Aaryvart - 1 in Hindi Adventure Stories by sunita maurya books and stories PDF | आर्यावर्त (अंधकार का अभ्युदय) - 1

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आर्यावर्त (अंधकार का अभ्युदय) - 1

एक वर्षा भरी शाम
बारिश की हल्की बूंदें दिल्ली की पत्थर लगी सड़कों पर पड़ रही थीं। हवा में भीनी-भीनी महक थी — गीली मिट्टी, चाय की भाप और पुरानी किताबों की खुशबू। पुरानी हवेलियाँ भीगती हुई सड़कों के किनारे खड़ी थीं, मानो अपनी किसी भूली हुई स्मृति में डूबी हों।

दिल्ली विश्वविद्यालय ,पुस्तकालय 
आर्यावर्त,   बाल घुंघरालू. बदन पर चेक शर्ट डाले। फॉर्मल पैंट पहने वो लाइब्रेरी की एक टेबल के साथ रखी कुर्सी बैठा कुछ किताबों में अपनी नजरें गड़ाये उसको पढ़े जा रहा था ......उसकी आँखों पर चश्मा था .....तभी उसके साथ बैठे उसके दोस्त ने उसे कहा .....
अरे भाई कहा गुम है. मैं भी हूं तेरे साथ ये याद है ना, की भूल गया. कब से देख रहा हूं इस किताब में आंखे गड़ाये देखे जा रहा हूं। ऐसा क्या है इसमें?...... ऐसा कहकर वो मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखने लगा .......
"तुम क्या मानते हो, क्या आत्मा समय के परे यात्रा कर सकती है?" — आर्यवर्त ने अपने मित्र से पूछा, जब वे दिल्ली विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में 'प्राचीन वैदिक विज्ञान और चेतना की धारा' पर शोध कर रहे थे।

उसके हाथों में एक दुर्लभ पांडुलिपि थी — एक भूरे रंग का, ताम्रपत्रों में लिपटा ग्रंथ: जिसका नाम "चंद्रमणि रहस्य"। 

आर्यावर्त का सवाल सुनके उसका दोस्त थोड़ा हेरान हुआ और वो वापस उसको घूर का देखने लगा। फिर नजरे नीचे करके उसकी किताब की तरफ देखने लगा। उस किताब को देख उसने अजीब सा मुँह बना कर आर्यवर्त की तरफ देखा और फिर बोला ...... भाई तू इतनी सारी फेंटैसी किताब पढ़ेगा तो तेरे दिमाग में ऐसी ही उलजुलुल बाते ही आएगी ना ..... ऐसा कुछ नहीं होता भाई ।हम किस के बारे में पढ़ने आए थे और तू क्या लेके बैठ गया। भाई ऐसी फेंटसी किताबे बच्चे पढ़ते हैं  ये हम जैसा के लिए नहीं है 

तभी आर्यवर्त ने अपने दोस्त से कहा...अरे लेकिन ऐसा तो होता होगा। तुमने भी तो देखा है कि साइंस फिक्शन फिल्मों में  किस तरह टाइम ट्रैवल करते हैं.....कुछ तो सच होगा ना .....
उसके दोस्त ने उसकी बात सुनी और एक गहरी सांस छोड़ते हुए बोला... भाई  ऐसा कुछ नहीं होता वो तो सिर्फ फिक्शन है फिल्म है। और फिल्म में कुछ हकीकत नहीं होता.... ये सब दिमाग की मनगढ़ंत बातें हैं .....तभी आर्यवर्त आगे कुछ कहने की कोशिश करता है,उससे पहले ही उसका दोस्त बोला। ..... भाई ये सब बाते बाद में, अब घर चले। काफ़ी देर हो गई और बारिश भी तेज़ हो चली है ......
ऐसा कहकर वो वहां से खड़ा हो गया और जाने लगा... उसको जाता देख आर्यावर्त ने अपनी किताब उठाई और उसको बैग में रखते हुए उसके पीछे जाने लगा... ठीक है मैं भी आता हूं ......

