Ishq Baprwah Nahi Tere... - 1 in Hindi Love Stories by Santoshi 'katha' books and stories PDF | इश्क़ बेपरवाह नहीं तेरे.. - 1

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इश्क़ बेपरवाह नहीं तेरे.. - 1

Ch.1__

सुबह का वक़्त___

"वैशू... वैशू... यार मेरा पर्स कहा है, जल्दी करो मुझे देर हो रही है "  

एक लड़का जो आइने के सामने खड़ा ऑफिस के लिए तैयार होता हुआ तेज आवाज में बोला

" अरे... आ रही हूं बाबा तुम तो सुबह सुबह चिल्लाना शुरू कर देते हो, सब सामान यही आस पास होता है। पर नहीं सर को सारी चीज़ हाथ में चाहिए... " 



एक लड़की हाथ में टिफीन का डब्बा पकड़े कमरे में बड़बड़ाती हुई आई और कबड से बॉलेट निकाल कर लड़के के हाथ में रख दिया।



" तुम ना वैभव... बस तुम्हें हमेशा अपने ऑफिस भागने की जल्दी होती है। पता नहीं वाह कौन सी अप्सराएं घुम रही है। तुम्हें तो मेरी बिल्कुल परवाह नहीं है। जितना ख्याल तुमने अपने ऑफिस का रखते हो उसका 20% भी मुझे दो तो कुछ बात बने, तुम ना बिल्कुल बदल गए हो... " 



वैशाली मुंह बनाते हुए उसका बैग और कोट निकालती हुई बड़बड़ाते हुए शिकयत कर रही थी। जिसे वो बिस्तर पर बैठा जुते पहनता सुन रहा था।



" वैसू, वैसू...! " __ वैभव फिर पुकार पड़ा 


" अब क्या है..?" ___ वैशाली झलाकर बोली 


 वैभव हाथ में टाइ लिए खड़ा था। लड़की एक पलकों आंखें बंद कर ली।


" तुम ना एक टाइ भी नहीं बांध सकते अपनी... ( उसके करीब आ उसके गले में टाई बांधते हुए ) पता नहीं इतना बड़ा ऑफिस कैसे संभालते हो... "



वैभव मुस्कुराते हुए वैशाली के कमर को पकड़ता उसे अपने करीब कर लेता है। जिसपर वैशाली... उसे देख मुस्कुरा दी। 

" वैभव क्या...? " वैशाली थोड़ी शर्माई 


" अरे, तुमने ही तो कहा, मैं प्यार नहीं करता तुमसे, परवाह नहीं करता... तो बस शुरुआत प्यार से कर रहा हूं..." 

वैभव उसके कान में फुसफुसाया, और हल्के से कान को चुम लिया। वैशाली को गुदगुदी सी हुई।



" तुम ना, रहने दो ऐसी हरकतों से तुम मुझे मना नहीं सकते... तुम सच्ची बदल गए हो तुम्हें याद है। जब हम कॉलेज में थे, तो घंटों बातें किया करते थे। घुमने जाया करते थे, फिल्म देखा करते थे। पर अब, अब तुम्हें सिर्फ अपने काम और ऑफिस का ही ख्याल होता है।

कॉलेज में तुम कैसे मेरी लिए शायरी बोला करते थे... वो क्या था


इश्क बेपरवाह नहीं मेरा तेरे लिए... समथीग समथीग...!
एक बार बोलो ना..." वैशाली उसकी बाईं प्यार से बांधती उससे मिठी शिकायत करती हुई बोली 



वैभव सोचने लगा पर उसे कुछ याद नहीं आ रहा था।


" सॉरी... वैशू जान! अभी तो याद नहीं आ रहा है। बाद में सुनाता हूं, डायरी में लिखी हुई है। " ये कहते ही वो जल्दी जल्दी अपनी फाइल्स को बैग में डालने लगा।



