“माही, तुझे लगता है कि जंगल में इतनी दूर भी कोई मंदिर होगा?” जिद चलते-चलते ही बोल रही थी।
“अब समझ में आया कि वो छोटी लड़की ने उस लड़के को क्यों डरा रही थी। उसकी मम्मी तो क्या! मेरी मम्मी भी मुझे मारती।” माही बोली।
लगभग पंद्रह मिनट चलने के बाद थोड़ी दूर एक मंदिर की चोटी (शिखर) दिखाई देने लगी थी। माही जिद की तरफ खुशी से देखकर उस चोटी की तरफ इशारा किया। दोनों की चलने की रफ्तार बढ़ गई। मंदिर तक पहुँचते-पहुँचते दोनों पसीने-पसीने हो गए। आसमान में मौजूद बादलों की वजह से उन्हें और ज्यादा उमस लग रही थी। माही उस मंदिर को देखकर डर रही थी।
उस मंदिर के चारों तरफ किले जैसी ऊँची दीवार बनी हुई थी। वह चारों तरफ की लंबी और ऊँची दीवार काली पड़ चुकी थी। मंदिर उस किले के अंदर था और वह मंदिर या तो ऊँचा होगा या फिर मंदिर किले के अंदर की टेकरी पर बनाया गया होगा। क्योंकि दूर से ही नहीं बल्कि पास से भी मंदिर की चोटी दिख रही थी। जिद और माही उस किले के अंदर जाने का रास्ता ढूँढ रहे थे। वे किले के पूर्व दिशा से आए थे और अब उत्तर दिशा के रास्ते चल रहे थे। जबकि उसकी दक्षिण दिशा में भी एक रास्ता था।
थोड़ा चलते ही उन्हें एक बड़ा दरवाज़ा दिखाई दिया। वह दरवाज़ा लगभग पंद्रह फुट ऊँचा रहा होगा। लेकिन वह बंद था। उसे धक्का मारते हुए माही बोली, “दरवाज़ा अंदर से ही बंद है।”
यह सुनकर जिद भी बोली, “तो अब क्या करेंगे?”
“कोई दूसरा रास्ता होगा ही।” माही ने कहा।
काफ़ी आगे चलने के बाद पश्चिम दिशा में उस दीवार का अंतिम कोना आया। माही की नजर उस कोने के पीछे जाए उससे पहले ही दीवार की एक बड़ी दरार पर पड़ी। लगभग तो वह दीवार पत्थर की ही बनी हुई थी इसलिए या तो दीवार खुद ही गिर गई है या फिर किसी ने जानबूझकर गिराई थी। जिद और माही को अंदर जाने का रास्ता तो मिल ही गया। तो उन्होंने वह गिरी हो या गिराई गई हो, उसका धन्यवाद मानकर एक-दूसरे की तरफ मुस्कराकर अंदर प्रवेश किया।
अंदर सबसे ज्यादा घास उगा हुआ था। लग रहा था कि वहाँ शायद लोग कम आते होंगे। लेकिन वहाँ आते जरूर होंगे और क्यों – यह पता नहीं। क्योंकि अगर लोग मंदिर के दर्शन करने आते होते, तो मंदिर की हालत खंडहर जैसी न होती। मंदिर की दीवारों पर चारों तरफ कई पक्षियों के घोंसले थे और मंदिर की दीवारें भी किले की दीवारों की तरह काली पड़ चुकी थीं।
यह सब देखकर जिद के मन में हुआ कि शायद यह वही मंदिर नहीं है, जो मेरी मम्मी ने बताया था। उनके कहे अनुसार मंदिर आरस (शीशे/पत्थर) का बना हुआ था। लेकिन मंदिर का यह काला रंग देखकर यह मानना मुश्किल है कि यह मंदिर आरस का है।
दोनों एक छोटी सी पगडंडी पर चल रहे थे। किला बहुत बड़ा तो नहीं था लेकिन मंदिर के चारों तरफ बराबर की दूरी जरूर थी। मतलब मंदिर किले के बिलकुल बीचोंबीच बना हुआ था। अब माही और जिद मंदिर के पास पहुँच चुके थे। दोनों एक साथ बोले,
“हम तो पगडंडी पर चलकर आए हैं और यहाँ गाड़ी चलने के निशान हैं। मतलब वह दरवाज़ा कोई जानबूझकर अंदर से बंद रखता है।”
