शहर के कोने पर एक पुरानी सी गली थी, जहां दिन में भी अंधेरा सा छाया रहता था। उसी गली के आखिरी मकान में एक बूढ़ी औरत रहती थी—श्रीमती जानकी देवी। पूरे मोहल्ले में उनकी गिनती एक रहस्यमयी महिला के तौर पर होती थी। न कोई उनके घर जाता, न कोई उनके बारे में जानता।
कहते थे, उनके पास किसी ज़माने में बड़ी दौलत थी, मगर अब वो बस अकेली हैं, और दिनभर एक पुरानी तस्वीर को घूरती रहती हैं। तस्वीर में एक युवक की धुंधली सी परछाई है, और पास ही बैठी एक मुस्कुराती लड़की।
लोग कहते थे, ये तस्वीर अधूरी है… क्योंकि उस तस्वीर में जिस युवक की शक्ल है, वो आज तक किसी ने देखा नहीं।
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कहानी की शुरुआत:
एक दिन, उसी मोहल्ले में एक नया लड़का रहने आया—अर्जुन। वो एक पत्रकार था, और उसे ऐसी ही पुरानी कहानियों में दिलचस्पी थी।
उसने मोहल्ले के लोगों से जानकी देवी के बारे में खूब सुना।
एक दिन उसने हिम्मत कर ली और उनके घर का दरवाज़ा खटखटाया।
दरवाज़ा धीमी आवाज़ के साथ खुला। सामने वही बूढ़ी महिला थी, झुकी हुई कमर, सफ़ेद बाल, मगर तेज़ निगाहें।
"क्या चाहिए तुम्हें?" उन्होंने सख़्त आवाज़ में पूछा।
अर्जुन झिझकते हुए बोला,
"मैं एक पत्रकार हूँ… आपकी कहानी जानना चाहता हूँ।"
जानकी देवी थोड़ी देर उसे देखती रहीं, फिर बोलीं,
"मेरी कहानी कोई कहानी नहीं… ये एक अधूरी तस्वीर है, जो कभी पूरी नहीं होगी। अगर सुन सको तो अंदर आ जाओ…"
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बीते दिनों की दास्तां:
अर्जुन भीतर चला गया। घर के अंदर हर तरफ पुरानी चीज़ें थीं—टूटे फर्नीचर, दीवारों पर जाले और वही पुरानी तस्वीर।
जानकी देवी तस्वीर को देखते हुए बोलीं—
"ये कहानी आज से पचास साल पहले की है।
उस वक़्त मेरा नाम जानकी नहीं, गंगा था। मैं इसी शहर की सबसे अमीर लड़की थी। पिता ज़मींदार थे। लेकिन दिल से मैं एकदम साधारण थी।
तब मेरी मुलाक़ात हुई थी एक गरीब चित्रकार से—अमन।
वो हमारे महल के पास ही बैठकर तस्वीरें बनाता था।
उसकी आँखों में जो सच्चाई थी, वो आज तक किसी में नहीं देखी।
धीरे-धीरे हम दोस्त बने, और फिर दोस्ती कब मोहब्बत में बदल गई, पता ही नहीं चला।
मगर ज़माना तब भी ऐसा था, मोहब्बत अमीर-गरीब नहीं देखती थी, मगर लोग देखते थे।
एक दिन, पिता ने हमें रंगे हाथों देख लिया।
गुस्से में उन्होंने अमन को शहर से निकाल दिया, और मुझे कमरे में बंद कर दिया।
मगर अमन जाते-जाते वादा कर गया था…
"गंगा, मैं लौटकर ज़रूर आऊँगा… और उस दिन तेरी ये अधूरी तस्वीर पूरी करूँगा।"
उसने मेरी एक तस्वीर बनाई थी, मगर वो अधूरी थी… उसमें मेरा चेहरा तो था, मगर उसके पास खुद की जगह खाली छोड़ दी थी।
मैंने उसका इंतज़ार किया… दिन, महीने, साल…
मगर अमन कभी नहीं लौटा।"
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सस्पेंस गहरा होता है:
जानकी देवी की आँखों में आँसू थे।
अर्जुन हैरान होकर तस्वीर देखने लगा।
वो तस्वीर आज भी अधूरी थी—लड़की की मुस्कान साफ थी, मगर बगल वाली जगह खाली थी।
अर्जुन ने धीरे से पूछा, "क्या आपको आज भी लगता है कि वो लौटेगा?"
जानकी देवी मुस्कुरा दीं,
"शायद अब नहीं, बेटा। अब तो मैं भी बस उस अधूरी तस्वीर जैसी ही बन गई हूँ—अधूरी, इंतज़ार में डूबी। मगर मेरा दिल कहता है, एक दिन ये तस्वीर जरूर पूरी होगी।"
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कहानी का मोड़:
अर्जुन के मन में कहीं न कहीं अजीब सा खिंचाव महसूस हुआ।
उसने धीरे से तस्वीर को उठाया…
जैसे ही उसने तस्वीर के पीछे देखा, वहाँ एक कागज चिपका था।
उस कागज पर लिखा था—
"अगर कोई इसे पढ़ रहा है, तो समझ लो… मैं लौट नहीं पाऊँगा।
गंगा, माफ़ करना… तुम्हारा अमन अब इस दुनिया में नहीं है।
मगर मेरी रूह हमेशा इस तस्वीर के साथ रहेगी…
तू खुश रहना, मेरी गंगा…"
अर्जुन कांप उठा।
उसने धीरे से जानकी देवी को वो चिट्ठी दिखाई।
जानकी देवी ने कांपते हाथों से चिट्ठी पढ़ी।
उनकी आँखों से बहते आँसू अब थम नहीं रहे थे।
वो तस्वीर को गले से लगा कर बोलीं— "अब मुझे कोई ग़म नहीं… मेरी तस्वीर पूरी हो गई बेटा…
अमन हमेशा के लिए मेरे पास लौट आया…"
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The End Scene (Emotional Climax):
अर्जुन चुपचाप सब देखता रहा।
जानकी देवी की आँखें धीरे-धीरे बंद हो गईं।
उनके चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी—जैसे कई सालों बाद सुकून मिला हो।
अर्जुन ने तस्वीर को दीवार पर टांग दिया।
आज भी उस तस्वीर को देखने वाले यही कहते हैं—
"कहते हैं, अब वो तस्वीर अधूरी नहीं रही…
क्योंकि मोहब्बत का रंग कभी फीका नहीं पड़ता।"
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✅ कहानी का संदेश
> सच्चा प्यार कभी नहीं मरता…
इंतज़ार चाहे जितना लंबा हो, मोहब्बत अपनी मंज़िल पा ही लेती है।