" देखा मैंने कहा था ना तुम बिल्कुल बदल गए हो, तुम्हारा इश्क अब मेरे लिए बेपरवाह हो गया है। शादी से पहले तुम कितने क्यूट थे। कितना प्यार करते थे मैं कितनी खुश थी। मेरी शादी इतने हैडसम लड़के से हो रही है। शादी के बाद हम हर रोज घुमने जाएगे, हाथ पकड़ कर गोलगप्पा खाएंगे, पर अब तुम सारा वक़्त अपने ऑफिस और उस माया को देते हो... ( मुंह बनाकर ) और वो भी छोटी-छोटी स्कर्ट पहन के तुम्हारे आगे पिछे घुमती रहती है।"



वैशाली बातों ताने के साथ थोड़ी जलन थी। वैभव ये सुनकर वैशाली को देखने लगा।



" ओहहो अब इन सब में बेचारी माया को क्यों ला रही हों... वो घुमती है पर मैं तो नहीं देखता ना उसकी गोरी टांगों को..." 



वैभव भी ये कहे उसे हल्के से छेड़ते हुए बोला जिसपर वैशाली उसके हाथ पर मारती हुई मुंह बना लेती है। वैभव उसके सामने खड़ा हो प्यार से बोला



" अच्छा बाबा ठीक है। शाम को मैं जल्दी आ जाऊंगा हम दोनों डिनर बाहर करेंगे, फिल्म भी देखेंगे और तुम्हारी फेवरेट्स आईसक्रीम भी खाएंगे.. ओके...! "

वैभव वैशाली को अपनी बाहों में भरते हुए बोला



"पक्का ना...? देखो इस बार धोका दिया ना तो मना नहीं पाओगे मुझे..." वैशाली लगभग धमकाते हुए बोली


" ठीक है बेबी... टेक केयर हां... अच्छे तैयार होना। "
वैभव वैशाली के सर को चुमाकर ऑफिस के लिए निकल गया। तो वैशाली भी चेहरे पर मुस्कान लिए उसे बाएं कहती हैं।
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शाम को....





शाम के सात बज रहे थे। वैशाली आइने के सामने बैठी खुद को तैयार कर रही थी। आज उसे आपने पिया के साथ डेट पर जो जाना था। 

वो बहोत खुश लग रही थी और खुबसुरत भी... नीले रंग की साड़ी में उसके चेहरे पर मुस्कान थी। और आंखों में वैभव के आने का इन्तजार...


तभी नौकरानी ने आकर पुछा क्या खाना बनाना है। उसने उसे मना कर दिया ये कहके की आज वो और साहब बाहर जा रहे हैं। तो वो छुट्टी लेकर घर चली जाए...



वैशाली काफी देर से वैभव का इन्तजार कर रही। रात 8.30 बज चुके थे। अब उसका चेहरा मुस्कराहट छोड़ चिन्ता और चिढ़ में बदलने लगा, वो अपना सब्र खो रही थी।
वैशाली ने कितनी ही बार वैभव को कॉल किया। पर वो फोन नहीं उठा रहा था। और ऑफिस में भी फोन नहीं लग रहा था।


रात के करीब 10.30 बज चुके थे। वैशाली वैभव का इन्तजार करती वही हाल के सोफे पर बैठे बैठे ही सो गई।


कुछ देर में घर का दरवाजा खुला और वैभव अन्दर आया... देखा तो वैशाली सोफे पर वैसे ही तैयार हो कर सो रही थी। उसे अच्छे से तैयार देख। वैभव अपना माथा पकड़ लेता है उसे याद आया उसने शाम को बाहर जाने का प्लेन बनाना था। वो थोड़ा दुखी सा हो गया।


वो वैशाली के कंधे पर हाथ रख उसे जगाता है। वैशाली चौक उठी और सामने देखने लगी।

देखा तो सामने वैभव खड़ा था। फिर वो घड़ी को देखती है। जिसमें 11 बजने को आए थे। वो अब आ रहा है।





वैशाली उसे गुस्से से घुरती उसका हाथ झटक देती है। और उठ कर जाने लगी तो वैभव उसका हाथ पकड़ समझाते हुए बोला


" वैसू... यार सो सॉरी... पता नहीं कैसे दिमाग से निकल गया कि शाम को तुम्हारे बाहर जाना था। और बहोत इम्पोर्टेंट मीटिंग आ गई थी। इसलिए इतनी देर हो गई। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो..." 