आर्यावर्त का कमरा .....
आर्यावर्त अपने कमरे के वॉशरूम में था.. उसने अपने बैग को बिस्तर पर रख था उसका आधा बैग खुला था जिसमें से चंद्रमणि  रहस्य किताब बाहर निकली हुई थी.... उसके कमरे की खिड़की कुछ खुली थी। . जिसकी हवा अँदर कमरे में आ रही थी. जिसकी वजह से उस किताब के पन्ने इधर उधर होकर आवाज कर रहे थे।.....
वॉशरूम का दरवाजा खुला. आर्यवर्त बाहर आया उसके बदन पर कुछ भी कपड़ा नहीं था.. सिर्फ एक तौलिया जिसे उसने अपने शरीर के नीचले हिस्से में बांधा था।बाहर आते ही उसकी सबसे पहली नजर उस किताब पर गई.... वो देखकर उसने देखा कि उसकी किताब में एक ही जगह से नीली रोशनी  बाहर आ रही है .....ये देख पहले तो उसको काफी अजीब लगा ...लेकिन  उसकी सांसे अटकने लगी थी उसने आस-पास नज़र घुमायी। और फिर उस किताब की तरफ़ देखने लगा . वो धीमे कदमो से चलकर उस किताब के पास आया....
अबतक उसके दिल की धड़कने ट्रेन की रफ़्तार से चल रही थी.... उसने अपने काँपते हाथों से उस किताब की तरफ अपना हाथ बढ़ाया ...जैसे ही उसने अपना हाथ किताब की तरफ किया। वेसे ही किताब के पन्ने जोर जोर से इधर से उधर होने लगे और उस किताब की नीली रोशनी और तेज होने लगी... वो रोशनी इतनी तेज हो गई कि वहां कुछ भी दिखना बंद हो गया ...ये होते हुए आर्यवर्त की एक चीख के साथ सब शांत हो गया ....

आर्यवर्त की आँखें खुलती हैं। वह किसी झरने की आवाज़ सुनता है। पक्षियों की चहचहाहट और मंद हवा में बेला और चंपा की सुगंध तैर रही है। सामने एक विशाल जलप्रपात है, जिसके नीचे एक नीली झील फैली हुई है, और चारों ओर हरे-भरे वृक्ष हैं। आर्यवर्त की देह अब शक्तिशाली है — भुजाओं में बल, पीठ पर धनुष, कमर में कटार। वह एक युवा शास्त्रवीर बन चुका है — आर्यवर्त, ऋषभ कुल का पुत्र।

झील के किनारे एक प्राचीन पत्थरों से बना राजमहल खड़ा है — तक्षशिला नरेश राजा देववर्मा का राजप्रासाद। उसके ऊँचे स्तंभों पर गंधर्वों और नागों की मूर्तियाँ उकेरी गई हैं। महल की छतें नीले पत्थरों से ढकी हैं, जो सूर्य की रश्मियों में चंद्रिका-सी चमकती हैं।ये जितना अच्छा बाहर से नज़र आता है उतना ही अच्छा अंदर से भी है...अंदर सुंदर हरे भरे बाग।  तालाब. झरने .  बड़ी बड़ी दीवारे युद्धकला सिखने का मैदान। 

आर्यवर्त आस पास देखने लगा  और अपने  आपको देखकर हेरानी से अपने हाथों से अपने ही शरीर को स्पर्श करके देखने लगता है और  बुदबुदाता है "यह कौन सी भूमि है? यह शरीर... यह स्मृतियाँ... यह कोई स्वप्न नहीं।"......ये मैं कहां आ गया हू? .....
वो चलकर पास वाली झील के सामने खड़ा हो जाता है और खुद को उसमें निहारने लगता है ..  उसमें उसकी ही एक प्रतिबिम्ब दिख रही थी .....वो ये सब देखकर काफी हेरान था
तभी एक सेवक दौड़ता हुआ आता है, "आर्यवर्त! आर्यवर्त!
आर्यवर्त बड़ी ही हेरानी से उसकी तरफ देखता है ....वो सेवक कहता है ......हमारे सेवक ने भी लोहे के कवच पहनने थे ......आर्यवर्त को कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी वो सेवक बोला
राज्यसभा ने आपके परिवार जन को बंदी बना लिया है! आपके चाचा ऋषभ दत्त पर चंद्रकांता मूर्ति बदलने का आरोप है!".....

आर्यवर्त स्तब्ध रह जाता है। और कहता है...."चंद्रकांता? वह मूर्ति तो पीढ़ियों से हमारे परिवार की रक्षा में रही है।"

सेवक बताता है, "आज सूर्योदय पर जब महल के गर्भगृह में पूजा की गई, तो चंद्रकांता की मूर्ति मंद पड़ी मिली। और राजगुरु द्वार उसकी जाम करने के बाद उनका का कहना है कि यह नकली है।".......तुम हमारे साथ राजमहल चलो........

