Mahashakti - 40 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 40

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महाशक्ति - 40


🌺 महाशक्ति – एपिसोड 40


"राक्षसी प्रेम और आत्म-द्वंद्व"




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🔱 प्रस्तावना – अग्निपथ की ओर


देवकुल की चेतना पार करने के बाद

अब अर्जुन, अनाया और ओजस

चले हैं उस धरती पर —

जहाँ शक्ति सिर्फ संहार है,

और प्रेम… एक कमजोरी माना जाता है।


अब बारी थी राक्षसकुल की —

जहाँ हर कोई अपने भीतर छिपा है,

लेकिन कोई भी अपने भीतर झाँकना नहीं चाहता।



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🔥 राक्षसकुल का प्रवेश – रक्तपथ का पहला कदम


तीनों अग्निपथ पर चल रहे थे —

एक जली हुई धरती, जहाँ पेड़ राख में बदल चुके थे

और आकाश लाल था, जैसे हर साँझ कोई युद्ध देख चुका हो।


वहाँ उन्हें रोकने आया एक रक्षक —

"कूर्म दैत्य",

जिसने कहा:


> "राक्षसों के बीच मानवों का प्रवेश वर्जित है।

पर यदि तुम अपने भीतर का राक्षस पहचान सको,

तो प्रवेश तुम्हारा अधिकार बन जाएगा।"





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🧿 अर्जुन की आत्मा का द्वंद्व – स्वयं से युद्ध


अर्जुन को अकेले एक अंधेरी गुफा में भेजा गया।

वहाँ एक दर्पण था — लेकिन वह सामान्य नहीं था।


उसमें अर्जुन ने खुद को देखा —

पर वह अर्जुन क्रोधित, अहंकारी और निष्ठुर था।


> "तू मुझे भूल गया अर्जुन?"

"मैं वो तू हूँ, जो चाहता था शक्ति सिर्फ अपने लिए।

अनाया को अपने प्रेम में बाँध कर रखना…

और ओजस की शक्ति को नियंत्रण में रखना!"




अर्जुन का गुस्सा फूटा:

"तू मेरा अतीत है — मैं तुझे स्वीकार करता हूँ,

पर तुझसे डरता नहीं!"


और अर्जुन ने अपनी हथेली से त्रिशूल मंत्र खींचकर

दर्पण पर फेंका —

दर्पण चटक गया।


अर्जुन घुटनों पर बैठ गया —

"मैं अपने भीतर के राक्षस को पहचानता हूँ…

अब उसे नियंत्रित भी कर सकता हूँ।"


गुफा के बाहर प्रकाश फूट पड़ा —

और कूर्म दैत्य झुक गया:


> "अब तू राक्षसकुल का अतिथि नहीं —

उसका दर्पण बन चुका है।"





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🌹 ओजस की मुलाकात – राक्षसी कन्या 'शल्या'


वहीं राक्षसकुल के एक कक्ष में

ओजस को मिली एक कन्या —

उसकी आँखें ज्वालामुखी जैसी जलती थीं,

पर स्वर एकदम शांत।


नाम था "शल्या" —

छाया की शिष्य, पर राक्षसकुल की सबसे बुद्धिमान कन्या।


उसने ओजस को देखते ही कहा:

"तू वैसा नहीं है जैसा मुझे सिखाया गया था।

तू… सुंदर है। भीतर से भी।"


ओजस मुस्कराया,

"और तुम… वैसी नहीं जैसी मुझे बताया गया था।"


शल्या ने कहा:

"मैं तुझे मारने आई थी…

पर अब मेरा हृदय कहता है —

तू पहली बार मेरे भीतर कुछ शांत करता है।"


ओजस चुप रहा।

पहली बार उसे किसी में अपनी उम्र जैसा अपनापन महसूस हुआ।



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🌑 मोहंध की तीसरी चाल – अनाया का संदेह


मोहंध अब अनाया की चेतना में घुसा।


उसने एक दृश्य रचा —

ओजस और शल्या एक-दूसरे का हाथ थामे हुए।


अनाया चौंकी —

"नहीं… ये संभव नहीं।

शल्या… एक राक्षसी है!"


पर तभी अनाया की चेतना में माँ पार्वती की आवाज़ आई:


> "जब प्रेम में सीमा रखी जाती है,

तब वह स्वार्थ बन जाता है।

ओजस को मोह नहीं — समझ की ज़रूरत है।"




अनाया ने आँखें बंद कीं —

उसने अपने मोह को त्यागा।


"अगर शल्या के प्रेम में ओजस की शांति है —

तो मैं उस प्रेम को स्वीकार करती हूँ।"


मोहंध चिल्लाया —

"ये स्त्री… मेरी हर चाल उलट देती है!"



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🕯️ राक्षसकुल का दर्शन – भय के पीछे छिपी मानवता


रात्रि में राक्षसकुल की सभा हुई।


मुख्य राक्षस, "वज्रांग", बोला:


> "हम पर देवताओं ने अन्याय किया…

हमें राक्षस कहा गया क्योंकि हमने सवाल पूछे।

पर ये बालक… ओजस… वो हमें सुनता है।"




ओजस ने कहा:

"राक्षस वे नहीं जो डराते हैं…

राक्षस वे हैं जो प्रेम को कमज़ोरी समझते हैं।

आपने मुझे अपनाया,

मैं आपको समझता हूँ — यही मेरा धर्म है।"


सभा में मौन फैल गया —

फिर पहली बार राक्षसकुल ने झुककर प्रणाम किया।



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💔 शल्या का संघर्ष – प्रेम बनाम वचन


शल्या रात में ओजस से मिली।


उसने कहा:

"मैं छाया की शपथ खा चुकी हूँ…

मुझे तुझे भविष्य में चोट पहुँचानी होगी।"


ओजस बोला:

"तुमसे जो प्रेम मिला,

वो मेरी आत्मा में रहेगा —

भले ही तुम मेरा दिल तोड़ दो।"


शल्या रो पड़ी:

"अगर कभी मैं तेरे विरुद्ध खड़ी होऊँ…

तो मुझे तेरे भीतर के प्रकाश से जलाकर भस्म कर देना।"


ओजस ने हाथ जोड़ लिए:

"अगर कोई राक्षसी प्रेम करना सीख सकती है —

तो सृष्टि में फिर अंधकार का स्थान कहाँ?"



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🌠 तीनों की वापसी – अब छाया से सीधा युद्ध


अर्जुन, अनाया और ओजस —

तीनों राक्षसकुल से आशीर्वाद और चेतना लेकर लौटे।


अब केवल दो

कुल शेष थे —

मानवकुल और यक्षकुल —

पर उससे पहले…

छाया ने एक निर्णय लिया:


> "अब मुझे प्रकट होना होगा।

मोह, भ्रम और भय सभी असफल हो गए।

अब केवल एक अस्त्र बचा है —

छल।"





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✨ एपिसोड 40 समाप्त