जैसी हालत उन्होंने मंदिर और उसके किले की देखी, उससे ऐसा लगा कि दरवाज़ा खोलना मुश्किल है। दोनों ने गाड़ी या किसी बड़े वाहन की पगडंडी पर चलकर दक्षिण दिशा के दरवाज़े तक पहुँचे और जैसा सोचा था उसके विपरीत – दरवाज़ा बहुत आराम से खुल गया। दोनों कोई अधिकारी तो थे नहीं इसलिए इन सब बातों को नजरअंदाज़ करते हुए मंदिर के अंदर जाने का सोचा।
“अंदर इतना अंधेरा क्यों है?” माही बोली।
“अब उसके लिए तो हमें मंदिर का इतिहास पढ़ना पड़ेगा।”
“हाँ! अब, तेरे इस खंडहर मंदिर का इतिहास कोई महान मेगास्थनीज़ जैसे राजदूत ने ही लिखा होगा।” जिद की बात की मज़ाक उड़ाते हुए माही बोली।
“छोड़ वो बात, हम यहाँ अगर कोई खिड़की हो तो खोलें।” जिद बोली।
फिर दोनों ने साथ मिलकर एक खिड़की ढूँढ निकाली। जैसे ही लकड़ी की वह खिड़की खोली, वैसे ही ऊपर रखी एक कलश नीचे गिर गई और वह बादल में समा जाए ऐसी राख मंदिर के साथ-साथ माही और जिद पर चिपक गई। पूरा मंदिर राख-राख हो गया। दोनों एक साथ बोले, “इतना कम था क्या कि एक और मुसीबत बढ़ गई। उफ़!”
“आज तो थक ही जाएँगे जिद।” माही बोली।
***
“रोम, तुझे क्या लगता है? क्या ये कोयले की खान वाला सच बोल रहा था?” विनय गाड़ी चलाते हुए बोला।
“सच तो तू भी नहीं बोलता, वो कहां से बोलेगा?” रोम बोला।
विनय को ये बात हजम न हुई तो उसने रोम से पूछा, “मैं?”
“हाँ! कल तू शाम को कहाँ गया था?”
विनय थोड़ा अटकता हुआ बोला, “कल...! मैं तो... वहीं बस... वहीं।”
विनय की बात काटते हुए रोम बोला, “हाँ, बोलने लायक कुछ रहा नहीं, इसलिए ही ‘बस वहीं... वहीं’ करता रहता है। बोल अब बोल। क्यों बोलती बंद हो गई न?”
अभी विनय रोम के सामने सोचकर कुछ बोलने ही जा रहा था कि अचानक उसकी नजर मंदिर के दक्षिण तरफ खुले दरवाजे पर पड़ी। विनय ने तुरंत ब्रेक मारा। रोम कांच की तरफ आगे आता रहा और एकदम उसका एक हाथ गाड़ी के कांच का सहारा लेकर रुक गया।
“क्या हुआ?” रोम बोला।
“देख मंदिर का दरवाजा।”
“हाँ तो दरवाजा क्या?”
इतने में विनय गाड़ी से उतर चुका था। तो गाड़ी के बाहर से ही बोला, “तुझे याद है, पाडुआ के लोगों से पूछा था। तब उन्होंने हमें कहा था कि मंदिर बंद ही रहता है। जब हम यहां से निकल रहे थे, तब ये दरवाजा भी बंद था और अब...”
“हाँ, हमें दरवाजा बंद कर देना चाहिए।” विनय की बात को काटते हुए फिर रोम बोला।
विनय रोम को जानता था। उसने उसे अनदेखा करके मंदिर के अंदर जाने के लिए कदम बढ़ाया। रोम भी उसके पीछे बड़बड़ाता-बड़बड़ाता चलने लगा। “मैं सीनियर हूं। मेरी तो सुनता ही नहीं। मुझे नहीं करनी ऐसी नौकरी। ऊपरवाले तो समझते ही नहीं कि ये तो अभी नया ही है। श्रुति मैडम भी मुझे इसके भरोसे छोड़ देती हैं। मुझे नहीं रहना...”
इतने में जैसे रोम को समझ में आ गया हो, विनय बोला, “रोम सर, आप आगे नहीं आ रहे?”
ये सुनते ही रोम बकवास बंद करके तेजी से चलने लगा। “हाँ... हाँ, आ ही रहा हूँ। ये तो सोच रहा था कि मंदिर खुला कैसे है?”
