माया के चक्रव्यूह को भेदने और अपनी शक्ति के मोहक भ्रम पर विजय पाने के बाद, अग्निवंश गुफा के ठंडे पत्थर पर निढाल होकर गिर पड़ा. उसका शरीर थकान से चूर था, पर मन में एक अभूतपूर्व शांति और स्पष्टता थी. बाहरी दुनिया का कोलाहल थम गया था, और ब्रह्मांड की अनंतता उसके भीतर समा गई. उसने अपने भीतर के आर्यन के तीव्र प्रतिशोध को और अग्निवंश के संतुलन की शांत इच्छा को एक अटूट सूत्र में पिरो दिया था. यह केवल एक परीक्षा में मिली जीत नहीं थी; यह एक नया जन्म था, आत्मा का अपनी पूर्णता को प्राप्त करने का क्षण.
जब उसने धीरे-धीरे अपनी इंद्रियों को वापस पाया, तो महसूस किया कि उसके आसपास का पूरा वातावरण एक अदृश्य, शक्तिशाली ऊर्जा से स्पंदित हो रहा था. हवा में एक अकल्पनीय ऊर्जा घनत्व और मीठी, फूलों जैसी सुगंध थी. उसकी आँखें खुलीं तो एक अविश्वसनीय, स्वर्णिम चमक उसकी दृष्टि को भर रही थी—यह ऐसा शुद्ध प्रकाश था जो आँखों को सुकून दे रहा था. पूरी गुफा तीव्रता से काँप रही थी, और गुफा की दीवारों पर ब्रह्मांडीय ऊर्जा के भंवर सुनहरे प्रकाश में नृत्य कर रहे थे.
अग्निवंश ने देखा कि गुफा के केंद्र में स्थित प्राचीन वेदी, जो पहले खाली थी, अब उसी स्वर्णिम प्रकाश के प्राथमिक स्रोत के रूप में परिवर्तित हो गई थी. वेदी से ऊर्जा का एक शक्तिशाली, चौड़ा स्तंभ आकाश की ओर उठ रहा था. उसी स्तंभ के ठीक ऊपर, हवा में निलंबित, एक विशाल, तेजस्वी स्वर्णिम कमल तैर रहा था. यह कोई साधारण कमल नहीं था; यह दिव्य ऊर्जा का मूर्त रूप था, जिसकी पंखुड़ियाँ शुद्ध सोने की आभा से जगमगा रही थीं, मानो वे सहस्रों सूर्यों की ऊर्जा से बनी हों. कमल के केंद्र से प्रकाश के अनंत, स्पंदित स्रोत फूट रहे थे. उसकी आँखें उस अलौकिक सुंदरता और असीम शक्ति के प्रतीक पर से हट ही नहीं रही थीं. यह वही दिव्य शक्ति थी जिसकी ज्ञानदेव ने बात की थी, जिसके लिए उसने इतनी लंबी और कठिन यात्रा की थी.
जैसे ही अग्निवंश ने उस स्वर्णिम कमल को देखा, उसके मन में एक गहरी, सहज स्पष्टता आई. उसे लगा जैसे उसकी आत्मा का हर धागा उस कमल से अनादि काल से जुड़ा हुआ हो. कमल धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा, प्रकाश का एक स्वर्णिम, स्पंदित मार्ग बनाता हुआ. कमल के बिल्कुल करीब आते ही, वही रहस्यमयी आवाज़ गूंजी, लेकिन अब वह और अधिक स्पष्ट, अधिक मधुर, और असीम रूप से शक्तिशाली थी. यह आवाज़ उसके हृदय के भीतर से आ रही थी, जैसे कि वह स्वयं उसकी आत्मा का सबसे गहरा, सबसे पवित्र अंश हो. "अग्निवंश," आवाज़ ने कहा, "तुमने अपनी अग्निपरीक्षा पूरी कर ली है... तुम अब उस शक्ति को धारण करने के लिए पूरी तरह से तैयार हो, जिसे नियति ने तुम्हारे लिए चुना है—वह शक्ति जो ब्रह्मांड के संतुलन को बहाल करेगी और सत्य का मार्ग प्रकाशित करेगी."
