Mahashakti - 48 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 48

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महाशक्ति - 48


🌺 महाशक्ति – एपिसोड 48

"संधि, दूत और बलिदान की आहट"



---

🕊️ प्रारंभ – एक शर्त जो युद्ध को रोक सकती थी…

शाम के नीले आकाश में
एक अदृश्य पक्षी उड़ता हुआ आया,
और एक संदेश गिराया अर्जुन और अनाया के समक्ष।

वह छाया की ओर से था।

> "हम अब सीधा युद्ध नहीं चाहते।
अगर तुम हमारे अंतिम दूत से बात कर सको,
और उसकी आत्मा को छू सको,
तो हम हमेशा के लिए लुप्त हो जाएँगे।
पर शर्त यह है —
तुम्हारे चार में से एक को अंतिम बलिदान देना होगा।"



अर्जुन ने अनाया की ओर देखा।
ओजस ने माँ की उंगलियाँ थामीं।
शल्या एकटक आकाश की ओर देख रही थी।

किसी ने कुछ नहीं कहा —
क्योंकि कभी-कभी मौन ही स्वीकृति होता है।


---

⚔️ ओजस और अंतिम दूत – युद्ध जो शब्दों से लड़ा गया

दूसरे दिन ओजस अकेले
गहन जलवृक्ष वन की ओर बढ़ा —
जहाँ छाया का अंतिम दूत
— "अलीत" — उसका इंतज़ार कर रहा था।

अलीत कोई राक्षस नहीं था।
वह एक पूर्व मानव योद्धा था,
जिसे छल, अपमान और अस्वीकार ने
छाया की ओर धकेल दिया।

"तू मुझसे लड़ने आया है, ओजस?"
अलीत ने पूछा।

"नहीं," ओजस बोला,
"मैं तुझे सुनने आया हूँ।"

"कोई कभी मुझे सुनने नहीं आया,
सबने केवल मुझे रोका, ठुकराया, भगाया…"

"तो आज पहली बार,
तू खुद को कह…
मैं केवल सुनूँगा।"

अलीत रो पड़ा।

उसकी चीखें, उसकी कहानियाँ,
उसकी टूटी इच्छाएँ —
ओजस सुनता रहा।

अंत में अलीत बोला:

> "तू युद्ध जीत नहीं रहा…
तू मेरी आत्मा को छू रहा है।
शायद… यही मुक्ति है।"



अलीत ने अपनी शक्ति का कवच उतार दिया —
और छाया का पहला प्रकाश
धरती को छू गया।


---

🌸 शल्या – आत्ममुक्ति का अंतिम द्वार

शल्या वापस उसी स्थान पर पहुँची
जहाँ एक बार
उसने एक अनाथ कन्या को
छाया के कहने पर छोड़ दिया था।

अब वहाँ एक 12 वर्ष की लड़की बैठी थी —
जिसकी आँखों में सवाल थे।

"क्या तुम वो हो…
जिसने मुझे माँ बनने से इंकार किया था?"

शल्या काँप उठी।
उसने कहा:

"हाँ… और आज मैं
तुझसे केवल माफी नहीं,
माँ बनने का अधिकार मांगने आई हूँ।"

लड़की कुछ पल चुप रही,
फिर उसके गले लग गई।

शल्या के शरीर से एक काली परत टूट गई —
और वह पहली बार पूर्ण श्वेत हो गई।


---

🕯️ अर्जुन और अनाया – शर्त के सामने

गुरुजी ने चारों को एकत्र किया:

> "अब छाया शर्त पर अडिग है।
अंतिम बलिदान के बिना
वह स्वयं को नहीं समाप्त करेगी।
और यह बलिदान केवल स्वेच्छा से स्वीकार होगा।"



तभी एक दिव्य लेख सामने प्रकट हुआ —
जिस पर लिखा था:

> “जिसने सबसे अधिक प्रेम किया,
वही अब सबसे अधिक त्याग करेगा…”



चारों एक-दूसरे की ओर देखे।

तभी अर्जुन आगे आया।

"मुझे अपने जीवन से अधिक
अनाया, ओजस और शल्या प्यारे हैं।
अगर मेरा जाना
इनके जीवन को पूर्ण करता है —
तो मैं प्रेम से मरने को तैयार हूँ।"

अनाया चिल्लाई:

"नहीं अर्जुन!
तू मेरा जीवन है!"

"और तू मेरा अंतिम स्वप्न…
पर अगर मेरी मृत्यु
तेरी मुस्कान का कारण बन सकती है,
तो मैं इसे वरदान समझूँगा।"


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🌠 गहन भाव का चरम – ओजस का निर्णय

जैसे ही अर्जुन आगे बढ़ा,
ओजस सामने आ खड़ा हुआ।

"नहीं… यह बलिदान मेरा होगा।"

"ओजस… तू अभी जीवन के प्रारंभ पर है…"

"और आप सब मेरे जीवन का कारण हो।
अब समय है —
कि मैं केवल पुत्र ना रहूँ,
बल्कि एक संरक्षक बन जाऊँ।"

तभी शल्या ने उसकी आँखों में देखा।

"ओजस, नहीं…
तू प्रकाश है।
तुझे बुझाना अन्याय होगा।"

चारों मौन।
सभी तैयार।
पर तभी…


---

🌈 छाया का अंतिम उत्तर – बलिदान नहीं, समर्पण चाहिए

एक दिव्य प्रकाश के बीच
छाया का अंतिम दूत प्रकट हुआ —
पर अब उसकी आकृति मानव सी थी।

"हमने तुम्हारा प्रेम, माफी, त्याग सब देखा।
अब हमें बलिदान नहीं…
समर्पण चाहिए।"

"कौन करेगा समर्पण?"
गुरुजी ने पूछा।

शल्या ने एक कदम आगे बढ़ाया।

"मैं अपना पूरा अतीत समर्पित करती हूँ —
ना छाया की गुलामी,
ना पश्चाताप का बोझ।
अब मैं केवल प्रेम और क्षमा की प्रतीक हूँ।"

अर्जुन ने कहा:
"मैं अपना युद्ध-योद्धा स्वरूप समर्पित करता हूँ।
अब मैं सेवा को चुनता हूँ।"

अनाया:
"मैं अपने प्रेम को बंदन से मुक्त करती हूँ…
अब प्रेम स्वतंत्र होगा।"

ओजस:
"मैं शक्ति नहीं, विनम्रता को अपनाता हूँ।"


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🌅 समापन – जब बलिदान टलता है और प्रेम विजयी होता है…

जैसे ही चारों ने समर्पण किया,
आकाश की छाया बिखरने लगी।
हर दिशा में उजास फैल गया।

गुरुजी बोले:

> "अब सत्य की स्थापना हो चुकी है।
और अंत की नहीं,
एक नई शुरुआत की घोषणा हो रही है।"




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✨ एपिसोड 48 समाप्त