Ishq Benaam - 5 in Hindi Fiction Stories by अशोक असफल books and stories PDF | इश्क़ बेनाम - 5

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इश्क़ बेनाम - 5

05

नई चुनौतियाँ

धीरे-धीरे होली आ गई। और होली बाद रंग पंचमी पर ‘मनमस्त’ जी के यहाँ फाग गोष्ठी भी। जाना नहीं चाहता था मंजीत, क्योंकि इस विषय पर कोई गीत उसने लिखा नहीं था। पर इसी आशा में चला गया कि शायद वह आए और फिर एक बार नजर भर देखूं, उसकी मीठी आवाज सुनूँ! न हो बातचीत, न उंगलियों से उंगलियों की छुअन- कोई बात नहीं, एक-दो दो घंटे का साथ ही मिल जाए, उसी से जी लूँगा! मौका मिला पहले की तरह फिर घर छोड़ने का, तो गली के अँधेरे मोड़ पर हाथ जोड़ माफी माँग लूँगा।

तब उसकी यह प्रार्थना ऊपर वाले ने शायद सुन ली जो रागिनी वहाँ आ गई और वह बगल में आ बैठा तो बिदकी भी नहीं। डायरी खोल नई कविता भी दिखाई और उसने तारीफ की तो आँखों में पहले सरीखा स्नेह-एहसान भी झलक उठा। 

गीत जब पढा उसने, उछल-उछल तारीफ के पुल बाँधे मंजीत ने। इससे आत्मीयता और बढ़ गई। 

गीत था भी बहुत प्यारा। और उसने गाया भी खूब सुरीले कंठ से:

‘दिल झूम-झूम जाए, मेरा मन गुनगुनाए

आया फागुन का महीना, दिल फाग-गीत गाए।।

उड़े चंदन की सुगन्ध, भँवरे गीत गुनगुनाए।

रंग सावन सा बरसे, दिल लरज-लरज जाए।।

फूल फूले चहुँओर, वायु शोर मचाए।

नाचें सखियों के संग, तितली सपने सजाए।।’

 

गीत सँग तालियों की लय दी पुरुष वर्ग ने तो चुटकियाँ बजा-बजा ताल दी महिलाओं ने। मंजीत इस गोष्ठी का अध्यक्ष था। उसने अपने वक्तव्य में कहा:

‘रा-रा रागिरी जी का आज का काव्य-पाठ बहुत बेहतरीन रहा। यह गीत फागुन की खुशी और उत्साह को व्यक्त कर रहा है। इसमें प्रकृति की सुंदरता, जैसे चंदन की सुगंध, फूलों का खिलना, भंवरों का गुनगुनाना और वायु के शोर का वर्णन है। गीत के माध्यम से मन की उमंग, दिल का झूमना और सपनों का सजना प्रकट होता है, जो सखियों के साथ नृत्य और तितलियों के उड़ने से और बढ़ जाता है। कुल मिलाकर, यह बसंत के रंगीन और जीवंत माहौल का उत्सव है।’

गोष्ठी के समापन पर जब वह जाने लगी और मंजीत ने धड़कते दिल से कहा कि, ‘चलो छोड़ दूँ’ तो इनकार नहीं किया!

स्कूटर गली के मोड़ पर रोक, अँधेरे-उजाले का लाभ उठा, हाथ जोड़ माफी माँग लूँगा, उसने सोच रखा था। पर आज मोड़ पर स्कूटर तो रुकाया ही नहीं! और जब ऐन दरवाजे पर आ गया, रोक कर उसे उतार दिया और मोड़ कर चलने लगा तो ताला खोलते देख पूछ लिया, ‘कोई है नहीं, आज!?’

‘आज क्या, होली से ही... शिखर जी गए हैं सब...।’ वह मुस्कुराई।

‘और तुम?’

‘हम नहीं...’