वैभव वैशाली को समझाते हुए उसे देखता हुआ बोल रहा था।

पर वैशाली तो जैसे भरी बैठी थी वो उसे गुस्से से घुरती अपना हाथ खींच कर बोली 



" ओहो, मतलब तुम अपना ही किया वादा भूल गए? वाओ, और मैं जो शाम से तुम्हें पच्चिसयो बार कॉल किया मैसेज किया वो भी दिखाई नहीं दिया तुम्हें.... ( जाते हुए ) रहने दो यार तुमसे तो बात करना बेकार है। " 

वो गुस्से में किचन की तरफ चली गई। और फ्रिज से पानी का बोतल निकालने लगी।

वैभव उसके पीछे जाता उसे समझाते हुए बोला 

" वैशाली यार, मैं मानता हूं मेरी गलती है। पर मैं क्या करता फोरन क्लाइंट्स थे। अचानक मीटिंग आ गई जानती हो मीटिंग में फोन साइलेंट पर रखना पड़ता है। ( फोन निकालते हुए ) ये देखो ये बंद है। मुझे तो पता भी नहीं चला फ़ोन डैड हो गया है। " वैशाली के पीछे पीछे जातें हुए वैभव उसे समझते हुए उसका हाथ पकड़ रोकता है।



पर वैशाली का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वो उसका हाथ झटक चिल्लाकर बोली



 " अच्छा, है आज तुम्हें फोन डैड होने का पता नहीं चला, एक दिन मैं भी डैड हो जाउंगी तो भी तुम्हे पता नहीं चलेगा तुम करते रहना अपनी मीटिंग..! " 

ये कहे कर जोर जोर रोती हुई अपने कमरे के बाथरूम में चली गई। और इससे पहले वैभव कुछ कहे पाता उसने दरवाजा उसके मुंह पर बंद कर दिया जिसपर वैभव को भी बहोत गुस्सा आया।


वो गुस्से चिल्लाते हुए बोला 

" हद है यार वैशाली मैं तुम्हें कब से समझा रहा हूं, काम आ गया था। ऑफिस के काम में भूल गया हमें बाहर जाना है। इम्पोर्टेंट मीटिंग आ गई थी। पर तुम्हें समझ ही नहीं आ रहा। अरे, आज मिस हो गया तो क्या हुआ कल चले जाएंगे इतनी क्या बड़ी बात है। तुम तो तमाशा करने लगी यार... 



वैशाली बाथरूम के अन्दर वैभव को सुनती रोते हुए चिल्लाते हुए बोली 



" अच्छा,, तो अब मैं तमाशा करने लगी, ठीक है जाओ यहां से जाकर अपनी मीटिंग करो... ( रोते हुए ) मुझे अकेला छोड़ दो... मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी..." वैशाली सूबक सूबक कर रोती हुई अपने कान की बाली और गले में पहना पेनडैट निकाल कर फेंक देती है।



तो वैभव भी गुस्से में जमीन पर पैर मारकर कमरे से निकल गया।

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कहानी जारी है.......



[ वैसे तो ये कहानी पुरी तरह काल्पनिक है। जिसका किसी से कोई सम्बन्ध नहीं, पर इससे हर विवाहित जोड़ा खुद को जुड़ा हुआ महसूस करेगा... इस तरह की घटनाएं अक्सर ही पति-पत्नी के बीच देखने को मिलती है।

 जब दोनों को ही लगता है की उनका पार्टनर उनकी प्रवाह और प्यार नहीं करता और परिस्थितियों के चलते भी इस तरह की समस्याएं होती है।
तब दोनों को ही एक-दूसरे को समझने की कोशिश करनी चाहिए... शादी में प्यार और परवाह के आलावा, understanding and adjustment होना जरूरी है। शायद तभी ये रिश्ता आगे अच्छे से चल सकता है। ]

ये बस हमारा ख्याल है। आप आपने विचार खुल कर कहे सकते हैं।

और कहानी का अगला भाग चाहिए या नहीं वो भी बता दो शुक्रिया समय देने के लिए।