Rooh - 3 in Hindi Drama by Komal Talati books and stories PDF | रुह... - भाग 3

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रुह... - भाग 3

                                         ३.







रूम में कदम रखते ही अबीर सीधे जाकर बेड पर ढेर हो जाता है। थकान तो थी ही, लेकिन असली थकान उसके मन में उठते विचारों की थी। कुछ पल यूं ही छत को घूरता रहा, फिर अचानक जैसे कुछ याद आ गया हो, वैसे ही झटके से उठ बैठता है।

धीरे-धीरे वह स्टडी टेबल की ओर बढ़ा। चेयर पर बैठकर वह अपनी डायरी खोल कलम हाथ में थाम लेता है। इरादा तो था कुछ शानदार लिखने का, एक नई शुरुआत करने का... पर जैसे शब्दों ने उसकी जुबान से भी बगावत कर ली हो। दिमाग में बस एक ही आवाज गूंज रही थी।  मि. अभिमन्यु की डांट और गुस्से से भरी बातें।

अबीर सिर झटककर खुद को संभालने की कोशिश करता है। लेकिन जैसे ही कुछ लिखने बैठता, दिमाग फिर उलझ जाता था। गुस्से और निराशा में आकर उसने कई बार लिखे शब्दों को फाड़ डाला। कुछ ही देर में स्टडी टेबल के आसपास कागजों के फटे हुए टुकड़े बिखर गए थे।

तंग आकर अबीर ने कलम पटक उठकर बालकनी में आ जाता है। रात की हल्की ठंडी हवा उसके चेहरे से टकराई। वह गहरी सांस लेकर आंखें बंद कर लेता है, जैसे खुद को फिर से ढूंढ़ने की कोशिश कर रहा हो।

उसी पल, अचानक उसे सुबह की वह मुलाकात याद आती है। मॉल में वह हल्का सा धक्का, गिरती हुई वो लड़की... और फिर उसका चेहरा।

हल्के गुलाबी सूट में, खुले बाल, आंखों में अनकही सी गहराई लिए वो लड़की, एकदम सजीव होकर उसकी आंखों के सामने तैर गई थी। अबीर के होठों पर अनजाने में एक हल्की मुस्कान उभर आई थी।

"कौन थी वो...? और क्यों अब भी उसकी तस्वीर दिमाग से हट नहीं रही...?"

वह खुद से सवाल करता है। शायद उस लड़की की सादगी और मासूमियत में कुछ ऐसा था जो अबीर के दिल में अनजाने ही एक हल्का सा कंपन पैदा कर गया था।

ठंडी हवाओं के बीच खड़ा अबीर, एक नयी अनकही कहानी की शुरुआत को महसूस कर रहा था... शायद बिना यह जाने कि यह मुलाकात उसकी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत दास्तान में बदलने वाली है।

वह थोड़ी देर बालकनी में खड़ा रहता है, फिर एक लंबी सांस लेकर वापस कमरे के अंदर आता है। जैसे कोई हल्की-सी राहत उसके भीतर उतर आई हो।

अबीर फिर से स्टडी टेबल पर आकर बैठ धीमे से अपनी डायरी खोल हाथ में पेन उठा लेता है।

इस बार न कोई हिचक थी, न कोई उलझन।
जैसे उसकी उंगलियों ने खुद ही रास्ता पकड़ लिया हो...
जैसे उसके दिल की धड़कनें शब्दों में ढलने लगी थी।

पेन अपने आप ही चल पड़ा था कागज पर, शुरुआत हुई एक नन्हे एहसास से, जो सुबह मॉल में उस मुलाकात के साथ उसके भीतर पनपा था। शब्द बनते गए... वाक्य आकार लेते गए...
और अबीर खुद हैरान था कि वह बिना सोचे-समझे, बस दिल की सुनते हुए लिखता चला जा रहा था।

"हल्के गुलाबी रंग का सूट, बिखरे हुए काले बाल, काजल से सजी वो आंखें... जैसे किसी अनजाने ख्वाब से आई हो।
एक पल का वो सामना, फिर भी जैसे सदियों तक दिल में छा जाने वाली..."

