सच्ची मेहनत
एक दिन गौतम बुद्ध अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे, तभी एक शिष्य ने पूछा, "सच्ची मेहनत की क्या परिभाषा है? क्या आप मेरी इस जिज्ञासा का समाधान करेंगे।"
"अवश्य, तुम यह कथा सुनो ? इससे स्वयं मेहनत की परिभाषा जान जाओगे।" कहते हुए बुद्ध ने एक कथा प्रारंभ की
किसी गाँव में एक किसान रहता था। उसकी थोड़ी सी खेती-बाड़ी थी। उससे उसे जो कुछ मिल जाता, उसी से वह अपनी गृहस्थी की गुजर-बसर कर लेता था। कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाता था।
संयोग से उस किसान का एक बैल मर गया। बेचारा बड़ी परेशानी में पड़ गया। खेत को बोना जरूरी था, पर बोए कैसे? बैल तो एक ही रह गया था। उसने बहुत सोचने के पश्चात् एक फैसला किया। हल के जुए में एक ओर बैल जोता और दूसरी ओर अपनी स्त्री, और फिर काम करने लगा।
उसी समय वहाँ का राजा अपनी रानी के साथ रथ पर उधर से गुजरा।
अचानक उसकी निगाह हल पर गई, जिसके जुए में एक ओर बैल और दूसरी ओर स्त्री थी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, साथ ही दुख भी। उसने रथ को रुकवाया और किसान के पास जाकर पूछा, "यह तुम क्या कर रहे हो?"
किसान ने निगाह उठाकर उसकी ओर देखा और बोला, "मेरा एक बैल मर गया है और खेत को बोना जरूरी है।"
राजा ने कहा, "भले मानस! कहीं स्त्री से भी बैल का काम लिया जाता है?"
किसान बोला, "क्या करूँ, और उपाय ही क्या है?"
"उपाय!" राजा ने कहा, "तुम मेरा एक बैल ले लो। जाओ।"
किसान बोला, "मेरे पास इतना समय नहीं है।" इतना कहकर उसने बैल को आगे बढ़ा दिया।
राजा ने कहा, "सुनो भाई ! तुम अपनी स्त्री को बैल लाने के लिए भेज दो। जब तक वह आए, तब तक मैं उसके स्थान पर काम करूँगा।"
किसान की स्त्री ने कहा, "तुम तो बैल देने को तैयार हो, पर तुम्हारी पत्नी ने इनकार कर दिया तो?"
राजा बोला, "नहीं, ऐसा नहीं होगा।"
किसान राजी हो गया।
उसकी स्त्री राजा के यहाँ बैल लेने चली गई और राजा ने हल का जुआ अपने कंधे पर रख लिया।
किसान की स्त्री ने जब रानी के पास जाकर राजा की बात कही तो वह बोली, "बहना! एक बैल से कैसे काम चलेगा। तुम्हारा बैल कमजोर है। हमारा बैल मजबूत है। दोनों साथ काम नहीं कर सकेंगे। तुम हमारे दोनों बैलों को ले जाओ।"
स्त्री बड़ी लज्जित हुई, उसे तो डर था कि कहीं वह एक बैल भी देने से इनकार न कर दे। वहीं एक छोड़, दोनों को देने के लिए रानी तैयार थी।
स्त्री बैल लेकर आई और पूरे खेत की बुवाई हो गई।
कुछ समय बाद फसल उगी। किसान ने देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। सारे खेत में अनाज पैदा हुआ, लेकिन जितनी जमीन में राजा ने हल चलाया था और उसका पसीना गिरा था, उतनी जमीन में मोती उगे थे।
यह करामात सच्ची मेहनत की थी। जहाँ राजा जनता की सेवा में अपना पसीना बहाता है, वहाँ ऐसा ही फल मिलता है।
गौतम बुद्ध-कथा समाप्त करते हुए बोले-
"कहो शिष्य क्या अब भी तुम्हारी जिज्ञासा शांत नहीं हुई?"
"अवश्य प्रभु! मैं समझ गया कि सच्ची मेहनत की परिभाषा क्या है।"