रोम विनय से आगे निकल गया और पहले तो जाकर दरवाजे के ऊपर लगे चंद्र की आकृति को देखा। फिर माथा खुजलाकर बोला, “अरे, इतने ऊपर कौन इसे लगाने गया होगा?”
विनय माथे पर हाथ रखकर ‘ना’ में सिर हिलाते हुए बोला, “जब दरवाजा बनाया होगा, तब ही लगाया होगा।”
रोम की बोलती बंद हो गई थी। वो कुछ और न बोलते हुए आश्चर्य से विनय को देखने लगा।
विनय को लगा कि शायद अब उसके मन में यह विचार आया होगा कि क्यों श्रुति मैम विनय पर भरोसा करती हैं। पर सच में ऐसा हुआ ही नहीं।
रोम ने उसका उल्टा ही कहा, “हाँ, वो तो सबको पता चल ही जाता है। मैं तो तुझे चेक कर रहा था।”
रोम और विनय किले के अंदर गए। मंदिर के चारों तरफ एकसमान दूरी का विनय ने नोट किया। फिर दोनों मंदिर के बहुत पास पहुँचे। मंदिर के प्रांगण की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए पैरों के निशान देखकर विनय बोला,
“मंदिर में कोई हमसे पहले आया है।”
“और शायद वो गया भी नहीं है।” रोम सीढ़ियों के पास पड़ी चप्पल देखकर बोला।
“मतलब कोई लड़की या स्त्री अभी भी मंदिर के अंदर है।”
विनय की बात सुनकर रोम तुरंत बोल उठा, “मैं तेरा सीनियर हूं। इसलिए मैं तुझे हुक्म देता हूं कि,” फिर थोड़ी नरमी से बोला, “पहले मैं अंदर जाकर देखूंगा।”
विनय रोम से कोई बहस नहीं करता क्योंकि, फिलहाल वह केस सॉल्व करना चाहता है। इसलिए रोम मंदिर के गर्भगृह में जाता है और विनय मंदिर के प्रांगण में ही खड़ा रहता है।
रोम लालच में आकर अंदर पहुँच गया। अंदर का वह गर्भगृह बहुत ही बड़ा था लेकिन उसमें गहरा अंधेरा था। रोम की बाईं तरफ एक छोटी सी खिड़की खुली थी। रोम खिड़की की तरफ आगे बढ़ा। अभी वह खिड़की तक पहुँचा भी नहीं था कि उसकी नजर एक लड़की पर पड़ी जिसकी हल्की आकृति दिखाई दी और उसे देखने के लिए थोड़ा झुका। उसी समय उस लड़की ने भी अपना चेहरा ऊपर किया। खिड़की की रोशनी एकदम उसके चेहरे पर पड़ी और रोम ने उसका चेहरा देखा कि उसके मुँह से एक चीख निकल गई। “आ...आ...आ...”
रोम की आवाज सुनकर डर गई माही की भी चीख निकल गई “आ...आ...आ...” और डर की वजह से माही का हाथ ऊपर उठ गया और एक जोरदार तमाचा रोम को पड़ गया। रोम वहां से तुरंत भागने लगा।
विनय भी रोम की चीख सुनकर गर्भगृह में आ गया। माही और जीद को या विनय और रोम को किसी को भी एक-दूसरे के चेहरे साफ नहीं दिख रहे थे। रोम और माही की चीख सुनकर ही डर गई जीद अपने कानों पर हाथ रखकर आँखें बंद करके जोर-जोर से चिल्लाने लगी। उसका आवाज सुनकर माही और रोम चुप हो गए। उसके बगल में खड़े विनय ने चिल्लाहट से परेशान होकर एक तमाचा जड़ दिया। जीद के गाल पर चिपकी हुई राख पर विनय के हाथ की लाल छाप पड़ गई।
एकदम से सब बाहर निकल गए। जीद और माही दोनों के चेहरों पर लगी राख की वजह से उन्हें पहचानना मुश्किल था। लेकिन विनय ने बाहर खड़ी जीद की आँखें देखकर ही उसे पहचान लिया और जोर से हँसने लगा।