आर्यवर्त तत्काल तक्षशिला दरबार की ओर बढ़ता है। रास्ते में वह *राजगंगा झील* के किनारे से गुजरता है। वहाँ हंसों का एक झुंड उड़ता हुआ निकलता है, और दूर से मंदिर की घंटियाँ सुनाई देती हैं। दरबार के समीप आते ही उसे सैनिकों की निगाहें चुभती हैं। वो लोग उसको संदेह कि  नज़रों से देख रहे थे। और आपस में कुछ बातें कर रहे थे ....

राजसभा में प्रवेश करते ही, दरबारी उसे संदेह भरी नज़रों से देखते हैं। उच्च आसन पर बैठे  राजा देववर्मा, उनके बाएँ राजगुरु वाचस्पति बैठे थे....

राजगुरु कठोर स्वर में कहते हैं: ...."ऋषभ दत्त पर दोष सिद्ध है। चंद्रकांता की मूर्ति की ज्योति मंद हो गई है। यह नकली है।इतनी बहुमुल्य वस्तु चुराने के लिये इन को अवशय ही दंड मिलना चाहिए 
चंद्रकांता मूर्ति"यह मूर्ति दूधिया संगमरमर की बनी होती है, परन्तु इसका रंग चंद्रप्रकाश के अनुसार बदलता रहता है कभी हलका नीला, कभी चांदी जैसा सफेद, और कभी हल्की गुलाबी आभा लिए हुए।मूर्ति लगभग तीन फुट ऊँची है, कमल पर विराजमान एक देवी के रूप में है, जिनकी आँखें बंद हैं — मानो ध्यानमग्न हैं। लेकिन जब कोई सत्य या समय से जुड़ा प्रश्न सामने होता है, तो मूर्ति की आँखें नीली रोशनी से भर उठती हैं।
ये मूर्ति तक्षशिला का सम्मान थी.. जिसे अब किसीने चोरी कर ली थी। और इसका सीधा संदेह उनके रक्षको पर ही रह गया था। क्योंकि वे ही उसकी देखभाल करते थे 
आर्यवर्त शांत भाव से सबको बाते सुन रहा था और फिर कुछ सोच कर कहता है, "महाराज, मुझे ये साबित करने के लिए मेरे चाचा ऋषभदत्त ने को चोरी नहीं की है इसके लिए मुझे कुछ समय चाहिए .यदि आप अनुमति दें, तो मैं एक परीक्षा करना चाहता हूँ — सत्य को प्रमाणित करने के लिए।"
आर्यावर्त की ये बात सुन कुछ लोग उसको पक्ष में कहते हैं तो कुछ लोग उसके विपक्ष में लेकिन
राजा संकेत देते हैं।.....अवश्ये सत्ये को प्रमाणित को किया जाना चाहिए तुम्हें समय दिया जाता है ....... परंतु यदि तुम ऐसा करने में असमर्थ  रहे तो .....

तभी आर्यवर्त ने बड़े आत्मविश्वास से भरी आवाज़ में सभा में कहा....... ऐसा ही होगा महाराज!.... ऐसा कहकर उसने अपने कदम पीछे लिए और मुडकर वहां से चला गया.... आज ये देखकर सभी, आज आर्यावर्त की चाल और बोली में अलग तरह का आत्मविश्वास नजर आ रहा  था......

आर्यवर्त प्राचीन मंदिर के *सोमकुंड* में जाता है — यह मंदिर राजमहल के दक्षिण-पश्चिम में, जलप्रपात के पास स्थित है। झील के किनारे उग आए कमल और उनकी पंखुड़ियों पर चमकते ओसकण, वातावरण को दिव्य बना रहे थे मंदिर के भीतर का कुंड बिल्कुल शांत था— उसका जल दर्पण की भांति था..... उसको ऐसा लग रहा था जैसे वो यहां पहले भी आया है। यहां के बारे में मैं जानता हैं...फिर वो कुछ सोच कर .. नकली मूर्ति को उठाकर कुंड के सामने रखता है। फिर वह अपने साथ लाए मणिजड़ित रक्षाहार को जल में दिखाता है — वही हार जो बचपन में चंद्रकांता मूर्ति के गले में देखा था।

जैसे ही वह हार जल में प्रतिबिंबित होता है, एक नीली ज्योति जल की सतह पर प्रकट होती है। लेकिन नकली मूर्ति में कोई प्रतिक्रिया नहीं होती।

ये देख आंखे बंद करके आर्यवर्त शांति से मंत्र पढ़ता है — *"सोमस्य तेजः प्रकट्यतु"*। जल एक बार फिर चमकता है — और अब उसमें *एक छाया प्रकट होती है* — मंदिर के पीछे स्थित एक गुप्त तहखाने की ओर संकेत करती हुई।  ये देख आर्यवर्त उसकी ज्योति के पीछे जाने लगता है .....