‘अरे! बताया नहीं, घर रुकतीं इतने दिनों... चलो अब भी चलो, अकेली न रहो...।’

‘चलूँ!?’ उसने मन लिया।

‘हाँ-जी, क्यों नहीं, मोस्ट वेलकम!’ मंजीत उत्साहित हो गया। और रागिनी ने भी सोचा कि क्यों न चली ही जाऊँ! पर अगले ही क्षण भय लगा कि- मोहल्ले वालों को भनक पड़ गई कि वह रातभर घर से गायब रही है तो मम्मी-पापा को बताए बिना मानेंगे नहीं... अच्छे-भले में आफत आ जाएगी!

वह हँसी, ‘अब क्या जाना...’ 

‘क्यों?’

‘वैसे ही...।’ 

‘अरे!’ दिल में एक हूक सी उठी कि- अंदर आने के लिए कहे तो चला जाऊँ! थोड़ी देर बैठ लूँ पास, माफी माँग लूँ सच्चे दिल से... अंध धार्मिक नहीं पर कितनी दृढ़ है अपने सिद्धांत पर। सचमुच बहुत नेक है और भोली भी जिसने दिल रखने के लिए ही साथ निभाया शायद! वैसे उसकी ऐसी कोई इच्छा न थी, और चूड़ी चटक गई फिर भी विशेष खफा न हुई।

मगर उसने कहा नहीं और वह रुका नहीं। पर अगली शाम फिर आ गया। सोचा भी नहीं था कि अचानक लॉटरी लग जायेगी...। 

उन पन्द्रह दिनों में उनकी प्रेम कहानी रोज-ब-रोज नई-नई सीढियां चढ़ने लगी। जिंदगी में नया रंग भर गया। वह हर शाम रागिनी के घर आता, कभी साथ खाना खाता, कभी उसे साथ ले बाहर घूमने निकल जाता। शहर से थोड़ा बाहर वो छोटा सा पार्क उनका पसंदीदा ठिकाना बन गया, जो रागिनी ने ख्वाब में देखा था। वहाँ की झील, पेड़ों की छाँव, और एक-दूसरे का साथ... बस इतना ही काफी था। 

लोग बातें करते, सवाल उठाते, पर रागिनी को अब इन सबकी परवाह न थी। उसने अपने दिल की सुनी। उसे जो सुकून इस साथ में मिल रहा था, वो किसी और चीज से नहीं मिल सकता था।

एक शाम, जब दोनों पार्क में बैठे थे, रागिनी ने अचानक कहा, ‘मंजीत, अगर कभी जिंदगी में मुश्किलें आईं, तो क्या तुम मेरे साथ रहोगे?’ मंजीत ने उसकी आँखों में देखा और बिना झिझक कहा, ‘रागिनी, मैं तुम्हारे लिए अपनी जान भी दे दूँगा, मुश्किलें तो छोटी बात हैं।’ उसकी आवाज में एक ठहराव था, जो रागिनी के दिल को छू गया।

...

रागिनी और मंजीत की जिंदगी में अब एक नया रंग घुल चुका था। हर सुबह उनके लिए एक नई उम्मीद लेकर आती थी, पर साथ ही कुछ अनकही चुनौतियाँ भी। दोनों ने तय किया था कि वे अपने रिश्ते को धीरे-धीरे, समझदारी के साथ आगे बढ़ाएँगे। लेकिन समाज की नजरें और परिवार की अपेक्षाएँ उनके रास्ते में कांटों की तरह बिछी थीं।

एक दिन दोपहर को जब रागिनी अपने घर के आँगन में बैठी कुछ सिलाई का काम कर रही थी, ताई की लड़की सौम्या जो उससे उम्र में बड़ी थी गाँव से अचानक आ गई। सौम्या ने अपना चेहरा कुछ गंभीर कर रखा था। उसने रागिनी की ओर देखा और धीरे से कहा, ‘रागिनी, मैंने सुना है कि तू आजकल किसी लड़के के साथ कुछ ज्यादा ही वक्त बिता रही है। क्या चल रहा है, तुम दोनों में?’

