sahj ki chai aurvo muskan in Hindi Love Stories by kajal Thakur books and stories PDF | साँझ की चाय और वो मुस्कान

Featured Books
Categories
Share

साँझ की चाय और वो मुस्कान

🌸 "साँझ की चाय और वो मुस्कान"

भाग 1: पहली झलक

हिमाचल के एक छोटे से गांव ‘मनवी’ में हर शाम एक ही चाय की दुकान पर भीड़ लगती थी — बाबा की चाय की टपरी। लेकिन एक चेहरा उस भीड़ में ऐसा था, जो हमेशा सबसे अलग लगता — अवीर। सीधा-साधा लड़का, जो रोज़ 5 बजे ऑफिस से निकलकर चुपचाप वही चाय पीता था।

एक दिन उस चाय की दुकान पर बारिश शुरू हो गई। और तभी एक लड़की आई — भीगी हुई, गुलाबी शॉल में लिपटी, माथे पर छोटी सी बिंदी और आँखों में उदासी। नाम था इरा।

अवीर ने पहली बार किसी को देखकर चाय की चुस्की छोड़ दी।भाग 2: मुस्कानों का रिश्ता

बारिश हर रोज़ नहीं होती थी, लेकिन इरा हर शाम आने लगी। न वो ज्यादा बोलती थी, न हँसती — बस एक हल्की सी मुस्कान देती और चाय पीकर चली जाती।

अवीर का दिल अब चाय से ज़्यादा इरा के इंतज़ार में लगने लगा। एक दिन हिम्मत करके उसने पूछ ही लिया —"तुम रोज़ यहाँ आती हो, कोई खास वजह?"

इरा मुस्कराई और बोली,"यहाँ की चाय नहीं, यहाँ की शांति मुझे खींच लाती है।"भाग 3: एक चिट्ठी

एक दिन इरा नहीं आई। फिर दो दिन, फिर एक हफ्ता बीत गया।अवीर बेचैन हो गया। दुकानवाले बाबा ने एक लिफाफा पकड़ा —"उस लड़की ने तुम्हारे लिए छोड़ा था।"

चिट्ठी में लिखा था:

"मैं इरा, दिल्ली जा रही हूँ। कुछ अधूरे रिश्ते हैं वहाँ, जिन्हें खत्म करना है। पर जो रिश्ता यहाँ बना, वो अधूरा नहीं लगे — इसलिए एक दिन, 3 जून को, यहीं आऊँगी। अगर तुम मिलना चाहो, तो इसी वक़्त आ जाना।"भाग 4: 3 जून

3 जून की शाम थी। बाबा की दुकान फिर से वही गुलाबी शाम में रंगी हुई थी।अवीर आया — दिल धड़क रहा था।पर इरा नहीं आई।

आख़िरी चाय पीकर जब वो उठने ही वाला था, तभी पीछे से वही जानी-पहचानी आवाज़ आई —"अबकी बार बारिश नहीं हुई… पर तुम फिर भी आए?"

अवीर मुस्कराया:"क्योंकि अब इंतज़ार बारिश का नहीं, तुम्हारा था।"❤️ कहानी का नाम: “साँझ की चाय और वो मुस्कान”

चाय, बारिश, और एक ख़ामोश रिश्ता — बस कुछ लव स्टोरीज़ कहे बिना भी पूरी हो जाती हैं

"साँझ की चाय और वो मुस्कान" के दूसरे भाग की ओर…जहां बारिश थमी तो थी, पर दिलों की हलचल और भी तेज़ हो गई थी।

🌸 भाग 2: सन्नाटे में बोले अल्फ़ाज़

3 जून की शाम को इरा लौट आई थी। वही हल्की गुलाबी शॉल, वही आंखों में गहराई — पर इस बार उसकी मुस्कान थोड़ी लंबी थी… थोड़ी सच्ची।

अवीर ने कुछ नहीं पूछा, इरा ने कुछ नहीं बताया।दोनों ने साथ बैठकर चाय पी।लेकिन इस बार, दो चाय के प्यालों के बीच चुप्पी नहीं थी — एक सुकून था।

अचानक इरा बोली —"तुम जानते हो, दिल्ली में क्या अधूरा था?"

अवीर ने सिर हिलाया —"नहीं… पर सुनना चाहता हूं।"

इरा ने गहरी साँस ली और कहा:"वहाँ मेरा एक रिश्ता था — नाम का प्यार, मतलब की मुलाक़ातें। मैं किसी की आदत बन गई थी… और वो मेरा समय खा रहा था। पर यहाँ, तुम्हारे साथ मैं खुद को महसूस करती हूँ — जैसे मैं भी किसी कहानी की नायिका हो सकती हूँ…"

अवीर चुपचाप उसकी आँखों में देखता रहा।फिर उसने धीरे से कहा —"मैं चाहूं तो तुम्हारी कहानी का पन्ना बन सकता हूं… बस फाड़ा न जाए कभी।"

इरा हँस पड़ी — पहली बार खुलकर।बोली —"तुम पन्ना नहीं हो… तुम तो वो हिस्सा हो जो कहानी की शुरुआत से ही होना चाहिए था, पर देर से आया।"अगले कुछ दिन

अब हर शाम की चाय साथ पी जाती थी।अवीर उसे गांव की पुरानी गलियाँ दिखाता, इरा उसे अपनी फोटोग्राफी की कहानियाँ सुनाती।बिना किसी इज़हार के, उनका प्यार हर दिन गहराता गया।

एक शाम इरा बोली —"अगर मैं एक दिन फिर चली जाऊँ तो?"

अवीर मुस्कराया —"तो मैं उसी शाम का इंतज़ार करता रहूंगा… जब तुम फिर वापस आओगी। और उस दिन बारिश ज़रूर होगी।"

इरा की आंखें भर आईं…पर ये आँसू कमज़ोरी नहीं थे — ये भरोसे की चमक थी।💫 अगला भाग — भाग 3: 'वक़्त के उस पार'

जहाँ इरा को जाना ही पड़ता है… पर क्या वो लौटती है?और क्या अवीर इंतज़ार कर पाता है?