MUZE JAB TI MERI KAHAANI BAN GAI - 11 in Hindi Love Stories by Chaitanya Shelke books and stories PDF | MUZE जब तू मेरी कहानी बन गई - 11

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MUZE जब तू मेरी कहानी बन गई - 11

Chapter 11: दिल के फ़ासले, दिल से ही मिटते हैं

 

वेबसीरीज़ की सफलता और विवाद से बाहर निकलने के बाद आरव और काव्या की ज़िंदगी में थोड़ी शांति आ गई थी। लेकिन जैसे ही सब कुछ सही लगता, ज़िंदगी कुछ नया परोस देती।

उस सुबह की शुरुआत बड़ी ही सामान्य थी — आरव अपनी कॉफी बनाते हुए किचन में था और काव्या बालकनी में बैठकर स्क्रिप्ट पढ़ रही थी। लेकिन दोनों की खामोशी में हल्का सा तनाव तैर रहा था।

आरव ने देखा कि काव्या पिछले कुछ दिनों से खोई-खोई सी है। वो मुस्कुराती थी, लेकिन वो मुस्कान वैसी नहीं थी।

"काव्या, सब ठीक है?" उसने धीरे से पूछा।

काव्या ने एक सेकंड को उसकी तरफ देखा, फिर मुस्कुरा दी, "हाँ, बस थक गई हूँ थोड़ा।"

आरव जानता था, ये सिर्फ थकान नहीं थी। पर उसने ज़्यादा कुछ नहीं कहा। शायद कुछ बातें वक्त खुद कहता है।


उसी दिन उन्हें एक नया ऑफर मिला — एक बड़े प्रोडक्शन हाउस से फिल्म का प्रस्ताव, जिसमें आरव स्क्रिप्ट लिखेगा और काव्या लीड एक्ट्रेस होगी। ये मौका किसी सपने जैसा था।

मीटिंग्स शुरू हो गईं। आरव के शब्दों में जादू था और काव्या की स्क्रीन प्रेज़ेंस कमाल की। सबकुछ परफेक्ट लग रहा था... पर तभी एक नई बात सामने आई — इस फिल्म का प्रोड्यूसर था... रणविजय।

काव्या का चेहरा सख्त हो गया। "मैं इस फिल्म का हिस्सा नहीं बन सकती," उसने मीटिंग के बाद कहा।

आरव चौंका, "क्यों? ये तो हमारी मेहनत का रिज़ल्ट है।"

"क्योंकि वो रणविजय है, और मैं उसे दोबारा मौका नहीं देना चाहती हमारी कहानी में ज़हर घोलने का।"

आरव सोच में पड़ गया। क्या सच में एक मौका नहीं मिलना चाहिए? या फिर ये जोखिम सही नहीं होगा?


काव्या ने आरव से बात करना कम कर दिया। दोनों काम में व्यस्त रहे, लेकिन एक दूरी बनती चली गई। आरव अकेले में रणविजय से मिला।

रणविजय ने कहा, "मैं मानता हूँ, मैंने गलती की थी। पर इंसान बदलता है। मैं तुम्हारी स्क्रिप्ट पर पैसा लगाना चाहता हूँ क्योंकि वो वाकई कमाल की है — और मैं जानता हूँ, इस बार मैं खुद को साबित करना चाहता हूँ।"

आरव कन्फ्यूज़ था। दिल और दिमाग, दोनों उलझे हुए थे।


काव्या को जब पता चला कि आरव रणविजय से मिला है, तो उसने खुद को और दूर कर लिया। उसे लगा कि आरव उसकी भावनाओं को नहीं समझ पाया।

एक रात आरव ने उसकी डायरी में देखा — जो अक्सर वो बालकनी में लिखती थी। उसमें लिखा था:

"कभी-कभी इंसान सिर्फ अपने लिए नहीं, अपनों के लिए फैसले लेता है। पर जब अपने ही समझ न पाए, तो सवाल खुद से पूछना पड़ता है — क्या मैं गलत हूँ, या बस अकेली हूँ?"

आरव की आँखें नम हो गईं।


अगली सुबह उसने काव्या को छत पर बुलाया।

"मैंने उस फिल्म से इनकार कर दिया," उसने कहा।

काव्या ने उसकी तरफ देखा, "क्यों?"

"क्योंकि कहानी सिर्फ स्क्रीन पर नहीं, ज़िंदगी में भी चल रही होती है — और मैं उस ज़िंदगी को किसी ऐसे इंसान के हाथ में नहीं देना चाहता, जिसने हमें तोड़ने की कोशिश की।"

काव्या की आँखों में नमी थी, पर होंठों पर मुस्कान।

"पता है आरव, मुझे डर था कि तू मुझे खो देगा... पर तूने फिर से भरोसा जिता दिया।"

आरव ने उसका हाथ पकड़ा, "तू सिर्फ मेरी कहानी नहीं, मेरी कहानी की वजह है।"


और इस तरह एक और मोड़ पार हुआ। दोनों के बीच का फ़ासला फिर से प्यार में पिघल गया।

ज़िंदगी हर बार आसान नहीं होती, पर जब साथ सही हो, तो हर मुश्किल आसान लगने लगती है।