सब अपने-अपने ऑफिस पहुंच चुके थे।
रात्रि घर लौटी तो उसके चेहरे पर थकान के साथ-साथ वो डर और उलझन भी थी, जो उस रात की घटना ने उसके मन में भर दी थी।
मेघा (मुस्कुराकर, प्यार से): “आ गई मेरी बच्ची... बहुत थक गई होगी न?”
रात्रि (भीगी आंखों से): “I missed you, Maa...”
इतना कहकर वो सीधा अपने कमरे में चली गई। दरवाजा बंद किया और बिस्तर पर लेटते ही वही कुएं वाली जगह, वो साया, और अगस्त्य की आंखें... सब कुछ आंखों के सामने घूम गया।
दूसरी तरफ एवी भी अपने घर पहुंचा, लेकिन उसका चेहरा पहले जैसा शांत नहीं था। एक अलग ही बेचैनी थी, जो उसकी आंखों में साफ झलक रही थी।
डैड (सख्त लहजे में): “एवी, तुम्हें क्या हो गया है? उस एक्सीडेंट के बाद से तुम बिलकुल बदल गए हो। सब कुछ छोड़कर इस प्रोजेक्ट पे क्यों फोकस कर रहे हो? और ये प्रोड्यूसर बनने का भूत...”
एवी (आँखें बंद कर के, थके स्वर में): “डैड प्लीज़... अभी नहीं... अभी मैं इन बातों के मूड में नहीं हूं। आप जाइए।”
डैड निराश होकर चुपचाप चले गए। एवी उठकर खिड़की के पास गया।
एवी (खुद से बड़बड़ाते हुए): “डैड, आपको कैसे बताऊं... ये बात तो मैं... उसे भी नहीं बता पाया...”
उसकी आंखों में आंसू थे।
एवी (धीमे, टूटी आवाज में): “रात्रि..... इस बार चाहे कुछ भी हो जाए... पहले जैसा कुछ नहीं होने दूंगा...”
उधर अगस्त्य अपने घर में बेचैन टहल रहा था।
अगस्त्य (झुंझलाकर): “मैं इस मूवी को कैसे रोकूं? ये सब तो पागल हो चुके हैं...”
फिर अचानक रात्रि का चेहरा उसकी आंखों में उभरा — वो झूमता झुमका, वो झुके बाल... उसकी सांसें गहरी हो गईं। लेकिन वो खुद को झटके से रोकता है।
अगस्त्य (अपने आप से, गुस्से में चिल्लाते हुए): “नहीं! बिल्कुल नहीं! मिस रात्रि मित्तल... तुम मुझसे दो कोस दूर ही रहना!”
सुबह हुई।
सब एक ही ऑफिस पहुंचे थे — रात्रि, एवी, अर्जुन, मलिश्का, और बाकी टीम।
हॉल के अंदर हलचल थी।
रात्रि (कन्फ्यूज होकर): “ये क्या हो रहा है?”
एवी: “हां, ये सब किस बारे में है?”
अर्जुन (थोड़ा घबराकर): “इनमें से कोई भी अब इस मूवी में काम नहीं करना चाहता...”
एवी (चौंकते हुए): “क्या? क्यों भाई... ऐसा क्या हो गया?”
स्टाफ मेंबर: “सर... वो लोकेशन... ठीक नहीं लगी। बहुत डरावनी थी... अजीब vibes थीं वहाँ...”
एवी (तेज़ स्वर में): “कल तक तो सब चुप थे, आज अचानक...?”
उसकी नजर अगस्त्य पर पड़ी। अगस्त्य के चेहरे पर एक हल्की सी चमक थी — बहुत subtle, लेकिन एवी समझ गया।
एवी (धीरे से अर्जुन से): “अर्जुन... हमारे पास स्टाफ की कमी है क्या?”
अर्जुन (थोड़ा कन्फ्यूज़ होकर): “नहीं तो... पर ऐसा क्यों पूछ रहे हो?”
एवी (सख़्त होकर, पूरे हॉल में): “इन सबका कॉन्ट्रैक्ट टर्मिनेट कर दो। और इस महीने की सैलरी किसी को नहीं मिलेगी। जिसे छोड़कर जाना है, वो रेजिग्नेशन दे सकता है... और दरवाज़ा उधर है।”
सन्नाटा छा गया।
एवी अपने रूम में चला गया। रात्रि भी पीछे-पीछे गई।
रात्रि (गुस्से से): “Mr. AEVI Sehgal! आपका दिमाग खराब है क्या? एक साथ इतने सारे लोगों को निकाल दोगे?”