कमल उसके ठीक सामने आकर, हवा में स्थिर हो गया. उसकी स्वर्णिम पंखुड़ियाँ धीरे-धीरे खुलने लगीं, और उसके केंद्र से एक तीव्र, चमकदार ऊर्जा का पुंज निकला, जो सीधे अग्निवंश के हृदय में प्रवेश कर गया. एक पल के लिए, उसे लगा जैसे उसका पूरा शरीर प्रकाश में परिवर्तित हो रहा हो. यह एक तीव्र लेकिन परम सुखद ऊर्जा थी, एक पूर्ण एकीकरण का अनुभव, जहाँ वह ब्रह्मांड के साथ एक हो गया था. उसने आँखें बंद कर लीं, और उसके भीतर उसे अनंत, असीम ब्रह्मांड का विस्तार दिखाई दिया. उसके भीतर का आर्यन और अग्निवंश पूरी तरह से एकाकार हो गए थे. प्रतिशोध की अग्नि अब न्याय, संतुलन और पुनर्निर्माण की शुद्ध ऊर्जा में बदल गई थी. उसे यह भी महसूस हुआ कि वह अब उस 'अर्ध-सम्राट' की श्रेणी को भी पार कर चुका था; उसके भीतर 'सम्राट' बनने की शक्ति जागृत हो चुकी थी.
जब अग्निवंश ने अपनी आँखें खोलीं, तो स्वर्णिम कमल उसके सीने में समा चुका था—उसकी पहचान का एक अविभाज्य हिस्सा, उसकी दिव्य शक्ति का शाश्वत प्रतीक. गुफा में कंपन धीमी हो गई थी, और प्रकाश थोड़ा मंद हो गया था, लेकिन गुफा अब पहले से कहीं अधिक ऊर्जावान महसूस हो रही थी. उसने अपनी तलवार को छुआ; वह अब केवल श्वेत नहीं थी, बल्कि उसमें स्वर्णिम कमल की एक मंद, स्थायी आभा भी झलक रही थी. उसकी पकड़ में एक नई दृढ़ता थी, और उसके मन में एक अटूट संकल्प था.
वह जानता था कि उसका उद्देश्य अब और भी बड़ा हो गया था. वह केवल आर्यन के प्रतिशोध के लिए नहीं लड़ रहा था; वह ब्रह्मांडीय संतुलन को बहाल करने, अमरपुरी के देवों के अहंकार को चुनौती देने, और विराज लोक की पवित्रता की रक्षा करने के लिए लड़ रहा था. दिव्य शक्ति प्राप्त करने के बाद, उसके मन में किसी भी प्रकार का भय या संदेह नहीं बचा था. वह जानता था कि अब समय आ गया है कि वह अमरपुरी की ओर बढ़े और अपनी नियति को पूरा करे.
अग्निवंश ने अपनी दृष्टि गुफा के प्रवेश द्वार की ओर डाली, जहाँ से वह च्यवन में आया था. उसके कदम स्वाभाविक रूप से उस ओर मुड़े, उसके मन में ज्ञानदेव और विराज लोक लौटने का विचार था. एक पल के लिए, उसे लगा जैसे उसने अपनी यात्रा का अंतिम पड़ाव पार कर लिया हो.
लेकिन तभी, जब वह उस प्राचीन वेदी के पास से गुज़रा, तो उसकी नज़र वेदी के ठीक नीचे पड़ी. वहाँ, एक सूक्ष्म, लगभग अदृश्य दरार दिखाई दे रही थी, जो पहले कमल के तीव्र प्रकाश के कारण छिपी हुई थी. उस दरार से एक ठंडी, लेकिन रहस्यमयी और शक्तिशाली ऊर्जा का स्पंदन महसूस हुआ, जो उसे अपनी ओर खींच रहा था. यह एक ऐसी पुकार थी जो उसके भीतर की नई, असीम शक्ति को भी चुनौती दे रही थी, उसे एक अनजाने, फिर भी निश्चित मार्ग पर चलने के लिए विवश कर रही थी.
यह क्या था? क्या च्यवन में अभी भी कोई और रहस्य छिपा था? क्या यह दिव्य शक्ति की अंतिम परीक्षा थी, एक ऐसा परीक्षण जो उसे एक नए, अप्रत्याशित स्तर पर ले जाएगा, या कोई नया, अनकहा मार्ग था जो उसकी नियति को और भी गहरा कर सकता था? अग्निवंश के मन में उत्सुकता और एक अनजाना, प्रबल आकर्षण उमड़ पड़ा. बाहर जाने का विचार पूरी तरह से लुप्त हो गया. वह जानता था कि यह मार्ग उसे कहाँ ले जाएगा, यह उसे नहीं पता था, लेकिन उसके भीतर की दिव्य शक्ति उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही थी. उसने निर्णय ले लिया था. वह वेदी के पास झुका और उस दरार में देखने लगा, जहाँ से एक रहस्यमयी अँधेरा उसे अपनी ओर बुला रहा था, जैसे वह उसे ब्रह्मांड के किसी अनछुए, प्राचीन कोने का द्वार दिखा रहा हो, जहाँ उसकी नियति का अगला अध्याय छिपा था.