शब्द उसके भीतर से रिस रहे थे, जैसे कोई बंद दरवाज़ा अचानक खुल गया हो। अबीर को पता ही नहीं चला कि कब उसकी डायरी के पन्ने भरते चले गए।

हर शब्द के साथ वह उस अनजानी लड़की को और भी करीब महसूस कर रहा था... जैसे वह कोई कहानी नहीं, बल्कि अपनी ही अधूरी किस्मत लिख रहा हो।

थकान और सुकून के बीच झूलता हुआ अबीर कब अपने बिस्तर पर लेटा-लेटे नींद की आगोश में समा गया, उसे खुद भी पता नहीं चला। उसके होंठों पर एक हल्की मुस्कान थी... शायद उस अनजान मुलाकात की मीठी याद उसके सपनों में भी घुल रही थी।


अगली सुबह।


हल्की सी नींद से जागते ही अबीर को महसूस हुआ कि आज का दिन कुछ अलग सा है। जल्दी तैयार होकर वह अपने कुछ पुराने दोस्तों के साथ शहर के एक फेमस कैफे में मिलने पहुंचता है।

रेस्टोरेंट की हल्की-हल्की म्यूजिक, गर्म कॉफी की खुशबू और दोस्तों की शरारती बातें माहौल को और भी खुशनुमा बना रही थीं।

अबीर अपने दोस्तों के बीच बैठा था आदित्य, राहुल, विकी और समृद्धि। बातों का सिलसिला शुरू ही हुआ था कि राहुल छेड़ते हुए कहता है कि, "तो मिस्टर रोमियो, कल मॉल में क्या कारनामा किया आपने?"

अबीर ने हंसते हुए पूरा किस्सा सुनाया कि कैसे गलती से किसी लड़की से टकरा गया था और कैसे वह गिर पड़ी थी।

सुनते ही सब जोर-जोर से हंसने लगे थे। आदित्य मजाक उड़ाते हुए कहता है कि, "वाह भाई! अब तो तेरी एंट्री भी फिल्मी हो गई है,  हीरो बनकर लड़की गिरा दी!"

समृद्धि कहती हैं कि, "और लड़की ने गिरते ही तुम्हें दिल दे दिया होगा, है न?"

अबीर बनावटी नाराजगी दिखाते हुए कहता है कि, "ओए पागलो! कुछ भी मत बोलो। मैं तो बस... गलती से धक्का भी मैंने नहीं मारा था, फिर भी फंस गया।"

विकी मुस्कुराते हुए कहता है कि, "पर सच-सच बता... लड़की कैसी थी?"

अबीर कुछ पल को चुप हो गया था, फिर धीमी आवाज में कहता है कि, "खूबसूरत थी... बहुत अलग सी। सादगी में भी एक अजीब सा आकर्षण था उसके अंदर।"

उसके चेहरे पर अनजानी सी चमक थी... जिसे देख आदित्य चिढ़ाते हुए कहता है कि, "भाई! लगता है तू फंस गया!"

सब एक बार फिर हंसने लगते हैं। अबीर भी मुस्कुरा रहा था, लेकिन कहीं न कहीं उसके दिल के एक कोने में वही लड़की अब भी हल्की सी दस्तक दे रही थी।

उधर उसी कैफे के एक कोने में, हल्की-हल्की गुलाबी दीवारों के बीच, तीन लड़कियां अपने-अपने डोक्युमेंट के साथ बैठी थीं।
टेबल पर फैली कॉफी की महक और उनकी मासूम बातें माहौल में एक अलग सी मिठास घोल रही थीं।

पायल, पलक और अमिता तीनों गहरी बातचीत में मशगूल थीं।

पलक मजाकिया अंदाज में कहती हैं कि, "यार पायल! तुझे पढ़ने की क्या जरूरत है? तेरे पास तो बढ़िया जॉब है, वही कर न आराम से।"

