धीरु एक साहसी और ईमानदार फौजी था जिसने बचपन से ही देशभक्ति को अपना धर्म बना लिया था, उसके पिता भी सेना में थे और बचपन से ही उसने सीखा था कि देश पहले आता है, बाकी सब बाद में, वह हर परिस्थिति में सच्चाई और कर्तव्य को प्राथमिकता देता था, उसकी माँ उसे बचपन में भगवान मानती थी और कहती थी कि तुझे तो देश के लिए ही जन्म मिला है बेटा, उसकी प्रेम कहानी तब शुरू हुई जब उसे एक ऑपरेशन के बाद छुट्टी मिली और वह अपने गाँव लौटकर आया, वहीं उसकी मुलाकात ऋतिका से हुई जो गाँव की स्कूल में शिक्षिका थी, ऋतिका का सौम्य स्वभाव और देश के लिए सम्मान देखकर धीरु का दिल पहली नजर में ही उस पर आ गया, शुरू-शुरू में दोनों के बीच बस नमस्कार और मुस्कुराहटों का आदान-प्रदान होता रहा लेकिन धीरे-धीरे वो मुस्कुराहटें संवाद में बदल गईं और फिर संवादों ने उन्हें एक दूसरे के जीवन का हिस्सा बना दिया, धीरु ने कभी नहीं सोचा था कि वह किसी से इतना जुड़ जाएगा लेकिन ऋतिका की आंखों में उसे सच्चाई और अपनापन दिखता था, धीरु ने जब ऋतिका को बताया कि वह सेना में है तो ऋतिका की आंखों में गर्व उतर आया, उसने कहा कि "मैं ऐसे इंसान से प्यार कर बैठी हूँ जो मेरा नहीं बल्कि पूरे देश का है", इस वाक्य ने धीरु को भावुक कर दिया और उसने वादा किया कि जब तक जिंदा रहूंगा तुम्हारा और देश का साथ कभी नहीं छोड़ूंगा, दोनों ने मंदिर में भगवान के सामने एक-दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाई, पर किस्मत को शायद कुछ और ही मंज़ूर था, कुछ हफ़्तों बाद धीरु को एक सीक्रेट मिशन पर भेजा गया जहाँ उसे एक गैंग के बारे में जानकारी इकट्ठा करनी थी जो हथियारों की तस्करी कर रहा था, ये ऑपरेशन बेहद खुफिया था और सरकार तक ने इसकी भनक नहीं लगने दी थी, धीरु को एक आम इंसान की तरह उस शहर में भेजा गया जहाँ ये गैंग काम करता था, उसे एक नकली पहचान दी गई – नाम था अर्जुन और काम था ऑटो गैरेज में, वहाँ रहकर उसे धीरे-धीरे जानकारी इकट्ठा करनी थी लेकिन गैंग बहुत चालाक था, उन्होंने जल्द ही महसूस कर लिया कि कोई तो है जो उनकी जासूसी कर रहा है, एक दिन जब धीरु गैरेज से निकला तो उसे कुछ लोगों ने घेर लिया, उन्होंने उसे पकड़कर एक गुप्त ठिकाने पर बंद कर दिया, बहुत मारा-पीटा लेकिन धीरु ने कुछ नहीं बताया, उसकी वर्दी की कसम थी कि वह देश की सुरक्षा से जुड़ी कोई बात नहीं बताएगा, उधर ऋतिका रोज मंदिर जाती थी, भगवान से उसकी सलामती की दुआ मांगती थी लेकिन कई दिन तक कोई खबर नहीं आई तो वह सेना मुख्यालय तक जा पहुंची, वहाँ किसी ने भी धीरु की जानकारी नहीं दी क्योंकि उसका मिशन बेहद गोपनीय था, ऋतिका समझ गई थी कि कुछ बहुत बड़ा हुआ है, वो खुद अपने स्तर पर जानकारी जुटाने लगी, उसने धीरु के दोस्तों से बात की, कुछ पुराने सेना के अधिकारियों से संपर्क किया और धीरे-धीरे उसे पता चला कि धीरु एक खतरनाक मिशन पर गया था और अब उसका कोई अता-पता नहीं है, ये सुनते ही ऋतिका का दिल बैठ गया लेकिन उसने हार नहीं मानी, वो उस शहर पहुंची जहाँ धीरु गया था, वहाँ उसने लोगों से बात की, वही गैरेज खोजा जहाँ धीरु काम कर रहा था, वहां के लोगों ने बताया कि कुछ दिन पहले एक लड़का अर्जुन नाम से आया था और फिर अचानक गायब हो गया, ऋतिका समझ गई कि वो अर्जुन धीरु ही था, अब उसे यकीन हो गया था कि गैंग वालों ने ही उसे किडनैप किया है, लेकिन अब सवाल था कि वो उस गैंग तक कैसे पहुंचे, उसे मालूम चला कि उस शहर में एक स्थानीय पत्रकार था राघव जो इन