६.
कुछ ही देर बाद करवटों में उलझी पायल को नींद ने अपनी बाहों में समेट लिया। उसका चेहरा अब शांत था, लेकिन मन के अंदर कई भावनाएं अभी भी लहरों की तरह हिलोरें मार रही थीं।
वह गहरी नींद में थी... लेकिन इस रात की कहानी अभी खत्म नहीं हुई थी।
क्योंकि कोई और भी तो जाग रहा था, और वह था अबीर।
उसकी आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था। बल्कि उन आंखों में एक अलग ही चमक थी, जैसे कोई ख्वाब साकार होने को हो।
अबीर लैपटॉप के सामने बैठा था, अधखुली शर्ट, हल्के-से बिखरे बाल, और होठों पर एक मुस्कुराहट जो पायल की यादों से सजी थी।
वो आज दिन में पायल से हुई छोटी-सी टकरार को एक खूबसूरत प्रेम कहानी का रूप दे रहा था। हर शब्द में उसके जज्बात घुले हुए थे, हर वाक्य में उसकी धड़कनें समाई हुई थीं।
उसके लिए ये कहानी कोई कल्पना नहीं थी, बल्कि एक खामोश इज़हार था। उस पायल के लिए, जो खुद तो अबीर के दिल की रानी थी, मगर अपनी दुनिया में मां और दादी के सिवा किसी को आने की इजाज़त नहीं देती थी।
अबीर जानता था कि पायल उसके प्यार से बेखबर है, और शायद अभी तो वह किसी और को अपनी जिंदगी में शामिल करने के लिए तैयार भी नहीं है। लेकिन वो इस दूरी से हार मानने वालों में से नहीं था। वो अपने शब्दों के ज़रिए उसके करीब जाना चाहता था, चुपचाप... बिना उसे बताए...।
शब्दों की इस जादुई दुनिया में अबीर का प्यार धीरे-धीरे आकार ले रहा था। और उसे यकीन था कि एक दिन उसकी ये अधूरी कहानी मुकम्मल जरूर होगी... क्योंकि वो सिर्फ लिख नहीं रहा था, वो जी रहा था अपना इश्क़... पायल के नाम।
कमरे की हल्की पीली रोशनी में अबीर का चेहरा जैसे किसी सपने में डूबा हुआ लग रहा था।
उसी वक्त बाहर से नीला जी की नजर उसके कमरे की खुली लाइट पर पड़ती है। धीरे से दरवाज़ा खोलकर वे अंदर आई और अपने बेटे को इस हाल में देखकर मुस्कुरा पड़ीं।
अबीर के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहती हैं कि, "देर रात तक जागना अच्छी बात नहीं होती बेटा। आंखों से नींद नहीं, सपने उड़ जाते हैं..." उनकी आवाज सुनते ही अबीर चौंक पड़ता है। जैसे किसी खूबसूरत ख्वाब से अचानक कोई जगा देता है।
"अरे मां! आप... आप अभी तक सोई नहीं?" उसने झेंपते हुए कहा।
नीला जी स्नेह से उसकी आंखों में झांकते हुए मुस्कराकर कहती हैं कि, "जब बेटे की रौशनी रात भर जाग रही हो, तो मां को नींद कैसे आ सकती है?"
अबीर उनके चेहरे की चिंता पढ़ गया, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उसकी मोहब्बत की ये अनकही दास्तां अभी किसी को पता चले।
वह बात पलटते हुए कहता है कि, "बस मां! ऐसे ही थोड़ा कुछ लिख रहा था।"
नीला जी ने सब समझते हुए कुछ नहीं कहा, सिर्फ उसके सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा कि, "चलो अब सो जाओ, सुबह जल्दी उठना है। और बेटा... दिल की बातें किताबों में नहीं, ज़िन्दगी में पूरी करनी चाहिए..."
उनकी बातों में जैसे कोई गहरा संकेत था।
वो मुस्कराते हुए सोचता है कि, "कहीं मां ने कुछ समझ तो नहीं लिया?"
