Gazal - Sahara me Chal ke Dekhte Hain - 3 in Hindi Poems by alka agrwal raj books and stories PDF | ग़ज़ल - सहारा में चल के देखते हैं - 3

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ग़ज़ल - सहारा में चल के देखते हैं - 3

Alka agrwal ki gazalyat

 ******ग़ज़ल****

2122     2122    2122   

डूबा ऐसा की मुहब्बत का समुन्दर निकला  ।

वो सफ़ीना था इसी वास्ते तो बहकर निकला,।।

 

दर्द,- ग़म अपना वो दर्द के केसे पैकर निकला ।

वो मुहब्बत से हरिक दर्द से बाहर निकला ।।

 

ख़्वाब के मेरे अनोखे से वहम मन्ज़र थे ।

जो है ख्वाबों में तू  गहरा सा वो समुंदर निकला ।।

 

ढूंढ़ती हूँ में जिन्हें आजकल होके दर बदर ।

वो मिरा ही है वो हमराज भी रहबर निकला ।।

 

रह उजालों में भी मैं तेरे जो क़ाबिल इसलिए ।

तीरगी  से लड़ ख़ुद को मेने लड़कर निकला ।।

 

ख़ुश्क आँखों ने जो देखा मन्ज़र कैसा ।

हैं लबों पर तेरे बातों के से ख़ंजर निकला ।।

 

बदलते हो न ये मौसम कि तरह राज़ जो तुम ।

आज ख़ुद से में तो ख़ुदी बे ख़बर निकला ।।

 

अलका "राज़ "अग्रवाल ✍️✍️

**ग़ज़ल ***

2122    2122   2122  212

प्यार की मुझको अनोखी वो निशानी दे गया।

ज़िन्दगी भर के लिए ग़म जवेदानी दे गया।।

 

हर ज़बाँ पर उसकी और मेरी कहानी दे गया।

फिर नया इक मरहला वो इम्तेहानि दे गया।।

 

ये अलग है नींदें मेरी छीन ली उसने मगर।

वो  महक ते ख़्वाब मुझको आसमानी दे गया।।

 

दिल की उजड़ी बस्ती उसने फिर बसा कर ख़्वाब में।

वो नई फिर से मुझे इक ज़िंदगानी दे गया।।

 

जिसको दुनिया ने दिया था झूठ का तमग़ा कभी।

आज वो दुश्मन के हक़ में हक़ बयानी दे गया।।

 

बन के यूसुफ़ आ गया दिल के जब बाजार में।

वो ज़ुलेख़ा की तरह मुझको जवानी दे गया।।

 

"राज़" इक पल मुस्कुराने की सज़ा इतनी बड़ी।

उम्र भर के वास्ते आँखों में  पानी दे गया।।

 

अलका "राज़ "अग्रवाल ✍️✍️

जवेदानी = अमर हमेशा रहने वाला या वाली

 

2,,,,****ग़ज़ल ****

हमारा रोज़ नदी से गुज़र है क्या कहिये।

सहारा कोई नहीं तैरकर है क्या कहिये।।

 

ये नफ़रत…

 ****ग़ज़ल***

खिल गया दिल चाँदनी सौग़ात है।

आप की क्या बात है क्या बात है।।

 

तेरी क़िस्मत की सहर हो जाएगी।

सब्र कर थोड़ी सी बाक़ी रात है।।

 

इश्क़ के चक्कर में धोके खा चुका।

दिल हमारा इसलिए मोहतात है।।

 

रोज़ हमको ही मिला चेहरा नया।

हर क़दम पर पाई हमनें घात है।।

 

ज़िन्दगी से दूर वो जाता रहा।

जीत बोलें इसको या के मात है।।

 

प्यार का बादल कहीं पर भी नहीं।

नफ़रतों की किस क़दर बरसात है।।

 

"राज़" ख़ुशियों का पता मिलता नहीं।

हाँ ग़मों की तो मगर इफ़रात है।।

 

अलका  " राज़ "अग्रवाल ✍️✍️

*****ग़ज़ल****

221.....2122.....1221......212...

सब लम्हे ख़त्म करके अभी इंतज़ार के।

जितनी भी ज़िन्दगी है करूँ नाम  यार के।।

 

उल्फ़त में क्या करूँ जो मिले सुख उधार के ।

लम्हे थे ज़िन्दगी में बहुत कम क़रार के।।

 

लौटा दे काश मेरे कोई दिन वो प्यार के।

कितने  सुहाने  पल  थे  सनम इंतज़ार के।।

 

इक ये उमीद पर ही बसर ज़िन्दगी हुई।

आएंगे ज़िन्दगी में मिरी दिन बहार के।।

 

करने से पहले क़त्ल मुझे ये जवाब दो।

बतलाओ क्या मिलेगा तुम्हें मुझको मार के।।

 

हम को पता है बच नहीं पाएगा अब के सर।

दस्तार क्या करेंगे फिर अपनी उतार के।।

 

आता नहीं समझ में मिरी "राज़" है ये क्या।

पीछे पड़े हैं क्यूँ वो दिल ए सोगवार के।।

 

अलका ' राज़ ' अग्रवाल ✍️✍️