वॉशरूम
प्रकृति वॉशरूम के कोने में खड़ी थी... उसका चेहरा आंसुओं से भीग चुका था। उसने टिशू उठाना भी जरूरी नहीं समझा।
उसके अंदर उबलते हुए सवाल थे, और बाहर फूटते हुए आंसू।
वो आईने में खुद को घूर रही थी, फिर अपनी कांपती हुई आवाज़ में फुसफुसाई —
"मि. रिद्धान रघुवंशी... तुम हो कौन...? तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हो?"
वो दीवार से टिक गई, फिर दोनों हाथों से मुंह ढककर चुपचाप रोती रही...
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अगले दिन – ऑफिस
प्रकृति आज बिल्कुल अलग तेवर में थी... उसकी आंखों में आँसू नहीं, आग थी।
वो सीधा रिद्धान के केबिन की तरफ बढ़ी।
जैसे ही रिद्धान ने उसे केबिन में आते देखा — एक पल के लिए वो रुक गया...
चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आई, जैसे किसी अपने को देख लिया हो।
लेकिन अगले ही पल — वो वापस उसी ठंडे, बर्फ जैसे रुख में आ गया।
उसने नज़रें फेर लीं और कहा:
"यस, मिस शर्मा? कुछ काम है?"
प्रकृति ने तेज़ी से जाकर उसका टेबल थपथपाया और एक लिफ़ाफा उसकी तरफ बढ़ा दिया।
"आपको क्या लगता है? आप कुछ भी करेंगे और कोई कुछ नहीं बोलेगा, मि. रघुवंशी?"
रिद्धान चौंक गया — उसकी ज़ुबान जैसे एक पल को बंद हो गई।
प्रकृति ने फिर कहा:
"आपकी मुझे छूने की हिम्मत कैसे हुई?"
रिद्धान को तो बस एक बहाना चाहिए होता है गुस्से का...
वो अपनी चमकती काली शूज़ से ज़मीन को दबाता हुआ आगे बढ़ने लगा...
हर कदम के साथ उसकी आवाज़ और गहरी होती जा रही थी —
"हिम्मत...? हिम्मत की बात कर रही हो...?
तुम जानती भी हो, मिस प्रकृति शर्मा, कि मुझमें और क्या-क्या करने की हिम्मत है?"
तकनीकी तौर पर अब prakriti ,को डरना चाहिए था... लेकिन उस गूंजती भारी आवाज़ के बीच उसका ध्यान किसी और चीज़ पर अटक गया — उसकी आंखें।
रिद्धान दो क़दम आगे बढ़ा — प्रकृति दो कदम पीछे हुई...
फिर खुद को संभालते हुए, हल्की-सी घबराई आवाज़ में बोली:
"देखिए, आप मेरे पास मत आइए..."
रिद्धान अब और गुस्से में चिल्लाया:
"HOW DARE YOU TO TALK TO ME LIKE THAT!?
तुम शायद भूल रही हो — I’m the boss!"
प्रकृति ने अपनी सांस खींची, और अब पूरे आत्मविश्वास के साथ बोली:
"बॉस आप थे, अब नहीं हैं..."
(उसने टेबल पर रखे उस लिफ़ाफे की तरफ इशारा किया)
"मैंने RESIGNATION दे दिया है। अब मैं आपकी employee नहीं हूं।
सो, Now you—don’t you dare to talk to me like that."
रिद्धान की आँखें आग उगल रही थीं — लेकिन इससे पहले कि वो और कुछ बोल पाता...
कबीर अंदर आया, कुछ फाइल्स लेकर —
"रिद्धान, देख ज़रा… कुछ इन्वेस्टर्स वाले…—"
वो रुका।
वो समझ गया — यहां मामला बहुत गरम है।
कबीर को देखते ही, प्रकृति वहां से निकल गई।
रिद्धान झटके में अपनी कुर्सी पर गिरा... गुस्से में।
कबीर मुस्कुराया, और बोला:
"अब क्या कर दिया तूने...??!!"
रिद्धान अपने दांत पीसता हुआ कुर्सी से उठा —
"तुझे हर बार ऐसा क्यों लगता है कि हर चीज़ का जिम्मेदार मैं ही हूं?"
