्त कर ही सकते है।
तो आख़िर,
क्यों करें विवाह के पश्चात ब्रह्मचर्य का पालन?
यह सत्य है कि व्यक्ति की कामेच्छाओं की पूर्ति भी विवाह का एक मुख्य उद्देश्य है। परंतु यह हमेशा स्मरण रहना चाहिए कि उस कामेच्छाओं की पूर्ति का उद्देश्य भी यही है कि आप उनकी प्राप्ति करके अंत में यह जान सकें कि इन यौन क्रियाओं में इतना सुख है नहीं जितना प्रतीत होता है।
फिर इस तथ्य का अनुभव करके, आप अपने भगवद्प्राप्ति के मार्ग पर और अधिक दृढ़ हो जाएँ। जोकि यदि धर्म की मर्यादाओं में कोई कामपूर्ति करता है तो समय के साथ हो ही जाता है।
परंतु जो लोग कामेच्छाओं के वश होकर धर्म की मर्यादाओं का उल्लंघन करके सहवास करते है उनके सामाजिक, वैवाहिक व आध्यात्मिक जीवन में समस्याएँ आना शुरू हो जाती है, जैसे कि...
1. रतिक्रिया का महत्त्व तभी तक रहता है जब तक उस पर मर्यादा बनी रहे। अमर्यादित मैथुन से पति पत्नी एक दूजे से जल्दी ऊब जाते हैं, परस्पर भावनाएँ कम हो जाती है और फिर रतिक्रिया का कोई महत्व नहीं रहता है।
2. आज के समय में पहले के जैसी संपूर्ण समर्पित पत्नी का मिलना अत्यंत ही दुर्लभ है जो अपने पति की प्रसन्नता के लिए निरंतर कुछ भी करने के लिए बिना कोई भेदबुद्धि के तत्पर रहती है। अतः ऐसे में जब एक पति अमर्यादित रूप से बार बार सहवास करता है तो फिर दोनों में मर्यादा नहीं रहती है और पत्नी का सेवा भाव कम होने लगता है।
3. और क्योंकि आज के समय में अधिकतर स्त्रियाँ प्रौढ़ अवस्था में विवाह करती है तो उनकी उम्र के कारण यदि उनकी कामेच्छाएँ जल्दी पूरी हो जाती है तो फिर जब पति की बाक़ी रह जाती है तो पत्नी के दिमाग़ में पति के लिए एक कामी की छवि बन जाती है।
4. एक धर्मयुक्त स्वस्थ संतान की उत्पत्ति के लिए भी गर्भाधान से पहले कम से कम 3-6 महीने के लिए पति पत्नी दोनों का ब्रह्मचर्य पालन आवश्यक होता है। ऐसा न करने पर जन्म लेने वाली संतान भी असंयमी और कामी होने की संभावनाएँ बढ़ जाती है।
5. पत्नी व बच्चों के साथ सतत सानिध्य और उनके प्रति अति आसक्ति को स्त्रैण और बचकाने स्वभाव का बना देती है। और पुरुष जितना अधिक भावनाओं में बह जाता है, उतना ही अधिक उसका परिवार दुःख में बह जाता है। अतः पुरुष का गंभीर होना अत्यंत ही आवश्यक है। जो कि संयम मात्र से ही आती है।
अतः पुरुषों को अपने परिवार से समय निकालकर अन्य पुरुषों के साथ पौरुष वर्धक कार्यों में संलग्न होना आवश्यक है। जिससे वे अपना पौरुष न खो बैठे और परिवार का स्तंभ बनकर रह सके।
तो,
कैसे करें विवाह में ब्रह्मचर्य का पालन ?
पत्नी और बच्चों को प्रेम और समय अवश्य दें। परंतु अपना अधिकतर समय अन्य पुरुषों के साथ पौरुष वर्धक कार्य करते हुए बिताएँ । जैसे कि कठिन व्यायाम करें, शास्त्रों का पठन करें, निर्बलों की रक्षा, समाज की सेवा, संतों की सेवा, धर्म का प्रचार, दुष्टों का नाश करना आदि।
अपने कर्तव्य के अनुसार पत्नी की ज़रूरतों को पूरा करें और उसे खुश रखें। परंतु उसकी ख़ुशी को अपने जीवन का एकमात्र ध्येय न बना दें। विवाह के पश्चात पति पत्नी संबंध में अपनी मर्यादाएँ बनाएँ रखें।
1. पत्नी अपने पति का हमेशा पिता और गुरु के समान आदर करें और उसकी आज्ञाओं का पालन करें।
2. पति अपनी पत्नी का बेटी के समान ख़्याल रखे और उसकी रक्षा व भरण पोषण करके उसे लाड़ प्यार से रखें।
3. पत्नी से कभी विवाद न करें। उसे अपशब्द कभी न बोलें और कभी भी उसपर हाथ न उठाएँ। स्त्री पर हाथ उठाने से पुरुष के जीवन भर के पुण्यों का नाश होता है।
4. पति को कभी नाम लेकर न बुलाएँ, उन्हें प्रभु, स्वामी, आर्य या फिर अपनी संतान के पिता (गोविंद के पिताजी ऐसे) कहकर बुलाएँ।
5. रतिकर्म के अतिरिक्त एकदूजे को कभी नग्न अवस्था में न देखें। और रति कर्म की मर्यादाओं का पालन करें।
परंतु क्या है ये रति कर्म की मर्यादाएँ?