रागिनी के हाथ एक पल के लिए रुक गए। उसने सौम्या की ओर देखा और हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, ‘दी, हम दोस्त हैं, बस... एक-दूसरे को समझ रहे हैं।’

सौम्या मुस्कुराई, ‘दोस्ती! रागिनी, तू समझती है कि लोग इतने भोले हैं? मोहल्ले में बातें शुरू हो चुकी हैं। और हमारे मम्मी-पापा को भी गाँव बैठे सब खबर लग रही है...। तुझे पता है न, हमारी कम्युनिटी में ये सब कितना मुश्किल है?’

रागिनी ने एक गहरी साँस ली। वह जानती थी कि सौम्या सही कह रही है। जैन परिवार में शादी-ब्याह के लिए रीति-रिवाज और सामुदायिक मान्यताएँ बहुत सख्त थीं। और मंजीत का सिख होना इस रिश्ते को और जटिल बना सकता था। उसने सौम्या का हाथ पकड़ा और बोली, ‘दी, मुझे पता है ये आसान नहीं है। लेकिन मंजीत... वो मेरा साथ देता है, मेरा ख्याल रखता है। मैं उसके साथ खुश हूँ।’

सौम्या ने उसकी बात सुनी और फिर धीरे से बोली, ‘रागिनी, खुशी जरूरी है, लेकिन ये समाज और परिवार तुझे इतनी आसानी से नहीं स्वीकार करने वाला। 

सुनकर रागिनी का चेहरा फीका पड़ गया। उसके मन में एक अनजाना डर जाग उठा। उसने मंजीत से इस बारे में ज्यादा बात नहीं की थी, क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि उनके बीच की नई-नई खुशी में कोई दरार आए।  

चेहरे पर हवाइयाँ उड़ते देख सौम्या ने हँस कर कहा, ‘वैसे तेरे चेहरे की रौनक तो बदल गई है, यार... गाल भर गए हैं।’

सुनकर उसे अच्छा लगा और मुस्कुराने लगी। फिर उसने उसे बढ़िया-सी चाय बनाकर पिलाई। सौम्या जब जाने लगी, रागिनी उसे दरवाजे तक छोड़ने आई। और तब जाते-जाते उसने उसके सीने पर नजर गड़ाते हुए कहा, ‘यार, अब तो तुम्हारे बूब्स भी खूब खिल गए हैं!’ रागिनी शरमा गई और उसने नजर झुका ली तो सौम्या ने उसकी साइड देखते हुए कहा, ‘पहले हिप्स भी कितने सूखे-सूखे थे!’ 

‘दी, अब तुम जाओ!’ वह खिसिया गई। 

सौम्या चली गई और रागिनी गेट बंद कर अंदर आ गई। चिंता उसके सर पर सवार थी। सोच रही थी, अकेले जूझने से अच्छा है, शाम को मंजीत के घर चली जाऊँगी।

इधर, मंजीत भी अपने मन में एक तूफान से जूझ रहा था। ऑफिस से लौटते वक्त वह अपने वकील के पास गया था। वकील ने साफ कहा, ‘मंजीत, नताशा तलाक के लिए आसानी से तैयार नहीं होगी। वह एक एनआरआई है... अगर उसने तुम्हारे खिलाफ घरेलू हिंसा का केस दायर कर दिया तो सजा होकर रहेगी।’

मंजीत का सिर चकराने लगा। उसने वकील से पूछा, ‘तो अब क्या करना होगा?’

वकील ने गंभीर स्वर में कहा, ‘तुम्हें नताशा से बात करनी होगी। अगर वो आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार हो जाए, तो बात आसान हो सकती है। लेकिन इसके लिए तुम्हें धैर्य रखना होगा।’

...

