सबकी नजर महल के बाहर मैन गेट पर गई। अगस्त्य रात्रि को अपनी मजबूत बाहों में उठाए चला आ रहा था। चेहरा सख्त, आंखों में गुस्से से ज्यादा कुछ छिपा हुआ।
एवी (तेज़ी से दौड़ता हुआ): “रात्रि... क्या हुआ इसे? तुमने क्या किया इसके साथ?”
अगस्त्य (गुस्से से): “रास्ता दोगे या यहीं छोड़ दूं इसे?”
वो रात्रि को अंदर लेकर आया और उसे एक सोफे पर लिटा दिया। सब घबराए हुए उसकी हालत देख रहे थे।
अर्जुन (परेशान होकर): “भाई, आपको ये कहां मिली?”
अगस्त्य: “कुएं के पास पड़ी थी। अकेली... बेहोश।”
धीरे-धीरे रात्रि को होश आया। उसकी आंखें धीरे से खुलीं।
रात्रि (धीमे स्वर में): “मैं यहाँ कैसे...?”
नेहा (फौरन पास आकर): “मैम, आप ठीक हैं न?”
रात्रि: “हम्म... पर मैं यहां कैसे आई?”
एवी: “तुम वहां पहुंची कैसे?”
रात्रि (धीरे-धीरे याद करते हुए): “मुझे तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, तो मैं बाहर बैठ गई थी। तभी कुछ आवाज़ आई... मैंने पीछे चलना शुरू किया... लेकिन वापस आने का रास्ता भूल गई। वहां एक कुआं है... मैं उसके पास बैठ गई... तभी मुझे ऐसा लगा किसी ने मुझे छुआ... उसके हाथ मेरे बालों को हटाकर गर्दन तक जा रहे थे... फिर मुझे कुछ याद नहीं।”
अर्जुन: “शायद तुम डिहाइड्रेटेड हो गई थी, और कुछ नहीं।”
रात्रि (कन्फ्यूज और असहज): “पर मुझे यहां लाया कौन?”
अगस्त्य (झल्लाते हुए): “अब इसकी पड़ी है तुम्हें? सबके साथ रहना मुश्किल था?”
रात्रि (चौंककर): “तुम मुझसे इस लहजे में बात कैसे कर सकते हो? और वैसे भी, तुम तो इन्वाइटेड भी नहीं थे। फिर आए क्यों?”
अर्जुन: “हाँ भाई, आप यहां क्यों आए?”
अगस्त्य (गुस्से से ब्लूप्रिंट ज़मीन पर फेंकते हुए): “इसके कारण!”
रात्रि (जुका कर देखती है): “ये... मेरी स्क्रिप्ट?”
रात्रि (आंखें सिकोड़ते हुए): “How dare you?”
अगस्त्य: “१५० करोड़ का बजट दिया है प्रोडक्शन हाउस ने... और तुम ये कहानी दिखा रही हो मुझे? Seriously?”
रात्रि (कड़ा लहजा): “तो अपनी टीम से पूछो न। मेरी कंपनी ने बेस्ट स्टोरी दी थी, फैसला उनका था!”
अर्जुन (नर्मी से): “भाई, आपने कहा था ये प्रोजेक्ट मैं हैंडल करूंगा, तो फिर आप...?”
अगस्त्य (तेज कट मारते हुए): “नाम Maan Productions का है। और वही फ़ाइनल डिसीजन लेगा।”
अगस्त्य (जोर देकर): “Who finalized this story? लास्ट टाइम पूछ रहा हूं।”
एवी (तेज़ी से): “मैंने!”
अगस्त्य (ठंडी हँसी में): “Congratulations. क्योंकि अब ये कहानी वर्क नहीं करेगी। इसलिए इतनी दूर ड्राइव करके आया हूं... बताने।”
एवी: “और शायद तुम भूल रहे हो, मैं इस फिल्म का को-प्रोड्यूसर भी हूं। और दोनों प्रोड्यूसर ने कॉन्ट्रैक्ट साइन किया है। मूवी तो इसी कहानी पर बनेगी। तुम्हें रहना है या जाना है — चॉइस तुम्हारी है।”
दोनों एक-दूसरे की आंखों में झांक रहे थे, जैसे कोई पुराना हिसाब अभी बाकी हो।
अर्जुन (सिचुएशन सँभालते हुए): “Enough! आज के लिए पैकअप। सब घर चलो।”
नेहा: “पर हमारी बस तो खराब है...”