कब, कैसे और कितनी बार करें पत्नी से सहवास?
1. सर्वप्रथम आदर्श यही है कि पति पत्नी मात्र संतान प्राप्ति के लिए ही सहवास करें अन्यथा उसका त्याग करें।
2. परंतु यदि दोनों में से किसीको भी सहवास की इच्छा होती है
तो पत्नी के रजस्वला यज्ञ (Periods) की समाप्ति और शुद्धि के पश्चात, महीने में एक या अधिक से अधिक दो बार सहवास करें। ऐसा करने पर दोनों की उत्तरोत्तर चेतना की उन्नति होती है।
3. रति अवसर के लिए फूल, सुगंध, दीप, खेल आदि से घर में शांत, सुंदर, आनन्दमय और प्रेममय वातावरण का निर्माण करें।
4. पति पत्नी शुद्ध कपड़ों में इत्र आदि लगाकर तैयार होकर रति कर्म करें। ऐसा करने से संबंध में पवित्रता और इंद्रियों पर नियंत्रण बढ़ता है।
5. अन्यथा अनियमित रूप से कभी भी इंद्रियों के वश में आकर रति करने से इंद्रिय संयम नहीं रहता है और मन हमेशा विचलित रहने से अपने धर्म कर्म पर ध्यान नहीं रहता है। अतः रतिक्रिया की पवित्रता बनाए रखें और कभी भी और कहीं भी करके उसे तुच्छ न बनाएँ।
6. सहवास रात्रि के समय सोने से पहले अंधेरे या दीप के उजाले में ही करें।
7. कभी भी बल या मजबूरी का प्रयोग करके सहवास न करें।
8. किसी भी हालत में पोर्न, हस्तमैथुन, पिल्स आदि का उपयोग न करें।
9. पति की आज्ञाओं और इच्छाओं की पूर्ति करना पत्नी का कर्तव्य है। अतः पति के प्रति ऐसी भावना नहीं करनी चाहिए कि वो कामी है। उनकी कामेच्छाओं की पूर्ति करना आपके कर्तव्य का एक भाग है।
10. और इसका अर्थ यह भी नहीं है कि यदि पति संयमी है और पत्नी को काम की इच्छा हो रही है तो उसे नकारा जाए। पति से महीने में एक बार रतिक्रिया की आशा रखना उनका अधिकार बनता है।
11. अतः एक दूजे की कामेच्छाओं को समझकर एकादशी, जन्माष्टमी, राधाष्टमी, गौर पूर्णिमा, शिवरात्रि, प्रदोष व्रत, दुर्गाष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि पवित्र तिथियों पर और जब पत्नी रजस्वला हो इन दिनों को छोड़ कर अन्य तिथियों में सहवास करें।
12. अति आवश्यक होने पर महीने में अधिक बार सहवास कर लें परंतु अपने पति या पत्नी को व्यभिचार में न फँसने दें। यह आपका कर्तव्य है।
इन धर्म की मर्यादाओं को ध्यान में रखकर, यदि कोई पति पत्नी सहवास करते हैं और साथ में अपनी आध्यात्मिक साधना का पालन करते हैं तो समय के साथ उनकी चेतना में उन्नति होती है और स्वाभाविक रूप से इन इंद्रिय सुखों से वैराग्य उत्पन्न होने लगता है।
परंतु इनका उल्लंघन करके जब कोई विवाह के अंदर भी यौनसुख प्राप्त करता है तो ऐसा यौन सुख विवाह के अन्तर्गत होने के पश्चात भी पति पत्नी दोनों की चेतना का स्तर गिरते हुए उनको मोक्ष से दूर ले जाता है।
अतः हर गृहस्थ जो ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहता है, वो इन वैवाहिक ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन अवश्य करे और अपने और अपने परिवार की भगवद्प्राप्ति का उत्तरदायित्व सँभाले।
तो, अब हमने सैद्धांतिक रूप से हमारे ब्रह्मचर्य की नाव में पड़े 7 छिद्र...
1. पोर्न
2. हस्त मैथुन
3. स्वप्न दोष (3 प्रकार के परस्त्री व्यभिचार)
4. गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड
5. विवाहेत्तर संबंध
6. वैश्यावृत्ति और
7. विवाह व्यभिचार आदि को अच्छे से समझ लिया।
अब इनको हमेशा के लिए बंद कैसे करें इसकी प्रत्याभूत विधि (Guaranteed Action Plan) के बारे में बात करते हैं।
To be continued..