उसे देखकर चिढ़कर खड़ी माही और जीद और ज्यादा गुस्से में आ गईं। उनके चढ़े हुए चेहरे और मुट्ठी बंद हाथ देखकर विनय समझ गया कि वो दोनों उस पर बहुत गुस्सा हैं। विनय बात को मोड़ते हुए और रोम का लाल चेहरा दिखाते हुए बोला,
“सॉरी, मैं भी इसकी तरह डर गया था।”
हालांकि, उसका झूठ चला नहीं क्योंकि उसके माथे पर डर की एक भी लकीर नहीं थी। जबकि रोम हँसने और बहादुर दिखने की कोशिश उसके पसीने से भीगे चेहरे से साफ दिखाई दे रही थी। इसलिए पहले विनय और फिर रोम को देखकर जीद समझ गई कि डरने का दिखावा करने वाला विनय है और वह उसे गुस्से से देखने लगी।
विनय को अपनी गाड़ी में लाए पानी की बोतल की याद आई तो वह बोला, “सॉरी, तुम्हारा चेहरा देखकर कोई भी डर जाए। इसलिए मैं भी।” आधा बोलकर अपनी गलती दर्शाता चेहरा बनाकर विनय रुक गया।
विनय के हँसते चेहरे पर खुशी की झलक देखकर जीद को जैसे अच्छा न लगा हो वैसा लगा।
“इसमें आपकी कोई गलती नहीं है। आपकी जगह शायद कोई और होता तो भी ऐसे ही डर जाता।”
विनय अपनी गलती सुधारने की कोशिश से बोला, “थोड़ी देर यहीं खड़े रहो, मैं आप दोनों के लिए पानी लाता हूँ।”
उस समय नीचे देखती शरमाई सी खड़ी जीद की तरफ ऊपर नजर करके रोम अपने दाँत दिखाकर हल्का-हल्का हँस रहा था। थोड़ी देर में विनय पानी लेकर आया। माही और जीद ने अपने मुँह पर पानी डालकर सफाई की। चारों अपने व्यवहार को लेकर थोड़े-थोड़े शर्मिंदा हो रहे थे। एक-दूसरे की नजरों में नजर मिलाने में भी थोड़े असहज लग रहे थे। विनय और जीद प्रांगण में खड़े-खड़े एक साथ बोले, “आप यहाँ?”
फिर साथ में बोलने की गलती से रुककर थोड़ा मुस्कराने लगे। नीचे चेहरा करके खड़ी जीद और उसके चेहरे पर एकटक नजर रखे खड़े विनय की बात में थोड़ी देर के लिए टपकती हुई रोम बोला, “अब अगर आपकी बात पूरी हो गई हो तो चलें?”
“अ...ह... हाँ।” अटकते-अटकते विनय बोला।
उनके जाने की बात सुनकर माही भी बोली, “क्या आप हावड़ा ब्रिज की तरफ ही जा रहे हैं?”
उसकी बात सुनकर विनय ने फटाफट हाँ में सिर हिलाया और बोला, “आप कहें तो छोड़ दूँ आपको भी।”
“हाँ, वैसे तो हमें भी वहीं से...” अभी माही उनकी सोसाइटी का नाम बताने ही वाली थी कि जीद ने रोकते हुए कहा,
“ना थैंक यू। हम हमारी तरह ही चले जाएँगे।”
विनय को जीद के इस जवाब की आशंका थी। इसलिए जैसे पहले से सोच लिया हो वैसा एक सवाल किया, “आप यहाँ इस मंदिर में कुछ समझीं नहीं!”
“क्यों? मंदिर है तो भगवान के दर्शन करने नहीं आ सकते?”
“नहीं ऐसा नहीं है। मतलब कि आप गुजरात से हैं और इस मंदिर में आना मतलब...” विनय जीद का जल्दी से बोलने को तैयार चेहरा देखकर रुक गया।
“हाँ तो, गुजराती को कलकत्ता में घूमने की इजाजत नहीं है?”
“नहीं है, पर यहाँ ही आने का कोई कारण?” विनय का सवाल पूरा होते ही रोम बोला, “डिटेक्टिव डकैती करने तो ये कोई बोरा लेकर नहीं आए हैं और सब जानते हैं कि मंदिर में लोग क्या करने आते हैं?”