घर लौटते वक्त मंजीत का मन भारी था। वह रागिनी को इस सब में नहीं उलझाना चाहता था, लेकिन उसे यह भी पता था कि सच छुपाना अब मुमकिन नहीं था। उसने तय किया कि वह रागिनी से खुलकर बात करेगा।

और वह सोच ही रहा था कि रागिनी के घर जाए, मगर रागिनी तो खुद ही उसके घर आ गई। मंजीत ने उसे देखते ही मुस्कुराकर उसका स्वागत किया, लेकिन रागिनी का चेहरा देखकर उसकी मुस्कान थम गई। 

‘क्या हुआ? तुम ठीक तो हो?’ उसने चिंतित स्वर में पूछा। और उसका हाथ थाम उसे सोफे पर ला बिठाया। फिर गहरी साँस लेकर बोला, ‘रागिनी, मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है। 

सुनकर उसने मंजीत की ओर देखा और धीरे से कहा, ‘मंजीत, मैंने तुमसे कभी कुछ नहीं छुपाया। और मैं चाहती हूँ कि तुम भी मुझसे कुछ न छुपाओ।

मंजीत उसकी बात सुनकर डर गया और उसने तय कर लिया कि वह नताशा की बात अभी उससे छुआ लेगा। उसने उसे गले लगाया और कहा कि अब तो हम एकमेक हैं, अब तुमसे क्या छुपाना?" तो रागिनी की आँखों में आँसू आ गए, और मंजीत के दिल में एक सुकून। वह जानता था कि रागिनी का साथ उसे हर मुश्किल से निकाल लेगा।

उस शाम, दोनों ने देर तक बातें कीं। फिर खाना बनाया, खाया। रागिनी ने मंजीत को हिम्मत दी और कहा, ‘मंजीत, हमें अपने रिश्ते को मजबूत करना होगा। अगर हम एक-दूसरे पर भरोसा रखेंगे, तो कोई भी मुश्किल हमें हरा नहीं सकेगी।’

मंजीत ने हामी भरी और बोला, ‘रागिनी, तुम मेरी ताकत हो। मैं वादा करता हूँ, तुम्हारी फैमिली को मनाने की कोशिश करूँगा।’

...

रात हो गई थी और रागिनी अब लौटना नहीं चाहती थी। और न मंजीत उसे भेजना चाहता था। दरअसल, इस विपत्ति में वे दोनों साथ रहकर एक-दूसरे को हौसला देना चाहते थे। पर यह बात न तो रागिनी ने मंजीत से कही थी कि- हम रुकेंगे और न मंजीत ने कि- रुक जाओ! लेकिन अघोषित रूप से दोनों कर यही रहे थे...। अगर भेजने जाना होता तो मंजीत कपड़े चेंज नहीं करता और न रागिनी रसोई समेटने में इतना वक्त लेती! 

हो सकता है, इसके पीछे उनके प्रेम और मिलन की आकांक्षा भी छुपी हो! 

हाथ-मुँह धोकर जब वह गुनगुनाती हुई आईने के आगे बाल संवार रही थी, गाल उसे सचमुच भरे-भरे लगे और उरोज उन्नत। तब उसने कमर घुमा दोनों साइडें देखीं और आकर्षक हिप्स देख खुद पर मोहित हो गई।

उसे प्रसन्न देख मंजीत ने पीछे से आ बाहों में भरते हुए कहा, ‘यार, आज तो अपना दिन बन गया!’

‘सो कैसे?’ उसने गर्दन मोड़ मुस्कुराते हुए पूछा।

मंजीत बोला, ‘तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो...’

‘मुस्कुराने की वजह तुम हो...।’ रागिनी ने तपाक से कहा।  

‘हम...?’ मंजीत ने उसे बाँहों में भर लिया और सोफे पर ले आया। 

थोड़ी देर में रागिनी की मुस्कान और गहरी हो गई। जैसे बात हजम नहीं हो रही थी, वह मुस्कुराती हुई बोली, ‘पता है, आज गाँव से सौम्या दी आई थीं!’ 