गैंग्स पर रिपोर्टिंग करता था, ऋतिका उससे मिली और रोते हुए कहा कि "मेरा प्रेमी देश के लिए काम करते हुए गायब हो गया है, क्या आप उसकी मदद कर सकते हैं", राघव पहले हैरान हुआ फिर उसकी आँखों में जो सच्चाई और हिम्मत थी वो देखकर उसने फैसला किया कि वो उसकी मदद करेगा, दोनों ने मिलकर शहर के कुछ संदिग्ध इलाकों में पूछताछ शुरू की, राघव को अपने पुराने स्रोतों से पता चला कि गैंग का सरगना रऊफ नाम का आदमी है जो बाहर से बड़ा व्यापारी दिखता है लेकिन अंदर से तस्करी, हत्या और देशद्रोह जैसे अपराधों का मास्टरमाइंड है, ऋतिका ने कहा कि "अगर मुझे उसके अड्डे तक पहुंचा दो, मैं जान जोखिम में डालकर भी अपने प्रेमी को बचा लूंगी", राघव ने मना किया लेकिन ऋतिका ने उसकी आंखों में आँखें डालकर कहा कि "मैं एक फौजी की मंगेतर हूं, डर मेरे लहू में नहीं", आखिरकार राघव ने उसकी मदद की और एक रात दोनों छिपकर रऊफ के गोदाम तक पहुंचे जहाँ धीरु को बंदी बनाकर रखा गया था, ऋतिका ने अपनी चूड़ियों और बालियों को गिरवी रखकर एक छोटा सा पिस्तौल खरीदा था जो उसके बैग में था, राघव ने गोदाम के पिछले दरवाजे से अंदर घुसने का रास्ता दिखाया, दोनों चुपचाप अंदर घुसे, अंदर अंधेरा था लेकिन कहीं दूर से कराहने की आवाज आई, ऋतिका ने तुरंत पहचान लिया कि ये धीरु की आवाज है, उसने दौड़कर उस कमरे का ताला तोड़ा और देखा कि धीरु खून से लथपथ, बेहोशी की हालत में पड़ा था, उसकी आँखें खुल नहीं रही थीं लेकिन होंठ बुदबुदा रहे थे – "ऋतिका... मेरा देश...", ऋतिका फूट-फूटकर रोने लगी लेकिन उसने खुद को संभाला और कहा – "मैं आई हूं तुम्हें लेने, अब तुम अकेले नहीं हो", तभी बाहर से रऊफ और उसके गुंडों की आवाजें आईं – "कौन है अंदर", ऋतिका ने अपने आँसू पोछे, पिस्तौल निकाली और दरवाजे के पीछे छिप गई, जैसे ही गुंडे कमरे में घुसे उसने फायर किया और एक को गिरा दिया, राघव ने बाहर से पुलिस को कॉल कर दिया था लेकिन पुलिस पहुँचने में वक़्त लग रहा था, ऋतिका ने पूरे साहस से लड़ाई लड़ी, कुछ ही देर में पुलिस आ गई और सभी गुंडों को गिरफ्तार कर लिया गया, धीरु को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया, कई दिन तक उसका इलाज चला, कई बार डॉक्टर ने जवाब तक दे दिया लेकिन ऋतिका ने हार नहीं मानी, वह हर रोज उसके सिरहाने बैठती, उसकी हथेली पकड़कर प्रार्थना करती और कहती – "तू वादा करके गया था, वापस आएगा, अब भाग मत", जैसे ही 15वें दिन धीरु की उंगलियाँ हिलीं और उसने आँखें खोलीं, डॉक्टर ने चमत्कार कहा, धीरु की आँखों में सबसे पहले जो चेहरा आया वो ऋतिका का था, उसने मुस्कुराते हुए कहा – "मुझे पता था तू आएगी", ऋतिका ने उसकी छाती से सिर लगा लिया और कहा – "मैं तुझे मरने नहीं दूंगी, चाहे मुझे रऊफ जैसे सौ शैतानों से क्यों न लड़ना पड़े", पूरा अस्पताल तालियों से गूंज उठा, कुछ हफ़्तों बाद धीरु ठीक होकर फिर से ड्यूटी पर लौट गया लेकिन इस बार ऋतिका को भी साथ ले गया, दोनों ने मंदिर में फिर से वही कसमें खाईं और इस बार पूरे गाँव की उपस्थिति में शादी की, धीरु ने सेना में रहते हुए कई और मिशन पूरे किए लेकिन उसकी सबसे बड़ी जीत थी – एक सच्चे प्यार की, एक ऐसी प्रेमिका की जिसने नारी की परिभाषा को बदल दिया, उसने साबित कर दिया कि सच्चा प्रेम सिर्फ साथ चलने का नाम नहीं, बल्कि हर तूफान से लड़ने की ताकत भी देता है, और इसी तरह एक फौजी की प्रेम कहानी अमर हो गई – जिसने देशभक्ति, प्रेम और बलिदान को एक ही सूत्र में पिरो दिया।