अबीर, मां का हाथ अपने हाथों में थामते हुए मुस्कुराकर कहता है कि, "मां, अब मैं छोटा बच्चा नहीं रहा... आप मेरी इतनी चिंता मत किया करो।"
नीला जी उसकी बात सुनकर हल्के से हंसते हुए कहती हैं कि
"अच्छा! और ये तुमसे किसने कह दिया कि तुम बड़े हो गए हो? तुम्हारी हरकतें तो अब भी छोटे बच्चों जैसी हैं!"
अबीर शरारत भरी मुस्कान के साथ कहता है कि, "क्या मां, आप भी! अब अगर मैं आपको परेशान नहीं करूंगा, तो क्या हिटलर करेंगे?"
उसकी ये बात सुनकर नीला जी की हंसी छूट गई थी। "शैतान! रुक जा तू, अभी बताती हूं तुझे!" कहते हुए उन्होंने उसकी पीठ पर हल्का सा झपटा ही था कि तभी कमरे में मि. अभिमन्यु प्रवेश करते हैं।
दरवाज़े पर खड़े होकर वे मुस्कुराते हुए कहते हैं कि, "लगता है यहां किसी ने मुझे याद किया?"
उन्हें देखकर अबीर और नीला जी दोनों एकदम शांत हो गए, जैसे किसी बच्चे की शरारत पकड़ी गई हो।
"क्या हुआ? दोनों को सांप सूंघ गया क्या?" अभिमन्यु ने मजाक में कहां।
नीला जी थोड़ी झिझक के साथ कहती हैं कि, "वो... जी... मैं... मैं तो बस..."
"अरे जी वो मैं क्या कर रही हो? साफ-साफ बोलो, मैं तुम्हें खा थोड़े ही जाऊंगा!" वे हंसते हुए कहते हैं,
"खैर छोड़ो, देखो मैं क्या लाया हूं तुम दोनों के लिए..."
फिर उन्होंने अपने हाथ में पकड़े थैले से तीन आइसक्रीम निकालीं, "ये लो तुम्हारा बटरस्कॉच, और ये अबीर तुम्हारी चॉकलेट, और ये मेरी वनीला! जल्दी खाओ वरना पिघल जाएगी!"
अबीर, जो अब तक अपने पापा की सख्ती का अभ्यस्त था,
उन्हें इस रूप में देखकर हैरान था। एक क्षण को उसे यकीन ही नहीं हुआ कि उसके पिता, जिन्हें वह ‘हिटलर’ कहता था,
इतनी सरलता और स्नेह से आइसक्रीम थमा रहे हैं।
"क्या हुआ? क्या सोच रहा है बेटा?" अभिमन्यु जी प्यार से टोकते हुए कहते हैं। अबीर मुस्कुराते हुए सिर हिलाते हुए आइसक्रीम खाने लगा।
नीला जी चौंकते हुए पूछती है कि, "आपको ये आइसक्रीम आधी रात को कहां से मिल गई?"
अभिमन्यु जी मुस्कराकर कहता है कि, "शाम को टहलते हुए कुछ बच्चों से मुलाकात हो गई थी। वे मुझसे आइसक्रीम की जिद करने लगे, तो दिला दी। फिर मुझे याद आया कि कितने दिन हो गए हमने साथ बैठकर आइसक्रीम नहीं खाई,
तो बस... तुम दोनों के लिए भी ले आया।"
अबीर मन ही मन सोचता है कि, "हिटलर बस दिखते हैं खड़ूस, पर हैं नहीं। मेरे प्यारे पापा... लेकिन 'हिटलर' नाम उन पर खूब जंचता है!"
उसकी मुस्कराहट पर नज़र डालते हुए नीला जी हंसकर कहती हैं कि, "लल्ला, इतना क्यों मुस्कुरा रहा है? आइसक्रीम पिघल जाएगी!"
तीनों साथ बैठकर उस ठंडी रात में गरमाहट से भरे पल बिताते हैं। बिना किसी औपचारिकता, बिना किसी योजना के, बस एक सादा, मीठा, और प्यारा सा पल।
आइसक्रीम का स्वाद तो बस बहाना था, असल में स्वाद उस साथ का था... उस अपनत्व का, जो परिवार को परिवार बनाता है।
और सच ही तो है, आइसक्रीम खाने का असली मजा... दिसम्बर की सर्द रातों में अपनों के साथ ही तो आता है।
क्रमशः