नीचे दो बच्चों — रिया और आदित्य — की लगभग 2000 शब्दों में पर्यावरण बचाने की एक प्रेरणादायक हिंदी कहानी प्रस्तुत है:
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🌳 शीर्षक: "हरी धरती के दो रक्षक"
लेखक: विजय शर्मा ऐरी
स्थान: अमृतसर, पंजाब
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भाग 1: दौलत और जिम्मेदारी
रिया और आदित्य, दोनों बेहद अमीर परिवारों में जन्मे थे। आदित्य के पिता एक बड़े उद्योगपति थे और रिया के माता-पिता एक नामचीन वैज्ञानिक जो पर्यावरण और जैव तकनीक के क्षेत्र में शोध किया करते थे। बचपन से ही दोनों बच्चों को हर सुविधा उपलब्ध थी — आलीशान बंगले, महंगे वाहन, और पढ़ाई-लिखाई के लिए विश्वस्तरीय स्कूल। मगर एक चीज़ जो दोनों में साझा थी — वह थी पर्यावरण के प्रति लगाव और जिम्मेदारी का भाव।
एक दिन रिया और आदित्य स्कूल से लौटते हुए देखते हैं कि स्कूल के ठीक सामने एक पुराना तालाब है, जो कचरे और गंदगी से पूरी तरह भर गया है। कभी यह तालाब इलाके की शान हुआ करता था, मगर अब यह दुर्गंध और बीमारियों का अड्डा बन गया है। रिया और आदित्य रुक जाते हैं और तालाब को देखकर दुखी हो जाते हैं।
रिया कहती है, "आदित्य! अगर यह तालाब इसी तरह रहा तो आने वाली पीढ़ियाँ इसका नाम तक नहीं जानेंगी। हमें कुछ करना होगा!"
आदित्य सहमति में सिर हिलाते हुए कहता है, "हां रिया! हमें अपनी दौलत और साधनों का उपयोग पर्यावरण को बचाने में करना होगा।"
भाग 2: सोच से क्रियान्वयन तक
दोनों बच्चों ने फैसला किया कि वे तालाब को बचाने का बीड़ा उठाएंगे। आदित्य ने अपने पिता से बात की और रिया ने अपनी माँ से सलाह ली। रिया की माँ, जो एक पर्यावरण वैज्ञानिक थीं, बच्चों में यह जज्बा देखकर बेहद खुश हुईं। उन्होंने बच्चों को पर्यावरण बचाने के वैज्ञानिक तरीकों से अवगत कराया — जैसे:
बायोरिमेडिएशन (Bioremediation): जिसमें विशेष बैक्टीरिया या पौधों का उपयोग कर मिट्टी और पानी से प्रदूषण कम किया जाता है।
वेटलैंड कन्स्ट्रक्शन: कृत्रिम दलदली स्थानों का उपयोग कर प्राकृतिक सफाई में सहायक तकनीक।
रिन्यूएबल एनर्जी उपकरण: सौर और पवन ऊर्जा से संचालित पम्पिंग सिस्टम से तालाब में पानी की आवाजाही सुनिश्चित करना।
वेस्ट मैनेजमेंट: कचरे का वैज्ञानिक ढंग से निष्पादन करना, जैसे रीसाइक्लिंग और कंपोस्टिंग तकनीक का उपयोग।
रिया और आदित्य पूरी लगन से जुट गए। उन्होंने स्कूल में एक पर्यावरण क्लब बनाया और बच्चों को जोड़ा। आदित्य के पिता ने आवश्यक संसाधनों और धन की व्यवस्था की तो रिया की माँ ने तकनीकी मार्गदर्शन किया।
भाग 3: अभियान की शुरुआत
तालाब के आसपास बच्चों और स्वयंसेवकों ने सफाई अभियान शुरू किया। सबसे पहले तालाब से प्लास्टिक, कचरा और गंदगी निकाली गई। इसके बाद रिया और आदित्य ने अपनी वैज्ञानिक विधियों को लागू किया:
तालाब में विशेष माइक्रोबियल कन्सोर्टिया डाला गया, जो तालाब में मौजूद रासायनिक तत्वों और भारी धातुओं को निष्क्रिय करने लगे।
तालाब में विशेष पौधे जैसे जलकुंभ, कास और कमल लगाए गए, जो प्राकृतिक तरीके से जल को शुद्ध करने लगे।
आदित्य के पिता ने तालाब के चारों ओर सोलर पैनल और एक छोटा सा विंडमिल स्थापित किया, जिससे तालाब में लगे वायु पम्पिंग सिस्टम को संचालित किया जा सके।
भाग 4: कठिनाइयाँ और जीत
हालाँकि यह काम आसान नहीं था। कुछ लोगों ने रिया और आदित्य का मजाक बनाया कि "दो बच्चे तालाब बचाने चले हैं!" मगर दोनों बच्चों का जज्बा अडिग रहा। वे सुबह स्कूल से पहले और शाम को स्कूल के बाद तालाब की सफाई और तकनीकी प्रक्रियाएँ पूरी करने आते रहे। धीरे-धीरे परिणाम सामने आने लगे — तालाब में दुर्गंध कम होने लगी, पानी में जीवन लौटने लगा और पक्षियों का लौटना शुरू हुआ।
तालाब में पहले मछलियाँ कम दिखाई देती थीं, अब तालाब में तैरती मछलियाँ, आसपास बैठने वाले पक्षी और बच्चों की चहचहाहट लौटने लगी।
भाग 5: प्रेरणा और बदलाव
रिया और आदित्य के प्रयासों की खबर पूरे शहर में फैलने लगी। स्थानीय मीडिया और प्रशासन दोनों बच्चों से मिलने पहुँचे। दोनों बच्चों ने मीडिया से कहा:
> "हमने यह किया है ताकि आने वाली पीढ़ियाँ एक साफ़-सुथरी और हरी-भरी दुनिया में साँस ले सके। यह काम एक व्यक्ति या संस्था का नहीं है, यह पूरी मानवता का कर्तव्य है।"
शहर में यह अभियान एक आदर्श बन गया और अन्य स्कूलों और बच्चों ने भी अपनी-अपनी कॉलोनियों में तालाब और पार्कों को बचाने के अभियान शुरू कर दिए। रिया और आदित्य ने अपनी दौलत और साधनों का उपयोग पर्यावरण संरक्षण में किया, साथ ही वैज्ञानिक सोच से यह प्रमाणित किया कि अगर संसाधनों और तकनीक का संयोजन किया जाए तो बड़े से बड़े पर्यावरण संकट का समाधान संभव है।
भाग 6: जीवन का सबक
समय बीतने के साथ-साथ रिया और आदित्य बड़े हो गए। वे दोनों पर्यावरण वैज्ञानिक बने और देश-विदेश में पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा फैलाने लगे। उन्होंने जो बचपन में किया, वह एक साधारण अभियान से कहीं आगे बढ़कर पूरी मानव जाति के लिए एक आदर्श बन गया।
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समापन
रिया और आदित्य की यह कहानी हमें सीख देती है कि:
> दौलत तब सार्थक है जब वह दूसरों और पर्यावरण के हित में खर्च हो।
वैज्ञानिक सोच और जज्बे से हर मुश्किल का समाधान संभव है।
छोटे कदम और नेक इरादे एक बड़े बदलाव का आधार होते हैं।
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लेखक का नाम: विजय शर्मा ऐरी
स्थान: अमृतसर, पंजाब,143102
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