ज्ञानदेव से अपने अतीत और नियति के बारे में जानने के बाद, अग्निवंश के भीतर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ था. आर्यन के प्रतिशोध की ज्वाला अब उसके हर अभ्यास, हर विचार में धधक रही थी. दिन, हफ्तों में और हफ्ते महीनों में बदल गए, और अग्निवंश ने अपनी शक्तियों को और अधिक निखारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वह जानता था कि अमरपुरी के देवों का सामना करना आसान नहीं होगा, और इसके लिए उसे अपनी हर शक्ति को उच्चतम स्तर पर ले जाना होगा.
नित्य अभ्यास और भीतर का मंथन
हर सुबह, सूर्योदय से पहले, अग्निवंश अपनी तलवार के साथ वन में चला जाता. उसकी तलवार, जो ज्ञानदेव द्वारा दी गई थी, अब उसके हाथ का विस्तार बन चुकी थी. वह हवा में बिजली की सी तेज़ी से घूमता, पत्थरों को चीरता, और अपनी आँखों से निकलने वाली ऊर्जा से पेड़ों को भस्म करता. उसके हर वार में एक दृढ़ संकल्प और एक गहरी प्यास छिपी थी – सत्य और प्रतिशोध की प्यास.
वह केवल शारीरिक अभ्यास ही नहीं करता था. ज्ञानदेव ने उसे सिखाया था कि मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति उतनी ही महत्वपूर्ण है. इसलिए, वह घंटों ध्यान में बैठता, अपनी आंतरिक ऊर्जा को ब्रह्मांडीय प्रवाह के साथ जोड़ता. इस दौरान, उसे अक्सर अमरपुरी से आने वाले ऊर्जा स्पंदन महसूस होते, जो अब उसे उतने भयानक नहीं लगते थे, बल्कि एक चुनौती की तरह लगते थे. उसके भीतर का आर्यन जागृत हो रहा था, और अग्निवंश उसे अपनी पहचान के साथ आत्मसात कर रहा था.
शाम ढलते-ढलते, अग्निवंश अपने गहन अभ्यास से लौटता. उसका शरीर पसीने से लथपथ होता, लेकिन उसका मन शांत और केंद्रित होता. आश्रम लौटकर, वह विराज लोक की पवित्र नदी में हाथ-मुँह धोता, ठंडे जल से अपनी थकावट मिटाता. उसके बाद, वह ज्ञानदेव और आश्रम के अन्य शिष्यों के साथ भोजन ग्रहण करता. विराज लोक का भोजन सादा, लेकिन पौष्टिक और प्रकृति से जुड़ा होता था. वे अक्सर भोजन के दौरान दिन भर की गतिविधियों और ब्रह्मांडीय ज्ञान पर चर्चा करते. अग्निवंश आमतौर पर चुप रहता, ध्यान से सुनता और अपने भीतर की उलझनों को सुलझाता.
अंधेरी रात की रहस्यमयी पुकार
रात गहरी हो चुकी थी. विराज लोक में शांति पसरी हुई थी, केवल दूर पेड़ों से आती झींगुरों की आवाज़ और मंद हवा की सरसराहट सुनाई दे रही थी. अग्निवंश अपनी कुटिया में गहरी नींद में सोया हुआ था. दिन भर की थकान के बाद उसे गहरी नींद आनी स्वाभाविक थी.
लेकिन तभी, आधी रात के बाद, लगभग 2 या 3 बजे के आसपास, एक अजीब सी आवाज़ ने उसकी नींद तोड़ दी. यह कोई साधारण आवाज़ नहीं थी. यह एक गहरी, प्रतिध्वनित होती हुई ध्वनि थी, जो उसके मस्तिष्क में सीधे गूंज रही थी, जैसे कि कोई उसके भीतर से बोल रहा हो. आवाज़ में एक प्राचीन ज्ञान और एक अनकही शक्ति का एहसास था.
"अग्निवंश..." आवाज़ ने धीमी, लेकिन स्पष्ट रूप से कहा, "जागो, तुम्हारी नियति तुम्हारा इंतजार कर रही है."
अग्निवंश चौंक कर उठा. उसकी इंद्रियाँ तुरंत सतर्क हो गईं. उसने चारों ओर देखा, लेकिन कुटिया में सिवा अँधेरे के कुछ नहीं था. दरवाज़ा बंद था, और कोई नहीं दिख रहा था. उसके भीतर का योद्धा जाग गया था.
"कौन हो तुम?" अग्निवंश ने दृढ़ता से पूछा, उसकी आवाज़ में थोड़ी अनिश्चितता थी, लेकिन उसका हाथ तुरंत अपनी तलवार की मूठ पर चला गया.