कुछ समय पश्चात 
आर्यवर्त, सैनिकों के साथ तहखाने की ओर जाता है। वहाँ एक गूढ़ द्वार है, जिस पर संस्कृत में लिखा है:

"कालविज्ञानी ही सत्य का साक्षात्कार कर सकता है।"

आर्यावर्त मंत्र पढ़ता है और गडगडाकर  द्वार खुल जाता है। भीतर एक तांत्रिक कक्ष था कहा कई सारी तंत्र मंत्र की चीज रखी थी  — बीच में एक चंद्रमा की आकृति वाला यंत्र, जिसके केंद्र में *असली चंद्रकांता मूर्ति* थी वह मूर्ति चंद्रिका की भाँति प्रकाशमान थी — दूधिया संगमरमर की बनी, और उसके चारों ओर रत्न जड़े हैं।

जैसे ही आर्यवर्त चंद्रकांता मूर्ति के पास जाने लगता है  उसकी हथेली स्वयं प्रकाशित हो जाती है।ये देख आर्यावर्त को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। ये देख वो भी काफी हेरान था ... मूर्ति की आँखें नीले प्रकाश से दमकने लगती हैं। चारों सैनिक और मंत्री स्तब्ध रह जाते हैं।......

राजमहल  .......
राजसभा फिर से बुलाई जाती है। असली मूर्ति के सामने लाने पर राजगुरु के साथ सभी  नतमस्तक होते हैं  राजा कहते हैं:.....
"आर्यवर्त, तुम भी जानते हो  और यहां उपस्थित सभी लोग जानते हैं कि ये मूर्ति हमारे राज्य के लिए कितनी महत्वपूर्ण है . मूर्ति को वापस लाकर तुमने अपने कुल को और हमारे राज्य को कलंक से मुक्त किया है।इस उपकार के बदले  मैं तुम्हें 'तक्षशिला का रक्षक' घोषित करता हूँ।"
ये सुन सभी खुश हो जाते हैं और ताली  बजाने लगते हैं.. लेकिन आर्यावर्त के चेहरे पर अभी गंभीरता नजर आ रही है। उसने अपने चाचा और बाकी परिवार को साथ लिया और वहां से जाने लगा...

लेकिन राजगुरु की आँखें आर्यवर्त के माथे पर टिक जाती हैं, जहाँ एक हल्की चंद्ररेखा उभर आई है। वे धीमे स्वर में कहते हैं:"यह संकेत है... यह वही है, जिसे 'सोमकला' की शक्ति कहा जाता है। वह शक्ति जो समय के आवरण को चीर सकती है।"..........वो उसको बस जाता हुआ देख रहे थे... राजगुरु... जिन्होनें  गेरुआ रंग के वस्त्र कहने थे.  लम्बी दाढ़ी और लंम्बे सफ़ेद बाल.... आँखो में तेज़. पेर में लकड़ी की पादुकाए......


आर्यवर्त अपने चाचा की स्थिति देखने उनके कक्ष में आता हैं तो वो देखते हैं कि उसके चाचा बिस्तर पर बैठे हैं... उनके पास में चाची और  वहा उसका चचेरा भाई भी वही  खड़ा हैं....उसकी चाची  जो पहले आर्यवर्त को तिरस्कार से देखती थी, अब उसकी समझ बदलने लगी.....
"मैंने तुझमें कभी ऋषभ का बेटा नहीं देखा... पर आज, जब तू पूरे दरबार के सामने खड़ा हुआ... तू मेरे बेटे जैसा लगा।"मुझे माफ़ कर देना बेटा ....(वह उसके माथे पर हाथ रखती है। आर्यवर्त कुछ नहीं कहता, बस आँखें झुकाता है।)

उसका भाई..जिसका नाम युवन था वो उसके पास आया और बड़े ही प्यार से उसको गले लगाकर बोला... धन्यवाद भैया .....

फिर आर्यवर्त अपने चाचा का हाल चाल लेकर वहां से चला जाता है... उसके दिमाग में कई सारी बात एक साथ चल रही थी...

