The 13th Door - 4 in Hindi Horror Stories by Vijeta Maru books and stories PDF | 13वां दरवाज़ा - 4

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13वां दरवाज़ा - 4

एपिसोड 4: हवेली अब मेरे सपनों में आती है...

आरव अब हवेली से बाहर था। उसका शरीर सामान्य दिख रहा था, लेकिन कुछ ऐसा था जो पहले जैसा नहीं रहा। उसकी आँखों में हर वक़्त एक अदृश्य डर तैरता था — जैसे कुछ अब भी उसके साथ चल रहा हो।

शिवा उसे अपने गाँव के बाहर बने एक पुराने फार्महाउस में ले गया। दूर जंगलों के बीच, लोगों से कटकर, वह जगह सुरक्षित लग रही थी। पर आरव जानता था — जो उसके भीतर घुस चुका है, वो अब कहीं नहीं जाएगा।


सपनों की शुरुआत
उस रात आरव पहली बार आराम से सोने की कोशिश कर रहा था।

लेकिन जैसे ही उसने आँखें बंद कीं...
उसने खुद को फिर उसी हवेली में पाया।

हवा नहीं थी। दरवाज़े बंद थे। मगर एक कमरा खुला हुआ था — तेरहवाँ कमरा।

अंदर वही लड़की खड़ी थी। वही काले कपड़े, वही खाली आंखें।

"तेरे शरीर से तो निकल आए, लेकिन तेरे सपनों में अब हमारा घर है..."
उसकी आवाज़ गूंज रही थी।

आरव चीख कर उठा — पसीने में लथपथ।

शिवा दौड़कर आया — “क्या हुआ भैया?”

आरव काँपते हुए बोला —
“हवेली अब मेरे साथ सोती है...”


नई पहचान
अगले दिन आरव ने खुद को आईने में देखा — पर आईने में उसका चेहरा नहीं था।
वहाँ वही अधजला चेहरा दिखा, जो हवेली में आईनों में उभरा था।

वो पीछे हट गया। आँखें बंद कीं। फिर दोबारा देखा — अब सब सामान्य था।

क्या वो बच गया है या अभी भी फंसा हुआ है?

तभी बाहर एक आवाज़ आई — कोई दरवाज़ा खटखटा रहा था।

शिवा ने दरवाज़ा खोला — एक बुजुर्ग आदमी खड़ा था, माथे पर चंदन का तिलक, गले में तुलसी की माला।

“मुझे आरव से मिलना है।”

शिवा हैरान था। “आप कौन हैं?”

“मैं वो हूँ जो तेरहवाँ दरवाज़ा बंद करने की आखिरी कोशिश कर रहा है।”
नाम बताया — पंडित वासुदेव त्रिपाठी।


पंडित की चेतावनी
पंडित वासुदेव ने आरव को देखा और माथे पर हाथ रखा। उनकी आंखें भर आईं।

“तू अब अकेला नहीं है। तुझमें उसकी छाया है — हवेली की। वो तुझसे बाहर तो निकली, लेकिन तेरे अंदर बीज छोड़ गई है।”

आरव ने पूछा, “तो क्या मैं मर जाऊँगा?”

पंडित बोला, “मरना आसान होता... तू अब एक द्वार बन गया है। हर रात जब तू सोएगा, हवेली और उसका भय तुझसे जुड़ता जाएगा। और एक दिन, तुझमें वो पैदा होगा, जिसे ‘शून्य आत्मा’ कहते हैं।”

शिवा बीच में बोला, “इसका कोई उपाय नहीं है क्या?”

पंडित ने गंभीर होकर कहा, “है... लेकिन उसके लिए तुझे फिर से हवेली में लौटना होगा।”


फिर से लौटना
आरव चौंका — “क्या?? मैं वहाँ दोबारा नहीं जाऊँगा!”

पंडित बोला — “तेरा डर ही तुझे खा जाएगा। अगर तू नहीं गया, तो वो हवेली अब सिर्फ़ तुझमें नहीं, तेरे सपनों से निकलकर बाकी दुनिया में भी आएगी। और फिर हर दरवाज़ा, तेरहवाँ दरवाज़ा बन जाएगा।”

आरव ने सिर झुका लिया। “कब चलना होगा?”

“पूर्णिमा की रात को। बस वही समय है, जब हवेली की आत्मा जागती है, और सच छुपाया नहीं जा सकता।”


और भी लोग
पंडित ने अपनी जेब से एक पुरानी डायरी निकाली — उस पर लिखा था:
"अवांछित आत्माएं और तेरहवाँ रास्ता"

उसने बताया —
“इस हवेली में तुमसे पहले भी कई लोग गए थे। हर कोई गायब हो गया। पर एक नाम बचा — 'अनामिका'।”

आरव चौंका। “वही लड़की?”

“हाँ। वो कभी इंसान थी। हवेली की मालिक की बेटी। पर उसी के पिता ने उसे जिंदा दीवारों में चुनवा दिया। कहते हैं वो अंतिम बार बोली थी — ‘मुझे नहीं मारा जा सकता... मैं दरवाज़ा बन जाऊँगी।’”

शिवा बोला — “तो क्या उसे मुक्त किया जा सकता है?”

पंडित ने कहा — “मुक्ति... या विनाश। दोनों रास्ते हवेली में खुलते हैं।”


सपनों से बाहर
उस रात आरव ने नींद की गोली खाई, लेकिन फिर भी आँखें बंद करते ही हवेली आ गई।

अबकी बार वो अकेला नहीं था। हवेली के हर कमरे में लाखों आंखें उसे देख रही थीं।

“क्या तुम आओगे, आरव?”
अनामिका की आवाज़ गूंज रही थी।

आरव बोला — “हाँ। इस बार सिर्फ़ देखने नहीं, समाप्त करने आया हूँ।”

एक आईना उभरा — और उसमें लिखा था:

"अगर शरीर तेरा है, तो आवाज़ हमारी होगी..."


हवेली की हँसी
आरव की आँख खुल गई।
कमरे में कोई और था — कोई दिख नहीं रहा था, पर हँसी गूंज रही थी।

हवा ठंडी हो गई थी। खिड़की अपने आप खुल गई।

और दीवार पर उभर गया वही वाक्य —
“अब तेरा सपना नहीं, दुनिया हमारा खेल है...”

आरव ने शिवा को जगाया और बोला —
“तैयार हो जा... अगली पूर्णिमा को हम उसे यहीं ख़त्म करेंगे।”

शिवा ने डरते हुए पूछा, “अगर हम हार गए तो?”

आरव की आँखों में एक सच्ची शांति थी —
“तो मैं खुद दीवार बन जाऊँगा, ताकि कोई और उस दरवाज़े तक न पहुँचे...”


🔚 एपिसोड 4 समाप्त
(अगले एपिसोड में: "पूर्णिमा की रात... जब हवेली जिंदा हो जाती है")