🕯️ 13वीं मंज़िल का दरवाज़ा
भाग 2: दरवाज़े के उस पार
दरवाज़ा चरमराते हुए खुला। वर्षों पुरानी जंग की गंध जैसे उस कमरे से बाहर फैलने लगी। विशाल ने गहरी साँस ली और धीरे-धीरे भीतर कदम रखा।
कमरा पूरी तरह अंधेरे में डूबा हुआ था, लेकिन जैसे ही वो पहला कदम अंदर रखता है, दीवारों से हल्की नीली चमक निकलने लगती है — मानो किसी ने कमरे को जागा दिया हो।
“यह कोई सामान्य कमरा नहीं है,” विशाल ने मन ही मन सोचा।
दीवारें नमी से भरी थीं, फर्श पर जाले और बिखरे हुए काग़ज़, जैसे किसी ने सालों पहले यहाँ कुछ लिखना शुरू किया और अधूरा छोड़ दिया हो। एक कोने में पुराना लकड़ी का झूला था, जो बिना हवा के धीरे-धीरे हिल रहा था।
वो आगे बढ़ा तो दीवार पर एक धूल भरी फोटो फ्रेम नज़र आई। उसने हाथ से साफ़ किया — और वो वहीं ठहर गया।
फोटो में तीन लोग थे — एक छोटा बच्चा और उसके साथ एक पुरुष और स्त्री।
वो चेहरा... बच्चा — वो विशाल खुद था।
लेकिन हैरानी की बात ये थी कि माँ और पिता के चेहरे पर काली स्याही से क्रॉस किया गया था। जैसे किसी ने उन्हें जान-बूझकर मिटाने की कोशिश की हो।
“ये तस्वीर यहाँ कैसे आई?” विशाल बुदबुदाया।
तभी पीछे से किसी के पाँव घिसटने की आवाज़ आई।
वो पलटा — कोई नहीं था। लेकिन अब दरवाज़ा, जिससे वो अंदर आया था, अपने-आप बंद हो चुका था।
उसने दौड़कर दरवाज़ा खोलने की कोशिश की — पर वो जैसे दीवार में तब्दील हो चुका था। वहाँ अब सिर्फ़ ठंडी, नम, पत्थर की सतह थी।
अचानक, कमरे में हल्की सी कानों में गूंजने वाली आवाज़ फैली — वो किसी बच्चे की थी।
"अब तू वापस आ गया है? "
विशाल की साँसें तेज़ हो गईं। ये वही आवाज़ थी जो उसे अक्सर अपने बुरे सपनों में सुनाई देती थी, बचपन से... लेकिन आज वो सपना नहीं था। वो यक़ीनन जाग रहा था।
वो कमरे के बीच पहुँचा। वहाँ एक टेबल थी, जिस पर कई अधजली मोमबत्तियाँ और एक पुरानी डायरी रखी थी। उसने कांपते हाथों से डायरी खोली।
पहला पन्ना:
“13वीं मंज़िल पर आया हूँ। माँ और पापा की मौत का जवाब यहीं मिलेगा...”
दूसरा पन्ना:
“अगर कोई इसे पढ़ रहा है, तो जान ले — यहाँ सबकुछ वैसा नहीं है जैसा दिखता है। ये जगह वक़्त को भी निगल जाती है।”
विशाल को झटका सा लगा। ये लिखावट — उसे कुछ जानी पहचानी लगी।
फिर अचानक — टेबल के सामने का आईना चमका। लेकिन उसमें उसका प्रतिबिंब नहीं था।
बल्कि उसमें एक छोटा बच्चा खड़ा था। वही बच्चा — जो 1999 में इस मकान में गायब हो गया था।
बच्चा आईने से बाहर निकलता है — लेकिन असलियत में नहीं, सिर्फ़ उसकी परछाईं कमरे की दीवारों पर फैलने लगती है।
वो परछाईं बोलती है:
"तेरे अंदर जो छुपा है, वो तू खुद नहीं जानता..."
"तेरे साथ जो हुआ, वो कोई हादसा नहीं था..."
कमरा अब हिलने लगा। दीवारें सिकुड़ने लगीं, जैसे वो जिंदा हों। जमीन में से आवाज़ आई:
“तलाश पूरी नहीं हुई है... तेरी भी नहीं।”
विशाल चारों ओर भागने की कोशिश करता है लेकिन अब दरवाज़े की जगह एक अंधा कुआँ बन चुका है।
वो कुएं में झाँकता है — गहराई में वो खुद को ही देखता है। लेकिन उसका चेहरा शांत नहीं, बल्कि डरावना है — जैसे कोई दूसरा “विशाल” जो सालों से वहाँ बंद था।
तभी, उसे पीछे से किसी ने छुआ।
उसने डरते हुए पलटकर देखा — एक औरत थी। उसका चेहरा धुंधला, लेकिन आवाज़... माँ जैसी थी।
"तू अब वापस नहीं जा सकता, बेटा... अब तेरे सामने वही सच आएगा जिससे तू सालों से भागता रहा..."
विशाल ज़ोर से चिल्लाया — लेकिन उसकी आवाज़ कमरे की दीवारों में गूंज कर रह गई।
13वीं मंज़िल का दरवाज़ा अब बंद नहीं हुआ था, वो पूरी तरह गायब हो चुका था|
🔚 जारी है..