nilam ke pakh in Hindi Love Stories by kajal Thakur books and stories PDF | नीलम के पंख

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नीलम के पंख


इरा – 19 साल की लड़की, जो गूंगी है पर उसकी आंखें बोलती हैं।ऋद्वान – 21 साल का लड़का, जो रंगों से डरता है। वो केवल काले-सफेद कपड़े पहनता है और रंगीन चीज़ों से दूर रहता है।

Part 1: चुप्पियों की शुरुआत

इरा बचपन से बोल नहीं सकती थी। उसकी बातें उसकी उंगलियां करती थीं, और उसकी आंखें वो हर जज़्बा बयां कर देती थीं जो शब्द नहीं कर पाते। वो रोज़ शहर के कोने में बने उस छोटे-से बुक कैफ़े में बैठती, चुपचाप पेंटिंग्स बनाती।

एक दिन एक अजीब लड़का आया – सिर से पैर तक काले कपड़ों में। उसने रंगों से भरी दुनिया के बीच खुद को एक सफेद दीवार की तरह अलग रखा था। उसका नाम था ऋद्वान। उसे रंगों से डर लगता था।

Part 2: रंगों से आगेपिछली बार…

ऋद्वान अब देख नहीं सकता, लेकिन इरा उसकी उंगलियों के ज़रिए हर रंग को महसूस कराती है। उनका रिश्ता शब्दों से नहीं, एहसासों से बना है।अब की कहानी:

1. इरा की चुनौती

ऋद्वान की आंखों की रोशनी जा चुकी थी। लेकिन इरा ने हार नहीं मानी। उसने एक सपना देखा —“एक ऐसी गैलरी बनाएगी, जहां लोग रंगों को आंखों से नहीं, दिल से महसूस करें।”

उसने पेंटिंग्स बनानी शुरू कीं – हर पेंटिंग को एक texture, एक खुशबू, और एक स्पर्श दिया।जैसे —"नीला" मतलब रेशमी टिशू का ठंडा अहसास।"पीला" मतलब हल्का गर्म और रेशमी कपड़ा।"लाल" मतलब दिल की धड़कन जितनी गर्म मिट्टी।

ऋद्वान रोज़ उसकी पेंटिंग्स छूता, और रंगों की कहानियाँ सुनता — इरा के इशारों से।

2. मौन की प्रदर्शनी

6 महीने बाद इरा ने दुनिया की पहली “Silent Art Gallery” खोली —जहां कोई पेंटिंग नहीं देखता, बस छूता है।

प्रदर्शनी का नाम था – “नीलम के पंख”लोगों की आंखों पर पट्टी बांधी जाती, और उन्हें पंखों, पेड़ों, बारिश, धड़कनों को महसूस कराया जाता।

वहीं एक कोना था —जहां एक लड़का बैठा था, जो कुछ नहीं देख सकता था।और एक लड़की, जो कुछ बोल नहीं सकती थी।लेकिन दोनों की मौजूदगी ही उस जगह की सबसे खूबसूरत कृति थी।

3. एक ख़त… जो आवाज़ बना

एक दिन ऋद्वान को एक चिट्ठी मिली —इरा ने ब्रेल में लिखा था:

"अगर तुम रंगों को महसूस कर सकते हो, तो क्या मैं तुम्हारी आवाज़ बन सकती हूँ?"

"क्या तुम मेरी खामोशी को अपना नाम दोगे?"

ऋद्वान ने बिना देखे, बिना बोले… उसकी हथेली पर सिर्फ तीन अक्षर उकेरे —"हाँ"

4. पंख अब उड़ते हैं…

आज इरा और ऋद्वान की कहानी किताबों में नहीं, अहसासों में पढ़ी जाती है।उनकी गैलरी में लिखा है:

“हमने जो देखा… वो प्यार नहीं था।जो हमने महसूस किया… वो अमर था।”

Part 3: अधूरी आवाज़ का नामपिछली बार…

इरा ने ऋद्वान को रंगों से जोड़ दिया, बिना बोले। ऋद्वान ने इरा को खुद से जोड़ लिया, बिना देखे।अब कहानी एक नई दिशा में बढ़ रही है...