आवाज़ ने एक रहस्यमयी हंसी के साथ जवाब दिया. यह हंसी इतनी सूक्ष्म थी कि उसे महसूस तो किया जा सकता था, लेकिन सुना नहीं जा सकता था. "तुम मुझे नहीं जानते, अग्निवंश. लेकिन मैं तुम्हें जानती हूँ. मैं तुम्हें लंबे समय से देख रही हूँ."
अग्निवंश ने अपनी भौंहें चढ़ाईं. "क्या चाहती हो मुझसे?"
आवाज़ ने अपनी बात जारी रखी, जैसे कि अग्निवंश के सवाल का कोई महत्व ही न हो. "तुम च्यवन आओ. वहां तुम्हें सब पता चल जाएगा कि मैं कौन हूँ और क्यों तुम्हें पुकार रही हूँ. तुम्हारी प्रतीक्षा की जा रही है, अग्निवंश. वह दिव्य शक्ति, जिसके बारे में ज्ञानदेव ने तुम्हें बताया था, वहीं तुम्हें मिलेगी. वह तुम्हारी ही प्रतीक्षा कर रही है."
पुकार का रहस्य और आगामी चुनौती
अग्निवंश के दिमाग में 'च्यवन' नाम गूंज रहा था. उसने पहले कभी इस नाम के बारे में नहीं सुना था. यह विराज लोक के किसी भी ज्ञात स्थान का नाम नहीं था, या शायद वह भूल गया था. लेकिन आवाज़ में एक ऐसी शक्ति थी कि वह उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता था. उसके भीतर कुछ था जो इस पुकार का जवाब देना चाहता था. उसे लगा जैसे उसके भीतर का आर्यन इस रहस्य को सुलझाने के लिए उतावला हो रहा हो.
आवाज़ अब और धीमी होती गई, जैसे वह कहीं दूर जा रही हो. "च्यवन... याद रखना... च्यवन..."
फिर सन्नाटा छा गया. कुटिया में फिर से केवल रात की खामोशी थी, लेकिन अग्निवंश के मन में अब उथल-पुथल मची हुई थी. कौन थी वह आवाज़? च्यवन क्या था? और वह दिव्य शक्ति कैसे उससे जुड़ी थी?
अग्निवंश अपनी तलवार को कसकर पकड़े रहा. उसे यह तो समझ आ गया था कि यह कोई साधारण घटना नहीं थी. यह उसकी नियति का अगला कदम था, एक ऐसी चुनौती जो उसे अपनी जड़ों तक ले जाएगी, और उसे उस शक्ति से जोड़ेगी जिसकी उसे अमरपुरी का सामना करने के लिए आवश्यकता थी. वह रात भर सो नहीं सका, उसके मन में च्यवन और उस रहस्यमयी आवाज़ की गूंज घूमती रही.
सुबह होने पर, अग्निवंश सबसे पहले ज्ञानदेव के पास गया. "गुरुदेव," उसने कहा, अपनी रात की घटना बताते हुए, "मुझे एक आवाज़ ने पुकारा. उसने मुझे 'च्यवन' जाने को कहा."
ज्ञानदेव की आँखें थोड़ी चौड़ी हुईं. "च्यवन?" उन्होंने फुसफुसाया, जैसे यह नाम उनके लिए भी बहुत मायने रखता हो. "यह कोई साधारण स्थान नहीं है, अग्निवंश. यह विराज लोक के सबसे गुप्त और पवित्र स्थानों में से एक है, जिसे केवल कुछ ही आत्माएँ जानती हैं. यह वही स्थान है जहाँ ब्रह्मांडीय ऊर्जा का एक प्राचीन स्रोत छिपा है, और जहाँ तुम्हारी दिव्य शक्ति तुम्हें मिलेगी."
ज्ञानदेव ने मुस्कुराते हुए अग्निवंश को देखा. "लगता है तुम्हारी नियति तुम्हें अब सीधे उस रास्ते पर ले जा रही है, जिसके लिए तुम बने हो. लेकिन याद रखना, च्यवन का रास्ता आसान नहीं होगा. वहाँ तुम्हें कई परीक्षाओं का सामना करना होगा, जो तुम्हारी शक्ति, तुम्हारे विश्वास और तुम्हारे संकल्प को परखेगी."
अग्निवंश ने सिर हिलाया. वह तैयार था. नायक के रूप में उसने कई चुनौतियों का सामना किया था, और वह जानता था कि यह परीक्षा उसकी अब तक की सबसे बड़ी परीक्षा होने वाली है. उसे यह भी पता था कि इस सफर में उसे अपनी रैंकों से ऊपर उठकर कुछ ऐसा बनना होगा जो उसने कभी सोचा भी नहीं था.