When I saw a girl, I felt like this - 7 in Hindi Love Stories by Aradhana books and stories PDF | एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 7

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एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा - 7



📍फ्लैशबैक – तीन साल पहले  सेंट फ्रैंक कॉलेज

कॉरिडोर की दीवार से चुपचाप सिर टिकाए एक दुबली-पतली सी लड़की खड़ी थी — रिद्धि।
उसके हाथ में किताबें थीं, लेकिन निगाहें ज़मीन पर थीं।
कपड़े सलीके के, मगर आत्मविश्वास बिलकुल नहीं…
किसी की भी नज़रों से बचती-बचाती क्लास में घुसती और सबके बाहर निकलने के बाद ही बाहर आती।

वो अक्सर लड़कियों के एक ग्रुप से डरती थी —
अपरणा, श्वेता और ऋतिका।
हर रोज़ उसके कपड़ों का मज़ाक उड़ता…
"ओये रिद्धि! आज तो तू फुल आंटी लग रही है!"
"तेरी आवाज़ सुनके लग रहा जैसे पुरानी रेडियो बज रही हो..."
"किताबें पढ़ने से इंसान बनती है, फैशन से लड़की!"

रिद्धि के पास ना दोस्त थे, ना हिम्मत।

फिर एक दिन…
कॉलेज के कैंटीन के बाहर उसने उसे देखा —

प्रकृति।
बेल बॉटम जीन्स आने बहुत ही प्यारे फुल स्लीव टॉप में आत्मविश्वास से भरी हुई, प्यारी सी मुस्कान और हर किसी की नज़र में एक चमक।
रिद्धि जैसे रुकी ही रह गई।
प्रकृति रिद्धि से सीनियर थी, पहले वो कॉलेज की दूसरी ब्रांच में थी और फाइनल ईयर की प्रिपरेशन के लिए इस ब्रांच में शिफ्ट हुई थी

उस दिन के बाद — वो बस प्रकृति को देखने लगी।
उसके बोलने के अंदाज़ को नोट करना,
उसके कपड़े, उसकी चाल, उसकी मुस्कान…

“काश… मैं भी वैसी बन पाती…” — ये ख़्वाहिश उसकी सोच में बस गई।

वो इसी कोशिश में रहती की किसी तरह प्रकृति दिख जाए, ओर सीख ले की वो कैसे बात करती है कैसे चलती है,कुछ कुछ तो वो उसे कॉपी भी करने लगी थी,
पर फिर जब प्रकृति की पढ़ाई खत्म हुई और वो कॉलेज छोड़ गई —
रिद्धि की सारी रोशनी जैसे फिर चली गई।
वो और ज़्यादा चुप, और ज़्यादा डरी हुई रहने लगी।
प्रकृति की प्रेसेंस उसे कॉन्फिडेंस देने लगी थी, वो लड़कियां उसे ओर भी परेशान करने लगी।
फिर एक दिन।

कॉलेज के ऑफिस फोन से किसी तरह रिद्धि ने प्रकृति को कॉल किया।

"हैलो, मैं रिद्धि बोल रही हूं… शायद आप नहीं जानतीं मुझे… लेकिन मैं जानती हूं आपको।"
"मैं आप जैसी बनना चाहती हूं… मुझसे नहीं होता। क्या आप मुझे थोड़ा समय देंगी?"

प्रकृति थोड़ी हैरान हुई, पर उसकी आवाज़ में छुपा दर्द सुन पाई।

"ठीक है… कल कॉलेज के पास वाले कैफे में मिलो मुझसे।"


---

📍अगले दिन – कैफे

प्रकृति ने सामने आकर कहा —
"मैं तुम्हें जानती नहीं…"

रिद्धि की आंखें भर आईं —
"आप मुझे नहीं जानती… लेकिन मैं जानती हूं।
मैं आपकी कॉपी करना चाहती थी…
आप जैसे दिखना, बोलना, मुस्कराना सीखना चाहती थी…
क्योंकि… मैं अकेली हूं। मुझे कोई पसंद नहीं करता।"

उसने सब कुछ उगल दिया —
कैसे उसे हर दिन अपमान सहना पड़ता है,
कैसे अपरणा, श्वेता और ऋतिका उसे ‘बहनजी’, ‘दादी’, ‘राजा हरिश्चंद्र की बेटी’ कहकर चिढ़ाती हैं।