1. नन्हा मेहमान

एक ठंडी सुबह, इरा और ऋद्वान अपने कैफ़े के बाहर एक बच्चा पाते हैं — लगभग 4 साल का, कांपता हुआ, डर से सहमा।

उसके गले में एक छोटा सा कार्ड टंगा होता है —

"मैं सुन नहीं सकता। मेरा नाम किसी ने नहीं रखा।"

इरा की आंखें भीग जाती हैं।ऋद्वान उसका हाथ पकड़ता है, और उसके हाथ पर इशारों से कहता है —"क्या हम उसे भी एक रंग दे सकते हैं?"

वो बच्चा, जिसे सुनाई नहीं देता… लेकिन वो हँसता है जब इरा उसे एक नीला पंख थमाती है।

2. नाम जो रंग बन गया

ऋद्वान उस बच्चे के सिर पर हाथ रखता है, और उसकी हथेली पर एक शब्द लिखता है —"आज़ान"

“जो खुद सुन नहीं सकता, पर जिसकी मौजूदगी एक सन्नाटे में आवाज़ बन जाए।”

इरा की आंखों से आंसू बहते हैं — खुशी के।

अब उनके पास एक बच्चा है, एक घर है, और एक ख्वाब जो अब सिर्फ उनका नहीं रहा।

3. नई उड़ान

इरा ने आज़ान के लिए एक नई किताब शुरू की —“Rangon ki Bhasha” (रंगों की भाषा)जहां हर रंग एक भावना को बयां करता है, हर आकृति एक शब्द बनती है।

ऋद्वान और इरा अब दुनिया को ये सिखा रहे हैं —“सुनना ज़रूरी नहीं, महसूस करना काफ़ी है।”


Part 4: सुनने से ज़्यादा समझने वाला

(एक ऐसा बेटा, जिसने माँ की ख़ामोशी और पापा के अंधेरे को दुनिया की रौशनी बना दिया)1. आज़ान अब 18 साल का हो गया है

वो सुन नहीं सकता, पर उसकी मुस्कान में ऐसा सुकून है, जैसे कोई गाना बज रहा हो।उसने इरा की तरह पेंटिंग सीखी और ऋद्वान की तरह रंगों को महसूस करना।

लेकिन एक दिन —जब वो स्कूल से लौटा, तो बहुत गुस्से में था।उसने टेबल पर एक पेंटिंग फाड़ी —और हाथ से लिखा:

"मैं बोल नहीं सकता, सुन नहीं सकता... तो क्या मैं कुछ नहीं हूं?"

इरा और ऋद्वान ने पहली बार महसूस किया कि शायद अब आज़ान को सिर्फ रंग नहीं, पहचान चाहिए।

2. जवाब जो बिना शब्दों के आया

रात को इरा ने एक कैनवास उठाया और उस पर कुछ नहीं बनाया। बस सफेद छोड़ दिया।

सुबह आज़ान जब उठा, तो उस खाली कैनवास के नीचे लिखा था:

"तू अभी अधूरा नहीं है... तू खाली कैनवास है।और खाली कैनवास में ही सबसे ज़्यादा संभावनाएँ होती हैं।"

3. आज़ान का फैसला

उसने अपने माता-पिता की पूरी कहानी को एक मूक-नाटक (Silent Play) में बदला —जिसका नाम रखा गया:"नीलम के पंख: रंगों की भाषा"

इस नाटक में किसी ने कुछ नहीं बोला, कोई आवाज़ नहीं आई —बस रोशनी, रंग, स्पर्श, और आंखों की भावनाएं थीं।

लोग ताली नहीं, आंसुओं से सराहना कर रहे थे।पूरी दुनिया में पहली बार ऐसा शो हुआ जहां कोई आवाज़ नहीं थी — पर हर दिल बोल पड़ा।

4. नई कहानी की शुरुआत

अब आज़ान एक "Emotional Expression School" चलाता है —जहां वो ऐसे बच्चों को सिखाता है जो सुन नहीं सकते, देख नहीं सकते, बोल नहीं सकते...

"तुम शब्दों के बिना भी पूरी किताब हो।"अंतिम सीन:

एक बच्चा, जो पहली बार स्कूल आया था, इरा की पेंटिंग की तरफ इशारा करता है —जिसमें तीन परछाइयाँ हैं:नीले पंखों वाली लड़कीअंधेरे को महसूस करता आदमीऔर एक उजाले में उड़ता बच्चा…

वो पूछता है —"ये कौन हैं?"

आज़ान मुस्कुराता है और अपने सीने पर हाथ रखकर कहता है —"ये मेरी कहानी है… और अब ये तुम्हारी भी होगी।