पायल मुस्कुराते हुए, बेहद संजीदगी से कहती हैं कि, "नहीं पलक! ये जॉब तो मैंने बस इसलिए पकड़ी है ताकि मां की थोड़ी मदद कर सकूं। पर मेरा सपना तो कुछ और ही है... मुझे बहुत बड़ी अफसर बनना है। मैं मां और दादी के सारे अधूरे सपने पूरे करना चाहती हूं।"

पायल की आवाज में जो दृढ़ता थी, उसने कुछ पल के लिए पलक और अमिता को भी गहरी सोच में डाल दिया था।

थोड़ी देर बाद अमिता उत्साह से कहती हैं कि, "एक काम करते हैं! मेरे दिमाग में एक बढ़िया कॉलेज है, 'गुजरात यूनिवर्सिटी'।
क्यों न हम वहीं एडमिशन के लिए ट्राय करें?"

पायल की आंखों में उम्मीद की चमक आ गई थी। वह खिलखिलाकर कहती हैं कि, "अच्छा आइडिया है अमिता! चलो आज ही जानकारी ले लेते हैं।"

तीनों सहेलियां ठहाका मारकर हंस पड़ीं थी। जैसे भविष्य के सपनों की महक ने उनके आज के हर बोझ को कुछ हल्का कर दिया हो।

तभी पीछे से कैशियर की आवाज आती है, "मैडम! आपका ऑर्डर रेडी है।"

पायल झटके से उठते हुए कहती हैं कि,"तुम लोग कॉलेज सर्च करते रहो, मैं कॉफी लेकर आती हूं।"

वह हल्के कदमों से काउंटर की ओर बढ़ती है। दूसरी तरफ अबीर भी दोस्तों में मस्त होकर हंसते-बतियाते अपनी टेबल की ओर लौट रहा था। दोनों एक-दूसरे से बेखबर थे फिर भी न जाने किस अनदेखी डोर ने उन्हें एक बार फिर आमने-सामने कर दिया था।

पायल अपने दोनों हाथों में कप संभाले वापस लौट रही थी, जब अचानक उसकी किसी से जोरदार टक्कर हो गई।
"सॉरी" कहते-कहते पायल का संतुलन बिगड़ने लगा था, कि उसी पल एक मजबूत हाथ ने उसे थाम लिया।
कॉफी छलकते-छलकते बच गई, पायल चौंककर सामने देखती है...

वही चेहरा... वही लड़का...!

पायल का चेहरा गुस्से से तपने लगा था। वह झटके से खुद को छुड़ाते हुए तीखे लहजे में कहती हैं कि, "तुम! तुम फिर से? तुम यहां भी पहुंच गए? क्या तुम मेरा पीछा कर रहे हो या फिर जानबूझकर मुझसे टकराने के बहाने ढूंढते रहते हो?"

अबीर, जो खुद भी हैरान था, उसकी बात सुनकर हड़बड़ा जाता है। वह गुस्से में कहता है कि - "एक्सक्यूज़ मी! पहली बात तो यह की में आपका पीछा नही कर रहा। और दूसरी बात यह की उस दिन में आपसे नही टकराया था। और उस दिन की गलती आज तुम्हें बचाकर वापस एक ओर गलती कर दी।" 

इतना कहकर पायल की ट्रे में से एक काॅफी का मग लेकर वहा से चला जाता है। उसकी यह हरकत देख अबीर को भला-बुरा कहती हुई वह अपने फ्रैंड्स के पास आ जाती है। पायल अपने आपसे ही बात करने में लगी थी। उसे इस तरह देख अमीता कहती हैं कि, "पायल! यार तू सच मे बहुत लकी हे। देख न कितना हेन्डसम बंदा था। काश में  ही उससे टकराई होती। और तू पागल उससे झगडा करके आ गई।"

अमीता की बात सुन पायल ने चीढ़ते हुए कहती हैं कि- "मुझे कोई शोख नही हे इन जैसों से टकराने में। ये उस दिन वाला ही है जिसके बारे मे मेने बताया था न कि केसे वो मुझे गिराके मेरी हेल्प करने की जगह उल्टा एटिट्युड दिखा कर चला गया था और आज फिर मेरी काॅफी लेकर चला गया।"