एवी चुपचाप उसकी आंखों में देखता रहा। फिर धीरे से उसके करीब आया...
एवी (बहुत नर्म, धीमी आवाज में): “Shhhhhhhh...”
रात्रि थोड़ा पीछे हट गई, उसकी धड़कनें तेज़ हो गई थीं।
एवी (धीरे से): “ऐसा कुछ नहीं होगा... चलो मेरे साथ...”
वो उसे लेकर अगस्त्य के केबिन के पास पहुंचा।
केबिन के अंदर से आवाजें आ रही थीं...
स्टाफ मेंबर (डरे स्वर में): “सर, आपने कहा था कि हमें एक्स्ट्रा बोनस मिलेगा... अब तो हमारी नौकरी ही चली जाएगी। आपने ही मना करवाया था हमें इस मूवी से...”
रात्रि ने झटके से गेट खोल दिया।
अगस्त्य (रुकते हुए): “तुम?”
रात्रि (तेज़ी से): “हाँ, मैं! क्यों? बुरा लग रहा है कि तुम्हारी प्लानिंग फेल हो गई?”
सब चुपचाप निकल गए।
रात्रि (तीखे स्वर में): “तुम कौन हो? और क्या चाहते हो?”
अगस्त्य (सख़्ती से): “जो तुम सोचो वही समझ लो... मुझे बहस नहीं करनी...”
इतने में बाकी लोग और अर्जुन भी अंदर आ गए।
अर्जुन: “ये सब क्या चल रहा है?”
रात्रि (अगस्त्य की ओर देखकर, तीखी मुस्कान के साथ): “अब समझ में आया... ये सब क्यों हो रहा है। तुम अपने भाई से जलते हो... कहीं वो तुमसे आगे न निकल जाए!”
अर्जुन (हैरानी से): “भाई... आपने?”
एवी (नज़रे झुकाए): “हां, अर्जुन... यही हुआ है।”
अर्जुन बहुत आहत था। कुछ नहीं बोला, बस वहां से चला गया।
रात्रि अपने रूम में थी। एवी वहीं खड़ा था।
रात्रि (थकी हुई आवाज में): “उस इंसान को दिक्कत क्या है?”
एवी (धीरे से, उसकी ओर बढ़ते हुए): “तुम चिंता मत करो...”
वो उसे गले लगाना चाहता था। हाथ बढ़ाए ही थे कि दरवाज़ा खटखटाया गया।
रात्रि (हल्के स्वर में): “हाँ अर्जुन... आओ।”
एवी (धीरे से, रुकते हुए): “तुम्हारे भाई को सीरियसली तुमसे कोई प्रॉब्लम है...”
अर्जुन: “मैं कुछ कहने नहीं आया... बस बताने आया हूं — टीम तैयार है। लोकेशन वही रहेगी। हम कल सुबह निकलेंगे।”
वो चला गया।
अर्जुन अब अगस्त्य के पास गया। आंखों में ठहराव था, लेकिन आवाज़ में दूरी।
अर्जुन: “भाई, जो हुआ... उस पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता। बस एक रिक्वेस्ट है — आप इस मूवी से दूर रहना।”
अगस्त्य (हिचकते हुए): “अर्जुन... मैं बस...”
अर्जुन (बिना सुने, ठंडी नजरों से): “Goodbye, bhai.”
रात हो चुकी थी।
।।।।।।।।।।।।।।।।।
“तुम यहां से भाग जाओ... मैं सब संभाल लूंगा!”
“नहीं अविराज! मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी...” प्रणाली की आवाज़ भर्रा रही थी।
अविराज (उसके गालों को छूते हुए): “मैं कहीं भी रहूं... तुमसे हमेशा प्यार करता रहूंगा। और याद रखना, अविराज... सिर्फ प्रणाली का है।”
रात्रि की आंख खुल गई।
उसकी आंखों में सचमुच आंसू थे।
रात्रि (धीरे से): “फिर... एक सपना...?”
पर अब उसे रुकने का समय नहीं था। वो जल्दी से तैयार हुई और ऑफिस निकल गई।
ऑफिस पहुंचते ही अर्जुन ने कहा:
“मिस मित्तल, आप आ गईं। चलिए... हमें निकलना है।”
रात्रि (चौंक कर): “कहाँ?”
अर्जुन (मुस्कुराकर): “आज से शूटिंग शुरू हो रही है।”
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