देर रात जगाने के कारण आज शरीर आलस के सौम्य अहसास से लिपटा था और पलकों पे मायावी सपनो की धुंध छाई हुई थी।बीच बीच में आंखे खुलती मगर फिर नींद की लोरी में गुम हो जाती।
जब आंख खुली तो घड़ी में दस बज रहे थे,रोज लेट होने के डर से शरीर की आदत पड़ गई थी हड़बड़ाहट में उठने की, अचानक हड़बड़ा के उठा फिर याद आया कि आज तो दफ्तर में छुट्टी है।
थोड़ी देर इधर उधर कर के जब कुछ न सुझा की क्या करूं तो उपन्यास ले के बैठ गया , मगर मन कुछ खास लगा नहीं और दोपहर हो गया था।
सूरज की बौखलाहट से धरती तड़प रही थी, और भूख से मेरा पेट।
धरती की तड़प मैं नहीं मिटा सकता था, लेकिन पेट की तड़प तो मिटाई जा सकती थी —
सो, मैं कुछ खाने निकल पड़ा।
बाहर आया तो महसूस हुआ —
कभी हवा एकदम मौन हो जाती,
और कभी धरती की तड़प से अकुलाकर
गर्मजोशी से बहने लगती।
उसकी मार भी अब शरीर को सहनी पड़ रही थी।
पेट की भूख ने मन से धरती की पीड़ा छीन ली।
मगर जैसे ही पेट भरा, लगा किसी ने ज़ोर की चपत मार दी —
पहले हल्की, फिर तीखी —
धूप की चपट शरीर से ज़्यादा अंतरात्मा पर पड़ रही थी।
मैं घर की ओर लौटने लगा,
और मन — ज़िंदगी, धरती, और सूर्य को कोसने लगा।
तभी मेरी नज़र एक हमउम्र नौजवान पर पड़ी —
पसीने से लथपथ, फटी बनियान पहने,
पीठ पर भारी-भरकम लकड़ियों की गठरी उठाए
वो सड़क के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चलता जा रहा था।
मेरे बेबस पैर और लज्जित भरी आंखे वही थम गई।
मन हुआ, उसके पास जाकर कुछ सांत्वना के शब्द कहूं —
पर सहसा रुक गया।
ख्याल आया —
शब्द यहां अपमान होंगे।
रंग सावला था, शरीर पतला —
मगर गठीला और मेहनत से तराशा हुआ।
हड्डियाँ साफ़ झलकती थीं,
पर उनमें कोई कमजोरी नहीं,
बल्कि एक गहरी मज़बूती थी।
उसकी आंखें भावशून्य थीं,
मगर उनमें कोई कड़वाहट नहीं थी।
ललाट पर शिकन नहीं,
पसीने ने मानो सारी चिंताएं धो दी थीं।
चेहरे पर न क्रोध था, न ही शिकायत।
जब वह लकड़ी उठाता तो उसके पैर लड़खड़ाते,
खुद को संभालता और
कुछ बुदबुदाता —
शायद खुद को प्रोत्साहित करता।
जब लकड़ी रखता, तो माथे से पसीना पोंछता,छोटी से मुस्कान उसके चेहरे पे छा जाती
और उसकी आंखें चमक उठती —
उस रोशनी के सामने
लकड़ी किसी युद्ध में पराजित,
बेबस, दयनीय और कमजोर सैनिक-सी लगती।
उसकी चाल में आत्मगौरव था —
एक साधारण युवक,
पर हर कदम पर एक असाधारण जज़्बा।
मैं निस्तब्ध बस खड़ा रहा —
मेरी जिंदगी कितनी असंतोष से भरी है,
मेरी चाह से निकली कितनी शिकायतें है,
मुझे अपने काम पे कितना गौरव था,
मगर आज इस सादगी भरी परिश्रम ने
मेरे सारे भ्रम तोड़ दिए
मेरे मानस पटल मेरे मेरी जिंदगी की खोखली तस्वीर मेरे
सामने गहन वेदना के साथ उभर रही थी।
उसकी मदद तो न कर सका,
मगर तब तक धूप की चपट खाता रहा
जब तक उसकी मेहनत, दृढ़ता और जुझाउ मन
मेरे भीतर एक गूंज बनकर नहीं उतर गई।