कबीर ने उसी मज़ेदार मगर तंज़ भरे लहजे में कहा:
"तो क्या तुझे लगता है कि तेरे सामने कोई और कुछ करने की हिम्मत भी करेगा?"
रिद्धान अब थोड़ा नरम पड़ा, उसकी आंखों में हलकी बेचैनी थी:
"वो जा रही है...?"
कबीर ने जानबूझकर आंखें छोटी करते हुए कहा:
"वो कौन...? नाम होगा कुछ...? और कहां
(उसने प्रकृति का इस्तीफा सामने रखा)
कबीर ने जैसे ही वो कागज देखा —
उसके चेहरे पर सोच की रेखाएं गहराने लगीं...
(कबीर के मन की आवाज़)
अगर प्रकृति यहां से चली गई तो रिद्धान उसके पीछे ज़रूर जाएगा... और अगर नहीं भी गया, तो किसी भ्रम में कुछ ऐसा कर बैठेगा जो इस के लिए नुकसानदेह हो सकता है... और अगर सच में वही लड़की है जो उसकी imagination में आती थी, तो इस बार वो सब कुछ खो देगा...
रिद्धान ने झटके से उसे टोका:
"क्या सोच रहा है?"
कबीर ने आंखें बंद कीं, और चिढ़ कर बोला:
"अगर इस ज़िंदगी में कोई गलती की है तो वो है तुझसे दोस्ती..."
रिद्धान ने उसे घूरा।
कबीर फिर उसी चुलबुले अंदाज़ में बोला:
"घूर मत… जाता हूं, संभालता हूं सब कुछ।
क्योंकि मुझे तो इस कहानी में सिर्फ इसलिए लाया गया है —
कि मैं ‘द रिद्धान रघुवंशी’ की मदद कर सकूं..."
रिद्धान उसे और घूरता रहा… और कबीर चला गया।
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अगला दृश्य – कबीर और प्रकृति का आमना-सामना
कबीर, प्रकृति की टेबल पर पहुंचा:
"प्रकृति, मेरे केबिन में आओ… मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"
दोनों अब कबीर के केबिन में बैठे थे।
"हैलो प्रकृति, मैं कबीर हूं। शायद तुम मुझे नहीं जानती...
मैं इस कंपनी में पार्टनर हूं, और उससे भी ज़्यादा important — रिद्धान मेरा सबसे अच्छा दोस्त है।"
इतना सुनते ही प्रकृति उठने लगी।
"तुम्हारा ड्रीम जॉब था ना ये...?
तुम्हें एक सक्सेसफुल रिपोर्टर बनना था?"
प्रकृति के कदम रुक गए।
कबीर आगे बोला:
**"मुझे सीधे बात करना पसंद है —
तो सुनो।
सफल रिपोर्टर बनने के रास्ते में तुम्हें बहुत लोग रोकने आएंगे…
और वो तुम्हारे सामने सिर्फ भागने का रास्ता छोड़ेंगे।
तय तुम्हें करना है —
तुम भागना चाहती हो... या लड़ना?
तुम्हारा इस्तीफा मेरे पास है —
कल तक बता देना कि उसे accept करूं या तुम लड़ने वाली हो।"**
कबीर की ये समझदारी भरी बातें सुनकर…
प्रकृति को एक नई उम्मीद मिल गई।
वो कुछ बोले बिना... वहां से निकल गई।
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उसी वक्त – उसका फोन बजा
स्क्रीन पर लिखा था — "Hospital Calling..."
फोन उठाते ही उसकी आंखें फैल गईं... और बिना कुछ सोचे वो भागता हुआ रिद्धान के पास पहुंचा।
रिद्धान एक मीटिंग में था, कबीर ने बस आंखों से इशारा किया।
रिद्धान जल्दी बाहर आया।
"रिद्धान... रिध्ही..." — कबीर ने कांपती आवाज़ में कहा।
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कौन है रिद्धि, और क्या मोड लेगी उनकी जिंदगियां?
जानने के लिए मिलते हैं अगले पार्ट में.....