विनय रोम के इस जवाब से थोड़ा चिढ़ गया क्योंकि, यह दूसरी बार था जब उसने दोनों की बातों में बीच में बोला था। विनय मन ही मन रोम को गाली दे रहा था। अब जीद और माही वहाँ से निकलने की तैयारी करने लगे। विनय रोम को छोड़कर जीद को देख रहा था। उसे जीद से बात करने की अभी भी इच्छा थी। हालांकि, जीद का अंदाज़ देखकर कोई भी पुरुष उस पर मोहित हो जाए। जबकि विनय तो मिलने के वक्त से ही उसके विचारों में खोया हुआ रहता था। थोड़ी और देर उसके साथ बिताने के लालच में विनय बोला। “अरे... लेकिन इस जंगल इलाके में आप दोनों अकेले जाएँगे। वैसे भी अंधेरा होने आया है।”
विनय की बात सही थी। अंधेरे में जंगल के अंदर से निकलना आसान नहीं था। इसलिए पर्स पकड़कर चल रही जीद ने पीछे मुड़कर देखा। उसने माही की तरफ भी देखा और फिर उनके साथ जाने के लिए मान गई। जीद को पता था कि विनय उसके करीब आने के लिए ये सब प्रयास कर रहा है। उसे भी वह पसंद था। ‘लेकिन, क्या विनय अच्छा लड़का है सच में!’ यह सवाल हमेशा जीद को सताता रहता था।
सब लोग महिंद्रा जीप गाड़ी में बैठे। जो ऊपर से ढंकी हुई और दोनों तरफ से खुली थी। रोम और विनय आगे बैठ गए और जीद तथा माही पीछे की सीट पर। पुलिस की गाड़ी में जाने का जीद का यह पहला अनुभव था। उसे थोड़ी घबराहट हो रही थी और चलती गाड़ी में भी उसका पसीना छूट रहा था। माही तो बड़े शहर में कई वर्षों से रहती होने के कारण उसे कोई परेशानी नहीं थी।
अब गाड़ी का पीछे देखने वाला शीशा जीद की तरफ करके देख रहा विनय बोला। “हाँ तो आप पावर कॉम्प्लेक्स में काम कर रही हैं न।”
जीद कुछ नहीं बोली। वह बस शीशे से देख रहे विनय को तीखी नज़र से देख रही थी। कार खुली होने के कारण जब वह धीमी पड़ती तो उसमें धूल के गुबार आ जाते और वह बहाना बनाकर जीद ने अपना चेहरा एक चुंदड़ी के पीछे छिपा लिया।
विनय समझ रहा था कि, जीद ने धूल से बचने के लिए चेहरा नहीं छिपाया।
हावड़ा ब्रिज पर ट्रैफिक बहुत ज्यादा था। रात के लगभग सात बज चुके थे। ऐसा अंधेरा हो गया था। आसपास खड़ी बस और गाड़ियों की लाइटें चालू थीं। सामान्य रूप से हॉर्न की आवाज़ आ रही थी और धीरे-धीरे सभी गाड़ियाँ आगे बाराबाजार की तरफ निकल रही थीं। उस समय विनय फिर बोला। “आपको कहाँ जाना है?”
अब माही बोली। “दाजीपारा।”
जीद ने भी कोई रोक-टोक नहीं की। शायद उसे लगा होगा कि, वैसे भी वह एक ऑफिसर है। इसलिए डरने की ज़रूरत नहीं है।
“मैं आपको रामबाग चार रास्ते पर उतार दूँ, तो चलेगा?” विनय बोला।
विनय की इस बात से जीद को थोड़ा अच्छा लगा हो ऐसा। “हाँ फिर हम आगे चल देंगे।”
“अगर आपको मंदिर का पुजारी दिखे तो कहिएगा।” माही की तरफ मुँह करके विनय जीद से कह रहा हो ऐसा लग रहा था। इसलिए जीद हल्की मुस्कान कर रही थी।
विनय के प्रत्युत्तर में माही बोली। “जी उसके बारे में हम बाद में बात करेंगे। वैसे भी आप ऑफिस तो आते ही हो।”
“बिलकुल जाँच लेना तू, और जुड़ ही गया।” रोम बात में टपकता हुआ बोला। सब चुप होकर उसकी तरफ आश्चर्य से देख रहे थे।
थोड़ी देर में रामबाग आ गया। जीद और माही दोनों उतर गए। जीद अब विनय की तरफ देखकर अपनी आँखों से अलविदा का इशारा किया। विनय भी उसकी उन सुंदर आँखों से नज़र नहीं हटा पा रहा था। दोनों ने एक अलग तरह की मुस्कान की। फिर विनय थोड़े विचार करता हुआ वहाँ से निकल गया। रोम यह सब जबसे गाड़ी में बैठा तबसे मतलब चंदताला मंदिर से देख रहा था। इसलिए विनय समझ गया अब, रोम को या तो सच कहना पड़ेगा या उसकी बकवास से रोज़ परेशान होना पड़ेगा।
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