अगस्त्य (कड़कता हुआ): “एक दिन नहीं संभाला गया तुम लोगों से। फिल्म क्या बनाओगे?”
उसने फोन निकाला, नंबर डायल किया।
अगस्त्य: “लोकेशन भेज रहा हूं... वहां एक बस भेजो।”
कॉल कट।
संजय (शक भरी नजरों से): “सर... आपके फोन में नेटवर्क कैसे है?”
अगस्त्य (भौंहें चढ़ाते हुए): “क्या मतलब?”
संजय: “हम सबके फोन... लैपटॉप... सीमा पार करते ही बंद हो गए। नेटवर्क गायब। पर आपका फोन पूरी तरह चालू है।”
रात्रि और एवी ने चौंककर एक-दूसरे की तरफ देखा... फिर एक साथ अगस्त्य की ओर।
एवी (तेज़ी से फोन छीनते हुए): “ये कैसे possible है?”
अगस्त्य (फोन झटकते हुए): “तुम्हारी problem क्या है?”
मैसेज आता है — गाड़ी कल से पहले नहीं आ सकती।
सब: “अब कैसे जाएंगे?”
अर्जुन: “भाई, आप अपनी कार से आए न... आप ही ले चलिए प्लीज़।”
अगस्त्य: “इतने लोग एक कार में? तुम्हारा दिमाग ठीक है?”
सब (एक सुर में): “सर, प्लीज़!”
वो चुप रहा, फिर हार मानकर सिर हिलाया।
सभी जैसे-तैसे कार में समा गए। लड़कियां आगे बैठीं — रात्रि अगस्त्य के ठीक बगल में। उसके खुले बाल बार-बार अगस्त्य के गाल से टकरा रहे थे।
अगस्त्य (धीरे-धीरे बड़बड़ाते हुए): “इन बालों ने तो जान ही ले रखी है...”
दो बार बाल हटाए... फिर बस चुप हो गया। अब उसे वो टच बुरा नहीं लग रहा था। उल्टा, कुछ अजीब सा सुकून था।
उसकी नज़र धीरे से रात्रि पर गई। आंखें बंद, चेहरा धूप में दमक रहा था, हवा में उड़ते बाल और झुमके की खनक... उसकी सांसें थोड़ी भारी हो गईं।
फिर अचानक गाड़ी का बैलेंस बिगड़ा — वो झटके से संभला।
एवी (तेज़ी से): “इससे अच्छा तो एक दिन रुक जाते... कम से कम जिंदा तो पहुंचते।”
अगस्त्य (गाड़ी रोककर चिल्लाया): “क्या तुम अपने बाल बांधोगी?”
रात्रि (हैरानी से): “मैं...? क्यों?”
अगस्त्य (चिढ़ते हुए): “नहीं मैं! Obviously तुम!”
रात्रि (हाथ उठाकर दिखाते हुए): “मेरा हाथ भी नहीं हिल रहा... बांधूं कैसे?”
उसने अचानक रात्रि का चेहरा हल्के से अपनी ओर घुमाया। बालों को समेटा... पेन निकाला और जैसे-तैसे एक messy सा बन बनाकर पेन अटका दिया।
अगस्त्य: “अब अगर बाल खुले... तो तुम्हें कार से उतार दूंगा।”
रात्रि (मिरर में बाल देखकर): “ये बाल बांधे हैं या घोंसला बना दिया?”
अगस्त्य (हल्की सी मुस्कान दबाते हुए): “कम से कम अब सांस तो ले पा रहा हूं।”
रात्रि (धीरे से मुस्कुराते हुए): “और मैं सोच रही थी... तुम सिर्फ गुस्से वाले हो।”
अगस्त्य (साइड देखकर): “ग़लत सोचती हो तुम... बहुत कुछ जानना बाकी है।”
रात्रि ने उसकी आंखों में देखा... कुछ नर्म, कुछ अजनबी, कुछ अपना सा।
वो चुप रही। पर दिल की धड़कनें तेज़ थीं।