रिद्धि रोते हुए बोली:
"प्लीज़… मुझे थोड़ी क्लासेस दे दो… बस थोड़ा कॉन्फिडेंस सिखा दो।"

प्रकृति ने उसका चेहरा थामा —
"ठीक है… तुम मुझे कॉल करना, मैं तुम्हारी मदद करूंगी।"


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तीनों लड़कियां छुपकर उनकी तस्वीरें ले रही थीं। इतने बड़े कॉलेज में वो भी प्रकृति को नहीं जानती थी।

प्रकृति बात करते हुए जल्दी में निकल गई —
और गलती से अपना पर्स वहीं छोड़ गई।

रिद्धि ने सोचा —
"मैं कल उसे वापस कर दूंगी…"

उसने पर्स उठाया।
उसमें था — प्रकृति का स्कार्फ, लिपस्टिक, kajal और एक छोटा mirror.

वो पर्स लेकर वॉशरूम गई।
आज वो प्रकृति बनना चाहती थी।

उसने स्कार्फ पहना… लिपस्टिक लगाई… kajal खींचा…
और आईने में खुद को देखा।

नकली, अजीब, असहज।
लेकिन फिर भी मुस्कराने की कोशिश की।

जैसे ही बाहर निकली —
तीनों लड़कियों ने उसे घेर लिया।

"ओओओओ देखो तो ज़रा — अंदर गई थी लीला भाभी और बाहर आई लैला 2.0!"
"क्या बात है रिद्धि… अब सस्ती कॉपी भी बनने लगी है!"
"इतनी शराफत दिखा के क्या मिला? अब मेकअप से क्या बदल लेगी?"

हर एक बात उसके सीने में कील बनकर चुभ रही थी।

वो लड़खड़ा गई…
आईने में खुद की शक्ल देखी —
और उसे खुद से घिन आने लगी।
वो घर आई, अपने कमरे में।
"मैं कभी प्रकृति नहीं बन सकती…"

और उसी रात —
उसने एक कदम उठाया जो सब कुछ बदल गया।
प्रकृति ने कुछ दिन उसके फोन का इंतजार किया, पर नहीं आया, वो सामने से कॉल भी नहीं कर सकी क्योंकि रिद्धि ने कॉलेज के टेलीफोन से कॉल किया था। फिर धीरे धीरे वो इस मुलाकात को भूल गई।
रिधान उस टाइम ऑस्ट्रेलिया में अपने बिज़नस की पढ़ाई कर रहा था।
ये अब होने के बाद वो यहां आया ,उसने ओर पुलिस ने पता लगाने की कोशिश की ,लेकिन तब तक उन तीनों लड़कियों ने सबको ये बोल के डरा दिया था कि कही न कही रिद्धि को सबने ही इग्नोर किया था,ओर कोई अपनी कॉलेज डिग्री में पुलिस डाटा नहीं ऑफ करवाना चाहता था।। इसलिए सबने अपना मुंह बंद कर लिया।


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📍अभी – हॉस्पिटल (कमरा नंबर 9, ICU)

रिद्धि कोमा में है।
हर सांस मशीन के भरोसे… हर धड़कन उम्मीद से जुड़ी।
रिधान कबीर से: देख मेरी छोटी सी बहन किन चीज़ों से गुजर रही है।
रिद्धि की ये हालत देख कबीर भी भावुक हो गया।
वो बोला: तू सही बोल रहा है रिधान, प्रकृति ने ये बहुत गलत किया, हमें पुलिस की हेल्प लेनी चाहिए,
उसने अपना फोनों निकाला कमिश्नर को कॉल करने के लिए तभी रिधान ने उसका हाथ पकड़ लिया।
रुक जा......(रिधान ने कहा).. प्रकृति सच में ऐसा कर सकती, मतलब वो ,वही लड़की है, जिसे में पांच छह सालों से ढूंढ रहा हूँ।
सीन फ्रिज....

क्या प्रकृति जान पाएगी रिधान के बेइंतहा नफरत और बेइंतेहा इंतेज़ार का सच?
रिद्धि के अलावा कौन सी कड़ी है जो रिधान ओर प्रकृति को जोड़ती है??