‘अच्छा...?’ मंजीत ने मुँह ने फाड़ा। उसके लिए यह परिचय नया था।

‘पता है, उन्होंने क्या कहा?’

‘क्या?’ 

‘तेरे चेहरे की रौनक तो बदल गई है, यार... गाल भर गए हैं।’

सुनकर वह मुस्कुराने लगा, जैसे- अन्य सारी आशंकाएँ खत्म हो गई ‘और क्या बोली?’

‘बोली,’ रागिनी ने कुछ सकुचाते हुए कहा, ‘अब तो तेरा चेस्ट भी निकल आया है...’ 

‘सच में!’ सुनकर मंजीत उत्साहित हो गया, जैसे उसे पता न था, सो उसके सीने को टटोल कर देखा, और पूछा, ‘और क्या कहा?’ 

मंजीत की इस बेधक छुअन से रागिनी उत्तेजित हो गई, नजर गड़ा दी उसने, ‘दी ने कहा, पहले हिप्स भी कितने सूखे थे-तेरे!’ 

‘हा-य! नजर लगा दी!’ कहते मंजीत अब उसके हिप्स टटोलने लगा! 

देह की गर्मी, नजदीकी और वार्तालाप ने ऐसा माहौल बना दिया कि वह खुद ही चूड़ी पहनाने को उतावली हो उठी, और वह पहनने... सो मंजीत ने अगर उसके ओठ चूमे तो रागिनी खुद भी ऐसा करने से न चूकी! और इन चुम्बनों में न जाने ऐसा कौन-सा जादू था कि देह की दहलीज पर दस्तक होने लगी। रागिनी धीरे-धीरे उसकी गोद में आ गई और तब कुछ ही देर में दोनों एक-दूसरे को बाँहों में लिए पलंग पर आ गए। 

लग रहा था कि प्यार आज परवान चढ़कर रहेगा! क्योंकि आलिंगन-बद्धता और चुम्बनों के आदान-प्रदान से हृदय-गति और रक्तचाप खासा बढ़ गया था, जिससे श्वास लगातार फूल उठा था। और अब इसका इलाज उनका अवचेतन मन शारीरिक मिलन में ही ढूँढ रहा था...। 

मगर मंजीत आमादा हो आया, तो रागिनी उसका विराट रूप देख डर गई। उसे दीदी की हिदायत याद गई कि- ‘अपनी कद-काठी देखौ और उनकी... नईं तो घोड़ी की शेख में मेढ़की की तर्हां नाल ठुकवा लेउ!’  

दरअसल, उसे बचपन से ही लंबे-तगड़े पंजाबी लड़के पसंद थे। कल्पना किया करती थी कि जब वे पगड़ी उतारते होंगे, कैसे लगते होंगे! अगर उसे उनकी चोटी बनाने का अवसर मिले तो माँग भी भर दे...! दीदी से एक बार कहा भी उसने। 

और उन्होंने पलट के डपट दिया था, ‘चक्कर में भी न पड़ जइयो!’

पर उसने सीख नहीं मानी और अंटे में फँस ही गई! सो चटकी हुई चूड़ी जब चूर-चूर हुई, नानी याद आ गई। 

कहाँ वह सौम्या की तारीफों का जश्न मनाने आई थी पर यहॉं तो हँसी-मुस्कराहट आहों-कराहों में बदल गई, जबकि मंजीत मन ही मन विहँस रहा था कि नताशा ने जो मजा दो साल में नहीं दे पाया वो इस बंदी ने एक रात में दे दिया!

सुबह, जब सूरज की किरणें खिड़की से झाँकीं, रागिनी और मंजीत ने एक नया संकल्प लिया- वे अपने प्यार को अब हर हाल में बचाएँगे और एक-दूसरे के लिए हर मुश्किल से लड़ेंगे। उनकी कहानी अब सिर्फ प्यार की नहीं, बल्कि हिम्मत और विश्वास की भी है।

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