Chandrvanshi - 6 in Hindi Mythological Stories by yuvrajsinh Jadav books and stories PDF | चंद्रवंशी - अध्याय 6

Featured Books
Categories
Share

चंद्रवंशी - अध्याय 6

चंद्रमंदिर का रहस्य

बहुत समय पहले सूर्यवंशी राजा यहाँ राज्य करते थे। उस समय बंगाल आधा समुद्र में था। पांडुआ सूर्यवंशियों की राजधानी थी। वह समय में समुद्र से करीब तीन किलोमीटर दूर था। जिससे समुद्र के पास का क्षेत्र रेतिला था और वह बंजर भी था। उस समय सूर्यवंशी राजाओं के सूबेदार के रूप में चंद्रवंशी राजा होते थे। जिससे युद्धों में और राज्य विस्तार में चंद्रवंशी राजाओं की बड़ी संख्या में मृत्यु होती और राज्य क्षेत्र से प्राप्त हुए सोने-जेवरात सब कुछ सूर्यवंशी राजा को सौंपना पड़ता। अगर राजा खुश हो जाए तो ही उसका थोड़ा हिस्सा मिलता। फिर भी चंद्रवंशी सूबेदारों ने अपनी राज्य विस्तार की नीति चालू रखी। समय के साथ सूर्यवंशियों के राज्य का विस्तार हुआ। सूबेदारों द्वारा जीते गए नए राज्य बहुत ही समृद्ध थे और इसलिए चंद्रवंशी सूबेदारों के अत्याचारों से बचने के लिए वे सोने का ढेर देकर छुटकारा पाते। जिसकी जानकारी सूर्यवंशी राजाओं को भी नहीं होती थी।
अब, चंद्रवंशियों के पास धन बढ़ता गया तो ऐसा कानाफूसी होने लगी कि वे स्वतंत्र होने जा रहे हैं, ऐसी बात मंत्रियों ने राजा तक पहुँचाई। जिससे राजा ने चंद्रवंशियों को जो भी धन उनके पास है, उसे राज्य को सौंपने का आदेश देने के लिए एक दूत भेजा। चंद्रवंशी जान चुके थे कि अगर इस समय ये धन सौंप देंगे तो जनता का धन मंत्री हड़प लेंगे और समय के साथ वही राज्य अपने हाथों में ले लेंगे।
उनके पास दो रास्ते थे — एक, जनता के हिस्से का धन उन्हें सौंप दिया जाए, या फिर उनके भविष्य के लिए वह धन को संग्रह करके समय आने पर उनकी पीढ़ी को वापस सौंपा जाए। लेकिन अब जब राजा ने आदेश दिया है तो धन जनता को सौंपा नहीं जा सकता।
राज्य विस्तार करते-करते सामंत राउभान राज्य के संकट के समय धन की कितनी आवश्यकता होती है, यह जान चुका था। इसलिए उसने चंद्रवंशियों के गुरु से इस बारे में बात की। तो उन्होंने उत्तर देते हुए कहा कि पांडुआ के जंगलों में भव्य चंद्रमंदिर की स्थापना करो और वहाँ से सौ गज दूर नई प्राप्त हुई द्युत खाड़ी में सारा सोना दफना दो।
राउभान ने कुलगुरु से पूछा, “गुरुजी, पांडुआ में दफनाने से तो राजा को पता चल जाएगा?”
“मंदिर के बहाने समुद्री मार्ग से सारा सोना पहुँच जाएगा और सबकी नजर जंगल में बने उस मंदिर तक ही सीमित रहेगी।”
“लेकिन गुरुजी, जंगल में रास्ता होगा तो लोग जान जाएंगे।”
“एक काम कर, मंदिर में हवन कुंड की जगह बना और उस हवन कुंड के ठीक नीचे ही उस खाड़ी तक जाने का रास्ता बनाओ।”
राउभान समझ गया। उसने दोनों हाथ जोड़कर गुरु का आशीर्वाद लिया।
पांडुआ से आए राजदूत को राउभान ने कहलवाया, “हमारे पास जितना भी धन है, उससे हम मंदिर बनाना चाहते हैं और सम्पूर्ण पांडुआ राज्य को भोजन कराना चाहते हैं।”