रात्रि में, 
राजमहल की छत पर खड़ा आर्यवर्त नीचे बहती राजगंगा झील को देख रहा था  झील में चंद्रमा की प्रतिबिंबित किरणें ऐसे प्रतीत होती हैं मानो कोई रहस्यपूर्ण लिपि उभर रही हो। दूर झरने की आवाज़ और बेला की महक वातावरण को आध्यात्मिक बना रही थी 

आर्यवर्त मन ही मन सोचता है:
"क्या मैं केवल एक सपना देख रहा हूँ, या कोई अंजानी शक्ति मुझे यहाँ लाई है? चंद्रकांता, सोमकुंड, वह मंत्र, यह शक्ति... क्या यह सब मेरे साथ पहले भी घटित हो चुका है?....
अरे मैं ये कैसे बाते कर रहा हूँ.... फिर अपनी दिल्ली के बारे में सोचता हुआ बोला...
पहले मैं दिल्ली में लैपटॉप पर शोध कर रहा था, और अब... अब मैं एक झील के किनारे बैठा हूँ, माथे पर चंद्ररेखा चमक रही है, पीठ पर तलवार है, और चारों ओर संस्कृत बोलने वाले सुपरहीरो घूम रहे हैं।"और ये कपडे कितने चुब रहे हैं ...

फिर अपने आप में ही मुस्कुराते हुए बोला..,
"कभी-कभी लगता है — मैं टाइम ट्रैवल करके आया नहीं, किसी पौराणिक स्पेस ड्रामा के प्रोमो में फँस गया हूँ।"
फिर कुछ घबराते हुए बोला... अरे बाप रे अब मैं यहां से कैसे निकलूंगा.... मम्मी पापा मुझे ढूंढ रहे होंगे। फिर कुछ सोचते हुए अपने से ही बोला........"मम्मी होती तो बोलती — बेटा गेंहू पीसने भेजा था, तू राजगुरु बनने चला गया?"तू तो सुपर हीरो बन गया...

फिर अचानक मुस्कुराता हुआ बोला....
"लेकिन चलो... एक बात तो माननी पड़ेगी — धोती पहनने की आदत हो गई है, और तलवार चलाने में जो संतुष्टि है ना... वो घंटो लैपटॉप के आगे बैठकर मीटिंग करने में कभी नहीं था!"
धीरे से जमीन पर हाथ फेरते हुए"तू कर सकता है आर्यवर्त... बस थोड़ा स्मार्ट बन, थोड़ा वीर और .. क्योंकि इस दुनिया को एक योद्धा चाहिए — जो संस्कारों में तड़का और तलवार में मुस्कान ला सके।".......अब मजा आएगा ना जिंदगी में .....फिर कुछ सोचते हुए बोला... वेसे ये मुझे सपना तो नहीं लगता।  ......

फिर  मुस्कराते हुए  थोड़ा तेज़ आवाज़ में बोला....
"अबे!   चलचित्र  वालों, रिकॉर्ड कर लो — ये बंदा रिटर्न जाने वाला नहीं है। अब तो कहानी शुरू हुई है!"......ऐसा कहकर वो अपनी जगह पर लेट गया.आंखे बंद कर ली... उसके कानों में हल्की-हल्की पानी की आवाज। लहरती हवा की आवाज। और रात में बोल रहे झिंगुरो की आवाज आ रही थी...हवा की वजह लहराते पत्तों की चंचलता.... उसके मन को शांति दे रही थी... आज उसके दिन भर की थक्कन ख़तम हो रही थी कि अचानक हवा में ठंड का एहसास बढ़ जाता है.. और हवा में दम घोंटने जैसा महसूस होने लगता है और तभी हवा में एक मंद स्वर गूंजता है — मानो कोई अदृश्य सत्ता कह रही हो:

"यात्रा अभी प्रारंभ हुई है, आर्यवर्त..."

और तब, आकाश में पूर्णिमा का चंद्रमा अचानक और अधिक तेज़ हो जाता है। अचानक आर्यावर्त की आंख खुलती है उस्की आँखों में नीली चमक दौड़ती है, और उसके माथे पर एक चंद्ररेखा स्पष्ट रूप से चमकने लगती है।





आगे क्या होगा... क्या आर्यवर्त यहां से निकल पाएगा। या फिर यहीं फंस जाएगा।  और क्या हैं उस नीली चमक का रहस्य। चंद्रकांता और आर्यावर्त का रहस्य है।  और किसने चुराया चंद्रकांता मूर्ति को . क्या वो पकड़ा जाएगा .और क्या होने वाला है आर्यावर्त के साथ... जानने के लिए बने रहे आर्यावर्त (अंधकार का अभिउदये) In the age of darkness, A hero shell rise.....