दूत राजा के पास गया और उसने चंद्रवंशी सूबेदारों का संदेश राजा तक पहुँचाया। उस समय पांडुआ में सभा बुलाई गई और मंत्रियों की राय ली गई। सभा में चंद्रवंशी सूबेदार भी थे, जिससे धन के लोभी मंत्रियों को धन से ज्यादा मृत्यु का भय लगने लगा। इसलिए सभी मंत्रियों को वह विचार उचित लगा। लेकिन एक काणा मंत्री खड़ा होकर बोला, "महाराज, आप इन चंद्रवंशियों की चाल नहीं समझ रहे। उनके पास अथाह धन है। मात्र मंदिर बनाने से उनका धन समाप्त नहीं होगा..” उस समय मंत्री की बात काटते हुए राउभान बोला, “हम केवल मंदिर ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण जनता को मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा के उपलक्ष्य में भोजन भी कराएँगे और युद्ध के दौरान बहे रक्त की छींटों में अनेक मासूम सिपाही भी मारे गए हैं। उनके संतान की एक दिन की भूख भी अगर हम मिटा सके, तो ही हम अपने पाप से मुक्ति पा सकेंगे।”
काणा अब नीचे बैठ गया लेकिन उसे मिली गुप्त जानकारी से वह इतना तो जानता था कि चंद्रवंशियों के पास इतना धन है कि वे उसके थोड़े से हिस्से के खर्च से ही एक नया राज्य खड़ा कर सकते हैं।
मंदिर योजना के अनुसार बन गया। मंदिर में नींव के साथ-साथ भोंयरा (सुरंग) भी खोदा गया था। उन्होंने उस भोंयरे को एक गुफा में परिवर्तित कराया जिसमें कुछ हिस्सों में सोने की खान में पहुँचे अजनबी लोग उसे लूट न लें, इसलिए वहाँ मौत का खेल भी रचाया गया था। उसका अंत द्युत खाड़ी था। लेकिन वह सोना प्राप्त करने के लिए तो मंदिर से होकर ही जाया जा सकता था। मंदिर के चारों तरफ बड़ी दीवार पहले ही बना दी गई थी। जिससे, बाहर से नजर रखने वाले अंदर झाँक न सकें। वही दीवार बड़े हिस्से में इस गुफा का द्वार भी थी।
अब, मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा का समय पास आ गया था। इसलिए राउभान ने सोने की रक्षा के लिए अद्भुत व्यूह रचना गंधारशैली के कारीगरों से करवाई। भोंयरे में पहले तो वही प्रवेश कर सकता था जिसके पास अर्धचंद्राकार चांदी के चंद्र का आधा ताबीज़ — ही बड़ी चाबी थी। जब मंदिर के गर्भगृह के बाहर स्थित यज्ञकुंड में दो दिन यज्ञ किए जाएं तो वह हवनकुंड अपनी जगह से हटकर दूसरा द्वार खोले। उस द्वार में ताबीज़ रखकर चंद्रवंशी का खून गिराने पर वह ताबीज़ उसकी चाबी बनकर उसे वहाँ से हटाकर तीसरे द्वार यानी कि जो मंदिर की दीवार में मौजूद पत्थर को हटाकर खुलने लगता। उसके बाद वह मौत की गुफा का रास्ता खुल जाता और अगर कोई उसे तोड़ने का प्रयास कर सोना प्राप्त करने जाता, तो गुफा में रखा सोना बहुत ही नीचे स्थित लावे में विलीन हो जाता।
(यह रहस्य चंद्रताला मंदिर के गर्भगृह की चोटी पर स्थित "रोशनी" नामक जाली में राउभान ने अपने वंशजों के लिए मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा के बाद खुदवाया है।) 

***